ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 165/ मन्त्र 15
ए॒ष व॒: स्तोमो॑ मरुत इ॒यं गीर्मा॑न्दा॒र्यस्य॑ मा॒न्यस्य॑ का॒रोः। एषा या॑सीष्ट त॒न्वे॑ व॒यां वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । वः॒ । स्तोमः॑ । म॒रु॒तः॒ । इ॒यम् । गीः । मा॒न्दा॒र्यस्य॑ । मा॒न्यस्य॑ । का॒रोः । आ । इ॒षा । या॒सी॒ष्ट॒ । त॒न्वे॑ । व॒याम् । वि॒द्याम॑ । इ॒षम् । वृ॒जन॑म् । जी॒रऽदा॑नुम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष व: स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः। एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम् ॥
स्वर रहित पद पाठएषः। वः। स्तोमः। मरुतः। इयम्। गीः। मान्दार्यस्य। मान्यस्य। कारोः। आ। इषा। यासीष्ट। तन्वे। वयाम्। विद्याम। इषम्। वृजनम्। जीरऽदानुम् ॥ १.१६५.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 165; मन्त्र » 15
अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे मरुत एष वः स्तोमो मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोरियं गीर्वास्ति। अतो युष्मासु प्रत्येकस्तन्व इषाऽऽयासीष्ट वयामिषं वृजनं जीरदानुं च विद्याम ॥ १५ ॥
पदार्थः
(एषः) (वः) युष्मभ्यम् (स्तोमः) स्तुतिसमूहः (मरुतः) विद्वत्तमाः (इयम्) वेदाध्ययनसुशिक्षायुक्ता (गीः) वाग् (मान्दार्यस्य) मान्दस्य स्तोतुमर्हस्योत्तमगुणकर्मस्वभावस्य च (मान्यस्य) पूजितव्यस्य (कारोः) पुरुषार्थिनः (आ) (इषा) इच्छया (यासीष्ट) प्राप्नुयात्। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (तन्वे) विस्ताराय (वयाम्) वयम्। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (विद्याम्) लभेमहि (इषम्) अन्नम् (वृजनम्) बलम् (जीरदानुम्) जीवनम् ॥ १५ ॥
भावार्थः
य आप्तानां प्रयतमानानां विदुषां सकाशाद्विद्याशिक्षे लब्ध्वा धर्म्यव्यवहारमाचरन्ति तेषां जन्मसाफल्यमस्तीति वेदितव्यम् ॥ १५ ॥अत्र विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्बोध्या ॥इति पञ्चषष्ट्युत्तरं शततमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥अस्मिन्नध्याये वसुरुद्राद्यर्थानां प्रतिपादनादेतदध्यायोक्तार्थानां पूर्वोऽध्यायोक्तार्थैस्सह सङ्गतिर्वर्त्तत इति विज्ञातव्यम् ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (मरुतः) उत्तम विद्वानो ! (एषः) यह (वः) तुम लोगों के लिये (स्तोमः) स्तुतियों का समूह और (मान्दार्यस्य) स्तुति के योग्य वा उत्तम गुण, कर्म, स्वभाववाले (मान्यस्य) मानने योग्य (कारोः) कार (=कार्य) करनेवाले पुरुषार्थी जन की (इयम्) यह (गीः) वाणी है इससे तुम में से प्रत्येक (तन्वे) बढ़ाने के लिये (इषा) इच्छा के साथ (आ, यासीष्ट) आओ, प्राप्त होओ (वयाम्) और हम लोग (इषम्) अन्न (वृजनम्) बल (जीरदानुम्) और जीवन को (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ १५ ॥
भावार्थ
जो आप्त, शास्त्रज्ञ, धर्मात्मा, पुरुषार्थी, विद्वान् पुरुषों की उत्तेजना से विद्या और शिक्षा को प्राप्त होकर धर्मयुक्त व्यवहार का आचरण करते हैं, उनके जन्म की सफलता है यह जानना चाहिये ॥ १५ ॥इस सूक्त में विद्वानों के गुणों के वर्णन से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ पैंसठवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥इस अध्याय में वसु रुद्रादिकों के अर्थों का प्रतिपादन होने से इस अध्याय में कहे हुए अर्थों की पिछले अध्याय में कहे अर्थों के साथ सङ्गति वर्त्तमान है, यह जानना चाहिये ॥इति श्रीयुत परमहंसपरिव्राजकाचार्य्याणां परमविदुषां श्रीमद्विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीपरमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना निर्मिते संस्कृतार्यभाषाभ्यां सुभूषिते सुप्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्ये द्वितीयाष्टके तृतीयोऽध्यायः समाप्तः ॥
विषय
'इष्, वृजन, जीरदानु'
पदार्थ
१. (मरुतः) = प्राणसाधक पुरुषो! (वः) = तुम्हें (एषः) = यह (स्तोमः) = स्तुतिसमूह (आयासीष्ट) = प्राप्त हो। तुम स्तुति करनेवाले बनो! २. उस (मान्दार्यस्य) = सदा आनन्दमय (मान्यस्य) = पूजनीय (कारो:) = कुशलकर्ता की (इयं गी:) = यह वेदवाणी [आयासीष्ट] तुम्हें प्राप्त हो । यह वेदवाणी तुम्हें आनन्दित करनेवाली हो, तुम्हारे जीवनों को यशस्वी बनाए और तुम्हें कुशलतापूर्वक कर्म करनेवाला बना दे। (एषा) = यह (तन्वे) = शक्तियों के विस्तार के लिए तुम्हें [आयासीष्ट] प्राप्त हो । ३. इस वेदवाणी के द्वारा (वयाम्) = [वयम्] हम इषम् प्रेरणा को (वृजनम्) = पाप के वर्जन व बल को तथा (जीरदानुम्) = [जीवनम्-द०] उत्तम जीवन को [जीर - quick, दानु - खण्डन] अथवा शीघ्रता से वासनाओं के विनाश को (विद्याम्) = प्राप्त करें।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु के स्तोत्रों व ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करें। इनसे हमें 'प्रेरणा,पापनिवृत्ति व उत्तम जीवन' प्राप्त होगा।
विषय
परस्पर ज्ञानदान और बल प्राप्ति ।
भावार्थ
हे ( मरुतः ) मनुष्यो ! ( एषः ) यह ( वः ) आप लोगों के लिये ही ( स्तोमः ) उत्तम वेदमन्त्र समृद्ध हैं । ( मान्दार्यस्य ) सबको हर्षित करने वाले सर्व श्रेष्ठ और ( मान्यस्य ) माननीय (कारोः) क्रिया कुशल गुरु जन की ही ( इयं ) यह ( गीः ) वेद वाणी है । आप लोग उस गुरु के समीप ( इषा ) इच्छा पूर्वक (आ यासीष्ट ) आवें । ( वयाम् ) हम लोग ( इषम् ) उत्तम ज्ञान, दृढ़ इच्छा शक्ति, ( वृजनं ) पाप निवारक और शत्रु निवारक बल, और ( जीरदानुम् ) जीवन या जयदायी सामर्थ्य को ( विद्याम ) प्राप्त करें । इति षड्विंशो वर्गः ॥ इति तृतीयोऽध्यायः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्द:– १, ३, ४, ५, ११, १२ विराट् त्रिष्टुप । २, ८,९ त्रिष्टुप्। १३ निचृत् त्रिष्टुप् । ६, ७, १०, १४ भुरिक् पङ्क्तिः । १५ पङ्क्तिः । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे आप्त, शास्त्रज्ञ, धर्मात्मा, पुरुषार्थी विद्वान पुरुषांच्या संगतीने विद्या व शिक्षण प्राप्त करून धर्मयुक्त व्यवहाराचे आचरण करतात, त्यांचा जन्म सफल असतो, हे जाणले पाहिजे. ॥ १५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, leaders, pioneers, heroes of speed and power of progress, this song of celebration is for you. It is the voice of the lyric of the honourable artist, scientist and technologist. Come with desire and commitment to advance the science and the scholar further. And let us too achieve food and energy, strength and power, and life-giving victories.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The biggest achievement in life is to perform noble deeds.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O great scholars ! here is the speech (communication) of an admirable capable and industrious person of noble merits, actions and temperament. Let it reach for the welfare of all people and their good desires. May we obtain good food, strength and long life.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Let us know the formula of success in the human life. The people engaged in the performance of righteous deeds and having acquired the wisdom and education from the absolutely truthful and industrious scholars, get the desired results.
Foot Notes
( इषम्) अन्नम् = Food. (इषा) इच्छया == with desire. (वृजनम् ) बलम् = Strength. ( जीरदानुम् ) जीवनम् = Long life.
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