ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 21/ मन्त्र 9
यो न॑ इ॒दमि॑दं पु॒रा प्र वस्य॑ आनि॒नाय॒ तमु॑ वः स्तुषे । सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयः । नः॒ । इ॒दम्ऽइ॑दम् । पु॒रा । प्र । वस्यः॑ । आ॒ऽनि॒नाय॑ । तम् । ऊँ॒ इति॑ । वः॒ । स्तु॒षे॒ । सखा॑यः । इन्द्र॑म् । ऊ॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो न इदमिदं पुरा प्र वस्य आनिनाय तमु वः स्तुषे । सखाय इन्द्रमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठयः । नः । इदम्ऽइदम् । पुरा । प्र । वस्यः । आऽनिनाय । तम् । ऊँ इति । वः । स्तुषे । सखायः । इन्द्रम् । ऊतये ॥ ८.२१.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 21; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(सखायः) हे मित्रभूताः प्रजाजनाः ! (यः) यः शूरः (नः) अस्मभ्यम् (पुरा) पूर्वम् (इदमिदम्, वस्यः) इदं दृश्यमानं प्रशस्तधनम् (आनिनाय) आनीतवान् (तम्, उ) तं हि (इन्द्रम्) शूरम् (वः, ऊतये) युष्माकं रक्षायै (स्तुषे) ऋत्विगहं स्तौमि ॥९॥
विषयः
प्रार्थना कर्त्तव्येति दर्शयति ।
पदार्थः
हे सखायः ! य इन्द्रः । पुरा=आदौ । वस्यः=प्रशस्तम् । इदम्+इदम्=इदं जगदादिवस्तु । नोऽस्माकं सुखाय । प्र+आनिनाय । तमु=तमेव । इन्द्रम् । वो=युष्माकम् । ऊतये=रक्षायै । स्तुषे=स्तौमि ॥९ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(सखायः) हे प्रिय प्रजाजनो ! (यः) जो शूरवीर (नः) हमारे लिये (पुरा) प्रथम ही (इदमिदम्, वस्यः) यह सब उत्तम द्रव्य (आनिनाय) लाया है (उ, तम्) उसी (इन्द्रम्) ऐश्वर्ययुक्त शूर की (वः, ऊतये) आप लोगों की रक्षा के लिये (स्तुषे) मैं ऋत्विग् स्तुति करता हूँ ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यह वर्णन किया है कि जो शूरवीर हमारी रक्षा करनेवाला तथा हमें उत्तमोत्तम पदार्थ देनेवाला है, उससे सुरक्षित होकर सब याज्ञिक लोग प्रथम उपकार को स्मरण करके स्वयं सत्कार करते और दूसरे से सत्कार कराने का प्रयत्न करते हैं ॥९॥
विषय
प्रार्थना कर्त्तव्य है, यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(सखायः) हे मित्रों ! (यः) जिस इन्द्र ने (नः) हम जीवों के सुख के लिये (पुरा) सृष्टि के आदि में ही (वस्यः) प्रशस्त (इदम्+इदम्) इस सम्पूर्ण जगत् और इन पदार्थों को (प्र+आनिनाय) लाया है (तम्+उ+इन्द्रम्) उसी परमात्मा की (वः+ऊतये) तेरी रक्षा के लिये (स्तुषे) स्तुति करते हैं ॥९ ॥
भावार्थ
हे मनुष्यों ! जो इन अनन्त पदार्थों को भूमि पर प्रकाशित करता है, वही एक पूज्य है, अन्य नहीं ॥९ ॥
विषय
सर्वप्रद प्रभु।
भावार्थ
हे ( सखायः ) मित्रजनो ! ( यः ) जो प्रभु ( पुरा ) पहले भी ( नः ) हमें ( इदम् इदम् ) ये ये नाना गौ, भूमि, हिरण्य आदि ( वस्यः ) उत्तम २ ऐश्वर्य ( आनिनाय ) देता रहा है, उसी ( इन्द्रम् ) ऐश्वर्यवान् प्रभु परमेश्वर को ( ऊतये ) रक्षा और उपासना करने के लिये मैं ( वः स्तुषे ) आप लोगों को भी उपदेश करता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोभरिः काण्व ऋषिः॥ १—१६ इन्दः। १७, १८ चित्रस्य दानस्तुतिर्देवता॥ छन्दः–१, ३, १५ विराडुष्णिक्। १३, १७ निचृदुष्णिक्। ५, ७, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। २, १२, १४ पादनिचृत् पंक्तिः। १० विराट पंक्ति:। ६, ८, १६, १८ निचृत् पंक्ति:। ४ भुरिक् पंक्तिः॥
विषय
सब प्रशस्त वसुओं के प्रापक प्रभु
पदार्थ
[१] (यः) = जो प्रभु (नः) = हमारे लिये (इदं इदम्) = ये और ये सब दर्शनीयतया विद्यमान (वस्यः) = प्रशस्त वसुओं को (पुरा) = पहले (प्र आनिनाय) = प्रकर्षेण प्राप्त कराते हैं, (तम्) = उस (वः) = तुम्हारे प्रभु को (उ) = ही (स्तुषे) = स्तुत करता हूँ। [२] हे (सखायः) = मित्रो ! मैं (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही (ऊतये) = रक्षण के लिये स्तुत करता हूँ। ये प्रभु ही सब वसुओं को प्राप्त कराके हमारा रक्षण करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही हमारे लिये सब प्रशस्त वसुओं को प्राप्त कराते हैं। इन प्रभु का ही मैं स्तवन करता हूँ। यह स्तवन ही मेरे रक्षण का साधन हो जाता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O friends, for the peace, freedom, progress and protection of you all, I pray to the same Indra, lord almighty, who has provided this beautiful world of joy for us since the very time of creation.
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जो या अनंत पदार्थांना भूमीवर प्रकट करतो, तोच एक पूज्य आहे इतर नाही. ॥९॥
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