ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 66/ मन्त्र 7
ऋषिः - कलिः प्रगाथः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - पाद्निचृद्बृहती
स्वरः - मध्यमः
व॒यमे॑नमि॒दा ह्योऽपी॑पेमे॒ह व॒ज्रिण॑म् । तस्मा॑ उ अ॒द्य स॑म॒ना सु॒तं भ॒रा नू॒नं भू॑षत श्रु॒ते ॥
स्वर सहित पद पाठव॒यम् । ए॒न॒म् । इ॒दा । ह्यः । अपी॑पेम । इ॒ह । व॒ज्रिण॑म् । तस्मै॑ । ऊँ॒ इति॑ । अ॒द्य । स॒म॒ना । सु॒तम् । भ॒र॒ । आ । नू॒नम् । भू॒ष॒त॒ । श्रु॒ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
वयमेनमिदा ह्योऽपीपेमेह वज्रिणम् । तस्मा उ अद्य समना सुतं भरा नूनं भूषत श्रुते ॥
स्वर रहित पद पाठवयम् । एनम् । इदा । ह्यः । अपीपेम । इह । वज्रिणम् । तस्मै । ऊँ इति । अद्य । समना । सुतम् । भर । आ । नूनम् । भूषत । श्रुते ॥ ८.६६.७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 66; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 49; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 49; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Here today as before we have regaled this lord of the thunderbolt. For him, again, now, all of one mind, bear and bring the distilled soma of homage, and worship him who would, for certain for joy of the song, grace the celebrants.
मराठी (1)
भावार्थ
(असे मंत्र उपदेशपरंपरेच्या सिद्धीसाठी आहेत) हे माणसांनो! जे उपदेशक प्रत्येक दिवशी नियम पाळत आलेले आहेत ते याचे अधिकारी असतात. त्यांनी हे शिक्षण द्यावे की, हे मनुष्यांनो! आम्ही आज, उद्या, परवा, मागच्या दिवशी व आगामी दिवशी आपल्या आचरणाने त्याला (ईश्वराला) प्रसन्न ठेवावे. तुम्हीही तसे करा. ॥७॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे मनुष्याः ! वयमुपासकाः । इदा=इदानीम् । एनं वज्रिणम् । इह स्थाने । ह्यः=गते दिवसे । अपीपेम=आप्याययाम स्तुत्या । तस्मा उ अध=तस्मै एवाद्य । समनाः=समनसो यूयं सुतं=उत्पादितमिदं जगत् । भर=भरत धनादिभिः । नूनं सः । श्रुते=स्तोत्रे श्रुते सति । आ+भूषत=आभूषयति ॥७ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हे मनुष्यों ! (इदा) इस समय हम लोगों का यह कर्त्तव्य है कि जैसे हम उपासक (ह्यः) गत दिवस (एनम्+वज्रिणम्) इस न्यायपरायण महादण्डधारी जगदीश की स्तुति प्रार्थना द्वारा (इह) इस यज्ञ में (अपीपेम) प्रसन्न कर चुके हैं, वैसे आप लोग भी सदा किया कीजिये और (अद्य) आज (तस्मै+उ) उसी प्रसन्नता के लिये (समनाः) एक मन होकर आप लोग (सुतम्) उससे उत्पादित जगत् को (भरः) धनादिकों से भरण पोषण कीजिये । (श्रुते) जिस कार्य्य के सुनने से वह (नूनम्) अवश्य ही (आ+भूषत) उपासकों को सब तरह से भूषित करता है ॥७ ॥
भावार्थ
ऐसे-ऐसे मन्त्र उपदेश-परंपरा की सिद्धि के लिये हैं । जो उपदेशक प्रतिदिन नियम पालते आए हैं, वे इसके अधिकारी हैं । वे शिक्षा देवें कि हे मनुष्यों ! हम आजकल, परसों, गतदिन और आगामी दिन अपने आचरणों से उसको प्रसन्न रखते हैं और रक्खेंगे । तुम लोग भी वैसा करो ॥७ ॥
विषय
नित्य
भावार्थ
( वयम् ) हम लोग (इदा ह्यः) विगत दिन के समान इस समय भी ( एनं वज्रिणं ) इस शक्तिशाली को ( अपीपेम ) आप्यायित करें, प्रसन्न करें ( तस्मै उ अद्य ) उस ही के लिये आज ( समना ) समान चित्त होकर ( भर ) ऐश्वर्य प्राप्त कराओ, और ( नूनं ) शीघ्र ही (श्रुते) प्रसिद्ध, श्रवण योग्य पद पर (भूषत) उसे शोभित करो। (२) प्रभु पक्ष में—उस शक्तिशाली प्रभु की हम खूब भक्ति करते हैं, समान चित्त होकर ध्यान करने के लिये समस्त ( सुतं ) उत्पन्न भावना वा कर्म फल को उसी पर न्योछावर करो और ( श्रुते ) श्रुति से श्रवण योग्य उसी प्रभु में ( भूषत ) स्वयं निष्ठ होवो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कलिः प्रागाथ ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ बृहती। ३, ५, ११, १३ विराड् बृहती। ७ पादनिचृद् बृहती। २, ८, १२ निचृत् पंक्तिः। ४, ६ विराट् पंक्ति:। १४ पादनिचृत् पंक्ति:। १० पंक्तिः। ९, १५ अनुष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
स्तवन- सोमरक्षण- प्रभुप्राप्ति
पदार्थ
[१] (वयं) = हम (एनं) = इस (वज्रिणम्) = वज्रहस्त प्रभु को (इह) = इस जीवन में (इदा) = अब और (ह्यः) = भूतकाल में भी [ गतदिवस में भी] (अपीपेम) = आप्यायित करते हैं। स्तोत्रों के द्वारा हम प्रभु की भावना को अपने अन्दर बढ़ाते हैं । [२] (तस्मा उ) = उस प्रभु को प्राप्ति के लिए ही (अथ) = आज (समना) = संग्राम के द्वारा वासनाओं को पराजित करके (सुतं भरा) = सोम का सम्भरण करते हैं। वे प्रभु (नूनं) = निश्चय से (श्रुते) = शास्त्रश्रवण के होने पर भूषत प्राप्त होते हैं [आभवतु-आगच्छतु] ।
भावार्थ
भावार्थ- हम सदा प्रभु का स्तवन करें। स्तुति द्वारा वासनाओं को पराजित करके सोम का रक्षण करें। सोमरक्षण द्वारा तीव्रबुद्धि होकर प्रभुदर्शन करनेवाले बनें।
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