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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 47/ मन्त्र 11
    ऋषिः - त्रित आप्त्यः देवता - आदित्याः छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आदि॑त्या॒ अव॒ हि ख्यताधि॒ कूला॑दिव॒ स्पश॑: । सु॒ती॒र्थमर्व॑तो य॒थानु॑ नो नेषथा सु॒गम॑ने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आदि॑त्याः । अव॑ । हि । ख्यत॑ । अधि॑ । कूला॑त्ऽइव । स्पशः॑ । सु॒ऽती॒र्थम् । अर्व॑तः । य॒था॒ । अनु॑ । नः॒ । ने॒ष॒थ॒ । सु॒ऽगम् । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्या अव हि ख्यताधि कूलादिव स्पश: । सुतीर्थमर्वतो यथानु नो नेषथा सुगमनेहसो व ऊतय: सुतयो व ऊतय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्याः । अव । हि । ख्यत । अधि । कूलात्ऽइव । स्पशः । सुऽतीर्थम् । अर्वतः । यथा । अनु । नः । नेषथ । सुऽगम् । अनेहसः । वः । ऊतयः । सुऽऊतयः । वः । ऊतयः ॥ ८.४७.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 47; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Adityas, brilliant leaders of the nation, just as people stand on the bank of a river above and look below upon the flowing waters, so look below upon the people on the march, and just as they take the horses across the stream by the safest ford, so lead the nation forward by the safest paths of progress. Sinless are your protections and safest your securities.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वान, सभासद व इतर हितकारी पुरुषांनी प्रजेला सुमार्गाकडे न्यावे. ॥११॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे आदित्याः=सभाधिष्ठातारः ! यूयम् । अस्मान् । अवख्यत=अवपश्यत । ऊर्ध्वस्थिता यूयम् । अधःस्थितानस्मान् । पश्यत । अत्र दृष्टान्तः=अधि=पूरणः । कूलादिव=तटादिव । स्पशः=स्पष्टाः=स्थिताः स्पशः । यथा कूलस्थः पुरुषो जलं पश्यति । तद्वत् । पुनः । यथा । अश्वरक्षकाः । अर्वतोऽश्वान् । सुतीर्थम्=शोभनावतारप्रदेशम् । नयन्ति । तद्वन्नोऽस्मान् सुगं सुपन्थानम् । अनु नेषथ=अनुनयथ ॥११ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (आदित्याः) हे सभाधिकारी जनो ! (अवख्यत+हि) नीचे हम लोगों को देखें । यहाँ दृष्टान्त देते हैं−(अधि+कूलात्+इव) जैसे नदी के तट से (स्पशः) पुरुष नीचे जल देखता है, (तद्वत्) पुनः (यथा) अश्वरक्षक (अर्वतः) घोड़ों को (सुतीर्थम्) अच्छे चलने योग्य मार्ग से ले चलते हैं, तद्वत् (नः) हमको (सुगम्) अच्छे मार्ग की ओर (अनु+नेषथ) ले चलो ॥११ ॥

    भावार्थ

    विद्वानों सभासदों तथा अन्य हितकारी पुरुषों को उचित है कि वे प्रजाओं को सुमार्ग में ले जाएँ ॥११ ॥

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    विषय

    उन के निष्पाप सुखदायी रक्षा कार्यों का विवरण।

    भावार्थ

    हे (आदित्याः) सूर्य किरणों के समान सब संसार से ग्रहण करने योग्य समाचार आदि के ले आने वाले और (स्पशः) सब पदार्थों के देखने वाले जनो ! (कूलात् इव) तट पर से जिस प्रकार द्रष्टा निष्पक्ष होकर जल स्थित पदार्थों को सावधानी से देखता है इसी प्रकार निष्पक्ष, अनुद्विग्न और दयाशील विवेकी, (यथा अर्वतः सुतीर्थम् ) जिस प्रकार अश्वादि को तीर्थ या उतरने की जगह से जल में उतार दिया जाता है उसी प्रकार आप लोग भी ( अर्वतः नः ) शत्रुहिंसक हम को ( सुगम् सुतीर्थं नु ) सुगम और उत्तम तीर्थ अर्थात् परपक्ष के राजभृत्यादि को वश कर सुखमय मार्ग से ( अनु नेषथाः ) लेजाओ।

    टिप्पणी

    ( अनेहसः इत्यादि पूर्ववत् )।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित आप्त्य ऋषिः॥ १-१३ आदित्यः। १४-१८ आदित्या उषाश्च देवताः॥ छन्द:—१ जगती। ४, ६—८, १२ निचृज्जगती। २, ३, ५, ९, १३, १६, १८ भुरिक् त्रिष्टुप्। १०, ११, १७ स्वराट् त्रिष्टुप्। १४ त्रिष्टुप्। अष्टादशर्चं सूक्तम्।

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    विषय

    आदित्यों की कृपादृष्टि

    पदार्थ

    [१] हे (आदित्याः) = अच्छाइयों का आदान करनेवाले आदित्यो ! आप (अधः) = स्थित हम लोगों का (हि) = निश्चय से (अव ख्यत) = इस प्रकार ध्यान करिये, (इव) = जिस प्रकार (अधिकूलात्) = ऊपर किनारे से (स्पशः) = द्रष्टा लोग अधोगत उदक को देखते हैं। वहाँ स्थित लोग (यथा) = जिसप्रकार (अर्वतः) = घोड़ों को (सुतीर्थम्) = उत्तम घाट पर पानी पीने के लिए ले जाते हैं, उसी प्रकार (नः) = हमें (सुगम् अनुनेषथा) = सुन्दर गमनयोग्य मार्ग पर ले चलिये। [२] माता, पिता, आचार्य व अतिथियों का कार्य यही है कि छोटों के लिए वे मार्ग प्रणेता हों। हे आदित्यो ! (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (अनेहसः) = निष्पाप हैं-हमें पापशून्य जीवनवाला बनाते हैं। (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- आदित्यों के निरीक्षण में हम उत्तम मार्गों से गति करते हुए निष्पाप व सुन्दर जीवनवाले बनें।

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