ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 124/ मन्त्र 11
ऋषिः - कक्षीवान् दैर्घतमसः औशिजः
देवता - उषाः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अवे॒यम॑श्वैद्युव॒तिः पु॒रस्ता॑द्यु॒ङ्क्ते गवा॑मरु॒णाना॒मनी॑कम्। वि नू॒नमु॑च्छा॒दस॑ति॒ प्र के॒तुर्गृ॒हंगृ॑ह॒मुप॑ तिष्ठाते अ॒ग्निः ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । इ॒यम् । अ॒श्वै॒त् । यु॒व॒तिः । पु॒रस्ता॑त् । यु॒ङ्क्ते । गवा॑म् । अ॒रु॒णाना॑म् । अनी॑कम् । वि । नू॒नम् । उ॒च्छा॒त् । अस॑ति । प्र । के॒तुः । गृ॒हम्ऽगृ॑हम् । उप॑ । ति॒ष्ठा॒ते॒ । अ॒ग्निः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अवेयमश्वैद्युवतिः पुरस्ताद्युङ्क्ते गवामरुणानामनीकम्। वि नूनमुच्छादसति प्र केतुर्गृहंगृहमुप तिष्ठाते अग्निः ॥
स्वर रहित पद पाठअव। इयम्। अश्वैत्। युवतिः। पुरस्तात्। युङ्क्ते। गवाम्। अरुणानाम्। अनीकम्। वि। नूनम्। उच्छात्। असति। प्र। केतुः। गृहम्ऽगृहम्। उप। तिष्ठाते। अग्निः ॥ १.१२४.११
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 124; मन्त्र » 11
अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
यथेयमुषा अरुणानां गवामनीकं युङ्क्ते पुरस्तादवाश्वैच्च तथा युवतिररुणानां गवामनीकं युङ्क्तेऽवाश्वैत्ततः प्रकेतुरुषा असति नूनं व्युच्छात्। अग्निरस्याः प्रतापो गृहंगृहमुपतिष्ठाते युवतिश्च प्रकेतुरसति नूनं व्युच्छात्। अग्निरस्याः प्रतापो गृहंगृहमुपतिष्ठाते ॥ ११ ॥
पदार्थः
(अव) (इयम्) (अश्वैत्) वर्द्धते (युवतिः) पूर्णचतुर्विंशतिवार्षिकी (पुरस्तात्) प्रथमतः (युङ्क्ते) समवैति (गवाम्) किरणानां गवादीनां पशूनां वा (अरुणानाम्) रक्तानाम् (अनीकम्) सैन्यमिव समूहम् (वि) (नूनम्) (उच्छात्) प्राप्नुयात् (असति) स्यात् (प्र) (केतुः) उद्गतशिखा प्रज्ञावती वा (गृहंगृहम्) (उप) (तिष्ठाते) तिष्ठेत (अग्निः) अरुणतरुणतापस्तीव्रप्रतापो वा ॥ ११ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषर्दिने सदैव समवेते वर्त्तेते तथैव विवाहितौ स्त्रीपुरुषौ वर्तेयातां यथानियतं सर्वान् पदार्थान् प्राप्नुयातां च तदानयोः प्रतापो वर्द्धते ॥ ११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
जैसे (इयम्) यह प्रभातवेला (अरुणानाम्) लाली लिये हुए (गवाम्) सूर्य की किरणों के (अनीकम्) सेना के समान समूह को (युङ्क्ते) जोड़ती और (पुरस्तादवाश्वैत्) पहिले से बढ़ती है वैसे (युवतिः) पूरी चौबीस वर्ष की ज्वान स्त्री लाल रङ्ग के गौ आदि पशुओं के समूह को जोड़ती पीछे उन्नति को प्राप्त होती इससे (प्र, केतुः) उठी है शिखा जिसकी वह बढ़ती हुई प्रभात वेला (असति) हो और (नूनम्) निश्चय से (व्युच्छात्) सबको प्राप्त हो (अग्निः) तथा सूर्यमण्डल का तरुण ताप उत्कट धाम (गृहंगृहम्) घर-घर (उप, तिष्ठाते) उपस्थित हो युवति भी उत्तम बुद्धिवाली होती, निश्चय से सब पदार्थों को प्राप्त होती और इसका उत्कट प्रताप घर-घर उपस्थित होता अर्थात् सब स्त्री-पुरुष जानते और मानते हैं ॥ ११ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रभातवेला और दिन सदैव मिले हुए वर्त्तमान हैं, वैसे ही विवाहित स्त्री-पुरुष मेल से अपना वर्त्ताव रक्खें और जिस नियम के जो पदार्थ हों, उस नियम से उनको पावें तब इनका प्रताप बढ़ता है ॥ ११ ॥
विषय
अग्निहोत्र
पदार्थ
१. (इयम्) = यह युवतिः अन्धकार को दूर करने व प्रकाश से मेल करानेवाली उषा (अव अश्वैत्) = अतिशयेन वृद्धि को प्राप्त करती है [श्वि - वृद्धि] अथवा तीन गतिवाली होती है [श्वि गतौ] । यह उषा (पुरस्तात्) = पूर्व दिशा में (अरुणानाम्) = कुछ-कुछ लाल (गवाम्) = किरणों के (अनीकम्) = समूह को (अङ्क्ते) = अपने साथ जोड़ती है । इस युवति उषा के रथ की संचालक ये अरुण गौएँ ही तो हैं [अरुण्यः गावः उषसाम्] । २. यह उषा (नूनम्) = निश्चय से (वि उच्छात्) = अन्धकार को दूर करती है और (असति) = रात्रि के अन्धकार में किसी भी वस्तु के न दिखने से असत्प्राय इस अन्तरिक्ष में (प्रकेतुः) = प्रकर्षेण पदार्थों का ज्ञापन करनेवाली होती है । इस प्रकार प्रकाश में सब पदार्थों के दिखने के (पश्चात् गृहं गृहम्) = प्रत्येक घर में (अग्निः) = अग्नि (उपतिष्ठाते) = उपस्थित होती है, लोग अग्निहोत्रादि कर्मों में प्रवृत्त होते हैं और अग्निकुण्डों में अग्नि का आधान करते हैं । वस्तुतः उषाकाल में शोधन व स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर प्रत्येक दम्पती को इस अग्निहोत्र में प्रवृत्त होना चाहिए । यह घर की वायु की शुद्धि के लिए उसके द्वारा नीरोगता के लिए व सौमनस्य के लिए आवश्यक है ।
भावार्थ
भावार्थ - उषा की अरुण किरणों के आते ही सब असत्प्राय संसार सत् हो जाता है । इस सत् - संसार में सत्कार्यों को करते हुए अग्निहोत्र से दिन को प्रारम्भ करना चाहिए ।
विषय
पक्षान्तर में सेना और योगज विशोका का दिग्दर्शन ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( इयम् ) यह उषा ( युवतिः ) प्रौढ स्त्री के समान ( अश्वैत् ) आगे आगे बढ़ती है और ( अरुणीनाम् ) उज्ज्वल ( गवाम् ) रश्मियों के ( अनीकम् ) समूहको ( पुरस्तात् युङ्क्ते ) अपने आगे जोड़ती है। इसी प्रकार वह ( नूनम् वि उच्छात् ) निश्चय से विविध दिशाओं में अपना रूप प्रकट करती और अन्धकार को दूर करती है और ( केतुः ) ज्ञानप्रद होकर ( प्र असति ) उत्तम रुप से प्रकट होती है तब ( अग्निः ) ज्ञाग्नि और सूर्य ( गृहम्-गृहम् ) घर घर ( उपतिष्ठाते ) उपस्थित होता है। उसी प्रकार ( इयम् ) यह ( युवतिः ) यौवन युक्त स्त्री (अव अश्वैत् ) बड़ी हो और ( अरुणीनाम् गवाम् ) सेना नायिका के समान अरुण रंग के बैलों वा अश्वों के समूह को ( पुरस्तात् ) आगे रथके (युङ्क्ते) जोडे, वह निश्चय से ( उच्छात् ) अपने उत्तम गुणों का प्रकाश करे । और विशेष (केतुः) ज्ञान युक्त होकर ( प्र असति ) प्रकट हो और ( अग्निः ) अग्रणी नायक, पति ( गृहम् गृहम् ) प्रति गृहमें ( उप तिष्ठते ) उपस्थित या स्थिर हो जाता है । अथवा, यज्ञाग्नि स्त्री के साथ ही प्रति गृह में स्थापित हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कक्षीवान्दैर्घतमस ऋषिः ॥ उषो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ६, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७, ११ त्रिष्टुप् । १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १३ भुरिक् पङ्क्तिः । ५ पङ्क्तिः । ८ विराट् पङ्क्तिश्च ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उषा व दिवस सदैव संपृक्त असतात. तसे विवाहित स्त्री-पुरुषांनी वागावे. ज्या नियमाचे जे पदार्थ असतात त्यांना त्याच नियमाने प्राप्त करावे तेव्हा त्यांची कीर्ती वाढते. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
This Dawn, young maiden, rises yonder in front from the east, yokes her team of crimson sun-rays and, fully self-assured, emerges, her banner blazing in the dark. And as she rises, yajna fire kindles in every home, giving the heat and light of life all round.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
As this Youthful Ushas approaches from the east and harnesses her band of purple rays, growing up gradually, in the same manner, a young lady of about 24 years feeds the cows of red colour and other animals and being intelligent grows up and dispels all darkness like the Dawn. Fire (for Yajna) is kindled in every dwelling and the splendour of such learned and intelligent woman also shines everywhere.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(अश्वैत्) वर्द्धते = Grows. (युवतिः) पूर्णचतुर्विशतिवार्षिकी = A young woman of about 24 years. (गवाम्) किरणानां गवादीनां पशूनां वा = Of the rays of the cows and other animals. (अनीकम् ) सैन्यम् इव समूहम् = Band like an army.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the dawn and day are correlated, in the same manner, married couple should always live together lovingly and obtain all objects at proper time. Then their strength and splendour will always grow.
Translator's Notes
Rishi Dayananda has interpreted गवाम् as किरणानां गवादीनां पशूनां वा For the meaning of गवाम् as किरणानाम् the following clear passage from the Nirukta of Yaskacharya can be quoted. सर्वेऽपि रश्मयो गाव उभ्यन्ते (निरुक्ते २. २ ) The meaning regarding the cow is too well-known to require any authority. But it is strange to find that Shri Sayanacharya has interpreted गवाम् as प्रसिद्धानाम् एतन्नामकानाम् अश्वानां वा = Cows or horses. He has alternately given the meaning of रश्मीनाम् = Of the rays which tallies with Rishi Dayananda Sarasvati's interpretation.
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