Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 66 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 66/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कलिः प्रगाथः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    कदू॑ म॒हीरधृ॑ष्टा अस्य॒ तवि॑षी॒: कदु॑ वृत्र॒घ्नो अस्तृ॑तम् । इन्द्रो॒ विश्वा॑न्बेक॒नाटाँ॑ अह॒र्दृश॑ उ॒त क्रत्वा॑ प॒णीँर॒भि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कत् । ऊँ॒ इति॑ । म॒हीः । अधृ॑ष्टाः । अ॒स्य॒ । तवि॑षीः । कत् । ऊँ॒ इति॑ । वृ॒त्र॒ऽघ्नः । अस्तृ॑तम् । इन्द्रः॑ । विश्वा॑न् । बे॒क॒ऽनाटा॑न् । अ॒हः॒ऽदृषः॑ । उ॒त । क्रत्वा॑ । प॒णीन् । अ॒भि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कदू महीरधृष्टा अस्य तविषी: कदु वृत्रघ्नो अस्तृतम् । इन्द्रो विश्वान्बेकनाटाँ अहर्दृश उत क्रत्वा पणीँरभि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कत् । ऊँ इति । महीः । अधृष्टाः । अस्य । तविषीः । कत् । ऊँ इति । वृत्रऽघ्नः । अस्तृतम् । इन्द्रः । विश्वान् । बेकऽनाटान् । अहःऽदृषः । उत । क्रत्वा । पणीन् । अभि ॥ ८.६६.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 66; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 49; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    How great and irresistible are his blazing powers! How great and invincible is he, the destroyer of evil and darkness! To the usurers and the exploiters who count only their days tally he shows the light only for the day according to their action, not beyond.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    बेकनाट - संस्कृतमध्ये याला कुसी दी, वृद्धिजीवी इत्यादी इत्यादी नावाने ओळखतात जो दुप्पट, तिप्पट व्याज घेतो. शास्त्र, राजा व समाजाच्या नियमाप्रमाणे जितके व्याज घेतले जाते त्यापेक्षा दुप्पट-तिप्पट व्याज घेता, तो बेकनाट (सावकार). या शब्दाची व्युत्पत्ती लोक या प्रकारे करतात. बे क नाट = दोन अर्थी ते शब्द आहेत. मी एक रुपया आज देतो, ठीक एका वर्षात दोन रुपये मला द्या. या प्रकारचे गुण प्राप्त झाल्यावर जो नाट = नाचतो त्याला बेनकाट म्हणतात. त्याची (परमेश्वराची) शक्ती अनंत आहे. तो जगाच्या शासनासाठी दुष्टांना सदैव शासन करतो हा याचा आशय आहे. ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे मनुष्याः ! अस्य+तविषीः=शक्तयः । कदू=कियत्यः । महीः=महत्यः । अधृष्टाः=अधर्षणीयाश्च । अस्य वृत्रघ्नः=वृत्रहन्तुः । कर्म वा यशो वा । कदु=कियत् । अस्तृतम्=अविनश्वरं महच्च । इन्द्रः खलु । विश्वान्=सर्वान् । बेकनाटान्=वार्धुषिकान् । क्रत्वा= कर्मणा । अहर्दृशः करोति । उत । पणीम्=मिथ्यावणिजश्च । अभिभवति=दूरीकरोति ॥१० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे मनुष्यों ! (अस्य+तविषीः) इसकी शक्तियाँ (कदू) कितनी (महीः) बड़ी पूजनीय और (अधृष्टाः) अक्षुण्ण हैं । (वृत्रघ्नः) इस निखिल दुःखनिवारक भगवान् का यश (कदु) कितना (अस्तृतम्) अविनश्वर और महान् है । हे मनुष्यों ! (इन्द्रः) वह परमात्मा मनुष्यजाति की भलाई के लिये (विश्वान्) समस्त (बेकनाटान्) सूदखोरों को (क्रत्वा) उसके कर्म के अनुसार (अहर्दृशः) इसी जन्म में सूर्य्य को देखने देता है, दूसरे जन्म में उनको अन्धकार में फेंक देता है (उत) और (पणीन्) जो वणिक् मिथ्या व्यवहार करते हैं, असत्य बोलते हैं, असत्य तौलते, गौ आदि उपकारी पशुओं को गुप्त रीति से कसाइयों के हाथ बेचते हैं, इस प्रकार के मिथ्या व्यवसायी को वेद में पणि कहते हैं, उनको भी वह इन्द्र (अभि) चारों तरफ से समाजों से दूर फेंक देता है ॥१० ॥

    भावार्थ

    बेकनाट−संस्कृत में इसके कुसीदी, वृद्धिजीवी आदि नामों से पुकारते हैं । जो द्विगुण त्रिगुण सूद खाता है । शास्त्र, राजा और समाज के नियम से जितना सूद बंधा हुआ है, उससे द्विगुण त्रिगुण जो सूद लेता है, वह बेकनाट है । इस शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार लोग करते हैं । बे+क+नाट=द्विशब्द के अर्थ में बे शब्द है । मैं एक रुपया आज देता हूँ, ठीक एक वर्ष में दो रुपये मुझे दोगे, इस प्रकार गुण प्राप्त होने पर जो नाट=नाचता है, उसे बेकनाट कहते हैं । उसकी शक्ति अनन्त है । वह जगत् के शासन के लिये दुष्टों पर सदा शासन करता है, यह इसका आशय है ॥१० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अपार बली प्रभु।

    भावार्थ

    अथवा ( अस्य ) इसकी ( महीः ) बड़ी, ( तविषीः ) शक्तियां ( कत् उ ) कितनी हैं ? अपरिमित हैं। ( अस्य वृत्र-ध्नः ) इस वृत्र अर्थात् मेघवत् प्रकृतिमय सलिल के विक्षोभक परमेश्वर का ( अस्तृतम् ) अहिंसित, नित्य स्थायी बल वा स्वरूप (कत् उ) कितना और कैसा है ? यह नहीं कहा जा सकता है। वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् प्रभु (विश्वान् बेक-नाटान् ) सब महाजनों वा विवेकी (उत) और (अहः-दृशः पणीन् ) सूर्य को देखने वाले सब व्यवहारकुशलों को भी ( क्रत्वा ) अपने ज्ञान से ( अभि ) परास्त करता है, वह सर्वोपरि है॥

    टिप्पणी

    बेकनाटाः—बे इति अपभ्रंशो द्विशब्दार्थे। एकं कार्षापणं ऋणिकाय प्रयच्छन् द्वौ मह्यं दातव्यौ नयेन दर्शयति। ततो द्विशब्देनैकशब्देन च नाटयन्तीति बेकनाटा: इति सायणः। एक २ के दो लेने का संकेत कर समझाने वाले सूदखोर महाजन लोग ‘बेकनाट’ कहाते हैं। अथवा बेकनाट:—न ते नासिकायाः सज्ञायां टीटञ्नाटज्-भ्रटजः ॥ पा० ५। २। ३१॥ इति नाटच्। बेकनाटा, बेकनासिकाः भेक नासिकाः विकटनासिका वा। अथवा विचिर पृथग्भावे, वेकः पृथग्भावः, वेकनाटा: छिन्ननासः, विनासिका, विवेकशीलनासिकाः कुशला वा इत्येकोनपञ्चाशत्तमो वर्गः॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कलिः प्रागाथ ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ बृहती। ३, ५, ११, १३ विराड् बृहती। ७ पादनिचृद् बृहती। २, ८, १२ निचृत् पंक्तिः। ४, ६ विराट् पंक्ति:। १४ पादनिचृत् पंक्ति:। १० पंक्तिः। ९, १५ अनुष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    बेकनाटान् अहर्दृश:

    पदार्थ

    [१] (कद् उ) = कब ही (अस्य) = इस इन्द्र के (महीः) = महान् (तविषी:) = बल (अधृष्टाः) = शत्रुओं के धर्षक नहीं होते? (कद् उ) = और कब (वृत्रघ्न:) = इस वृत्रविनाशक इन्द्र का (अस्तृतम्) = हन्तव्य शत्रु अहिंसित होता है? अर्थात् इन्द्र का बल सदा शत्रुओं का धर्षण करनेवाला होता है, वह हन्तव्य को मारता ही है। [२] (उत) = और (इन्द्रः) = यह शत्रुविद्रावक प्रभु (विश्वान्) = सब (अहर्दृशः) = दिन ही दिन को देखनेवाले-पाप के फलरूप भविष्य में आनेवाली रात्रि को न देखनेवाले (बेकनाटान्) = 'दो और एक' इन शब्दों से नचानेवाले (पणीन्) = एक का दो करके लेनेवाली लुब्धक पणियों को(क्रत्वा) = अपनी शक्ति से व प्रज्ञान से (अभि) = अभिभूत करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की शक्ति अनन्त है। प्रभु अपने प्रज्ञान व बल से लुब्धकों को विनष्ट करते हैं। केवल इहलोक को देखनेवाले 'To look after' के सिद्धान्तवाले प्रभु द्वारा विनष्ट किये जाते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top