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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 11/ मन्त्र 11
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    पिबा॑पि॒बेदि॑न्द्र शूर॒ सोमं॒ मन्द॑न्तु त्वा म॒न्दिनः॑ सु॒तासः॑। पृ॒णन्त॑स्ते कु॒क्षी व॑र्धयन्त्वि॒त्था सु॒तः पौ॒र इन्द्र॑माव॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पिब॑ऽपिब । इत् । इ॒न्द्र॒ । शू॒र॒ । सोम॑म् । मन्द॑न्तु । त्वा । म॒न्दिनः॑ । सु॒तासः॑ । पृ॒णन्तः॑ । ते॒ । कु॒क्षी इति॑ । व॒र्ध॒य॒न्तु॒ । इ॒त्था । सु॒तः । पौ॒रः । इन्द्र॑म् । आ॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पिबापिबेदिन्द्र शूर सोमं मन्दन्तु त्वा मन्दिनः सुतासः। पृणन्तस्ते कुक्षी वर्धयन्त्वित्था सुतः पौर इन्द्रमाव॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पिबऽपिब। इत्। इन्द्र। शूर। सोमम्। मन्दन्तु। त्वा। मन्दिनः। सुतासः। पृणन्तः। ते। कुक्षी इति। वर्धयन्तु। इत्था। सुतः। पौरः। इन्द्रम्। आव॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 11; मन्त्र » 11
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वैद्यविषयमाह।

    अन्वयः

    हे शूरेन्द्र ये मन्दिनः सुतासः सोमं त्वा पृणन्तस्ते कुक्षी वर्द्धयन्तु त्वा मन्दन्तु ताँस्त्वमित्पिबेत्था सुतः पौरस्त्वमिन्द्रमाव ॥११॥

    पदार्थः

    (पिबापिब) भृशं पिबति। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (इत्) एव (इन्द्र) आयुर्वेदविद्यायुक्त (शूर) रोगाणां हिंसक (सोमम्) सोमलताद्योषधिसारपातारम् (मन्दतु) हर्षयन्तु (त्वा) त्वाम् (मन्दिनः) स्तोतुमर्हाः (सुतासः) निष्पादिता रसाः (पृणन्तः) सुखयन्तः (ते) तव (कुक्षी) उदरपार्श्वौ (वर्द्धयन्तु) (इत्था) अनेन हेतुना (सुतः) निष्पन्नः (पौरः) पुरि भवः (इन्दम्) ऐश्वर्यम् (आव) रक्ष ॥११॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्यदि पुष्टिबुद्धिप्रदा रोगविनाशिन ओषधिसाराः सेव्यन्ते, तर्हि ते पुरुषार्थिनो भूत्वैश्वर्यं वर्द्धयितुं शक्नुवन्ति ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब वैद्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (शूर) रोगों को नष्ट करनेवाले (इन्द्र) आयुर्वेद विद्यायुक्त वैद्य ! जो (मन्दिनः) प्रशंसा करने योग्य (सुतासः) ओषधियों के निकाले हुए रस (सोमम्) सोमलतादि ओषधियों के सार को पीनेवाले (त्वा) आपको (पृणन्तः) सुखी करते हुए (ते) आपकी (कुक्षी) कोखों की (वर्द्धयन्तु) वृद्धि करें और आपको (मदन्तु) हर्षित करावें उनको आप (इत्) ही (पिबापिब) पिओ पिओ (इत्था) इस हेतु से (सुतः) प्रसिद्धः (पौरः) पुर में उत्पन्न हुए आप (इन्द्रम्) ऐश्वर्य की (आव) रक्षा करो ॥११॥

    भावार्थ

    मनुष्य लोग यदि पुष्टि और बुद्धि देनेवाले रोगविनाशक ओषधियों के सार को सेवन करते हैं तो पुरुषार्थी होकर ऐश्वर्य को बढ़ा सकते हैं ॥११॥

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    विषय

    सोमो रक्षति रक्षितः

    पदार्थ

    १. हे (शूर) = कामरूप शत्रु का हिंसन करनेवाले (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! तू (सोमम्) = शरीर में उत्पन्न हुई सोमशक्ति को (पिबा पिब इत्) = निश्चय से पी ही । तू सोमपान करनेवाला बन । २. (मन्दिनः) = हर्ष को उत्पन्न करनेवाले (सुतासः) = शरीर में उत्पन्न हुए सोमकण (त्वा मन्दन्तु) = तुझे हर्षित करनेवाले हों। सोम से शरीर व मस्तिष्क दोनों दीप्त हो उठते हैं और इस प्रकार जीवन उल्लासमय हो जाता है । ३. (ते कुक्षी) = तेरी कोखों को (पृणन्तः) = पूरित करते हुए वे सोम-तेरे शरीर में ही व्याप्त होते हुए वे सोम (वर्धयन्तु) = तेरा वर्धन करें । (इत्था) = सचमुच (सुतः) = उत्पन्न हुआ यह (पौरः) = इस शरीर पुरी का पालन व पूरण करनेवाला सोम (इन्द्रम्) = तुझ जितेन्द्रिय पुरुष को (आव) = तृप्त व प्रीणित करनेवाला हो । सोमरक्षण से शरीर के सब दोष दूर होते हैं- विशेषतः कुक्षि प्रदेशों में हो जानेवाले वृक्क विकार नहीं होने पाते। इस प्रकार जीवन नीरोग और परिणामतः आनन्दमय बीतता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सोमरक्षण करें। यह रक्षित सोम हमारा रक्षण करता है।

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    विषय

    ऐश्वर्यवान् राजा, सेनापति का वर्णन, उसके मेघ और सूर्यवत् कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (शूर) शूरवीर ! जिस प्रकार (सोमं) सोम, ओषधिरस या प्राणवायु का पान किया जाता है उसी प्रकार हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! तू (सोमं ) ऐश्वर्य का (पिब पिब इत् ) बराबर उपभोग कर, या बराबर पालन किया कर। (सुतासः) उत्पन्न सोमरसों के समान या (सुतासः) उत्पन्न अपने पुत्रों के समान ( मन्दिनः ) अति हर्षजनक ( सुतासः ) अभिषेक प्राप्त अधीन अध्यक्ष जन ( त्वा मन्दन्तु ) तुझे हर्षित करें। ( कुक्षी पृणन्तः ) कोखें पूरनेवाले प्राण वायु गण भोजनों के समान (ते) वे सभी अध्यक्ष जन ( ते कुक्षी ) तेरी कोखों, या दलों को पूर्ण करें अर्थात् दांये बांये रह कर तेरे बल को बढ़ावें । ( इत्था ) इस प्रकार ( सुतः ) अभिषिक्त ( पौरः ) पुर का अध्यक्ष पुरुष ( इन्द्रम् ) राजा और समृद्ध राज्य दोनों की ( आव ) रक्षा करें और तुझे बढ़ावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषि: ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, ८, १०, १३, १०, २० पङ्क्तिः। २,९ भुरिक् पङ्क्तिः । ३, ४, ११, १२, १४, १८ निचृत् पङ्क्तिः । ७ विराट् पङ्क्तिः । ५, १६, १७ स्वराड् बृहती भुरिक् बृहती १५ बृहती । २१ त्रिष्टुप ॥ एकविंशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी जर पुष्टी व वृद्धी करणाऱ्या रोगविनाशक औषधींचे सार सेवन केले तर ते पुरुषार्थी बनून ऐश्वर्य वाढवू शकतात. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, mighty brave and resplendent lord of power and knowledge, ruler, scholar, physician, destroyer of evil and ill-health, drink and drink on the soma of peace, health and life’s joy. May the exhilarating essences distilled from life and nature transport you to ecstasy. May the invigorating spirits of life and nature like the drink of soma increase your creative power and the fertility of the land. O distinguished citizen and ruler of the land, thus regaled with peace, power and pleasure, preserve and promote the prosperity and honour of the earth and her children.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Qualities of a Vaidya (a medical man) are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O brave Indra! the competent and eminent Vaidyas get for you the juices of the herbs like that of the SOMA, and thus make you delight and strong. Let them delight you and ask you to drink more and more. Born in a grand palace in prosperity, with these extracted juices they provide you protection.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If the rulers and their people take and drink the herbs, juice and extracts which give strength and nourishment, they become energetic and active and add to their prosperity.

    Foot Notes

    (पिबापिब) भृशं पिबति अत्र ह्यचोतस्तिङ्गइति दीर्घ:= Drinks heavily. (इन्द्र) आयुर्वेदविद्यायुक्त = One who is expert in the science of life. (सोमम्) सोमलताद्योषधिसारपातारम् = One who takes the extracts of the herbs like the Soma. (कुक्षी) उदरपाश्र्वौ - Bellies. (सुत:) निष्पन्न: = Extracted. (पौर:) पुरिभवः = Born in a grand urban palace.

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