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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 47/ मन्त्र 3
    ऋषिः - त्रित आप्त्यः देवता - आदित्याः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    व्य१॒॑स्मे अधि॒ शर्म॒ तत्प॒क्षा वयो॒ न य॑न्तन । विश्वा॑नि विश्ववेदसो वरू॒थ्या॑ मनामहेऽने॒हसो॑ व ऊ॒तय॑: सु॒तयो॑ व ऊ॒तय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । अ॒स्मे इति॑ । अधि॑ । शर्म॑ । तत् । प॒क्षा । वयः॑ । न । य॒न्त॒न॒ । विश्वा॑नि । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒सः॒ । व॒रू॒थ्या॑ । म॒ना॒म॒हे॒ । अ॒ने॒हसः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ । सु॒ऽऊ॒तयः॑ । वः॒ । ऊ॒तयः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्य१स्मे अधि शर्म तत्पक्षा वयो न यन्तन । विश्वानि विश्ववेदसो वरूथ्या मनामहेऽनेहसो व ऊतय: सुतयो व ऊतय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । अस्मे इति । अधि । शर्म । तत् । पक्षा । वयः । न । यन्तन । विश्वानि । विश्वऽवेदसः । वरूथ्या । मनामहे । अनेहसः । वः । ऊतयः । सुऽऊतयः । वः । ऊतयः ॥ ८.४७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 47; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All round, all over us, spread your cover of protection like birds. You know and command the wealth and powers of the world. We pray for shelter, peace and protection. Sinless are your protections, free from evil, noble and holy are your protections, free from jealousy, anger and violence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    श्रेष्ठ सभासदांचे कर्तव्य आहे की, त्यांनी सामान्य प्रजेला सदैव साह्य करावे. ॥३॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे सभाध्यक्षाः ! न=यथा । वयः=पक्षिणः स्वशिशूनामुपरि । पक्षा=पक्षौ प्रसारयन्ति । तथैव यूयम् । अस्मे+अधि=अस्माकमुपरि । तत् शर्म । वियन्तन=विस्तारयत । हे विश्ववेदसः=सर्वधनाः ! युष्मान् । विश्वानि=सर्वाणि । वरूथ्या=वरूथ्यानि=वरूथं गृहम् । तदुचितानि धनानि । मनामहे=याचामहे । अनेहस इत्यादि गतम् ॥३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे सभाध्यक्षजनो ! (न+वयः+पक्षा) जैसे पक्षिगण अपने शिशुओं के ऊपर पक्ष रखते हैं, तद्वत् आप (अस्मे+अधि) हम मनुष्यों के ऊपर (तत्+शर्म) उस कल्याण को (वि+यन्तन) विस्तीर्ण कीजिये (विश्ववेदसः) हे सर्वधनोपेत श्रेष्ठ जनो ! हम प्रजागण (विश्वानि) समस्त (वरूथ्या) गृहोचित धन (मनामहे) आपसे चाहते हैं, कृपाकर उन्हें पूर्ण करें । (अनेहसः) इत्यादि पूर्ववत् ॥३ ॥

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    विषय

    चूज़ों पर पक्षीवत् उनकी प्रजा पर पक्षच्छाया।

    भावार्थ

    ( वयः पक्षा न ) पक्षीगण जिस प्रकार दोनों पक्षों को अपने बच्चों पर शरणवत् प्रदान करते हैं उसी प्रकार आप लोग (अस्मे अधि) ऊपर ( शर्म वि यन्तन ) सुख, शरण विविध प्रकार से देवें। हे ( विश्व-वेदसः ) समस्त ज्ञानों और धनों के स्वामी जनो ! हम लोग आप लोगों से ( विश्वानि वरूथ्या ) समस्त गृहोचित धन धान्यादि सुख और समस्त, (वरूथ्या) दुःख वारण में समर्थ साधनों की ( मनामहे) याचना करते हैं। उनको हम ज्ञानपूर्वक प्राप्त करें।

    टिप्पणी

    (अनेहसोवः ० इत्यादि) पूर्ववत्॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित आप्त्य ऋषिः॥ १-१३ आदित्यः। १४-१८ आदित्या उषाश्च देवताः॥ छन्द:—१ जगती। ४, ६—८, १२ निचृज्जगती। २, ३, ५, ९, १३, १६, १८ भुरिक् त्रिष्टुप्। १०, ११, १७ स्वराट् त्रिष्टुप्। १४ त्रिष्टुप्। अष्टादशर्चं सूक्तम्।

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    विषय

    वरूथ्य धनों की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] हे देवो ! (अस्मे) = हमारे लिए (तत् शर्म) = उस शरण को (अधिवियन्तन) = आधिक्येन प्राप्त कराओ, (न) = जैसे (वयः) = पक्षी (पक्षा) = अपने पंखों को बच्चों के रक्षण के लिए प्राप्त कराते हैं। [२] हे (विश्ववेदसः) = सम्पूर्ण धनोंवालो देवो! आपसे (विश्वानि) = सब (वरूध्यानि) = गृहोचित धनों को (मनामहे) = माँगते हैं। (वः) = आपके (ऊतयः) = रक्षण (अनेहसः) = निष्पाप हैं-हमारे जीवनों को पापशून्य बनानेवाले हैं। (वः) = आपके रक्षण (सु ऊतयः) = उत्तम रक्षण हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - मित्र, वरुण आदि दिव्यभाव हमें गृहोचित सब उत्तम धनों को प्राप्त करानेवाले हैं।

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