ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 12/ मन्त्र 9
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
यस्मा॒न्न ऋ॒ते वि॒जय॑न्ते॒ जना॑सो॒ यं युध्य॑माना॒ अव॑से॒ हव॑न्ते। यो विश्व॑स्य प्रति॒मानं॑ ब॒भूव॒ यो अ॑च्युत॒च्युत्स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥
स्वर सहित पद पाठयस्मा॑त् । न । ऋ॒ते । वि॒ऽजय॑न्ते । जना॑सः । यम् । युध्य॑मानाः । अव॑से । हव॑न्ते । यः । विश्व॑स्य । प्र॒ति॒ऽमान॑म् । ब॒भूव॑ । यः । अ॒च्यु॒त॒ऽच्युत् । सः । ज॒ना॒सः॒ । इन्द्रः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्मान्न ऋते विजयन्ते जनासो यं युध्यमाना अवसे हवन्ते। यो विश्वस्य प्रतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत्स जनास इन्द्रः॥
स्वर रहित पद पाठयस्मात्। न। ऋते। विऽजयन्ते। जनासः। यम्। युध्यमानाः। अवसे। हवन्ते। यः। विश्वस्य। प्रतिऽमानम्। बभूव। यः। अच्युतऽच्युत्। सः। जनासः। इन्द्रः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 12; मन्त्र » 9
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथेश्वरविद्युद्विषयमाह।
अन्वयः
हे जनासो विद्वांसो जनासो यस्मादृते न विजयन्ते यं युध्यमाना अवसे हवन्ते यो विश्वस्य प्रतिमानं योऽच्युतच्युद्बभूव स इन्द्रोऽस्तीति विजानन्तु ॥९॥
पदार्थः
(यस्मात्) (न) (ते) विना (विजयन्ते) (जनासः) योद्धारः (यम्) (युध्यमानाः) (अवसे) रक्षणाय (हवन्ते) (यः) परमेश्वरो विद्वन् वा (विश्वस्य) संसारस्य (प्रतिमानम्) परिमाणसाधकः (बभूव) भवति (यः) (अच्युतच्युत्) योऽच्युतेषु च्यवते ताँश्च्यावयति (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥९॥
भावार्थः
अत्र श्लेषालङ्कारः। ये परमेश्वरन्नोपासते विद्युद्विद्यां न जयन्ति ते विजयिनो न भवन्ति यदिदं विश्वं यच्च रूपं तत्सर्वं परमेश्वरस्य विद्युतो विज्ञापकमस्ति ॥९॥
हिन्दी (5)
विषय
अब ईश्वर और बिजुली के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (जनासः) मनुष्यो ! (जनासः) विद्वान् जन (यस्मात्) जिससे (ते) विना (न) नहीं (विजयन्ते) विजय को प्राप्त होते हैं (यम्) जिसको (युध्यमानाः) युद्ध करते हुए (अवसे) रक्षा आदि के लिये (हवन्ते) ग्रहण करते हैं (यः) जो (विश्वस्य) संसार का (प्रतिमानम्) परिमाणसाधक (यः) जो (अच्युतच्युत्) स्थिर पदार्थों को चलानेवाला (बभूव) होता (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर है, यह जानना चाहिये ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो परमेश्वर की उपासना नहीं करते, बिजुली की विद्या को नहीं जानते, वे विजयशील नहीं होते। जो यह विश्व और जो सब पदार्थों का रूपमात्र है, वह परमेश्वर और बिजुली का विज्ञान करानेवाला है ॥९॥
पदार्थ
पदार्थ = हे परमात्मन् ! ( यस्मात् ऋते ) = जिस आपकी कृपा के बिना ( जनास: ) = मनुष्य ( न विजयन्ते ) = विजय को नहीं प्राप्त होते ( युध्यमानाः ) = युद्ध करते हुए ( अवसे ) = अपनी रक्षा के लिए ( यम् हवन्ते ) = जिस आपकी प्रार्थना करते हैं ( यः ) = जो भगवान् ( विश्वस्य ) = सब जगत् का ( प्रतिमानम् बभूव ) = प्रत्यक्ष मापनेवाला है ( यो अच्युतच्युत् ) = जो प्रभु आप न गिरता हुआ दूसरों को गिरानेवाला है ( जनासः ) = हे मनुष्यो! ( स इन्द्रः ) = वह इन्द्र है ।
भावार्थ
भावार्थ = जिस प्रभु की कृपा के बिना मनुष्य कभी विजय को नहीं प्राप्त हो सकते । काम, क्रोधादि आभ्यन्तर शत्रुओं के साथ और बाहिर के शत्रुओं के साथ भी युद्ध करते हुए, अपनी रक्षा के लिए जिसकी प्रार्थना सब मनुष्य करते हैं। जो प्रभु आप अटल हुआ भी दूसरे सबों को गिरा देता है । हे मनुष्यो ! वह सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर ही इन्द्र है, ऐसा आप सब लोग जानो ।
विषय
विजेता प्रभु
पदार्थ
१. (यस्माद् ऋते) = जिसके बिना (जनासः) = लोग (न विजयन्ते) = विजय को नहीं प्राप्त करते हैं। सब विजय उस प्रभु की ही होती है 'जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्' । बलवानों के बल वे प्रभु हैं— तेजस्वियों का तेज वे हैं और बुद्धिमानों की बुद्धि वे प्रभु ही हैं। इस प्रकार सब विजय प्रभु ही प्राप्त कराते हैं । २. (युध्यमानाः) = युद्ध करते हुए लोग (अवसे) = रक्षण के लिए (यम्) = जिसको (हवन्ते) = पुकारते हैं। परस्पर युद्ध करते हुए लोग विजय के लिए प्रभु का स्मरण करते हैं । २. (यः) = जो (विश्वस्य) = सम्पूर्ण संसार का (प्रतिमानम्) = [An adversary] मुकाबला करनेवाले योद्धा बभूव हैं। सारा संसार भी एक ओर हो और प्रभु दूसरी ओर हों तो यह संसार उस प्रभु का साम्मुख्य नहीं कर सकता। (यः) = जो (अच्युतच्युत्) = दृढ़ से दृढ़ भी लोकों को हिला देनेवाले हैं, हे (जनासः) = लोगो ! (सः) = वे (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु हैं ।
भावार्थ
भावार्थ – अनन्तशक्तिवाले वे प्रभु हैं। उन्हें सारा ब्रह्माण्ड भी पराजित नहीं कर सकता। वे ही सब विजयों के करनेवाले हैं।
विषय
बलवान् राजा, सभापति, जीवात्मा और परमेश्वर का वर्णन ।
भावार्थ
( यस्मात् ऋते ) जिस परमेश्वर और वीर नायक के विना ( जनासः ) मनुष्य (न विजयन्ते) विजय प्राप्त नहीं करते और युद्ध में एक दूसरे पर प्रहार करते हुए लोग भी ( यं ) जिसको अपने (अवसे) रक्षा के लिये ( हवन्ते ) पुकारते हैं और ( यः ) जो ( विश्वस्य ) समस्त विश्व का ( प्रतिमानं ) मापनेवाला, नपैना के तुल्य सब को अपने ही भीतर ले लेनेवाला (बभूव) है, जो सब से बड़ा, सब के मुकाबले पर आने में समर्थ है और ( यः ) जो ( अच्युतच्युत् ) दृढ़ से दृढ़ पदार्थों और दुर्गों और शत्रुगण को भी गिरा देने और भय से विमुख कर देनेहारा है. हे ( जनासः ) पुरुषो ! ( सः इन्द्रः ) वह ‘इन्द्र’ है । परमेश्वर सब नित्य, ध्रुव पदार्थों को भी अपने अधीन चलाने वाला होने से परमेश्वर ‘अच्युतच्युत्’ है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १–५, १२–१५ त्रिष्टुप् । ६-८, १०, ११ निचृत् त्रिष्टुप । भुरिक् त्रिष्टुप । पंचदशर्चं सूक्तम् ॥
मन्त्रार्थ
(यस्य त्-ऋते जनासः-न विजयन्ते) जिसके बिना मनुष्य विजय-लाभ नहीं ले सकते (युध्यमानाः-अवसे यं हवन्ते) युद्ध करते हुए अपनी रक्षा के लिये जिसको आहूत करते हैं (यः-विश्वस्य प्रतिमानं बभूव) जो विश्व-जड जङ्गम जगत् का सम्भालने वाला या सहारा है (यः-अच्युतच्युत् ) जो अच्युतों-अचलों पर्वत ग्रह आदि को भी चलायमान करने वाला है (जनासः-सः-इन्द्रः ) हे जनो! वह इन्द्र-व्याप्त विद्युद्देव या परमात्मा है ॥९॥
टिप्पणी
"वृत्रं हत्वा" (सायणः)
विशेष
ऋषि:-गृत्समदः (मेधावी प्रसन्न जन" गृत्स:-मेधाविनाम" [निव० ३।१५]) देवताः-इन्द्रः (अध्यात्म में व्यापक परमात्मा आधिदैविक क्षेत्र में सर्वत्र प्राप्त विद्युत्)
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जे परमेश्वराची उपासना करीत नाहीत, विद्युत विद्या जाणत नाहीत, ते विजयी होत नाहीत. विश्वातील पदार्थांचे रूप हे परमेश्वर व विद्युत विज्ञान जाणवून देणारे आहे. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Without whom the people win no victories, on whom the warriors depend for protection, who is the comprehending measure of the universe and the unmoved mover of the cosmic dynamics: he, O people of the world, is Indra.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The theme further deals with God and energy.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! the wise persons can not score a victory without the aid of God and energy. They keep and hold it for the sake of their protection while fighting in the fields. In fact, God is the greatest accomplisher after all the endeavors. He moves the immobiles and immobilizes the mobiles. One can see Him with such actions.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who do not worship God and are ignorant of the science of energy, they can not achieve success. The whole universe is the manifestation of God and His energy. We should know the truth and science.
Foot Notes
(जनास:) योद्धारः = Warriors. (अवसे) रक्षणाय | For protection. (प्रतिमानम्) परिमाणसा धक: = Accomplisher of desirable. (अच्युतच्युत) योऽच्युतेषु च्यवते ताँश्च्यावयति = One who moves them mobiles and immobilizes the mobiles.
बंगाली (1)
পদার্থ
যস্মান্ন ঋতে বিজয়ন্তে জনাসো যং যুদ্ধয়মানা অবসে হবন্তে।
যো বিশ্বস্য প্রতিমানং বভূব যো অচ্যুত চ্যুৎ স জনাস ইন্দ্রঃ।।৪৬।।
(ঋগ্বেদ ২।১২।৯)
পদার্থঃ হে পরমাত্মা! (যস্মাৎ ঋতে) যেই তোমার কৃপা ব্যতীত (জনাসঃ) মনুষ্য (ন বিজয়ন্তে) বিজয় প্রাপ্ত হয় না, (যুদ্ধয়মানাঃ) যুদ্ধকালীন সময়ে (অবসে) নিজেকে রক্ষার জন্য (যম্ হবন্তে) যে তোমার প্রার্থনা লোকে করে, (যঃ) যে পরমাত্মা (বিশ্বস্য) সকল জগতের (প্রতিমানম্ বভূব) প্রত্যক্ষ পরিমাপকারী, (যো অচ্যুত চ্যুৎ) যে পরমেশ্বর নিজে অপতনশীল হয়েও অসতের পতনকারী হন; (জনাসঃ) হে মনুষ্য! (স ইন্দ্রঃ) তিনিই সর্বশক্তিমান ইন্দ্র।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ যেই পরমেশ্বরের কৃপা ব্যতীত মনুষ্য কখনো বিজয় প্রাপ্ত হতে পারে না। কাম ক্রোধ অভ্যন্তরীণ শত্রুর সাথে এবং বাইরের শত্রুর সাথে যুদ্ধকালীন রক্ষার জন্য যাঁর প্রার্থনা সকল মনুষ্য করে থাকে। যে পরমেশ্বর নিজে অটল হয়েও অসত্যের পতনকারী, হে মনুষ্য! সেই সর্বশক্তিমান জগদীশ্বরকেই ইন্দ্র বলে তোমরা জেনো।।৪৬।।
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