Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 1 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 1/ मन्त्र 16
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ते म॑न्वत प्रथ॒मं नाम॑ धे॒नोस्त्रिः स॒प्त मा॒तुः प॑र॒माणि॑ विन्दन्। तज्जा॑न॒तीर॒भ्य॑नूषत॒ व्रा आ॒विर्भु॑वदरु॒णीर्य॒शसा॒ गोः ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । म॒न्व॒त॒ । प्र॒थ॒मम् । नाम॑ । धे॒नोः । त्रिः । स॒प्त । मा॒तुः । प॒र॒माणि॑ । वि॒न्द॒न् । तत् । जा॒न॒तीः । अ॒भि । अ॒नू॒ष॒त॒ । व्राः । आ॒विः । भु॒व॒त् । अ॒रु॒णीः । य॒शसा॑ । गोः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते मन्वत प्रथमं नाम धेनोस्त्रिः सप्त मातुः परमाणि विन्दन्। तज्जानतीरभ्यनूषत व्रा आविर्भुवदरुणीर्यशसा गोः ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। मन्वत। प्रथमम्। नाम। धेनोः। त्रिः। सप्त। मातुः। परमाणि। विन्दन्। तत्। जानतीः। अभिः। अनूषत। व्राः। आविः। भुवत्। अरुणीः। यशसा। गोः॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 16
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    ये मातुरिव धेनोः सप्त परमाणि विन्दन् तेऽस्य प्रथमं नाम त्रिर्मन्वत। यो यशसा सह वर्त्तमान आविर्भुवत् स तद्गोर्विज्ञानं जानीयात्। ये यशसा प्रकटाः स्युस्तेऽरुणीर्जानतीर्व्रा अभ्यनूषत ॥१६॥

    पदार्थः

    (ते) (मन्वत) मन्यन्ते (प्रथमम्) प्रख्यातम् (नाम) (धेनोः) वाण्याः (त्रिः) त्रिवारम् (सप्त) (मातुः) जनन्या इव (परमाणि) उत्कृष्टानि (विन्दन्) जानन्ति (तत्) (जानतीः) विज्ञानवतीः (अभि) सर्वतः (अनूषत) स्तुवन्ति (व्राः) या व्रियन्ते ताः (आविः) प्राकट्ये (भुवत्) भवेत् (अरुणीः) रक्तगुणविशिष्टाः (यशसा) कीर्त्या (गोः) विद्यासुशिक्षायुक्ताया वाचः ॥१६॥

    भावार्थः

    यथा कामधेनुर्दुग्धादिनेच्छां पिपर्त्ति तथैव विद्यासुशिक्षायुक्ता वाणी विदुषः पिपर्त्ति। ये धर्माचरणं कुर्वन्ति ते यशस्विनो भूत्वा सर्वत्र प्रसिद्धा जायन्ते ॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (मातुः) माता के सदृश (धेनोः) वाणी के (सप्त) सात अर्थात् सात गायत्र्यादि छन्दों में विभक्त (परमाणि) उत्तम व्यवहारों को (विन्दन्) जानते हैं (ते) वे इसके (प्रथमम्) प्रसिद्ध (नाम) स्तुतिसाधक शब्दमात्र को (त्रिः) तीन वार (मन्वत) मानते हैं और जो (यशसा) कीर्ति के साथ वर्त्तमान (आविः) प्रकट (भुवत्) होवे वह (तत्) उस (गोः) वाणी के विज्ञान को जाने और जो कीर्ति से प्रकट होवें वे (अरुणीः) रक्तगुण से विशिष्ट (जानतीः) विज्ञानवाली (व्राः) प्रकट होनेवालियों की (अभि) सब प्रकार (अनूषत) स्तुति करते हैं ॥१६॥

    भावार्थ

    जैसे कामधेनु दुग्ध आदि से इच्छा को पूर्ण करती है, वैसी ही विद्या और उत्तम शिक्षा से युक्त वाणी विद्वानों को प्रसन्न करती है। जो लोग धर्म का आचरण करते हैं, वे यशस्वी होकर सर्वत्र प्रसिद्ध होते हैं ॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रथम नाम [ओ३म्] का मनन

    पदार्थ

    [१] (ते) = गतमन्त्र में वर्णित अविद्या पर्वत के विदारण करनेवाले लोग, ज्ञानरूपी गौओं के बाड़े को खोलनेवाले लोग, (धेनोः) = इस ज्ञानदुग्ध से प्रीणित करनेवाली वेदवाणी रूप गौ के (प्रथमं नाम) = सर्वमुख्य नाम [= शब्द] 'ओ३म्' का मन्वत अपने हृदयों में मनन करते हैं। वे इस (मातुः) = वेदमाता के (त्रिः सप्त) = इक्कीस (परमाणि) = [पर: मीयते यैः] प्रभु का ज्ञान देनेवाले गायत्र्यादि द्वन्द्वों को (विन्दन्) = प्राप्त करते हैं । [२] ऐसा होने पर (तत्) = उस प्रभु को (जानती:) = जानती हुईं (व्राः) = प्रभु का वरण व सम्भजन [वृ-वरणे, वृङ् संभक्तौ] करनेवाली प्रजाएँ (अभि अनूषत) = दिन के प्रारम्भ व अन्त में उसका स्तवन करती हैं। इस स्तवन के परिणामस्वरूप (गो: यशसा) = वेदवाणी रूप गौ की महिमा से (अरुणी:) = ज्ञान प्रकाश रूप उषा (आविर्भुवत्) = प्रादुर्भूत होती है। प्रभु का स्तवन करने से निर्मल हृदय में ज्ञान का प्रकाश चमक उठता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- वेदवाणी के सारभूत 'ओ३म्' शब्द का हम जप व अर्थभावन करें। वेद के द्वन्द्वों को समझें। प्रभु स्तवन करते हुए निर्मल हृदय में ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वेद वाणी का त्रिधा मनन । उसके २७ रूप । उस द्वारा प्रभु की स्तुति ।

    भावार्थ

    ( ते ) वे विद्वान् लोग ( मातुः ) सर्वोत्पादक, सबकी माता ( धेनोः ) सबकी धारक पोषक, गायके समान मधुर रस पिलाने वाली वाणी के ( नाम ) नाम या स्वरूप को, माता के नाम को बालकों के समान ( प्रथमं ) सबसे प्रथम, सर्वश्रेष्ठ करके ( त्रिः मन्वत ) श्रवण, मनन और निदिध्यासन इन तीन प्रकारों से ज्ञान करें और वे ( मातुः ) समस्त ज्ञानों को उपदेश करने वाली वाणी के या सर्वोत्पादक सर्वजननी परमेश्वरी शक्ति के ( सप्त ) सात वा सर्वव्यापक ( परमाणि ) परम सर्वोत्कृष्ट रूपों का ( विन्दन् ) ज्ञान करें । वाणी के ७ रूप सात प्रकार के छन्द, परमेश्वरी शक्ति से युक्त सर्वजननी प्रकृति के सात रूप, पांच भूत, महत् तत्व और अहंकार । अथवा ( त्रिः सप्त परमाणि विन्दन् ) वे वाणी के २१ रूपों का ज्ञान करते हैं । वेदवाणी के २१ रूप, गायत्री आदि सात, अति जगती आदि सात और कृति आदि सात ( जानतीः ) ज्ञान से युक्त ( व्राः ) परमेश्वर को वरण करने और उसको संभजन कीर्त्तन करने वाली ( व्राः ) वाणियें ( अरुणीः ) रक्त गुण वाली उषाओं के समान ज्ञान प्रकाश वाली होकर ( तत् ) उसी परमेश्वर महान् आत्मा की ( अभि अनूषत ) सब प्रकार से स्तुति करती हैं, और वह आत्मा ( गोः ) वाणी के ( यशसा ) बल और तेज से ही, रश्मि के बल से सूर्य के तुल्य, इन्द्रियों के बल से जीव आत्मा के तुल्य और भूमि के यश से राजा के तुल्य ही ( आविः भुवत् ) प्रकट होता है । (२) माता भूमि के सात परम रक्षक, स्वामि, अमात्य, सुहृद्, राष्ट्र, दुर्ग, कोश, बल ये सात प्रकृतियें हैं । उसका तीन प्रकार से ज्ञान है—भूमि, सुवर्ण सेना अथवा, उसका तीन प्रकार से विचार है—उत्साहशक्ति, मन्त्रशक्ति और प्रभु शक्ति वा प्रचुर अर्थबल ज्ञानयुक्त नायक को वरण करने वाली प्रजाएं उस नामकी स्तुति करती है और वह ( गोः यशसा ) भूमि या सूर्य के तेज से प्रकट होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १, ५—२० अग्निः। २-४ अग्निर्वा वरुणश्चं देवता ॥ छन्दः– १ स्वराडतिशक्वरी । २ अतिज्जगती । ३ अष्टिः । ४, ६ भुरिक् पंक्तिः । ५, १८, २० स्वराट् पंक्तिः । ७, ९, १५, १७, १९ विराट् त्रिष्टुप् । ८,१०, ११, १२, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । १३, १४ त्रिष्टुप् ॥ विंशत्यृचं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी कामधेनू दुग्ध इत्यादींनी इच्छा पूर्ण करते, तसेच विद्या व उत्तम शिक्षणाने युक्त वाणी विद्वानांना प्रसन्न करते. जे लोक धर्माचे आचरण करतात ते यशस्वी होऊन सर्वत्र प्रसिद्ध होतात. ॥ १६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    First they study, reflect and meditate on the seven ultimate forms of mother speech and thus realise and know it in the essence through word, meaning and the self-existent reality behind the word. And having realised the content of divine speech, they celebrate the red lights of the dawn bearing and revealing that lord of speech manifesting by the splendour of the dawn of knowledge.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More about God is described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The learned men who comprehend the exalted seven foras (principal meters) of this mother-like Vedic speech, reflect three times its famous name. One who is manifest with glory (on account of his deep learning and reflection) knows the real nature of the refined speech. Those who are thus glorious and illustrious, admire highly educated ladies who are full of splendor.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As a good milch cow fulfils the desire of drinking of it's milk, so a speech endowed with knowledge and good education satisfies the enlightened persons. Those who observe the rules of righteousness, become renewed and illustrious.

    Foot Notes

    (धेनो:) वाण्या । धेनुरिति वाङ्नाम speech. (व्रा:) या: व्रियन्ते ता: । व्राः इति पदनाम (NG 1, 11 ) = Of the (NG 4, 2) = Ladies chosen as brides. पद-गतौ प्राप्त्यर्थमादाय प्राप्यन्ते अनुकूल गुणकर्म स्वभावादिभिरिति व्राः । व्राः विदुष्यः । स्त्रियः सप्त-प्रमुख छन्दांसि गायन्त्र युनुष्टुवु बहती पक्ति त्रिष्टुब्जगती नमासि । Thrice in the form of hearing, reflecting and meditating.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top