ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 12/ मन्त्र 7
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
यस्याश्वा॑सः प्र॒दिशि॒ यस्य॒ गावो॒ यस्य॒ ग्रामा॒ यस्य॒ विश्वे॒ रथा॑सः। यः सूर्यं॒ य उ॒षसं॑ ज॒जान॒ यो अ॒पां ने॒ता स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । अश्वा॑सः । प्र॒ऽदिशि॑ । यस्य॑ । गावः॑ । यस्य॑ । ग्रामाः॑ । यस्य॑ । विश्वे॑ । रथा॑सः । यः । सूर्य॑म् । यः । उ॒षस॑म् । ज॒जान॑ । यः । अ॒पाम् । ने॒ता । सः । ज॒ना॒सः॒ । इन्द्रः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्याश्वासः प्रदिशि यस्य गावो यस्य ग्रामा यस्य विश्वे रथासः। यः सूर्यं य उषसं जजान यो अपां नेता स जनास इन्द्रः॥
स्वर रहित पद पाठयस्य। अश्वासः। प्रऽदिशि। यस्य। गावः। यस्य। ग्रामाः। यस्य। विश्वे। रथासः। यः। सूर्यम्। यः। उषसम्। जजान। यः। अपाम्। नेता। सः। जनासः। इन्द्रः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 12; मन्त्र » 7
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्युद्रूपाऽग्निविषयमाह।
अन्वयः
हे जनासो विद्वद्वरा युष्माभिः प्रदिशि यस्य विश्वेऽश्वासो यस्य विश्वे गावो यस्य विश्वे ग्रामा यस्य विश्वे रथासः यस्सूर्यं य उषसं च जजान योऽपां नेताऽस्ति स इन्द्रो वेदितव्यः ॥७॥
पदार्थः
(यस्य) विद्युदाख्यस्य (अश्वासः) व्याप्तिशीला वेगादयो गुणाः (प्रदिशि) उपदिशि (यस्य) (गावः) किरणाः (यस्य) (ग्रामाः) मनुष्यनिवासाः (यस्य) (विश्वे) सर्वे (रथासः) रमणसाधनाः (यः) कारणाख्यो विद्युदग्निः (सूर्यम्) सवितृमण्डलम् (यः) (उषसम्) प्रत्यूषकालम् (जजान) जनयति (यः) (अपाम्) जलानाम् (नेता) प्रापकः (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥७॥
भावार्थः
हे मनुष्या यदि भवन्तो वेगाद्यनेगुणयुक्तं सर्वमूर्त्तद्रव्याधारं शीघ्रगामी विमानादियानवर्षानिमित्तं विद्युदग्निं जानीयुस्तर्हि किं किमुत्तमं कार्य्यं साधितुं न शक्नुयुः ॥७॥
हिन्दी (4)
विषय
अब बिजुलीरूप अग्नि के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (जनासः) विद्वद्वर मनुष्यो ! तुमको (प्रदिशि) प्रति दिशा के समीप (यस्य) जिसके (विश्वे) समस्त (अश्वासः) व्याप्तिशील वेगादि गुणयुक्त (यस्य) जिसके समस्त (गावः) किरणें (यस्य) जिसके समस्त (ग्रामाः) मनुष्यों के निवास (यस्य) जिसके समस्त (रथासः) विहार करानेवाले रथ (यः) जो कारण बिजुली रूप अग्नि (सूर्यम्) सूर्यमण्डल और (यः) जो (उषसम्) प्रभातकाल को (जजान) प्रकट करता वा (यः) जो (अपाम्) जलों की (नेता) प्राप्ति करानेहारा है (सः) वह (इन्द्रः) पदार्थों का छिन्न-भिन्न करनेवाला बिजुली रूप अग्नि है, यह जानना चाहिये ॥७॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! यदि आप लोग वेगादि अनेक गुणयुक्त सर्वमूर्त्तिमान् पदार्थों के आधाररूप शीघ्रगामी विमान आदि यान और वर्षा निमित्त बिजुलीरूप आग्नि को जानें तब तो कौन-कौन उत्तम कार्य सिद्ध न कर सकें ॥७॥
विषय
सर्वानुशासक
पदार्थ
१. अध्यात्म जगत् में (यस्य) = जिसके (प्रदिशि) = प्रदेशन व अनुशासन में (अश्वासः) = कर्मों में व्याप्त होनेवाली इन्द्रियाँ कर्मव्याप्त होती हैं। (यस्य) = जिसके अनुशासन में (गाव:) = [गमयन्ति अर्थान्] अर्थों का ज्ञान प्राप्त करनेवाली ज्ञानेन्द्रियां ज्ञानप्राप्ति में प्रवृत्त होती हैं । २. (यस्य) = जिसके अनुशासन में (ग्रामा:) = यह सब इन्द्रियों व प्राणों का समूह कार्य में प्रवृत्त होता है और (यस्य) = जिसके अनुशासन में (विश्वे) = ये सब (रथासः) = शरीररूप रथ गति करते हैं । २. इस आधिदैविक जगत् में भी (यः) = जो (सूर्यम्) = सूर्य को (जजान) = प्रादुर्भूत करते हैं और जो (उषसम्) = उषाकाल को प्रकट करते हैं । (यः) = जो सूर्यकिरणों द्वारा मेघनिर्माण करते हुए (अपां नेता) = जलों को प्राप्त करानेवाले हैं। हे (जनासः) = लोगो ! (सः) = वे ही (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु हैं।
भावार्थ
भावार्थ- अध्यात्म में प्रभु ही कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों, प्राणसमूहों व शरीररथों के प्रवर्तक हैं। अधिदैवत में भी सूर्य व उषा को वे प्रादुर्भूत करनेवाले व जलों के प्रवर्तक हैं। वे प्रभु ही सर्वानुशासक हैं।
विषय
बलवान् राजा, सभापति, जीवात्मा और परमेश्वर का वर्णन ।
भावार्थ
( यस्य ) जिस परमेश्वर की ( प्रदिशि ) उत्कृष्ट रचना कौशल को अच्छा कर दर्शाने के निमित्त ( अश्वासः ) समस्त अश्व, शीघ्रग्रामी और व्यापक पृथिवी सूर्य आदि और विद्युत् आयु आदि हैं। ( यस्य प्रदिशिगावः ) जिसके उत्तम कौशल दर्शाने के निमित्त ( गावः ) गौऐ, वेद वाणियें और देह में इन्द्रियें और इस लोक की उत्तम भूमियें और जन्तु उत्पन्न करने वाली मादायें, तथा गतिमान् सभी लोक हैं। ( यस्यं प्रदिशि ) जिसके उत्तम रूप को दर्शन के लिये ( विश्वे ग्रामाः ) समस्त ‘ग्राम’ पदार्थों जनों पशु पक्षि आदि के सब संघ है और ( यस्य प्रदिशि ) जिसको उत्तम रीति से दर्शाने के लिये रमणकारी साधन, वेग से जाने वाले भूगोल और वायु आदि तथा सब उत्तम रस हैं। और जो प्रभु परमेश्वर ( सूर्यम् ) सब के प्रेरक सूर्य और उसके समान उत्पादक वीर्यवान् पुरुष को और ( यः ) जो ( उषसं ) कमनीय कान्तिवाली प्रभात वेला और, कमनीय उत्तम गुणों से युक्त स्त्री, और सूर्य के दाह करने वाली शक्ति को ( जजान ) उत्पन्न करता है ( यः ) जो ( अपां ) समस्त नदियों, प्रकृति के परमाणु, कारण दशा में स्थित तत्वों, लिङ्ग शरीरों, लोकों आदि का भी ( नेता ) नायक, संचालक है हे ( जनासः ) मनुष्यो ! ( सः ) वही ( इन्द्र ) इन्द्र है । ( २ ) राजा जिसके ( प्रदिशि ) शासन में, प्रदेश या राज्य में, अश्व, गौ, नानाग्राम, सर्व प्रकार के यातायात के लिये रथ हैं, जो तेजस्वी पुरुष तथा कमनीय उत्तम स्त्री को राष्ट्र में उत्पन्न करता है, अर्थात् जिसके राष्ट्र में नपुंसक और बन्ध्यायें उत्पन्न नहीं होतीं, जो प्रजाओं का नायक है वह राजा ‘इन्द्र’ है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १–५, १२–१५ त्रिष्टुप् । ६-८, १०, ११ निचृत् त्रिष्टुप । भुरिक् त्रिष्टुप । पंचदशर्चं सूक्तम् ॥
मन्त्रार्थ
(यस्य प्रदिशि) जिसके संकेत प्रेरण या शासननियम मे (अश्वासः) घोडे घोडे आदि वाहक पशु (यस्य-गावः) जिसके प्रेरण या शासन में नियम में गौएं गवादि दुधारू पशु (यस्य ग्रामाः) जिसके प्रेरण में या शासन में नियम में जनग्रामजनवर्ग हैं (यस्य विश्वे रथासः) जिसके प्रेरण में सब रथ-यान भूयान, जलयान, वायुयान चल सकते हैं या जिसके शासन में नियम में रमणस्थान सब सूर्य आदि लोक हैं "असो वा आदित्य एष रथः” [शत० ९।४।१।१५] (य: सूर्यम् उपसं जजान)जिसने सूर्य को और उषा को उत्पन्न किया (यः अपां नेता) जो जलों का नेता-नायक गतिप्रद है (जनासः सः-इन्द्रः) हे लोगों वह इन्द्र व्याप्त विद्यद्देव या परमात्मा है ॥७॥
टिप्पणी
"अन्तर्यामितया” (सायणः)
विशेष
ऋषि:-गृत्समदः (मेधावी प्रसन्न जन" गृत्स:-मेधाविनाम" [निव० ३।१५]) देवताः-इन्द्रः (अध्यात्म में व्यापक परमात्मा आधिदैविक क्षेत्र में सर्वत्र प्राप्त विद्युत्)
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जर तुम्ही वेग इत्यादी अनेक गुणयुक्त सर्व मूर्तिमान पदार्थांचे आधाररूप, शीघ्रगामी विमान इत्यादी यान व वृष्टीनिमित्त विद्युतरूपी अग्नीला जाणाल तेव्हा कोणते उत्तम कार्य सिद्ध करू शकणार नाही? ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
His are the waves of energy pervading in the directions and sub-directions of space. His are the horses and the cows, his the earths and the rays of light. His are the habitations and all the starry chariots of the world. He creates the sun and the dawn, revealing them every day anew. He is the mover and guide of the waters and spatial energy. Such, O people, is Indra, universal energy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The power of energy is detailed below.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! through this energy the quick transport and carriers are run. These are helpful and comfortable for the human beings and are instrumental in the running of chariots (vehicles). The same energy does exist in the solar system, creates dawn and gets water. It is very mighty and analyzer of different substances to make them worthwhile.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! if you succeed in discovering the various powers and uses of the energy, then the problems related to fast aircrafts, transport, irrigation, and electricity are automatically solved.
Foot Notes
(अश्वासः ) व्याप्तिशीला वेगादयो गुणाः । = The qualities of the fastness and absorption. (प्रदिशि ) उपदिशि | = Towards all directions. (गाव:) किरणा: = Rays. (रथास:) रमणसाधनाः । = The transport vehicles used for outing etc. (सूर्यम्) सवितुमण्डलम् । = Solar system. (नेता) प्रापकः = One who secures.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal