ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 124/ मन्त्र 2
ऋषिः - कक्षीवान् दैर्घतमसः औशिजः
देवता - उषाः
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
अमि॑नती॒ दैव्या॑नि व्र॒तानि॑ प्रमिन॒ती म॑नु॒ष्या॑ यु॒गानि॑। ई॒युषी॑णामुप॒मा शश्व॑तीनामायती॒नां प्र॑थ॒मोषा व्य॑द्यौत् ॥
स्वर सहित पद पाठअमि॑नती । दैव्या॑नि । व्र॒तानि॑ । प्र॒ऽमि॒न॒ती । म॒नु॒ष्या॑ । यु॒गानि॑ । ई॒युषी॑णाम् । उ॒प॒ऽमा । शश्व॑तीनाम् । आ॒ऽय॒ती॒नाम् । प्र॒थ॒मा । उ॒षाः । वि । अ॒द्यौ॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अमिनती दैव्यानि व्रतानि प्रमिनती मनुष्या युगानि। ईयुषीणामुपमा शश्वतीनामायतीनां प्रथमोषा व्यद्यौत् ॥
स्वर रहित पद पाठअमिनती। दैव्यानि। व्रतानि। प्रऽमिनती। मनुष्या। युगानि। ईयुषीणाम्। उपऽमा। शश्वतीनाम्। आऽयतीनाम्। प्रथमा। उषाः। वि। अद्यौत् ॥ १.१२४.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 124; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथोषर्दृष्टान्तेन स्त्रीविषयमाह ।
अन्वयः
हे स्त्रि यथोषा दैव्यानि व्रतान्यमिनती मनुष्या युगानि प्रमिनती शश्वतीनामीयुषीणामुपमाऽऽयतीनां च प्रथमा विश्वं व्यद्यौत्। जागृतैर्मनुष्यैर्युक्त्या सदा सेव्या तथा त्वं वर्त्तस्व ॥ २ ॥
पदार्थः
(अमिनती) अहिंसन्ती (दैव्यानि) दिव्यगुणानि (व्रतानि) वर्त्तमानानि सत्यानि वस्तूनि कर्माणि वा (प्रमिनती) प्रकृष्टतया हिंसन्ती (मनुष्या) मानुषसंबन्धीति (युगानि) वर्षाणि (ईयुषीणाम्) अतीतानाम् (उपमा) दृष्टान्तः (शश्वतीनाम्) सनातनीनामुषसां प्रकृतीनां वा (आयतीनाम्) आगच्छन्तीनाम् (प्रथमा) (उषाः) (वि) (अद्यौत्) विविधतया प्रकाशयति ॥ २ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेयमुषाः सन्ततेन पृथिवी सूर्यसंयोगेन सह चरिता यावन्तं पूर्वं देशं जहाति तावन्तमुत्तरं देशमादत्ते वर्त्तमानाऽतीतानामुषसामुपमाऽऽगामिनीनामादिमा सती कार्य्यकारणयोर्ज्ञानं प्रज्ञापयन्ती सत्यधर्माचरणनिमित्तकालावयवत्वादायुर्व्ययन्ती वर्त्तते सा सेविता सती बुद्ध्यारोग्यादीन् शुभगुणान् प्रयच्छति तथा विदुष्यः स्त्रियः स्युः ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उषा के दृष्टान्त से स्त्री के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे स्त्री ! जैसे (उषाः) प्रातःसमय की वेला (दैव्यानि) दिव्य गुणवाले (व्रतानि) सत्य पदार्थ वा सत्य कर्मों को (अमिनती) न छोड़ती और (मनुष्या) मनुष्यों के सम्बन्धी (युगानि) वर्षों को (प्रमिनती) अच्छे प्रकार व्यतीत करती हुई (शश्वतीनाम्) सनातन प्रभातवेलाओं वा प्रकृतियों और (ईयुषीणाम्) हो गईं प्रभातवेलाओं की (उपमा) उपमा दृष्टान्त और (आयतीनाम्) आनेवाली प्रभातवेलाओं में (प्रथमा) पहिली संसार को (व्यद्यौत्) अनेक प्रकार से प्रकाशित कराती और जागते अर्थात् व्यवहारों को करते हुए मनुष्यों को युक्ति के साथ सदा सेवन करने योग्य है, वैसे तूँ अपना वर्त्ताव रख ॥ २ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे यह प्रातःसमय की वेला विस्तारयुक्त पृथ्वी और सूर्य के साथ चलनेहारी जितने पूर्व देश को छोड़ती उतने उत्तर देश को ग्रहण करती है तथा वर्त्तमान और व्यतीत हुई प्रातःसमय की वेलाओं की उपमा और आनेवालियों की पहिली हुई कार्यरूप जगत् का और जगत् के कारण का अच्छे प्रकार ज्ञान कराती और सत्य धर्म के आचरण निमित्तक समय का अङ्ग होने से उमर को घटाती हुई वर्त्तमान है, वह सेवन की हुई बुद्धि और आरोग्य आदि अच्छे गुणों को देती है, वैसे पण्डिता स्त्री हों ॥ २ ॥
विषय
अमिनती प्रमिनती
पदार्थ
१. (उषाः) = उषा (व्यद्यौत्) = विशेषरूप से चमकती है । वह उषा जो कि (दैव्यानि व्रतानि अमिनती) = दैव्य व्रतों को हिंसित नहीं करती । इस उषा में उन कर्मों की समाप्ति नहीं होती जो कर्म हमें उस देव को प्राप्त करानेवाले हैं । आसन, प्राणायाम, ध्यान व स्वाध्याय आदि कर्मों के द्वारा हम उस प्रभु के समीप और समीप पहुँचते जाते हैं । २. यह उषा (मनुष्या युगानि) = मनुष्यों के आयुष्य - कालों को (प्रमिनती) = हिंसित करती है । एक-एक उषा के आने के साथ हमारा आयुष्य एक-एक दिन कम होता चलता है । ३. यह उषा (शश्वतीनाम्) = सनातन काल से आ रही [नित्यानाम् - सा०] (ईयुषीणाम्) = जो आज तक आ चुकी हैं उन उषाओं की (उपमा) = [ताभिः सादृशी] उपमा है, उन जैसी है तथा (आयतीनाम्) = आगे आनेवाली उषाओं की यह (प्रथमा) = प्रथमभाविनी है । ऐसी यह उषा चमकती है और हमारे जीवनों को ज्योतिर्मय बनाती है ।
भावार्थ
भावार्थ - हम उषा में प्रबुद्ध हों और दैव्य व्रतों का पालन करने में प्रवृत्त हो जाएँ ।
विषय
पक्षान्तर में सेना और योगज विशोका का दिग्दर्शन ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( उषा ) प्रभातवेला, ( दैव्यानि व्रतानि अमिनती ) देव, परमेश्वर सम्बन्धी व्रतों, उपासना आदि कर्मों का लोप न करती हुई ( मनुष्या युगानि ) मनुष्य सम्बन्धी वर्षों की ( प्रमिनती ) उत्तम रीतिसे मान करती हुई ( इयुषीणाम् उपमा ) अभीतक आई समस्त उषाओं के सदृश और ( आयतीनां प्रथमा ) आगे आनेवाली समस्त उषाओं को प्रथम, मुख्य होकर ( वि अद्यौत् ) विशेष रूप से प्रकाशित होती है उसी प्रकार कमनीय गुणों से युक्त वधू ( दैव्यानि ) देव, परमेश्वर, आचार्य, माता, पिता, पति आदि मान्य पुरुषों, या उपासना सेवाशुश्रूषा आदि नित्य धर्मों तथा उनके उपदेश किये कर्मों का (अमिनती) कभी भी लोप न करती हुई और (मनुष्या) मनुष्य जाति के ( युगानि) युगों अर्थात् भिन्न भिन्न युगों, कालों, समयों का ( प्रमिनती ) निर्माण करती हुई (इयुषीणाम् उपमा) पूर्व आई उत्तम स्त्रियों के बीच उपमा देने योग्य, अनुकरणीय आचरण वाली, आदर्श हो कर और (आयतीनां प्रथमा) और आगे, भविष्य में उस कुल या ग्राम में आने वाली वधुओं में सबसे प्रथम, सबसे श्रेष्ठ होकर (वि अद्यौत्) विविध गुणों से प्रकाशित हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कक्षीवान्दैर्घतमस ऋषिः ॥ उषो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ६, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७, ११ त्रिष्टुप् । १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १३ भुरिक् पङ्क्तिः । ५ पङ्क्तिः । ८ विराट् पङ्क्तिश्च ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी ही प्रातःकाळची वेळ विस्तारयुक्त पृथ्वी व सूर्याबरोबर चालणारी असते व पूर्वस्थानाला सोडत उत्तर स्थानाला ग्रहण करते, तशीच वर्तमान व भूतकाळाची उपमा व येणाऱ्या कार्यरूप जगाचे व जगाच्या कारणाचे चांगल्या प्रकारे ज्ञान करविते व सत्यधर्माचरण निमित्तक वेळेचे अंग असल्यामुळे आयू कमी करते. ती ग्रहण केलेली बुद्धी व आरोग्य इत्यादी शुभ गुणांना देते तशी पंडिता स्त्री असावी. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Not violating the laws of Divinity, counting out the ages of humanity, shines the dawn, last picture of the dawns gone by, first of the dawns coming, an instance of the original and eternal Dawn recurring every morning.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a woman are told by the illustration of the Dawn.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O woman! Thou should be like the Dawn who does not violate divine ordinance or true vows and acts, who wears away the age of mankind, who shines brightly, being the last of endless morns that have departed and the first of those that come. Thou should act like the dawn which is properly utilized by all alert persons.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(अमिनती) अहिंसन्ती = Not violating. (युगानि) वर्षाणि = Years. (व्रतानि) वर्तमानानि सत्यानि वस्तूनि कर्माणि वा = True acts and objects-vows. (मीञ-हिंसायाम्) Tr.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the Dawn coming in contact with the earth and the sun leaves the eastern side and goes to the Nothern side, is the model or mono-type of the past dawns and first of the forthcoming dawns, denoting the cause and effect, diminishing the age of mankind day by day, augments intellect, virtues and health when properly utilized, so should be all learned ladies (They should never violate vows and holy ordinances of the Vedas.
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