ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 47/ मन्त्र 12
नेह भ॒द्रं र॑क्ष॒स्विने॒ नाव॒यै नोप॒या उ॒त । गवे॑ च भ॒द्रं धे॒नवे॑ वी॒राय॑ च श्रवस्य॒ते॑ऽने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठन । इ॒ह । भ॒द्रम् । र॒क्ष॒स्विने॑ । न । अ॒व॒ऽयै । न । उ॒प॒ऽयै । उ॒त । गवे॑ । च॒ । भ॒द्रम् । धे॒नवे॑ । वी॒राय॑ । च॒ । श्र॒व॒स्य॒ते । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नेह भद्रं रक्षस्विने नावयै नोपया उत । गवे च भद्रं धेनवे वीराय च श्रवस्यतेऽनेहसो व ऊतय: सुतयो व ऊतय: ॥
स्वर रहित पद पाठन । इह । भद्रम् । रक्षस्विने । न । अवऽयै । न । उपऽयै । उत । गवे । च । भद्रम् । धेनवे । वीराय । च । श्रवस्यते । अनेहसः । वः । ऊतयः । सुऽऊतयः । वः । ऊतयः ॥ ८.४७.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 47; मन्त्र » 12
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (2)
Meaning
No good here for friends of evil, no possibility of escape, no appeasement. But for the cow, the lands, literature and culture, for the milch cow, for creative and productive forces, for the brave warriors and philanthropists of renown, for all these, yes, all good, all safe, all opportunities. Sinless are your protections, unfailing your safeguards.
Purport
O Gracious Lord! Do not bestow happiness, in this world, on the sinner, the hostile and the wicked. Never give happiness to those who act against the path of righteousness, and who keep company with unrighteous persons. Those who sympathise with them or assist them should also never be happy. O Lord! We pray to You that the wicked should never be happy, otherwise none will be interested in the righteousness. Confer happiness only on righteous men. There should be sinless, harmless, stable and firm happiness for our sense and motor organs, which are tranquil and restrained, milchcows and other domestic animals, heroic sons, valorous servents, the king of our country. who is endowed with knowledge, wisdom and possessed of the wealth of cereals and the rich men. The Protector of all O God! You are the saviour of all the aforesaid righteous men. Those whom You protect they always enjoy Supreme bliss, none else.
मराठी (2)
भावार्थ
दुष्ट, निषिद्ध व हानिकारक कर्म करणाऱ्यांना राक्षस म्हणतात. त्यांना शिकवण व दंड देऊन सुमार्गावर आणले पाहिजे. ॥१२॥
विषय
प्रार्थना
व्याखान
हे भगवान (रक्षास्विने, भद्रं नेह) पापी, हिंसक दुष्टात्म्याला या जगात सुखी ठेऊ नकोस. (नावयै) धर्माविरुद्ध चालणाऱ्याला कधीच सुख लाभता कामा नये, तसेच (नोपया उत) अधर्माने वागणायाच्या सहायकालाही सुख मिळता कामा नये, अशी आम्ही प्रार्थना करतो. की दुष्ट माणसाला कधीही सुख लाभता कामा नये. अन्यथा कोणत्याही माणसाची धर्मात रुची राहणार नाही. एवढेच नव्हे तर या संसारात धर्मात्मा लोकांनाच नेहमी सुख दे, आमची संयम करणारी [शम व दमयुक्त] इंद्रिये, दूध देणाऱ्या गाई इत्यादी, वीरपुत्र व शूरवीर सेवक (श्रवस्यते) विद्या, विज्ञान आणि अन इत्यादी ऐश्वर्यानी युक्त देशाचा राजा, श्रीमंत माणसे इत्यादींना (अनेहसः) पापरहित उपद्रवरहीत, चिर काल टिकणारे [शाश्वत] व दृढ सुख मिळावे. व (सु ऊतयो व ऊतयः) [वः युष्माकं, बहुवचनमादरार्थम्] हे सर्वरक्षक ईश्वरा ! वरील सर्व धर्मात्म्याचे रक्षण करणारा तूच आहेस ज्यांचा तू रक्षक आहेस त्यांचे सदैव कल्याण होते इतरांचे नाही.॥२९॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे आदित्याः ! इह=संसारे । रक्षस्विने=राक्षसेन सह निवासिनेऽपि । भद्रं न भवतु । कुतो । राक्षसाय । अवयै=अस्मान् हिंसितुमवगच्छते भद्रं न भवतु । तथा । उपयै=उपगच्छते भद्रं न भवतु । किन्तु गवे च भद्रं भवतु । धेनवे च=भद्रं भवतु । नवप्रसूतिका गौर्धेनुः । पुनः । श्रवस्यते=यशःकामाय । वीराय । भद्रं स्यात् । शिष्टमुक्तम् ॥१२ ॥
हिन्दी (4)
विषय
N/A
पदार्थ
हे सभाधिष्ठातृवर्ग ! (इह) इस संसार में (रक्षस्विने) राक्षस के साथी को भी (भद्रम्+न) कल्याण न हो, तब राक्षस को कहाँ से हो सकता, (अवयै+न) जो हमको मारने के लिये ताकता फिरता है, उसका भद्र न हो, (च) किन्तु (गवे) हमारे गौ आदि पशुओं को (धेनवे+च) नवप्रसूतिका गौ आदि को (भद्रम्) कल्याण हो (च) तथा (श्रवस्यते+वीराय) यशःकामी शूरवीर का कल्याण हो ॥१२ ॥
भावार्थ
दुष्ट निषिद्ध और हानिकारी कर्म करनेवाले राक्षस कहलाते हैं । उन्हें शिक्षा और दण्ड देकर सुपथ पर लाना चाहिये ॥१२ ॥
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे भगवन्! (रक्षस्विने भद्रं, नेह) पापी, हिंसक, दुष्टात्मा को इस संसार में सुख मत देना ।(नावयै) मंक धर्म से विपरीत चलनेवाले को सुख कभी मत हो (नोपया उत) तथा अधर्मी के समीप रहनेवाले उसके सहायक को भी सुख नहीं हो। हमारी आपसे ऐसी प्रार्थना है कि दुष्ट को सुख कभी न होना चाहिए, नहीं तो कोई जन धर्म में रुचि ही न करेगा, किन्तु इस संसार में धर्मात्माओं को ही सुख सदा दीजिए तथा (गवे) हमारी शमदमादियुक्त इन्द्रियाँ, (धेनवे) दुग्ध देनेवाली गौ आदि (वीराय) वीरपुत्र और शूरवीर भृत्य (श्रवस्यते) विद्या, विज्ञान और अन्नाद्यैश्वर्ययुक्त हमारे देश के राजा और धनाढ्यजन- इनके लिए (अनेहसः) निष्पाप, निरुपद्रव, स्थिर, दृढ़ सुख हो (सु ऊतयो व ऊतयः) [व: युष्माकं, बहुवचनमादरार्थम्] हे सर्वरक्षकेश्वर! आप सर्वरक्षण, अर्थात् पूर्वोक्त सब धर्मात्माओं के रक्षक हैं। जिनके आप रक्षक हो उनको सदैव (भद्रम्) कल्याण, [परमसुख ] प्राप्त होता है, अन्य को नहीं ॥ २९ ॥
विषय
उन के निष्पाप सुखदायी रक्षा कार्यों का विवरण।
भावार्थ
( इह ) इस लोक में ( रक्षस्विने भद्रं न ) दुष्ट पुरुषों के स्वामी को सुख ऐश्वर्य आदि न हो, (न अवयै उत न उपयै) और वह न दूर जा सके न समीप आ सके। वा विपरीत इसके ( गवे च धेनवे भद्रं ) दुधार बैल और गौ का कल्याण हो और ( श्रवस्यते वीराय च भद्रं ) अन्न, बल, यश के इच्छुक वीर और ज्ञान के इच्छुक विद्वान् को सुख, कल्याण हो।
टिप्पणी
( अनेहसः ० इत्यादि ) पूर्ववत्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रित आप्त्य ऋषिः॥ १-१३ आदित्यः। १४-१८ आदित्या उषाश्च देवताः॥ छन्द:—१ जगती। ४, ६—८, १२ निचृज्जगती। २, ३, ५, ९, १३, १६, १८ भुरिक् त्रिष्टुप्। १०, ११, १७ स्वराट् त्रिष्टुप्। १४ त्रिष्टुप्। अष्टादशर्चं सूक्तम्।
विषय
रक्षस्वी का अकल्याण
पदार्थ
[१] अपने रक्षण के लिए औरों का क्षय करनेवाला पुरुष 'रक्षस्वी' है । (इह) = यहाँ संसार में (रक्षस्विने) = इस रक्षस्वी पुरुष के लिए (भद्रं न) = कल्याण न हो। (अवयै निम्न) = गतिवाले के लिए (न) = कल्याण न हो (उत) = और (उपयै न) = हिंसा के लिए हमारी ओर आते हुए के लिए कल्याण न हो। [२] (धेनवे) = नवसूतिका दुधार (गवे च) = गौ के लिए निश्चय से (भद्रं) = कल्याण हो, (श्रवस्यते) = यशस्वी जीवन की कामनावाले (वीराय) = वीर पुरुष के लिए कल्याण हो। (वः) = आपके (च) = तथा (ऊतयः) = रक्षण (अनेहसः) = निष्पाप हों, (वः ऊतयः) = आपके रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हों।
भावार्थ
भावार्थ- रक्षस्वी- निम्न गतिवाले-हिंसा के लिए समीप आनेवाले का अकल्याण ही होता है। नवसूतिका गौ व यशस्वी वीर का कल्याण हो ।
नेपाली (1)
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे भगवन् ! रक्षस्विने भद्रं, नेह पापी, हिंसक, दुष्टात्मा लाई एस संसार मा सुख नदिनु होला । नावयै = धर्म देखि विपरीत हिड्ने हरु लाई कहिल्यै सुख न मिलोस् । नोपया उत = तथा अधर्मीसंगै रहने तेसका सहायक लाई पनि सुख नहोस् । हाम्रो हजुर संग एस्तो प्रार्थना छ कि दुष्ट हरु लाई कहिल्यै पनि सुख हुनु हुँदैन, नत्र कुनै पनि व्यक्ति को धर्म मा रुचि हुँने छैन, अतः एस संसार मा सदा धर्मात्मा हरु लाई नै सुख प्रदान गर्नु होला तथा गवे = हाम्रा शम दमादियुक्त इन्द्रिय हरु धेनवे = दूध दिने गौआदि वीराय = विर पुत्र र शुरवीर भृत्य अर्थात् कर्मचारी श्रवस्यते विद्या, विज्ञान र अन्नादि ऐश्वर्य युक्त हाम्रा देश का राष्ट्राध्यक्ष र धनाढ्यजन इनिहरु का लागी अनेहसः = निष्पाप, निरुपद्रव, स्थिर एवं दृढ सुख प्राप्त होस् । सु ऊतयो व ऊतयः = [वः युष्माकं, बहुवचनमादरार्थम्] हे सर्व रक्षकेश्वर ! तपाईं सम्पूर्ण रक्षण गर्ने अर्थात् समस्त धर्मात्मा हरु का रक्षक हुनुहुन्छ । तिनीहरु लाई सदैव भद्रम् = कल्याण [परम सुख ] प्राप्त हुन्छ, अरूलाई हुँदैन ॥ २९ ॥
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