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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 12/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    येने॒मा विश्वा॒ च्यव॑ना कृ॒तानि॒ यो दासं॒ वर्ण॒मध॑रं॒ गुहाकः॑। श्व॒घ्नीव॒ यो जि॑गी॒वाँल्ल॒क्षमाद॑द॒र्यः पु॒ष्टानि॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । इ॒मा । विश्वा॑ । च्यव॑ना । कृ॒तानि॑ । यः । दास॑म् । वर्ण॑म् । अध॑रम् । गुहा॑ । अक॒रित्यकः॑ । श्व॒घ्नीऽइ॑व । यः । जि॒गी॒वान् । ल॒क्षम् । आद॑त् । अ॒र्यः । पु॒ष्टानि॑ । सः । ज॒ना॒सः॒ । इन्द्रः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येनेमा विश्वा च्यवना कृतानि यो दासं वर्णमधरं गुहाकः। श्वघ्नीव यो जिगीवाँल्लक्षमाददर्यः पुष्टानि स जनास इन्द्रः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन। इमा। विश्वा। च्यवना। कृतानि। यः। दासम्। वर्णम्। अधरम्। गुहा। अकरित्यकः। श्वघ्नीऽइव। यः। जिगीवान्। लक्षम्। आदत्। अर्यः। पुष्टानि। सः। जनासः। इन्द्रः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 12; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरविषयमाह।

    अन्वयः

    हे जनासो येनेश्वरेणेमा विश्वा च्यवना पुष्टानि कृतानि यो गुहा वर्णमधरं दासमको यः श्वघ्नीव जिगीवान् लक्षमादत् स इन्द्रोऽर्यो बोध्यः ॥४॥

    पदार्थः

    (येन) ईश्वरेण (इमा) इमानि (विश्वा) सर्वाणि भुवनानि (च्यवना) प्राप्तानि (कृतानि) उत्पादितानि (यः) (दासम्) दातुं योग्यम् (वर्णम्) रूपम् (अधरम्) निम्नम् (गुहा) गुहायाम् (अक:) करोति (श्वघ्नीव) या शुनो हन्ति तद्वत् (यः) (जिगीवान्) जयशीलः (लक्षम्) लक्षितुं योग्यम् (आदत्) आदत्ते (अर्य्यः) ईश्वरः। अर्य इति ईश्वरनाम०। निघं० २। २२ (पुष्टानि) दृढानि (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। य ईश्वरः कारणाद्विविधान् लोकान् पदार्थांश्च निर्मिमीते यः सर्वेषां कर्माणि लक्षीभूतानि रक्षति स सर्वैरुपासनीयः ॥४॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब ईश्वरविषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (जनासः) मनुष्यो ! (येन) जिस ईश्वर ने (इमा) ये (विश्वा) समस्त (च्यवना) प्राप्त हुए लोक (पुष्टानि) दृढ़ (कृतानि) किये (यः) जो (गुहा) हृदयाकाश में (वर्णम्) रूप को (अधरम्) उस हृदय के नीचे (दासम्) देने योग्य (अकः) करता है और (यः) जो (श्वघ्नीइव) कुत्तों का दण्ड देनेवाली के समान (जिगीवान्) जयशील (लक्षम्) लक्ष को (आदत्) ग्रहण करता है (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (अर्य्यः) ईश्वर है यह जानना चाहिये ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो ईश्वर कारण से विविध प्रकार के लोकों और पदार्थों को रचता और जो सब कर्मों को लक्ष सा रखता है, वह सबको उपासना करने योग्य है ॥४॥

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    विषय

    निचली योनियों में

    पदार्थ

    १. (येन) = जिसने (इमा विश्वा) = इन सब लोकों को (च्यवना कृतानि) = अस्थिर बनाया है। दृढ़-से-दृढ़ प्रतीयमान लोक को भी वे प्रभु प्रलयकाल आने पर विदीर्ण करते हैं। प्रभु ने सारे संसार ने को ही नश्वर बनाया है। वस्तुतः इस अस्थिरता का चिन्तन ही मनुष्य को मार्गभ्रष्ट होने से बचाता है। २. (यः) = जो (दासं वर्णम्) = औरों का उपक्षय करनेवाले मानवसमूह को (अधरम्) = निचली योनियों में (गुहा कः) = संवृत ज्ञान की [गुह संवरणे] स्थिति में करते हैं, अर्थात् पशु-पक्षियों की योनि में व वृक्षादि स्थावर योनियों में ही जन्म देते हैं। यहाँ उनकी बुद्धि सुप्तावस्था में पड़ी रहती है । ३. (यः) = जो (जिगीवान्) = सदा विजयी प्रभु (अर्यः) = वैश्यवृत्तिवाले कृपण व्यक्ति की (पुष्टानि) = सम्पत्तियों को इस प्रकार (आदत्) = छीन लेते हैं (इव) = जैसे कि (श्वघ्नी) = एक व्याघ्र [शिकारी] (लक्षम्) = अपने लक्ष्यभूत मृगादि को (आदद्) = ग्रहण कर लेता है । हे (जनासः) = लोगो! (सः) = वे कृपणों के धनों का हरण करनेवाले प्रभु ही (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु ने सब लोकों को नश्वर बनाया है। पापवृत्तिवाले को वे निचली योनियों में जन्म देते हैं, कृपणवृत्ति वालों के धन का अपहरण करते हैं।

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    विषय

    बलवान् राजा, सभापति, जीवात्मा और परमेश्वर का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( येन ) जिसने ( इमा ) ये ( विश्वा ) समस्त ( च्यवना ) गतिशील पदार्थ, सूर्य आदि लोक ( कृतानि ) बनाये । या, जिसने इन सबको गतिमान् किया है । ( यः ) जो ( दासं वर्णम् ) देने योग्य रूप को प्रथम ( अधरम् ) नीचे ( गुहायाम् ) बुद्धि में (कः) उत्पन्न करता है । या जो ( दासं वर्णम् ) देने योग्य वर्ण अर्थात् रूपवान् देह को ( अधरम् ) शरीर के अधो भाग में ( गुहा ) संवृत गर्भायश में उत्पन्न करता है । ( श्वघ्नी इत्र ) व्याध जिस प्रकार ( लक्षम् आदद् ) निशाने को नहीं चुकाता उसी प्रकार (यः) जो (जिगीवान्) सर्व विजयी, सर्वोत्कृष्ट होकर ( पुष्टानि ) पोषण योग्य ( लक्षम् ) लाखों देहों को ( अर्यः ) सब का स्वामी होकर ( आदत् ) अपने वश में रखता है, हे ( जनासः ) लोगो ! ( सः इन्द्रः ) वही परमेश्वर है । (२) वही राजा इन्द्र है (येन) जिसके भय से ( विश्वा ) शत्रुदल कांपते हैं । ( दासं वर्णम् ) प्रजा के नाशक वर्ण अर्थात् घातक पेशे वालों को नीचे खोह में रखें। जो लक्ष को न चूकने वाले व्याध के समान ( पुष्टानि लक्षम् आदद्ः ) लाखों हृष्ट पुष्ट सैन्यों को रखता है वह ( अर्यः ) स्वामी ‘इन्द्र’ कहता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १–५, १२–१५ त्रिष्टुप् । ६-८, १०, ११ निचृत् त्रिष्टुप । भुरिक् त्रिष्टुप । पंचदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मन्त्रार्थ

    (येन-इमा विश्वा चयवना कृतानि) जिसने इन सब लोक लोकान्तरों को गतिशील किया है । (यः-दासं वर्णम् अधरं गुहाकः) जिसने कर्मो का उपक्षय करने वाले श्राकाश को आवृत करने वाले मेघ को नीचे पृथिवी की गुहा गहरे में नीचे कर दिया पहुंचा दिया (यः श्वघ्नी-इव) 'शुनो हन्ति यद्वा श्वभिर्हन्ति सिंहादीन् श्वपूर्वकात्-हनधातोश्छान्दसः किनिप्रत्ययः' जैसे व्याध कुत्तों-भेडियों को या कुत्तों से सिंह आदि लक्ष्य को जीतने वाला (अर्य: पुष्टानि-आदत्) स्वामी हो पुष्टों को प्राप्त करता है ऐसे उन मेघ और लोकों का स्वामी बन स्वाधीन करता है (जनासः सः-इन्द्रः) हे जनो! वह इन्द्र सर्वत्र व्याप्त विद्युद्देव या परमात्मा है ॥४॥

    टिप्पणी

    'बलनामकस्यासुरस्य" (सायण:) “घ्यवना नश्वराणि” (सायणः)

    विशेष

    ऋषि:-गृत्समदः (मेधावी प्रसन्न जन" गृत्स:-मेधाविनाम" [निव० ३।१५]) देवताः-इन्द्रः (अध्यात्म में व्यापक परमात्मा आधिदैविक क्षेत्र में सर्वत्र प्राप्त विद्युत्)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो ईश्वर कारणा (प्रकृती)पासून विविध प्रकारच्या गोलांना उत्पन्न करतो व पदार्थांना उत्पन्न करतो, जो सर्वांच्या कर्मांना पाहतो, तोच उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who makes all these moving objects of the moving world of existence, who conceives and fixes the emergent form deep in the cavern of the mind, who takes on the target like an unfailing hunter, all those in course of time which are created and nurtured by him: Such is Indra, O people of the world.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Knowledge about God is imparted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! the Almighty God has created the whole universe, and made it powerful. His abode is in the heart or mind and its form can be understood below the heart region. As a dog-shooter kills the dog and achieves its targets, same way He is glorious and controller of the universe. This truth should never be lost sight of.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    God creates all planets and substances and keeps a check on them. We should always adore Him.

    Foot Notes

    (विश्वा) सर्वाणि भुवनानि | = All the planets of the universe. (कृतानि) उत्पादितानि | = Created. (दासम् ) दातुं योग्यम् = Worth giving. (श्वघ्नीव) या शुनो हन्ति तद्वत् = A female dog shooter. (अर्य्यः ) ईश्वरः । अर्थ इति ईश्वरनाम । (NG. 2-22 ) = Controller of the universe. (जनास:) जना = O men.

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