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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 1/ मन्त्र 12
    ऋषि: - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒क्रो न ब॒भ्रिः स॑मि॒थे म॒हीनां॑ दिदृ॒क्षेयः॑ सू॒नवे॒ भाऋ॑जीकः। उदु॒स्रिया॒ जनि॑ता॒ यो ज॒जाना॒पां गर्भो॒ नृत॑मो य॒ह्वो अ॒ग्निः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒क्रः । न । ब॒भ्रिः । स॒म्ऽइ॒थे । म॒हीना॑म् । दि॒दृ॒क्षेयः॑ । सू॒नवे॑ । भाःऽऋ॑जीकः । उत् । उ॒स्रियाः॑ । जनि॑ता । यः । ज॒जान॑ । अ॒पाम् । गर्भः॑ । नृऽत॑मः । य॒ह्वः । अ॒ग्निः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्रो न बभ्रिः समिथे महीनां दिदृक्षेयः सूनवे भाऋजीकः। उदुस्रिया जनिता यो जजानापां गर्भो नृतमो यह्वो अग्निः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अक्रः। न। बभ्रिः। सम्ऽइथे। महीनाम्। दिदृक्षेयः। सूनवे। भाःऽऋजीकः। उत्। उस्रियाः। जनिता। यः। जजान। अपाम्। गर्भः। नृऽतमः। यह्वः। अग्निः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    योऽपां गर्भो यह्वोऽग्निरुस्रिया अपां जनिता भवतीव दिदृक्षेयो नृतम उज्जजान स सूनवे महीनां समिथे बभ्रिरक्रो न भाऋजीको भवति ॥१२॥

    पदार्थः

    (अक्रः) केनापि प्रकारेण क्रमितुमयोग्यः (न) इव (बभ्रिः) धर्ता (समिथे) संग्रामे (महीनाम्) पूजनीयानां सेनानाम् (दिदृक्षेयः) द्रष्टुमिच्छायां साधुर्दर्शनीयः। अत्र वाच्छन्दसीति ढः। (सूनवे) अपत्याय (भाऋजीकः) भाभिर्विद्यादीप्तिभिर्ऋजुः सरलः (उत्) (उस्रियाः) किरणैस्संयुक्तः (जनिता) उत्पादकः (यः) सूर्यः (जजान) जायते (अपाम्) जलानाम् (गर्भः) स्तोतुमर्हः (नृतमः) अतिशयेन नेता (यह्वः) महान् (अग्निः) ॥१२॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्योऽपां गर्भं जनयित्वा मेघेन सह संयोध्य वृष्टिं कृत्वा सर्वान् वर्धयति तथाऽपत्यानां सुशिक्षकाः सर्वत्र विजयिनो भवन्ति ॥१२॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    (यः) जो सूर्य्य (अपाम्) जलों के बीच (गर्भः) स्तुति करने के योग्य (यह्वः) महान् (अग्निः) अग्निरूप (उस्रियाः) किरणों से संयुक्त जलों का (जनिता) उत्पन्न करनेवाला होता है उस के (दिदृक्षेयः) देखने को चाहता मैं उत्तम (नृतमः) अतीव नेता सब का नायक (उज्जजान) उत्तमता से प्रकट होता है वह (सूनवे) सन्तान के लिये (महीनाम्) पूजनीय सेनाओं के (समिथे) संग्राम के बीच (बभ्रिः) धारण करनेवाला (अक्रः) किसी प्रकार से आक्रमण करने को अयोग्य के (न) समान (भाऋजीकः) विद्यादीप्तियों से सरल होता है ॥१२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य जलों के गर्भ को उत्पन्न कर तथा मेघ के साथ अच्छे प्रकार युद्ध कर जल वर्षा कर सबको बढ़ाता है, वैसे सन्तानों को शिक्षा देनेवाले सब जगह विजयी होते हैं ॥१२॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सूर्य जलरूपी गर्भाला उत्पन्न करून मेघाबरोबर चांगल्याप्रकारे युद्ध करून जलाची वृष्टी करून सर्वांना वाढवितो तसे संतानांना शिक्षित करणारे सर्वत्र विजयी होतात. ॥ १२ ॥

    English (1)

    Meaning

    Agni, like an unbreakable wall of a fort is the commander and defender of his mighty forces in the battles of life. Auspicious and blissful of sight he is self- refulgent and a simple and natural source of light for his children. Creator of the rays of light and knowledge, born of the womb of the currents of primordial energy, it manifests as the great sun and most human leader of humanity.

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