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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 48/ मन्त्र 18
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    दृते॑रिव तेऽवृ॒कम॑स्तु स॒ख्यम्। अच्छि॑द्रस्य दध॒न्वतः॒ सुपू॑र्णस्य दध॒न्वतः॑ ॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दृतेः॑ऽइव । ते । अ॒वृ॒कम् । अ॒स्तु॒ । स॒ख्यम् । अच्छि॑द्रस्य । द॒ध॒न्ऽवतः॑ । सुऽपू॑र्णस्य । द॒ध॒न्ऽवतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दृतेरिव तेऽवृकमस्तु सख्यम्। अच्छिद्रस्य दधन्वतः सुपूर्णस्य दधन्वतः ॥१८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दृतेःऽइव। ते। अवृकम्। अस्तु। सख्यम्। अच्छिद्रस्य। दधन्ऽवतः। सुऽपूर्णस्य। दधन्ऽवतः ॥१८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 48; मन्त्र » 18
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    केषां मित्रत्वं न नश्यतीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्नच्छिद्रस्य दधन्वतो दृतेरिव सुपूर्णस्य दधन्वतस्तेऽवृकं सख्यमस्तु ॥१८॥

    पदार्थः

    (दृतेरिव) मेघस्येव। दृतिरिति मेघनाम। (निघं०१.१०) (ते) तव (अवृकम्) अचौर्यम् (अस्तु) (सख्यम्) मित्रत्वम् (अच्छिद्रस्य) अखण्डितस्य (दधन्वतः) दृढत्वेन धर्तुः (सुपूर्णस्य) सुष्ठ्वलंजातस्य (दधन्वतः) विद्याशुभगुणधर्त्तॄणां धारकस्य ॥१८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा मेघभूम्योर्मित्रवद्व्यवहारोऽस्ति तथैव धार्मिकाणां विदुषां मित्रताऽजराऽमरा वर्त्तते ॥१८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    किन की मित्रता नहीं नष्ट होती है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (अच्छिद्रस्य) अखण्डित और (दधन्वतः) दृढ़ता से धारण करनेवालों को धारण करनेवाले (ते) तुम्हारी (अवृकम्) चोरी से रहित (सख्यम्) मित्रता (अस्तु) हो ॥१८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मेघ और भूमि का मित्रवत् व्यवहार है, वैसे ही धार्मिक विद्वानों की मित्रता अजर-अमर वर्त्तमान है ॥१८॥

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    विषय

    राजा का अच्छिद्र पात्रवत् सख्य ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! हे विद्वन् ! ( दधन्वतः ) धारण करने वाले, (अच्छिद्रस्य ) छिद्ररहित ( इतेः ) पात्र के समान ( दधन्वतः ) प्रजा का भरण पोषण और पालन करते हुए (अच्छिद्रस्य ) त्रुटिरहित, प्रजा का व्यर्थ छेदन भेदन न करने वाले और ( दधन्वतः ) अति धनवान्, अति धनुर्धर और भूमि के स्वामी ( दृतेः ) शत्रु सैन्य को विदारण और भयभीत करने वाले की (सख्यम्) मित्रता (अवृकम् अस्तु ) भेड़िये के समान छल कपट से युक्त दिल काटनेवाली न हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः। तृणपाणिकं पृश्निसूक्तं ॥ १–१० अग्निः। ११, १२, २०, २१ मरुतः । १३ – १५ मरुतो लिंगोत्का देवता वा । १६ – १९ पूषा । २२ पृश्निर्धावाभूमी वा देवताः ॥ छन्दः – १, ४, ४, १४ बृहती । ३,१९ विराड्बृहती । १०, १२, १७ भुरिग्बृहती । २ आर्ची जगती। १५ निचृदतिजगती । ६, २१ त्रिष्टुप् । ७ निचृत् त्रिष्टुप् । ८ भुरिक् त्रिष्टुप् । ६ भुरिग् नुष्टुप् । २० स्वरराडनुष्टुप् । २२ अनुष्टुप् । ११, १६ उष्णिक् । १३, १८ निचृदुष्णिक् ।। द्वाविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सख्यम्

    पदार्थ

    [१] हे [पूषन्] पोषक प्रभो ! (दृतेः इव) = [दृति = a cloud] मेघ के समान जो आप हैं, उन (ते) = आपका (सख्याम्) = सख्य-मित्रभाव (अवृकं अस्तु) = सब बाधकों से रहित हो, अविच्छिन्न हो, सदा समानरूप से हमें प्राप्त हो । [२] उन आपका सख्य हमें प्राप्त हो जो (अच्छिद्रस्य) = सब छिद्रों से, दोषों से शून्य हैं, (दधन्वतः) = धारण कर रहे हैं। (सुपूर्णस्य) = सम्यक् पूर्ण हैं और (दधन्वतः) = धारण कर रहे हैं। मेघ के समान हमारे पर सब सुखों का वर्षण करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के साथ हमारी मित्रता अविच्छिन्न हो । प्रभु हमारे पर सुखों का वर्षण करनेवाले हों। वे हमें भी अपने समान निर्दोष व पूर्ण बनाएँ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा मेघ व भूमीचा मित्राप्रमाणे व्यवहार असतो, तशीच धार्मिक विद्वानांची मैत्री अमर असते. ॥ १८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Lord giver of nourishment and sustenance, let your friendship be non-violent, and unexploitative. Immaculate you are, spotlessly clean, totally self- fulfilled, and you command immense plenty, prosperity and impeccability.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Whose friendship does not perish—is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened person ! let your friendship, be flawless. You are the upholder of those, that are bearers of knowledge and other virtues firmly, you are upholder of virtues and wisdom like the cloud. Let your friendship be firm and free from insincerity and dishonesty.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the relation of the earth and clouds is like friends, in the same manner, the friendship of the enlightened men is decay less and imperishable.

    Foot Notes

    (अवकम्) अचौर्यम् बुक इति स्तेन नाम (NG 3, 24)। = Free from theft or insincerity or dishonesty. (दुतेः ) मेधस्य | दुतिरिति मेघनाम । (NG 1, 10) Like the clouds. (दधन्वतः) विद्या शुभगुणधर्तृणां धारकस्य । (ङ) धाञ्धारणपोषणायोः (जु.) । Of the upholder of the bearers of knowledge and other virtues.

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