ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 141/ मन्त्र 11
अ॒स्मे र॒यिं न स्वर्थं॒ दमू॑नसं॒ भगं॒ दक्षं॒ न प॑पृचासि धर्ण॒सिम्। र॒श्मीँरि॑व॒ यो यम॑ति॒ जन्म॑नी उ॒भे दे॒वानां॒ शंस॑मृ॒त आ च॑ सु॒क्रतु॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मे इति॑ । र॒यिम् । न । सु॒ऽअर्थ॑म् । दमू॑नसम् । भग॑न् । दक्ष॑म् । न । प॒पृ॒चा॒सि॒ । ध॒र्ण॒सिम् । र॒श्मीन्ऽइ॑व । यः । यम॑ति । जन्म॑नी॒ इति॑ । उ॒भे इति॑ । दे॒वाना॑म् । शंस॑म् । ऋ॒ते । आ । च॒ । सु॒ऽक्रतुः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मे रयिं न स्वर्थं दमूनसं भगं दक्षं न पपृचासि धर्णसिम्। रश्मीँरिव यो यमति जन्मनी उभे देवानां शंसमृत आ च सुक्रतु: ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मे इति। रयिम्। न। सुऽअर्थम्। दमूनसम्। भगम्। दक्षम्। न। पपृचासि। धर्णसिम्। रश्मीन्ऽइव। यः। यमति। जन्मनी इति। उभे इति। देवानाम्। शंसम्। ऋते। आ। च। सुऽक्रतुः ॥ १.१४१.११
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 141; मन्त्र » 11
अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 9; मन्त्र » 6
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अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 9; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
यः सुक्रतुर्विद्वानस्मे स्वर्थं रयिं न दमूनसं भगं दक्षं न धर्णसिं पपृचासि रश्मींरिव ऋते देवानामुभे जन्मनी शंसं च य आयमति सोऽस्माभिः सत्कर्त्तव्यो भवति ॥ ११ ॥
पदार्थः
(अस्मे) अस्मभ्यम् (रयिम्) धनम् (न) इव (स्वर्थम्) सुष्ठ्वर्थः प्रयोजनं यस्माद्यद्वाऽनर्थसाधनरिहतम् (दमूनसम्) दमनसाधकम् (भगम्) ऐश्वर्यं भजमानम् (दक्षम्) अतिचतुरम् (न) इव (पपृचासि) संबध्नाति। अत्र व्यत्ययेन युष्मत्। (धर्णसिम्) धर्त्तारम्। अत्र बाहुलकादसिः प्रत्ययो नुडागमश्च। (रश्मींरिव) यथा किरणान् तथा (यः) (यमति) यच्छेत्। अत्र लेटि बहुलं छन्दसीति शबभावः। (जन्मनी) पूर्वापरे (उभे) द्वे (देवानाम्) विदुषाम् (शंसम्) प्रशंसाम् (ऋते) सत्ये (आ) (च) (सुक्रतुः) शोभनप्रज्ञः ॥ ११ ॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्काराः। ये सूर्यरश्मिवत्सर्वान् धर्म्ये पुरुषार्थे संयुञ्जन्ति स्वयं च तथैव वर्त्तन्ते ते गताऽगते जन्मनी पवित्रे कुर्वन्ति ॥ ११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
जो (सुक्रतुः) उत्तम बुद्धिवाला विद्वान् ! (अस्मे) हम लोगों के लिये (स्वर्थम्) जिससे अच्छा प्रयोजन हो वा जो अनर्थ साधनों से रहित उस (रयिम्) धन के (न) समान (दमूनसम्) इन्द्रियों को विषयों में दबा देने के समानरूप (भगम्) ऐश्वर्य्य का और (दक्षम्) चतुर के (न) समान (धर्णसिम्) धारण करनेवाले का (पपृचासि) सम्बन्ध करता वा (रश्मीरिव) जैसे किरणों को वैसे (ऋते) सत्य व्यवहार में (देवानाम्) विद्वानों के (उभे) दो (जन्मनी) अगले-पिछले जन्म (च) और (शंसम्) प्रशंसा को (यः) जो (आ, यमति) बढ़ता है, वह हमलोगों को सत्कार करने योग्य है ॥ ११ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार हैं। जो सूर्य की किरणों के समान सबको धर्मसम्बन्धी पुरुषार्थ मे संयुक्त करते हैं और आप भी वैसे ही वर्त्तते हैं, वे अगले-पिछले जन्मों को पवित्र करते हैं ॥ ११ ॥
विषय
धन व उत्तम संतान
पदार्थ
१. हे प्रभो ! (अस्मे) = हमारे लिए (स्वर्थम्) = [सुष्ठु अरणीयम्] उत्तमता से कमाने योग्य अथवा शोभन पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाले (दमूनसम्) = मनादि के दमन से युक्त (रयिं न) = [न इव] धन को जैसे प्राप्त कराते हैं और न जैसे (भगम्) = उपासना की वृत्तिवाले [भज सेवायाम्], दक्षम् उत्साहवाले व सब प्रकार की वृद्धिवाले (धर्णसिम्) = धारण करनेवाले सन्तान को (पपृचासि) = हमारे साथ सम्पृक्त करते हैं। २. उस सन्तान को हमारे साथ सम्पृक्त करते हैं (यः) = जो (रश्मीन् इव) = लगामों की भाँति (उभे जन्मनी) = दोनों जन्मों को (यमति) = [नियमयति विस्तारयति- सा०] नियमित व विस्तारित करता है। इहलोक व परलोक दोनों का ध्यान करते हुए चलता है । इहलोक के अभ्युदय और परलोक के निःश्रेयस को सिद्ध करनेवाला होता है। यह परलोक के निःश्रेयस के लिए (देवानां शंसम्) = देवों के शंसन को दिव्यगुणों के स्तवन द्वारा दिव्य गुणों को धारण करता है (च) = और इस लोक के अभ्युदय के लिए (ऋते आ सुक्रतुः) = ऋत में स्थित होता हुआ उत्तम कर्मोंवाला होता है। यह सब कर्मों को ऋतपूर्वक करता है, इसका प्रत्येक कार्य ठीक समय व ठीक स्थान पर होता है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु हमें धन व उत्तम सन्तान प्राप्त कराते हैं, वे सन्तान जो देवशंसन द्वारा निःश्रेयस को सिद्ध करते हों और नियमित कर्मों के द्वारा अभ्युदय को 'अभ्युदय और निःश्रेयस' इनकी दो लगामों की भाँति होते हैं।
विषय
वीर नायक और आत्मा का वर्णन ।
भावार्थ
हे आत्मन् ! हे नायक ! विद्वन् ! तू ( अस्मे ) हमें ( रयिं न ) उत्तम ऐश्वर्य के समान ( स्वर्थं ) उत्तम पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम और ( दमूनसं ) इन्द्रियों और मन को दमन करने वाले ( धर्णसिं ) धैर्य, विद्यादि के धारण करने वाले (दक्षं) क्रियाकुशल, ज्ञानवान् (भगं) सेवन करने योग्य, सुखप्रद, ऐश्वर्ययुक्त स्वरूप को ( पपृचासि ) प्रदान करता है, प्रकट करता है । ( यः ) जो तू ( रश्मीन् इव ) सूर्य जिस प्रकार किरणों को और सारथि जिस प्रकार अश्व की बागों को वश में करता है उसी प्रकार ( उभे ) दोनों ( जन्मनी ) जन्म इहलोक और परलोक दोनों को ( यमति ) नियम में रखता है । तू ( देवानां ) विद्वानों के और प्राणों के बीच ( शसं ) स्तुत्य रूप को ( आ यमति च ) प्राप्त करता (ऋते च) सत्व व्यवहार, ज्ञान और ऐश्वर्य के निमित्त तू ( सुक्रतुः आ च ) शोभन कर्म करने वाला और उत्तम ज्ञानवान् हो । अग्रणी नायक भी ऐश्वर्य को और उत्तम धनाढ्य, दमनकारी, जितेन्द्रिय, कुशल, ऐश्वर्यवान् राष्ट्रधारक पुरुषों का सत्संग करे। वह दोनों पर और स्वपक्षों को रासों के समान वश करे, विद्वानों और राजाओं में स्तुति प्राप्त करे, उत्तम कर्मवान् बने ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमा ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १, २, ३, ६, ११ जगती । ४, ७,९, १० निचृज्जगती । ५ स्वराट् त्रिष्टुप् । ८ भुरिक् त्रिष्टुप् । १२ भुरिक् पङ्क्तिः। १३ स्वराट् पङ्क्तिः ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे सूर्यकिरणांप्रमाणे सर्वांना धर्माने पुरुषार्थात संयुक्त करतात व स्वतःही तसेच वागतात ते पुढच्या-मागच्या जन्माला पवित्र करतात. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Bountifully you create and augment for us the wealth of life good enough for success and value with honour and discipline of mind and character. Give us the expert as well as the man of wealth and power to stabilize and maintain the balance of power and discipline, law and freedom, individual and society. Lord controller of both our life here and hereafter like the rays of light, you who hold the reins of our thought and action like the reins of a chariot, lord and master of all noble acts of yajna, pray come and accept the homage of worship of the dedicated people.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
We should adore noble persons.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
We should always respect wise and learned man as he brings us close to energetic prosperous and upholder of self-control and of the vows persons like the beneficial wealth. Such a person has truthful dealings and shines like the rays of sun. The past and future life of such an enlightened person enhances his reputation.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who do righteous activities shine like rays of the sun. Their past present and future are brilliant and assured.
Foot Notes
( दमूनसम्) दमनसाधकम् = Man of self control, or one who practices self control. ( दक्षम् ) अतिचतुरम् – Dexterous and energetic.
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