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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 11/ मन्त्र 21
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नू॒नं सा ते॒ प्रति॒ वरं॑ जरि॒त्रे दु॑ही॒यदि॑न्द्र॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑। शिक्षा॑ स्तो॒तृभ्यो॒ माति॑ ध॒ग्भगो॑ नो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नू॒नम् । सा । ते॒ । प्रति॑ । वर॑म् । जरि॒त्रे । दु॒ही॒यत् । इ॒न्द्र॒ । दक्षि॑णा । म॒घोनी॑ । शिक्ष॑ । स्तो॒तृऽभ्यः॑ । मा । अति॑ । ध॒क् । भगः॑ । नः॒ । बृ॒हत् । व॒दे॒म॒ । वि॒दथे॑ । सु॒ऽवीराः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नूनम्। सा। ते। प्रति। वरम्। जरित्रे। दुहीयत्। इन्द्र। दक्षिणा। मघोनी। शिक्ष। स्तोतृऽभ्यः। मा। अति। धक्। भगः। नः। बृहत्। वदेम। विदथे। सुऽवीराः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 11; मन्त्र » 21
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    हे इन्द्र यस्य ते दक्षिणा मघोनी नीतिर्जरित्रे वरं सुखं नूनं प्रति दुहीयत्स्तोतृभ्यः शिक्ष मातिधक् सा नो बृहद्भगः प्रापयति तां प्राप्य सुवीरा वयं विदथे वदेम ॥२१॥

    पदार्थः

    (नूनम्) निश्चितम् (सा) वक्ष्यमाणा (ते) तव (प्रति) (वरम्) श्रेष्ठम् (जरित्रे) विद्यास्तावकाय (दुहीयत्) प्रतिपादयन् (इन्द्र) दातः (दक्षिणा) बलकारिणी (मघोनी) परमपूजितधनयुक्ता (शिक्ष) अनुशास्ति (स्तोतृभ्यः) (मा) निषेधे (प्रति) (धक्) दहति (भगः) धनम् (नः) अस्मभ्यम् (बृहत्) विस्तीर्णम् (वदेम) (विदथे) सङ्ग्रामे (सुवीराः) शोभनाश्च ते वीराश्च ते ॥२१॥

    भावार्थः

    ये सर्वेषां विद्यादात्रे सत्योपदेशकर्त्रे पुष्कलां वरां दक्षिणां ददति ते विद्वांसो भूत्वा शूरवीरा जायन्ते ॥२१॥ अस्मिन्सूक्ते राजधर्मविद्वत्सेनापतिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्वितीयमण्डले एकादशं सूक्तं प्रथमोऽनुवाकः षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) विद्या देनेवाले ! जिन (ते) आपकी (दक्षिणा) बल करनेवाली (मघोनी) परमपूजित धनयुक्त नीति (जरित्रे) विद्या की स्तुति करनेवाले के लिये (वरम्) श्रेष्ठ को (नूनम्) निश्चय से (प्रति,दुहीयत्) पूरा करती हुई (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये (शिक्ष) शिक्षा देती है (मा,अति,धक्) नहीं अतीव किसी को दहती नहीं कष्ट देती (सा) वह (नः) हमारे लिये (बृहद्भगः) विस्तृत धन को प्राप्त कराती है, उस नीति को प्राप्त होकर, (सुवीराः) सुन्दर वीरजन हम लोग (विदथे) संग्राम में (वदेम) कहें अर्थात् औरों को उपदेश दें ॥२१॥

    भावार्थ

    जो सबको विद्या देने और सत्योपदेश करनेवाले के लिये बहुत श्रेष्ठ दक्षिणा देते हैं, वे विद्वान् होकर शूरवीर होते हैं ॥२१॥ इस सूक्त में राजधर्म विद्वान् और सेनापति के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह दूसरे मण्डल में ग्यारहवाँ सूक्त प्रथम अनुवाक और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    'बृहद् वदेम विदथे सुवीराः'

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (नूनम्) = निश्चय से (सा) = वह (ते) = आपकी (मघोनी) = [मघवती] ऐश्वर्यवाली (दक्षिणा) = दक्षिणा [=दान] (जरित्रे) = स्तोता के लिए (वरम्) = श्रेष्ठ पदार्थों को (प्रतिदुहीयत्) = एक-एक करके हमारे लिए प्राप्त कराए। आपके दान के हम पात्र हों। आपके इस दान से हमें सब उत्कृष्ट वस्तुओं की प्राप्ति हो । २. (स्तोतृभ्यः) = हम स्तोताओं के लिए शिक्षा उत्तम ऐश्वर्य को दीजिए। (भगः) = ऐश्वर्य के पुञ्ज आप (नः) = हमारे लिए (मा अति धक्) = इस ऐश्वर्य को दग्ध न कीजिए। हम (विदथे) = ज्ञानयज्ञों में (बृहद् वदेम) = ख़ूब ही आपके स्तुतिवचनों का उच्चारण करें। आपके स्तोता बनते हुए हम (सुवीराः) = उत्तम वीर बनें। प्रभु-स्तवन हमें विषयों का शिकार होने से बचाता है। इस प्रकार हम वैषयिक-वृत्ति से ऊपर उठकर अपने में शक्ति का संग्रह करते हुए वीर बनते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु से दिया गया ऐश्वर्य हमें सब उत्तम वस्तुओं को प्राप्त कराए। हम प्रभुस्तवन करते हुए वीर बनें। सम्पूर्ण सूक्त का भाव यही है कि प्रभुस्तवन से वासना को पराजित करके हम शक्तिशाली बनें। यह प्रभुस्तवन ही अगले सूक्त का विषय है -

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    विषय

    ऐश्वर्यवान् राजा, सेनापति का वर्णन, उसके मेघ और सूर्यवत् कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( सा ) वह ( ते ) तेरी ( दक्षिणा ) बल और उत्साह उत्पन्न करने वाली ( मघोनी ) प्रभात वेला, उषा के समान अति ऐश्वर्यवती, प्रकाशमयी होकर ( जरित्रे ) स्तुति कर्ता पुरुष को ( वरं ) श्रेष्ठ ज्ञान ( प्रति दुहीयत् ) प्रत्यक्ष में प्रदान करती है । हे परमेश्वर ! तथा हे ऐश्वर्यवन् ! तू (नः) हमारे बीच में विद्यमान (भगः) ऐश्वर्यवान् होकर ( स्तोतृम्यः ) स्तुति करने वाले, विद्वान् उपदेशकों को ( शिक्ष ) दान दे । और ( मा अति धक् ) उनको अतिक्रमण कर अपमानित करके संतप्त, दुःखित मत कर । हम लोग ( सुवीराः ) उत्तम वीर्यवान् होकर ( विदथे ) ज्ञान प्राप्त कराने के लिये ( बृहद् ) बहुत उत्तम एवं बड़े ज्ञान वेद का ( वदेम) उपदेश करें । इति सप्तमो वर्गः ॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषि: ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, ८, १०, १३, १०, २० पङ्क्तिः। २,९ भुरिक् पङ्क्तिः । ३, ४, ११, १२, १४, १८ निचृत् पङ्क्तिः । ७ विराट् पङ्क्तिः । ५, १६, १७ स्वराड् बृहती भुरिक् बृहती १५ बृहती । २१ त्रिष्टुप ॥ एकविंशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे सर्वांना विद्या देणाऱ्या व सत्योपदेश करणाऱ्यांना उत्कृष्ट दक्षिणा देतात ते विद्वान व शूरवीर असतात. ॥ २१ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, glorious lord ruler of light and life, mighty powerful, may that generous power and liberality of yours ever flow with the highest good for the admirer and worshipper of Divinity. Give knowledge and enlightenment to the singers and celebrants. Pray do not strain them, hurt them not, nor bum them to naught.$Bless us with unbounded wealth and honour. Bless us with brave and noble heroes. Inspire us to sing and celebrate the divine glory in our battles of life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Again the theme of scholar moves on.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O scholar! you are powerful in giving away the knowledge and follow an ideal economic policy raising the strength of the people. In order to help the educators and admirers, you take positive steps and guide them. This fiscal policy does not ruin or harm any one, rather provides us wealth extensively. The bold and brave persons as act in the battle-fields, same way our finance experts should tell us the outline.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who provide good remuneration to the educators and communicators of the truth, they become bold and enlightened.

    Foot Notes

    ( जरित्ने) विद्यास्तावकाय |= For the admirer of learning. (दक्षिणा) बलकारिणी = The remuneration providing moral strength. (मघोनी) परमपूजितधनयुक्ता । = With honest and [fair wealth. (सुवीराः) शोभनाश्च ते वीराश्च ते । = Brave and bold persons.

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