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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 48/ मन्त्र 15
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - मरुतो लिङ्गोक्ता वा छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः

    त्वे॒षं शर्धो॒ न मारु॑तं तुवि॒ष्वण्य॑न॒र्वाणं॑ पू॒षणं॒ सं यथा॑ श॒ता। सं स॒हस्रा॒ कारि॑षच्चर्ष॒णिभ्य॒ आँ आ॒विर्गू॒ळ्हा वसू॑ करत्सु॒वेदा॑ नो॒ वसू॑ करत् ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वे॒षम् । शर्धः॑ । न । मारु॑तम् । तु॒वि॒ऽस्वणि॑ । अ॒न॒र्वाण॑म् । पू॒षण॑म् । सम् । यथा॑ । श॒ता । सम् । स॒हस्रा॑ । कारि॑षत् । च॒र्ष॒णिऽभ्यः॑ । आ । आ॒विः । गू॒ळ्हा । वसु॑ । क॒र॒त् । सु॒ऽवेदा॑ । नः॒ । वसु॑ । क॒र॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वेषं शर्धो न मारुतं तुविष्वण्यनर्वाणं पूषणं सं यथा शता। सं सहस्रा कारिषच्चर्षणिभ्य आँ आविर्गूळ्हा वसू करत्सुवेदा नो वसू करत् ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वेषम्। शर्धः। न। मारुतम्। तुविऽस्वणि। अनर्वाणम्। पूषणम्। सम्। यथा। शता। सम्। सहस्रा। कारिषत्। चर्षणिऽभ्यः। आ। आविः। गूळ्हा। वसु। करत्। सुऽवेदा। नः। वसु। करत् ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 48; मन्त्र » 15
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यथा सुवेदा नस्त्वेषं तुविष्वणि मारुतं शर्धो नानर्वाणं पूषणं करत् यथा चर्षणिभ्यः शता सहस्रा गूळ्हा वस्वा सं कारिषद् गूळ्हा वस्वा समाविष्करत्तथैतानि यूयं कुरुत ॥१५॥

    पदार्थः

    (त्वेषम्) दीप्तिमत् (शर्धः) बलम् (न) इव (मारुतम्) मनुष्याणामिदम् (तुविष्वणि) बहुस्वनम् (अनर्वाणम्) अविद्यमानाश्वम् (पूषणम्) पुष्टिकरम् (सम्) (यथा) (शता) शतानि (सम्) सम्यक् (सहस्रा) सहस्राणि (कारिषत्) कुर्यात् (चर्षणिभ्यः) मनुष्येभ्यः (आ) समन्तात् (आविः) प्राकट्ये (गूळ्हा) गुप्तानि (वसू) धनानि। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (करत्) कुर्यात् (सुवेदा) शोभनं विज्ञानं यस्य सः (नः) अस्मभ्यम् (वसू) विज्ञानानि धनानि वा (करत्) कुर्यात् ॥१५॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा विद्वांसो विज्ञानदानेन गुप्ता विद्या युष्मदर्थं प्रकटीकुर्वन्ति युष्माकं शरीरात्मबलं च वर्धयन्ति तथैतान् यूयं वर्धयत ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! (यथा) जैसे (सुवेदा) सुशोभित विज्ञान जिसका वह (नः) हम लोगों के लिये (त्वेषम्) दीप्तिमत् (तुविष्वणि) बहुत शब्दोंवाले (मारुतम्) मनुष्य सम्बन्धी (शर्धः) बल के (न) समान (अनर्वाणम्) अविद्यमान हैं अश्व जिसमें उस पदार्थ को (पूषणम्) पुष्टि करनेवाला (करत्) करे वा जैसे (चर्षणिभ्यः) मनुष्यों के लिये (शता) सैकड़ों वा (सहस्रा) सहस्रों (गूळ्हा) गुप्त (वसू) धनों को (आ, सम्, कारिषत्) सब ओर अच्छे प्रकार सिद्ध करे और गुप्त (वसू) विज्ञान वा धनों को (सम्, आविष्करत्) प्रकट करे, वैसे इनको आप करें ॥१५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् जन विज्ञानदान से गुप्त विद्याओं को तुम्हारे लिये प्रकट करते हैं और आपके शारीरिक और आत्मिक बल को बढ़ाते हैं, वैसे इनको तुम बढ़ाओ ॥१५॥

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    विषय

    विद्वान् शासक के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( सुवेदाः ) उत्तम ज्ञानवान् पुरुष ( तुविस्वणि ) बहुत भारी शब्द करने वाला ( त्वेषं ) अतिदीप्तियुक्त ( शर्ध: ) शत्रुहिंसक, बलशाली शस्त्र ( मारुतं शर्धः न ) वायुओं के प्रबल बल के समान घोर शब्दकारी ( कारिषत्) बनवाये और वह ( अनर्वाणं करत् ) अश्वादि से रहित सामान्य प्रजावर्ग को भी राष्ट्र का पोषक ( पूषणं ) पोषण करने वाला बनावे । (यथा) जिससे, वह (चर्षणिभ्यः) मनुष्यों के हित के लिये (शता ) सैकड़ों और ( सहस्रा ) हज़ारों ( वसू ) ऐश्वर्यों को (सम् कारिषत् ) संग्रह करे उनको संस्कृत करे, और ( सु-वेदाः ) उत्तम वैज्ञानिक पुरुष ( नः ) हमारे लिये सैकड़ों सहस्रों ( गूढा वसू) गूढः गुप्त रूप से विद्यमान ऐश्वर्यों की भी (आविः करत् ) प्रकट करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः। तृणपाणिकं पृश्निसूक्तं ॥ १–१० अग्निः। ११, १२, २०, २१ मरुतः । १३ – १५ मरुतो लिंगोत्का देवता वा । १६ – १९ पूषा । २२ पृश्निर्धावाभूमी वा देवताः ॥ छन्दः – १, ४, ४, १४ बृहती । ३,१९ विराड्बृहती । १०, १२, १७ भुरिग्बृहती । २ आर्ची जगती। १५ निचृदतिजगती । ६, २१ त्रिष्टुप् । ७ निचृत् त्रिष्टुप् । ८ भुरिक् त्रिष्टुप् । ६ भुरिग् नुष्टुप् । २० स्वरराडनुष्टुप् । २२ अनुष्टुप् । ११, १६ उष्णिक् । १३, १८ निचृदुष्णिक् ।। द्वाविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    प्रसुप्त शक्तियों का जागरण

    पदार्थ

    [१] (न) = [इदांनी] अब (मारुतं शर्धः) = मरुद्गण का यह शत्रु हिंसक बल (त्वेषम्) = दीप्त है, (तुविष्वणि) = महान् स्वनवाला है, अर्थात् प्रभु की आराधना करनेवाला है। (अनर्वाणम्) = यह शत्रुओं से अनाक्रान्त है और (पूषणम्) = पोषक है। (यथा) = जैसे यह मरुद्गण [=प्राणसमूह] (शता) = सैंकड़ों धनों को (सं चर्षणिभ्यः) = श्रमशील मनुष्यों के लिये (कारिषत्) = करता है। यह मरुद्गण (सहस्त्रा सम्) = हजारों धनों को सम्यक् करता है। [२] यह प्राणसमूह (गूढा) = हमारे अन्दर छिपे रूप में, प्रसुप्त रूप में पड़े (वसु) = वसुओं को (आ) = समन्तात् (आविः करत्) = प्रकट व जागरित करता है। (नः) = हमारे लिये इन (वसु) = वसुओं को (सुवेदा) = सुलभ करत् करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ– प्राणसाधना से शत्रुओं का विनाश होता है। प्रसुप्त शक्तियाँ जागरित होती हैं । सहस्रशः ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है और प्रभु स्तवन की वृत्ति बनती है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे विद्वान लोक विज्ञानाचे दान देऊन गुप्त विद्या तुमच्यासमोर प्रकट करतात व तुमचे शारीरिक व आत्मिक बल वाढवितात तसे तुम्ही त्यांना वाढवा. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I admire the divine teacher, harbinger of knowledge and power, I admire the power like the blazing force of the winds, I admire the resounding automotive chariot and the nourishing food products for sustenance so that wealth may be raised to hundred and from hundred to thousand for the people, hidden riches may be revealed from the depths, and the brilliant scholar may create further wealth and power for our peace and security of well being with knowledge and enlightenment.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should the enlightened men do—is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened men! as a man endowed with scientific knowledge gives to us an article like electricity- brilliant, horseless but nourisher and making much noise like the strength of the heroes. As he gives to men hundreds and thousands of hidden treasures and manifests much hidden wealth or knowledge, so you should also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the enlightened persons manifest hidden sciences for your benefit and develop your physical and spiritual powers, so you should also increase their strength (by providing necessary facilities).

    Foot Notes

    (तुविष्वणि) बहुस्वनम् । तुवीति बहुनाम (NG 3,1) स्वन-शब्दे (भ्वा.)। = Making much noise. (त्वेषम् ) दीप्तिमत् । = Bright, brilliant.

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