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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 1/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    व॒व्राजा॑ सी॒मन॑दती॒रद॑ब्धा दि॒वो य॒ह्वीरव॑साना॒ अन॑ग्नाः। सना॒ अत्र॑ युव॒तयः॒ सयो॑नी॒रेकं॒ गर्भं॑ दधिरे स॒प्त वाणीः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒व्राज॑ । सी॒म् । अन॑दतीः । अद॑ब्धाः । दि॒वः । य॒ह्वीः । अव॑सानाः । अन॑ग्नाः । सनाः॑ । अत्र॑ । यु॒व॒तयः॑ । सऽयो॑नीः । एक॑म् । गर्भ॑म् । द॒धि॒रे॒ । स॒प्त । वाणीः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वव्राजा सीमनदतीरदब्धा दिवो यह्वीरवसाना अनग्नाः। सना अत्र युवतयः सयोनीरेकं गर्भं दधिरे सप्त वाणीः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वव्राज। सीम्। अनदतीः। अदब्धाः। दिवः। यह्वीः। अवसानाः। अनग्नाः। सनाः। अत्र। युवतयः। सऽयोनीः। एकम्। गर्भम्। दधिरे। सप्त। वाणीः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ स्त्रीपुरुषविषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यथा विद्वान् सप्त वाणीः सीं वव्राज तथाऽत्रानदतीरदब्धा दिवो यह्वीरवसाना अनग्नास्सनाः सयोनीर्युवतय एकं गर्भं दधिरे ताः सुखिन्यः कुतो न स्युः? ॥६॥

    पदार्थः

    (वव्राज) व्रजति प्राप्तोति। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सीम्) सर्वतः (अनदतीः) अविद्यमाना अतीव सूक्ष्मा दन्ता यासान्ताः (अदब्धाः) अहिंसनीयाः सत्कर्त्तव्याः (दिवः) देदीप्यमानाः (यह्वीः) महाविद्यागुणस्वभावयुक्ताः (अवसानाः) अन्ते समीपे स्थिताः (अनग्ना) सर्वता वस्त्रभूषणादिभिराच्छादिताः (सनाः) भोक्त्र्यः (अत्र) (युवतयः) प्राप्तयौवनाः (सयोनीः) समाना योनिर्यासां ताः (एकम्) असहायम् (गर्भम्) (दधिरे) धरन्ति (सप्त) (वाणीः) ॥६॥

    भावार्थः

    यदि समानविद्यारूपस्वभावाः समानान् पतीन् स्वेच्छया प्राप्य परस्परप्रीत्यात् सन्तानानुत्पाद्य संरक्ष्य सुशिक्षयन्ति ताः सुखयुक्ता भवन्ति यथा परा पश्यन्ती मध्यमा वैखरी कर्म्मोपासनाज्ञानप्रकाशिकास्तिस्त्रश्च मिलित्वा सप्त वाण्यः सर्वान्व्यवहारान् साधयन्ति तथा विद्वांसः स्त्रीपुरुषा धर्मार्थकाममोक्षान् साद्धुं शक्नुवन्ति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब स्त्रीपुरुषों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् (सप्त वाणीः) सात वाणियों को (सीम्) सब ओर से (वव्राज) प्राप्त होता वैसे (अत्र) यहाँ (अनदतीः) अविद्यमान अर्थात् अतीव सूक्ष्म जिनके दन्त (अदब्धाः) अहिंसनीय अर्थात् सत्कार करने योग्य (दिवः) देदीप्यमान (यह्वीः) बहुत विद्या और गुण स्वभाव से युक्त (अवसानाः) समीप में ठहरी हुई (अनग्नीः) सब ओर से वस्त्र वा आभूषण आदि से ढपी हुई (सनाः) भोगनेवाली (सयोनीः) समान जिन की योनि अर्थात् एक माता से उत्पन्न हुई सभी वे (युवतयः) प्राप्त यौवना स्त्री (एकम्) एक अर्थात् असहायक (गर्भम्) गर्भ को (दधिरे) धारण करतीं वें सुखी क्यों न हों? ॥६॥

    भावार्थ

    जो समान रूपवाली स्त्रियाँ अपने-अपने समान पतियों को अपनी इच्छा से प्राप्त होकर परस्पर प्रीति के साथ सन्तानों को उत्पन्न कर और उन की रक्षा कर उनको उत्तम शिक्षा दिलाती हैं वे सुखयुक्त होती हैं। जैसे परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी कर्म्मोपासनाज्ञान प्रकाश करनेवाली तीनों मिल कर और सात वाणी सब व्यवहारों को सिद्ध करती हैं, वैसे विद्वान् स्त्री पुरुष धर्म्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध कर सकते हैं ॥६॥

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    विषय

    सप्त वाणी: [अवसाना: अनग्नाः] कामात्मता व अकामता से ऊपर

    पदार्थ

    [१] उपासक (सीम्) = निश्चय से (सप्त वाणी:) = सात छन्दों में परिणत वेदवाणियों को (वव्राज) = प्राप्त होता है [व्रज गतौ] जो वेदवाणियाँ (अनदती:) = कुछ खाती नहीं [न अदती:] । वस्तुतः इनके अध्ययन से मानव शक्तियों का विकास ही होता है, ह्रास नहीं। (अदब्धाः) = जो अहिंसित हैं। वेदवाणियों का अध्ययन करनेवाला वासनाओं के आक्रमण से बचा रहता है। (दिवः यह्वीः) = ये उस प्रकाशमय प्रभु की सन्तान के समान हैं। प्रभु ही इन्हें जन्म देते हैं- प्रभु से ही ये प्रत्येक सृष्टि के प्रारम्भ में अग्नि आदि ऋषियों के हृदयों में स्थापित की जाती हैं, (अवसाना: अनग्नाः) = ये न तो बहुत कपड़े पहनती हैं, नां ही नग्न रहती हैं, अर्थात् वेदवाणियों का उपदेश यही है कि मनुष्य न तो काममय बन जाए और नां ही बिलकुल अकाम हो जाए। न तो कपड़ों की संख्या बढ़ाते ही बढ़ाते जाना और नां ही बिलकुल समाप्त कर देना । [२] ये वेदवाणियाँ (सनाः) = अत्यन्त सनातन हैं । (अत्र) = यहाँ संसार में हमारे जीवनों में (युवतयः) = [यु मिश्रणामिश्रणयोः] अच्छाइयों को हमारे साथ मिश्रण करनेवाली और बुराइयों को हमारे से पृथक् करनेवाली हैं। (सयोनी:) = ये वेदवाणियाँ एक ही उत्पत्ति-स्थानवाली हैं- सब प्रभु से उत्पन्न होती हैं, प्रभु ही इनके निधान हैं। ये सब की सब (एकम्) = उस अद्वितीय (गर्भम्) = सब के अन्दर गर्भरूप से रहनेवाले-सर्वव्यापक प्रभु को (दधिरे) = धारण करती हैं। सब का प्रतिपाद्य विषय वह प्रभु ही है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम वेदज्ञान को प्राप्त करनेवाले बनें। इनके अध्ययन से हम सशक्त बने रहेंगे। इनका मौलिक उपदेश 'कामात्मता व अकामता' से ऊपर उठना है।

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    विषय

    राष्ट्र तेजस्वी राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (अनदतीः) न गर्जने वाली (दिवः यह्वीः) अन्तरिक्ष से उत्पन्न जलधाराओं को अग्नि, विद्युत् (वव्राज) व्यापता है उसी प्रकार विद्वान् पुरुष और वीर पुरुष राजा भी, (सीम्) सब प्रकार से (अनदतीः = न अदतीः) स्वयं ऐश्वर्य का न भोग करने वाली (अदब्धाः) नाश न करने योग्य, रक्षणीय (दिवः) उसकी कामना करने वाली, व्यवहारों में लग्न, (यह्वीः) उसके अपत्यों के समान, पुत्रतुल्य, (अवसानाः) उसके समीप, उसके शरण आई हुई, (अनग्नाः) उत्तम वस्त्र आभूषण और रक्षा आदि से आच्छादित प्रजाओं को (वव्राज) प्राप्त हों। और वे (सनाः) सदातन से विद्यमान (सप्त) सात = चार वर्ण और पूर्व के तीन आश्रमों से युक्त (वाणीः) उसको सेवने वाली, प्रजाएं (सयोनीः युवतयः) सुन्दर बालक को एक ही गृह में रहने वाली स्त्रियों के समान (एकं) एक ही (गर्भं) ग्रहण करने योग्य, वरणीय नायक को (दधिरे) धारण पोषण करें। (२) इसी प्रकार विद्वान् पुरुष कैसी दारा प्राप्त करें। वह (अन-दतीः) जिसके दांत छोटे, हों, बड़े २ न हों, (अदब्धाः) जो ताड़ने योग्य न हों, सुशील हों, (दिवः) पति को चाहने वाली और व्यवहारकुशल हों, (यह्वीः) गुणों में बड़ी, या उत्तम कन्या हों, (अवसानाः) समीप सदा रहने वाली, पति-सानिध्य को चाहने वालीं, (अनग्नाः) उत्तम वस्त्रों से आच्छादित, नंगी न होकर, लज्जाशील हों (समाः) उत्तम भोगों के देने और भोगने वाली हों । ऐसी (युवतयः) स्त्रियें ही (सप्त वाणीः) पति के समीप जाकर विषय सेवन करती हुई (सयोनीः) अंगादि में समान बलयुक्त होकर एक, उत्तम गर्भ को धारण करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गाथिनो विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ३, ४, ५, ९, ११,१२, १५, १७, १९, २० निचृत् त्रिष्टुप्। २, ६, ७, १३, १४ त्रिष्टुप्। १०, २१ विराट् त्रिष्टुप्। २२ ज्योतिष्मती त्रिष्टुप्। ८, १६, २३ स्वराट् पङ्क्तिः। १८ भुरिक् पङ्क्तिः॥ त्रयोविंशत्यर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    समान विद्या, रूप, स्वभाव असलेल्या स्त्रिया आपापल्या गुणांनुसार पतींना आपल्या इच्छेने प्राप्त करून परस्पर प्रीतीने संतान उत्पन्न करून त्यांचे रक्षण करून त्यांना उत्तम शिक्षण देतात, त्या सुखी होतात. जशा परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी, तसेच कर्मोपासना व ज्ञानप्रकाश करणारी अशा एकूण सात वाणी सर्व व्यवहार सिद्ध करू शकतात, तसे विद्वान स्त्री-पुरुष धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष सिद्ध करू शकतात. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, light of the universe, takes to and abides in the subtle unconsuming, pure unhurt streams, close together, open yet not exposed, flowing unbroken from the Light Divine. These seven streams of light and speech flow here, constant, ever young, together and they hold but one eternal meaning like a fetus in their unfathomable womb.$(The mantra applies to light and Vak, Speech, flowing in seven streams of the spectrum.)

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of husbands and wives are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! as a learned person attains or knows the nature of seven kinds of speech (named in the following purport), in the same manner, young women have fine teeth, and are worthy of honor and never to be insulted. Shining on account of their virtues, great being endowed with high education, good qualities and temperament, desirous of living with their husbands, dressed in fine clothes and ornaments, they enjoy good things, and live in good abodes become impregnated. Why should not the wives enjoy happiness and pleasures in such circumstances ?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those women who are of matching knowledge, beauty and temper (with their husbands) choose their husbands of their own accord, and having borne children with love and brought them up well, train them properly, they enjoy happiness. Seven kinds of speech namely Para, Pashyanti, Madhyama, Vaikhari and three kinds of speech throw light on right sort of actions, knowledge and communion with God. They accomplish all dealings harmoniously. So the learned husbands and wives can thus accomplish a four point set of ultimate ideal aims of human endeavor PURUSHÄRTHA CHATUSHTAYA-the Dharma (righteousness) Artha (wealth) Kama fulfilment of noble desires) and Moksha (emancipation).

    Foot Notes

    (अनदती:) अविद्यमाना अतीव सूक्ष्मा दन्ता यासान्ताः । = Having fine teeth. (अदब्धाः) अहिंसनीयाः सत्कर्त्तव्याः । दम्नोति TU (N G. 2,19) = Not to be insulted or troubled but always to be honored. (यह्वीः) महाविद्यागुणस्वभावयुक्ताः बहुवः महन्नाम (N.G. 3,3).। = Endowed with great knowledge good qualities and temperament. The nature of Para, Pashyanti and Madhyamā (three subtle speeches) has been stated in the Maha Bhashy a of Patanjali and other ancient books. It is the Vaikhari that expresses itself outwardly.

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