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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 68/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रियमेधः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    वि॒श्वान॑रस्य व॒स्पति॒मना॑नतस्य॒ शव॑सः । एवै॑श्च चर्षणी॒नामू॒ती हु॑वे॒ रथा॑नाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वान॑रस्य । वः॒ । पति॑म् । अना॑नतस्य । शव॑सः । एवैः॑ । च॒ । च॒र्ष॒णी॒नाम् । ऊ॒ती । हु॒वे॒ । रथा॑नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वानरस्य वस्पतिमनानतस्य शवसः । एवैश्च चर्षणीनामूती हुवे रथानाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वानरस्य । वः । पतिम् । अनानतस्य । शवसः । एवैः । च । चर्षणीनाम् । ऊती । हुवे । रथानाम् ॥ ८.६८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 68; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I pray to Indra, your lord and father, master controller of the irresistible powers and forces of the universe, for divine protection of the people by the dynamics of his moving powers of nature and humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    तो सर्वांचा पालक, शासक व अनुग्राहक आहे तसेच सर्वशक्तिमान आहे. त्यासाठी जगाच्या कल्याणासाठी मी त्याचीच उपासना करतो ॥४॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे मनुष्याः ! विश्वानरस्य=सर्वेषां नराणाम् । अनानतस्य=अनम्रीभूतस्य=सूर्य्यादेः । शवसः=बलस्य च । तथा । वः=युष्माकम् । पतिम् । एवैः=स्वेच्छाभिः । चर्षणीनाम्=प्रजानां रथानाञ्च । ऊती=ऊत्यै । हुवे ॥४ ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे मनुष्यों ! (वः+पतिम्) आप मनुष्यों के पालक परमदेव को (चर्षणीनाम्) प्रजाओं और (रथानाम्) रथस्वरूप इन जगत्प्राणियों की (एवैः) स्वेच्छापूर्वक (ऊती) रक्षा, साहाय्य और कृपा करने के लिये (हुवे) शुभकर्मों में स्तुति करता हूँ । अपने हृदय में ध्यान करता और आवश्यकताएँ माँगता हूँ । जो परमात्मा (विश्वानरस्य) समस्त नरसमाज का पति है और (अनानतस्य) सूर्य्यादि लोकों और (शवसः) उनकी शक्तियों का भी शासकदेव है ॥४ ॥

    भावार्थ

    जिस कारण वह सबका पालक, शासक और अनुग्राहक है और सर्वशक्तिमान् है, अतः जगत् के कल्याण के लिये उसी की मैं उपासना करता हूँ ॥४ ॥

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    विषय

    राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    हे वीर पुरुषो ! ( अनानतस्य ) कभी न झुकने वाले ( विश्वानरस्य ) समस्त मनुष्यों के बने ( शवसः ) बलवान् सैन्य के ( पतिम् ) उस स्वामी को ( चर्षणीनाम् ) मनुष्यों और ( रथानाम् ) रथों के ( एवैः ) गमनागमनों द्वारा ( हुवे ) बुलाता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रियमेध ऋषिः॥ १—१३ इन्द्रः। १४—१९ ऋक्षाश्वमेधयोर्दानस्तुतिर्देवता॥ छन्दः—१ अनुष्टुप्। ४, ७ विराडनुष्टुप्। १० निचृदनुष्टुप्। २, ३, १५ गायत्री। ५, ६, ८, १२, १३, १७, १९ निचृद् गायत्री। ११ विराड् गायत्री। ९, १४, १८ पादनिचृद गायत्री। १६ आर्ची स्वराड् गायत्री॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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