ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 52/ मन्त्र 13
ऋषिः - सव्य आङ्गिरसः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
त्वं भु॑वः प्रति॒मानं॑ पृथि॒व्या ऋ॒ष्ववी॑रस्य बृह॒तः पति॑र्भूः। विश्व॒माप्रा॑ अ॒न्तरि॑क्षं महि॒त्वा स॒त्यम॒द्धा नकि॑र॒न्यस्त्वावा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । भु॒वः॒ । प्र॒ति॒ऽमान॑म् । पृ॒थि॒व्याः । ऋ॒ष्वऽवी॑रस्य । बृ॒ह॒तः । पतिः॑ । भूः॒ । विश्व॑म् । आ । अ॒प्राः॒ । अ॒न्तरि॑क्षम् । म॒हि॒ऽत्वा । स॒त्यम् । अ॒द्धा । नकिः॑ । अ॒न्यः । त्वाऽवा॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं भुवः प्रतिमानं पृथिव्या ऋष्ववीरस्य बृहतः पतिर्भूः। विश्वमाप्रा अन्तरिक्षं महित्वा सत्यमद्धा नकिरन्यस्त्वावान् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। भुवः। प्रतिऽमानम्। पृथिव्याः। ऋष्वऽवीरस्य। बृहतः। पतिः। भूः। विश्वम्। आ। अप्राः। अन्तरिक्षम्। महिऽत्वा। सत्यम्। अद्धा। नकिः। अन्यः। त्वाऽवान् ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 52; मन्त्र » 13
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्यपुदिश्यते ॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर ! यस्त्वं पृथिव्या भुवः प्रतिमानं बृहतं ऋष्ववीरस्य जगतो महावीरस्य मनुष्यस्य पतिर्भूरसि त्वं विश्वं सर्वं जगदन्तरिक्षं सत्यं च महित्वाऽद्धाप्राः तस्मात् कश्चिदन्यस्त्वावान् नकिर्विद्यते ॥ १३ ॥
पदार्थः
(त्वम्) जगदीश्वरः (भुवः) भवतीति भूस्तस्याः (प्रतिमानम्) परिमाणम् (पृथिव्याः) विस्तृतस्याकाशस्य (ऋष्ववीरस्य) ऋष्वा महान्तो गुणा वीरा वा यस्य तस्य (बृहतः) महाबलस्य (पतिः) पालकः (भूः) भवसि (विश्वम्) सर्वं जगत् (आ) समन्तात् (अप्राः) प्रपूर्द्धि (अन्तरिक्षम्) अनेकेषां लोकानाम् मध्येऽवकाशरूपं वर्त्तमानमाकाशम् (महित्वा) महत्या व्याप्त्याभिव्याप्य (सत्यम्) अव्यभिचारि सुपरीक्षितं वेदचतुष्टयजन्यम् (अद्धा) साक्षात् (नकिः) नैव (अन्यः) कश्चिदपि द्वितीयः (त्वावान्) त्वत्सदृशः ॥ १३ ॥
भावार्थः
यथा परमेश्वरः सर्वस्य जगतो रचयिता परिमाणकर्ता व्याप्तः सत्यप्रकाशकोऽस्त्यत ईश्वरसदृशः कश्चिदपि पदार्थो न भूतो न भविष्यतीति मत्वा तमेव वयमुपास्महे ॥ १३ ॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर वह परब्रह्म कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर ! जो (त्वम्) आप (पृथिव्याः) विस्तृत आकाश और (भुवः) भूमि के (प्रतिमानम्) परिमाणकर्त्ता तथा (बृहतः) महाबलयुक्त (ऋष्ववीरस्य) बड़े गुणयुक्त जगत् का वा महावीर मनुष्य के (पतिः) पालन करनेवाले (भूः) हैं तथा आप (विश्वम्) सब जगत् (अन्तरिक्षम्) अनेक लोकों के मध्य में अवकाशस्वरूप आकाश और (सत्यम्) कारणरूप से अविनाशी अच्छे प्रकार परीक्षा किये हुए चारों वेदों को (महित्वा) बड़ी व्याप्ति से व्याप्त होकर (अद्धाप्राः) साक्षात्कार पूरण करते हो, इससे (त्वावान्) आप के सदृश (अन्यः) दूसरा (नकिः) विद्यमान कोई भी नहीं है ॥ १३ ॥
भावार्थ
जैसे परमेश्वर ही सब जगत् की रचना, परिमाण, व्यापक और सत्य का प्रकाश करनेवाला है, इससे ईश्वर के सदृश कोई भी पदार्थ न हुआ और न होगा, ऐसा समझ के हम लोग उसी की उपासना करें ॥ १३ ॥
पदार्थ
पदार्थ = ( त्वम् ) = भगवन् ! आप ( भुवः ) = अन्तरिक्ष और ( पृथिव्याः ) = विस्तृत भूमि के ( प्रतिमानम् ) = प्रत्यक्ष मापनेवाले ( बृहत: ) = बड़े द्युलोक के ( पति: भूः ) = स्वामी हैं ( विश्वम् ) = सब ( अन्तरिक्षम् ) = अन्तरिक्ष को आपने ( महित्वा ) = अपने महत्त्व से ( आप्राः ) = परिपूर्ण किया है ( सत्यम् ) = यह सत्य ( अद्धा ) = और निश्चित है कि ( त्वावान् ) = आप जैसा ( अन्यः न कि: ) = दूसरा कोई नहीं ।
भावार्थ
भावार्थ = परमेश्वर आकाश और सारी पृथिवी को प्रत्यक्ष मापने और जाननेवाला है, बड़े-बड़े दर्शनीय वीर और नक्षत्रोंवाले महान् द्युलोक का भी स्वामी है। सारे मध्यलोक को जिस प्रभु ने व्याप्त कर रक्खा है । यह निश्चित सत्य है, कि उस जैसा दूसरा कोई तीनों लोकों में न हुआ, न है और न ही होगा।
विषय
अनन्यसदृश प्रभु
पदार्थ
१. गतमन्त्र का 'स्वभूत्योजाः' आत्मिक ऐश्वर्य व तेजवाला व्यक्ति प्रभु का उपासन करता हुआ कहता है कि (त्वम्) = आप ही (पृथिव्याः) = इस सम्पूर्ण पृथिवी के (प्रतिमानं भुवः) = परिमाण को करनेवाले हैं । इस पृथिवी का निर्माण आप ही करते हैं । २. इस (बृहतः) = विशाल (ऋष्ववीरस्य) = [ऋष्य - दर्शनीय वीर 'वि ईर' विशिष्ट गतिवाले लोक - लोकान्तर] अनन्त दर्शनीय लोक - लोकान्तरों से पूर्ण अन्तरिक्ष के (पतिः भूः) = रक्षक हैं । 'यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः' प्रभु ही अन्तरिक्ष में विशेष मानपूर्वक लोकों का निर्माण करते हैं । ३. (महित्वा) = अपनी महिमा से (विश्वं अन्तरिक्षम्) = सम्पूर्ण अन्तरिक्ष को (आप्राः) = आप पूर्ण किये हुए हैं । आप सर्वव्यापक हैं । ४. (सत्यम् अद्धा) = वास्तव में ही (त्वावान्) = आप - जैसा (अन्यः नकिः) = और कोई नहीं है । अपनी महिमा से आप 'अनन्य' ही हो । इसी से कहते हैं कि 'एकमेवाद्वितीयम्' आप एक ही हो, अद्वितीय हो ।
भावार्थ
भावार्थ - वे त्रिलोकी के पति प्रभु अपनी महिमा से अद्वितीय हैं । इस प्रभु का उपासक भी महिमाशाली जीवनवाला होता है ।
विषय
वृष्टि विज्ञान ।
भावार्थ
हे परमेश्वर ! तू ही ( पृथिव्याः ) अति विस्तृत ( भुवः ) समस्त चराचर के मूल कारण प्रकृति और भूमि का ( प्रतिमानं ) प्रत्यक्ष देखने वाला और भूमि के परिमाण का कर्त्ता और ( बृहतः ) बड़े भारी (ऋष्ववीरस्य) बड़े २ सामर्थ्योंवाले सूर्यादि लोकों और बड़े २ वीर पुरुषों से युक्त और राजाधिराजों का भी (पतिः भूः ) पति, पालक और स्वामी है । तू ही ( महित्वा ) महान् सामर्थ्य से ( विश्वम् ) समस्त संसार को और (अन्तरिक्षम्) महान् अन्तरिक्ष, सूर्यों और भूमियों के बीच के अवकाश भागों को और ( सत्यम् ) सत् रूप में व्याप्त हुए और सत् पदार्थों में विद्यमान् यथार्थ तत्व को भी (आ अप्राः) सब तरफ से और सब तरह से पूर्ण कर रहा है । ( अद्धा ) सचमुच ( त्वावान् ) तुझ जैसा ( अन्यः ) और ( न किः ) कोई दूसरा नहीं तू एक अद्वितीय है । राजा के पक्ष में—तू पृथिवी को मापने वाला या उसका प्रतिनिधि है । तू बड़े २ दर्शनीय वीर पुरुषों का पालक है। सबके हृदय को, वा पक्ष प्रतिपक्ष के मध्यस्थ पद को और सत्यव्यवहार को पूर्ण करता है। तुझसा दूसरा कोई नहीं । तू ही सर्वोपरि अध्यक्ष है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सव्य आङ्गिरस ऋषिः । इन्द्रो देवता ॥ छन्द:- १,८ भुरिक् त्रिष्टुप् । ७ त्रिष्टुप् । ९, १० स्वराट् त्रिष्टुप् । १२, १३, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । २-४ निचृज्जगती । ६, ११ विराड् जगती ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
फिर वह परब्रह्म कैसा है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
हे जगदीश्वर ! यः त्वं पृथिव्या भुवः प्रतिमानं बृहतं ऋष्ववीरस्य जगतः महावीरस्य मनुष्यस्य पतिः भूः असि त्वं विश्वं सर्वं जगत् अन्तरिक्षं सत्यं च महित्वा अद्धा अप्राः तस्मात् कश्चित् अन्यः त्वावान् नकिः विद्यते ॥ १३ ॥
पदार्थ
हे (जगदीश्वर)=परमेश्वर ! (यः)=जो, (त्वम्)=तुम, (पृथिव्याः) विस्तृतस्याकाशस्य= विस्तृत आकाश के, (भुवः) भवतीति भूस्तस्याः=पृथिवी से होनेवाले, (प्रतिमानम्) परिमाणम्=परिमाण के, (बृहतम्) महाबलम्=महाबल को, (ऋष्ववीरस्य) ऋष्वा महान्तो गुणा वीरा वा यस्य तस्य=महान गुणोंवाले वीरों के, (जगतः)= जगत का, (महावीरस्य)= महावीर, (मनुष्यस्य)=मनुष्य के, (पतिः) पालकः= पालक, (भूः) भवसि=होते, (असि)= हो, (त्वम्) जगदीश्वरः=परमेश्वर, (विश्वम्) सर्वं जगत्=सारे जगत् में, {आ} समन्तात्=हर ओर से, (अन्तरिक्षम्) अनेकेषां लोकानाम् मध्येऽवकाशरूपं वर्त्तमानमाकाशम्=अनेक लोकों के बीच में विद्यमान अवकाश के रूप में आकाश, (सत्यम्) अव्यभिचारि सुपरीक्षितं वेदचतुष्टयजन्यम्= स्थिरता से सुपरीक्षित चारों वेद से प्रकट, (च)=और, (अद्धा) साक्षात्= साक्षात्, (महित्वा) महत्या व्याप्त्याभिव्याप्य=बहुत व्याप्त, (अप्राः) प्रपूर्द्धि=प्रकृष्ट रूप से पूर्ण है, (तस्मात्)=इसलिये, (कश्चित्)=कोई, (अन्यः) कश्चिदपि द्वितीयः= अन्य से, (त्वावान्) त्वत्सदृशः=तुम्हारे समान, (नकिः) नैव=नहीं ही, (विद्यते)=वर्त्तमान है ॥ १३ ॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
जैसे परमेश्वर ही सब जगत् का रचयिता, परिमाण कर्त्ता, व्यापक और सत्य का प्रकाश करनेवाला है, इससे ईश्वर के सदृश कोई भी पदार्थ न हुआ और न होगा, ऐसा समझ के हम लोग उसी की उपासना करें ॥१३॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
हे (जगदीश्वर) परमेश्वर ! (यः) जो (त्वम्) तुम (पृथिव्याः) विस्तृत आकाश और (भुवः) पृथिवी से होनेवाले (प्रतिमानम्) परिमाण व (बृहतम्) महाबल को (ऋष्ववीरस्य) महान गुणोंवाले वीरों के (जगतः) जगत के (महावीरस्य) महा बलवान (मनुष्यस्य) मनुष्य के (पतिः) पालक (भूः) हो। (त्वम्) परमेश्वर (विश्वम्) सारे जगत् में {आ} हर ओर से (अन्तरिक्षम्) अनेक लोकों के बीच में विद्यमान अवकाश के रूप में आकाश, (सत्यम्) स्थिरता से सुपरीक्षित चारों वेद से प्रकट (च) और (अद्धा) साक्षात् (महित्वा) बहुत व्याप्त और (अप्राः) प्रकृष्ट रूप से पूर्ण है, (तस्मात्) इसलिये (कश्चित्) कोई (अन्यः) अन्य (त्वावान्) तुम्हारे समान (नकिः) नहीं ही (विद्यते) वर्त्तमान है ॥ १३ ॥
संस्कृत भाग
पदार्थः(महर्षिकृतः)- (त्वम्) जगदीश्वरः (भुवः) भवतीति भूस्तस्याः (प्रतिमानम्) परिमाणम् (पृथिव्याः) विस्तृतस्याकाशस्य (ऋष्ववीरस्य) ऋष्वा महान्तो गुणा वीरा वा यस्य तस्य (बृहतः) महाबलस्य (पतिः) पालकः (भूः) भवसि (विश्वम्) सर्वं जगत् (आ) समन्तात् (अप्राः) प्रपूर्द्धि (अन्तरिक्षम्) अनेकेषां लोकानाम् मध्येऽवकाशरूपं वर्त्तमानमाकाशम् (महित्वा) महत्या व्याप्त्याभिव्याप्य (सत्यम्) अव्यभिचारि सुपरीक्षितं वेदचतुष्टयजन्यम् (अद्धा) साक्षात् (नकिः) नैव (अन्यः) कश्चिदपि द्वितीयः (त्वावान्) त्वत्सदृशः ॥१३॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्यपुदिश्यते ॥ अन्वयः- हे जगदीश्वर ! यस्त्वं पृथिव्या भुवः प्रतिमानं बृहतं ऋष्ववीरस्य जगतो महावीरस्य मनुष्यस्य पतिर्भूरसि त्वं विश्वं सर्वं जगदन्तरिक्षं सत्यं च महित्वाऽद्धाप्राः तस्मात् कश्चिदन्यस्त्वावान् नकिर्विद्यते ॥ १३ ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- यथा परमेश्वरः सर्वस्य जगतो रचयिता परिमाणकर्ता व्याप्तः सत्यप्रकाशकोऽस्त्यत ईश्वरसदृशः कश्चिदपि पदार्थो न भूतो न भविष्यतीति मत्वा तमेव वयमुपास्महे ॥१३॥
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वरच सर्व जगाचा निर्माता, परिमाण करणारा, व्यापक व सत्यप्रकाशक आहे. त्यामुळे ईश्वराप्रमाणे कोणताही पदार्थ झालेला नाही व होणार नाही असे समजून आम्ही त्याचीच उपासना करावी. ॥ १३ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
You are the ultimate measure of the earth and the skies. You are the highest lord and master of the wondrous world of heroes. Having pervaded the world, having measured the spaces and transcended, you are the ultimate truth of eternal reality. No one is like you, none in image, symbol or measure, none, nothing.
Subject of the mantra
Then how is that Supreme Spirit, this subject has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (jagadīśvara) =god, (yaḥ) =that, (tvam) =you, (pṛthivyāḥ) =expanded sky and, (bhuvaḥ)= happening from earth, (pratimānam)= magnitude and, (bṛhatam) to great force, (ṛṣvavīrasya)= of heroes with great qualities, (jagataḥ) =of the universe, (mahāvīrasya)= super strong, (manuṣyasya) =of human, (patiḥ) = nourisher, (bhūḥ) =are, (tvam) =God, (viśvam) =in the whole universe, {ā} =from all sides, (antarikṣam)=sky as a space, existing between many worlds, [aura]=and, (satyam)=revealed from the four Vedas, verified with consistency, (ca) =and, (addhā) =obvious,, (mahitvā) =pervading excessively and, (aprāḥ) =is absolutely complete, (tasmāt) =therefore, (kaścit)=anyone else, (anyaḥ) =any other, (tvāvān) =like you, (nakiḥ+vidyate) =is not present.
English Translation (K.K.V.)
O God! You, who, are the guardian of the world's most powerful man, of warriors with great qualities, exceeding the size and great power of the vast sky and earth. The Supreme god is present in the entire universe from all sides among the many worlds, manifested and personified in the four Vedas, verified by the sky and stability in the form of space, is Omnipresent and extremely complete. That's why no one else exists like you.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
As God is the creator of the entire universe, the creator of all dimensions, the one who is all-pervasive and the illuminator of truth, there is no such thing as God and there will never be anything similar to Him, we should worship Him with this understanding.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is Indra (God) is taught further in the 13th. Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Thou art the measurer of the extended earth, the vast firmament, the master or Lord of lofty heaven and the mighty heroes of this world. Thou hast perfectly filled all the atmosphere and the sky as well as Truth contained in the Vedas by Thy greatness and glory. Truly therefore there is none other like Thee.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
( प्रतिमानम् ) परिमाणम् = Measure. ( पृथिव्याः ) विस्तृतस्याकाशस्य पृथिवीत्यन्तरिक्षनाम ( निघ० १.३) = of the vast sky. (ऋष्यवीरस्य) ऋष्वा महान्तो गुणवीरा वा यस्य = Whose virtues and heroes are great. ( ऋष्व इति महन्नामसु निघ० ३.३ ) ( सत्यम्) अव्यभिचारि सुपरीक्षितं वेदचतुष्टयम् = Perfect and infallible.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
We should adore God only knowing that He is the Creator and measurer of this world, Omnipresent Illuminator of Truth and therefore there is none, has never been and will never be like or equal to Him.
बंगाली (1)
পদার্থ
ত্বং ভুবঃ প্রতিমানং পৃথিব্যা ঋষ্ববীরস্য বৃহতঃ পতির্ভূঃ।
বিশ্বমা প্রা অন্তরিক্ষং মহিত্বা সত্যমদ্ধা নকিরন্যস্ত্বাবান্ ।।৪৭।।
(ঋগ্বেদ ১।৫২।১৩)
পদার্থঃ (ত্বম্) হে ভগবান! তুমি (ভুবঃ পৃথিব্যাঃ) বিস্তীর্ণ আকাশ ও পৃথিবী লোককে (প্রতিমানম্) প্রত্যক্ষ পরিমাপকারী (ঋষ্ববীরস্য) সর্বশ্রেষ্ঠ বীর, (বৃহতঃ) বৃহৎ দ্যুলোকের (পতিঃ ভূঃ) স্বামী। (বিশ্বম্) সকল (অন্তরিক্ষম্) অন্তরিক্ষকে তোমার (মহিত্বা) নিজ মহত্ত্ব দ্বারা (আ প্রা) পরিপূর্ণ করেছ। (সত্যম্) এটা সত্য (অদ্ধা) এবং নিশ্চিত যে, (ত্বাবান্) তোমার সমান (অন্যঃ ন কিঃ) দ্বিতীয় কেউ নেই।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ পরমেশ্বর সকল পৃথিবীকে প্রত্যক্ষ পরিমাপকারী ও পরিজ্ঞাতা, সর্বশক্তিমান এবং নক্ষত্রযুক্ত মহান দ্যুলোকেরও স্বামী। সমগ্র জগতকে পরমেশ্বর ব্যাপ্ত করে রেখেছেন। তাঁর সমতুল্য দ্বিতীয় কেউ না ছিল, না আছে, না হবে।।৪৭।।
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