ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 75/ मन्त्र 6
तस्मै॑ नू॒नम॒भिद्य॑वे वा॒चा वि॑रूप॒ नित्य॑या । वृष्णे॑ चोदस्व सुष्टु॒तिम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मै॑ । नू॒नम् । अ॒भिऽद्य॑वे । वा॒चा । वि॒ऽरू॒प॒ । नित्य॑या । वृष्णे॑ । चो॒द॒स्व॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्मै नूनमभिद्यवे वाचा विरूप नित्यया । वृष्णे चोदस्व सुष्टुतिम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मै । नूनम् । अभिऽद्यवे । वाचा । विऽरूप । नित्यया । वृष्णे । चोदस्व । सुऽस्तुतिम् ॥ ८.७५.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 75; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O man of diverse and conjoint forms of action, with words of eternal voice energise your holy song of adoration and let it rise to that self-refulgent omnificent Agni who is the harbinger of regeneration.
मराठी (1)
भावार्थ
जो परमेश्वर सर्वत्र प्रकृतीमध्ये विराजमान आहे त्याची स्तुती करा. ॥६॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे विरूप=विविधरूप मानवगण ! त्वम् । नित्यया=उत्पत्तिरहितया । वाचा=वेदवाण्या । तस्मै= परमात्मने । नूनम्=इदानीम् । सुष्टुतिम्=शोभनां स्तुतिम् । चोदय=प्रेरय । तस्मै कथंभूताय अभिद्यवे=अभितो द्योतमानाय=प्रकाशमानाय । पुनः । वृष्णे=आनन्दवर्षकाय ॥६ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(विरूप) हे विविध रङ्गरूप भाषादियुक्त मानवगण ! तू (तस्मै) उस परमात्मा की (सुष्टुतिम्) शोभन स्तुति (नित्यया+वाचा) नित्य वेदरूप वाणी से (चोदय) करो, जो (नूनम्) अवश्य (अभिद्यवे) चारों और प्रकाशमान हो रहा है, जो (वृष्णे) आनन्द की वर्षा दे रहा है ॥६ ॥
भावार्थ
जो परमेश्वर सर्वत्र प्रकृति के मध्य विराजमान हो रहा है, उसकी स्तुति प्रार्थना करो ॥६ ॥
विषय
प्रभु स्तुति के लिये नित्य वाणी का प्रयोग।
भावार्थ
हे (विरूप) विशेष रूपवान् ! सुमुख ! हे विशेष रुचि वाले तू ( नूनम् ) अवश्य ही (तस्मै) उस (अभि-द्यवे) तेजस्वी, (वृष्णे) बलवान् पुरुष के लिये ( नित्यया वाचा ) नित्य निश्चित वाणी द्वारा ( सुस्तुतिम् चोदस्व ) उत्तम स्तुति को प्रस्तुत कर। परमेश्वर की स्तुति के लिये वेद वाणी का प्रयोग कर। अथवा षष्टयर्थे चतुर्थी। तू उस ज्ञानवान्, सर्वज्ञानवर्षक प्रभु की नित्य वाणी वेद से ( सु-स्तुतिं चोदस्व ) उत्तम प्रार्थना वा, उपदेश किया कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विरूप ऋषि:॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१, ४, ५, ७,९,११ निचृद् गायत्री। २, ३, १५ विराड् गायत्री । ८ आर्ची स्वराड् गायत्री। षोडशर्चं सूक्तम॥
विषय
अभिद्यु वृषा
पदार्थ
[१] हे (विरूप) = पवित्र जीवन के कारण विशिष्ट रूपवाले जीव ! तू (नूनं) = निश्चय से (तस्मै) = उस (अभिद्यवे) = अधि व व्याधियों पर आक्रमण करनेवाले, (वृष्णे) = सब सुखों के वर्षक प्रभु के लिए (नित्यया वाचा) = इस सनातन वेदवाणी से (सुष्टुतिम्) = उत्तम स्तुति को (चोदस्व) = प्रेरित कर। [२] हम वेदमन्त्रों द्वारा प्रभु का स्तवन करने में प्रवृत्त हों। यह वेदवाणी प्रभु की सनातन ज्ञान की वाणी है। इसके द्वारा प्रभु का स्तवन करते हुए हम सब आधि-व्याधियों से ऊपर उठते हैं। हम भी उस स्तुत्य प्रभु की शक्ति से शक्तिसम्पन्न बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थं - हम ज्ञान की वाणियों के द्वारा प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमारी आधि- व्याधियों को विनष्ट करेंगे।
बंगाली (1)
পদার্থ
তস্মৈ নূনমভিদ্যবে বাচা বিরুপ নিত্যয়া। বৃষ্ণে চোদস্ব সুষ্টুতিম্।।৮৬।।
(ঋগ্বেদ ৮।৭৫।৬)
পদার্থঃ (বিরুপ) হে বিবিধ রঙরূপ ভাষাদিযুক্ত মানবগণ! তোমরা (তস্মৈ) সেই পরমাত্মাকে (নিত্যয়া বাচা) নিত্য বেদ বাণী দ্বারা (সুষ্টুতিম্) উত্তম ভাবে স্তুতি (চোদস্ব) করো; যিনি (নূনম্) নিশ্চিত রূপে (অভিদ্যবে) চতুর্দিকে প্রকাশিত হয়ে রয়েছেন, যিনি (বৃষ্ণে) সাধুদের আনন্দের বর্ষা দিয়ে থাকেন।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ মনুষ্যজাতির মধ্যে তাদের চেহারা, আচরণ, সংস্কৃতি, ভাষা ইত্যাদির মধ্যে বিভিন্ন প্রকার বৈচিত্র্য রয়েছে। কিন্তু পরমাত্মা সকলের প্রতি সমদৃষ্টি সম্পন্ন। এজন্য সেই পরমাত্মাকে উপাসনা করার জন্য সকলের একটিই পথ রয়েছে। সেটি হচ্ছে, নিত্য বেদবাণীর মাধ্যমে তাঁর উপাসনা করা। এই বেদোক্ত পথের মাধ্যমে উপাসনা করেই ঈশ্বরকে লাভ করা যাবে। আর যখন ঈশ্বর লাভ হয়, তখন সাধক ভক্তগণ নিজের হৃদয়ে আনন্দময় ঈশ্বরের আনন্দের ধারা অনুভব করেন।।৮৬।।
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