ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 68/ मन्त्र 12
उ॒रु ण॑स्त॒न्वे॒३॒॑ तन॑ उ॒रु क्षया॑य नस्कृधि । उ॒रु णो॑ यन्धि जी॒वसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒रु । नः॒ । त॒न्वे॑ । तने॑ । उ॒रु । क्षया॑य । नः॒ । कृ॒धि॒ । उ॒रु । नः॒ । य॒न्धि॒ । जी॒वसे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उरु णस्तन्वे३ तन उरु क्षयाय नस्कृधि । उरु णो यन्धि जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठउरु । नः । तन्वे । तने । उरु । क्षयाय । नः । कृधि । उरु । नः । यन्धि । जीवसे ॥ ८.६८.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 68; मन्त्र » 12
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Excellence for our body’s health, rise and expan sion for our children and grand children, expansion, comfort and safety for our home, O lord, grant, grant us rise and advancement for life’s excellence and joy.
मराठी (1)
भावार्थ
क्षय = वैदिक भाषेत क्षय शब्द निवासार्थक आहे. यन्धि = यम धातू दानार्थक आहे. याचा आशय असा की, आम्ही शुभ कर्म करावे. त्याचे फळ अवश्य मिळेल. ॥१२॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे भगवन् ! नः=अस्माकम् । तन्वे=शरीराय=शरीरजाय पुत्राय वा । उरु=विस्तीर्णं बहु च सुखं कुरु । तने=पौत्राय च । उरु=बहु सुखं कुरु । नोऽस्माकम् । क्षयाय=निवासाय कल्याणम् । कृधि । नोऽस्माकम् । जीवसे=जीवनाय । उरु=सुखम् । यन्धि=यच्छ देहि ॥१२ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हे भगवन् (नः+तन्वे) हमारे शरीर या पुत्र के लिये (उरु+कृधि) बहुत सुख दो, (तने) हमारे पौत्र के लिये बहुत सुख दो, (नः+क्षयाय+कृधि) हमारे निवास के लिये कल्याण करो, (नः+जीवसे) हमारे जीवन के लिये (उरु+यन्धि) बहुत सुख दो ॥१२ ॥
भावार्थ
क्षय=वैदिक भाषा में क्षय शब्द निवासार्थक है । यन्धि=यम धातु दानार्थक है । आशय इसका यह है कि हम शुभ कर्म करें, अवश्य उसका फल सुख मिलेगा ॥१२ ॥
विषय
उसकी रतुति और प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हे प्रभो ! तू ( नः तन्वे ) हमारे शरीर के सुखार्थ, ( तने ) पुत्रादि के लिये और ( क्षयाय ) हमारे निवास और 'क्षय' अर्थात् ऐश्वर्यवृद्धि के लिये, ( नः उरु कृधि ) हमारे लिये बहुत कुछ और ( जीवसे उरु यन्धि ) हमें जीवन के लिये बहुत कुछ प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रियमेध ऋषिः॥ १—१३ इन्द्रः। १४—१९ ऋक्षाश्वमेधयोर्दानस्तुतिर्देवता॥ छन्दः—१ अनुष्टुप्। ४, ७ विराडनुष्टुप्। १० निचृदनुष्टुप्। २, ३, १५ गायत्री। ५, ६, ८, १२, १३, १७, १९ निचृद् गायत्री। ११ विराड् गायत्री। ९, १४, १८ पादनिचृद गायत्री। १६ आर्ची स्वराड् गायत्री॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'अ-दरिद्रता'
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! आप (नः) = हमारे (तन्वे) = सन्तान के लिए (उरुकृधि) = पर्याप्त धन को करिये। (नः) = हमारे (तने) = पौत्रों के लिए भी (क्षयाय) = [क्षिनिवासगत्योः] निवास व गति के लिए कार्यों के सुचारुरूपेण चलाने के लिए उरु कृधि पर्याप्त धन को करिये। [२] (जीवसे) = जीवनयात्रा को सम्यक् पूर्ण करने के लिए (नः) = हमें भी (उरु यन्धि) = पर्याप्त दीजिए ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे घर में दरिद्रता न हो। हमारे जीवन व हमारे पुत्र-पौत्रों के जीवन सुन्दरता से चलें।
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