ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 11/ मन्त्र 14
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
रासि॒ क्षयं॒ रासि॑ मि॒त्रम॒स्मे रासि॒ शर्ध॑ इन्द्र॒ मारु॑तं नः। स॒जोष॑सो॒ ये च॑ मन्दसा॒नाः प्र वा॒यवः॑ पा॒न्त्यग्र॑णीतिम्॥
स्वर सहित पद पाठरासि॑ । क्षय॑म् । रासि॑ । मि॒त्रम् । अ॒स्मे इति॑ । रासि॑ । शर्धः॑ । इ॒न्द्र॒ । मारु॑तम् । नः॒ । स॒ऽजोष॑सः । ये । च॒ । म॒न्द॒सा॒नाः । प्र । वा॒यवः॑ । पा॒न्ति॒ । अग्र॑ऽनीतिम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
रासि क्षयं रासि मित्रमस्मे रासि शर्ध इन्द्र मारुतं नः। सजोषसो ये च मन्दसानाः प्र वायवः पान्त्यग्रणीतिम्॥
स्वर रहित पद पाठरासि। क्षयम्। रासि। मित्रम्। अस्मे इति। रासि। शर्धः। इन्द्र। मारुतम्। नः। सऽजोषसः। ये। च। मन्दसानाः। प्र। वायवः। पान्ति। अग्रऽनीतिम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 11; मन्त्र » 14
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्र ये नोऽस्मान्मन्दसानाः सजोषसश्च वायवोऽग्रणीतिं प्रयान्ति तैस्समं वयं याम यतस्त्वमस्मे क्षयं रासि मित्रं रासि मारुतं शर्द्धश्च रासि तस्मात्प्रशंसनीयोऽसि ॥१४॥
पदार्थः
(रासि) ददासि (क्षयम्) निवासम् (रासि) (मित्रम्) सखायम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (रासि) (शर्द्धः) बलम् (इन्द्र) बलप्रद (मारुतम्) मरुतां मनुष्याणामिदम् (नः) अस्मान् (सजोषसः) समानप्रीतयः (ये) (च) (मन्दसानाः) कामयमानाः (प्र) (वायवः) विज्ञानबलयुक्ताः (यान्ति) (अग्रणीतिम्) अग्रा श्रेष्ठा चासौ नीतिश्च ताम् ॥१४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सखायो भूत्वा विद्याविनयौ प्राप्य सत्यं कामयन्ते ते सर्वेभ्यः सुखं दातुं शक्नुवन्ति ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (इन्द्र) बल के देनेवाले ! (ये) जो (नः) हम लोगों की (मन्दसानाः) कामना करते हुए (सजोषसः) समान प्रीतिवाले (वायवः) विज्ञान बलयुक्त जन (अग्रणीतिम्) आगे होनेवाली उत्तम नीति को (प्र,यान्ति) प्राप्त होते हैं उनके समान हम लोग प्राप्त होवें जिससे आप (अस्मे) हम लोगों के लिये (क्षयम्) निवास (रासि) देते हो (मित्रम्) मित्र (रासि) देते हो और (मारुतम्) मनुष्यों को (शर्द्धः) बल (च) भी (रासि) देते हो इससे प्रशंसनीय हो ॥१४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मित्र हो विद्या और विनय को प्राप्त होकर सत्य की कामना करते हैं, वे सबको सुख दे सकते हैं ॥१४॥
विषय
घर-साथी और प्राणशक्ति
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप (अस्मे) = हमारे लिए (क्षयं रासि) = उत्तम गृह [क्षि निवासे] को प्राप्त कराते हैं। उस घर में (मित्रं रासि) = उत्तम जीवनसाथी [पत्नी के रूप में] प्राप्त कराते हैं [Marriages are made in heaven] । हे परमात्मन्! आप (नः) = हमें (मारुतं शर्धः) = प्राणसम्बन्धी बल रासि देते हैं। प्रभुकृपा से उत्तम घर, उत्तम जीवनसखा व प्राणशक्ति प्राप्त होती है। ये तीनों ही बातें इस जीवनयात्रा में उन्नति के लिए आवश्यक हैं । २. इनको प्राप्त करके (ये) = जो व्यक्ति (सजोषसः) = साथ मिलकर [सह] प्रीतिपूर्वक कर्म करनेवाले होते हैं, (च) = और जो (मन्दसानाः) = सदा सन्तुष्ट व आनन्दित रहते हैं, वे (वायवः) = प्रगतिशील व्यक्ति (अग्रणीतिम्) = अपने को आगे प्राप्त कराने की (प्रपान्ति) = प्रकर्षेण रक्षा करते हैं, अर्थात् निरन्तर उन्नत होते चलते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभुकृपा से उत्तम घर साथी व प्राणशक्ति प्राप्त करके हम मिलकर प्रीतिपूर्वक अपने कर्त्तव्य-कर्म को करें और इस प्रकार उन्नति-पथ पर आगे बढ़ें ।
विषय
ऐश्वर्यवान् राजा, सेनापति का वर्णन, उसके मेघ और सूर्यवत् कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) इन्द्र ! ऐश्वर्यवन् ! देव ! तू हमें ( क्षयं रासि ) निवास करने योग्य घर दे । ( अस्में ) हमें ( मित्रम् ) मित्र ( रासि ) प्रदान कर, (नः) हमें ( मारुतं शर्धः ) वायुओं का सा प्रबल वृक्षों की तरह से शत्रुओं को उखाड़ देने में समर्थ सैनिकों और विद्वानों का बल (रासि) प्रदान कर । ( ये च ) और जो ( मन्दसानाः ) मेघयुक्त वायुओं के समान सब को सुप्रसन्न हर्षदायक, ( सजोषसः ) समान रूप से परस्पर प्रेम करने वाले हैं और जो ( अग्रणीतिम् ) सर्व श्रेष्ठ नीति और युद्ध में आगे बढ़ती सेना की ( प्र पान्ति ) रक्षा करते हैं वे ( वायवः ) विज्ञानवान् और बलवान् होने से ‘वायु’ नाम से कहाने योग्य हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषि: ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, ८, १०, १३, १०, २० पङ्क्तिः। २,९ भुरिक् पङ्क्तिः । ३, ४, ११, १२, १४, १८ निचृत् पङ्क्तिः । ७ विराट् पङ्क्तिः । ५, १६, १७ स्वराड् बृहती भुरिक् बृहती १५ बृहती । २१ त्रिष्टुप ॥ एकविंशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे मित्र असतात, विद्या व विनय प्राप्त करून सत्याची कामना करतात ते सर्वांना सुख देऊ शकतात. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, gracious ruler of the world, giver of power and prosperity, you give us a home, friends, and strength and force as that of the winds. And you give us also those who, united and acting in harmony, joyous and inspired, full of vigour and enthusiasm, follow the ways and values of policy, conduct and action far in advance of their time.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of the Vaidyas continues.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Vaidya ! you are giver of strength and desirous of our happiness. Take us to the right path of policy which is full of science or potentiality. You provide us accommodation under healthy environments and are therefore friendly. You are great because you give strength to human beings.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Only such persons can delight human beings, who are friendly and giver of knowledge and are polite.
Foot Notes
(इन्द्र) बलप्रद = Giver of strength. (मारुतम् ) मरुतां मनुष्याणामिदम् = To the human beings. (सजोषस: ) समानप्रीतयः = Mutually delighting each other. (अग्रणीतिम्) अग्रा श्रेष्ठा चासौ नोतिश्चताम् = Those who are leading in formulating a good policy.
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