Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 10

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 16
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - क्षत्रपतिर्देवता छन्दः - स्वराट आर्षी जगती, स्वरः - निषादः
    78

    हिर॑ण्यरूपाऽउ॒षसो॑ विरो॒कऽउ॒भावि॑न्द्रा॒ऽउदि॑थः॒ सूर्यश्च॑। आरो॑हतं वरुण मित्र॒ गर्त्तं॒ तत॑श्चक्षाथा॒मदि॑तिं॒ दितिं॑ च मि॒त्रोऽसि॒ वरु॑णोऽसि॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यरूपा॒विति हिर॑ण्यऽरूपौ। उ॒षसः॑। वि॒रो॒क इति॑ विऽरो॒के। उ॒भौ। इ॒न्द्रौ॒। उत्। इ॒थः॒। सूर्यः॑। च॒। आ। रो॒ह॒त॒म्। व॒रु॒ण॒। मि॒त्र॒। गर्त्त॑म्। ततः॑। च॒क्षा॒था॒म्। अदि॑तिम् दिति॑म्। च॒। मि॒त्रः। अ॒सि॒। वरु॑णः। अ॒सि॒ ॥१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यरूपाऽउषसो विरोकऽउभाविन्द्राऽउदिथः सूर्यश्च । आ रोहतँवरुण मित्र गर्तन्ततश्चक्षाथामदितिन्दितिञ्च मित्रो सि वरुणो सि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यरूपाविति हिरण्यऽरूपौ। उषसः। विरोक इति विऽरोके। उभौ। इन्द्रौ। उत्। इथः। सूर्यः। च। आ। रोहतम्। वरुण। मित्र। गर्त्तम्। ततः। चक्षाथाम्। अदितिम् दितिम्। च। मित्रः। असि। वरुणः। असि॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्भिर्निष्कपटतयाऽज्ञाः सत्यमुपदिश्य विद्वांसो मेधाविनः संपादनीया इत्याह॥

    अन्वयः

    हे उपदेशक मित्र! यतस्त्वं मित्रोऽसि। हे वरुण! यतस्त्वं वरुणोऽसि ततस्तौ युवां गर्त्तमारोहतम्। अदितिं दितिं च चक्षाथाम्। हे हिरण्यरूपावुभाविन्द्रौ यथा विरोके सूर्य्यश्चन्द्रश्चोषसो विभातस्तथा युवामुदिथो विद्याः प्रभातम्॥१६॥

    पदार्थः

    (हिरण्यरूपौ) ज्योतिःस्वरूपौ (उषसः) प्रभातान् (विरोके) विविधतया रुचिकरे व्यवहारे (उभौ) (इन्द्रौ) परमैश्वर्य्यकारकौ (उत्) (इथः) प्राप्नुथः (सूर्य्यः) (च) चन्द्र इव (आ) (रोहतम्) (वरुण) शत्रुच्छेदक उत्कृष्टसेनापते (मित्र) सर्वस्य सुहृत् (गर्तम्) उपदेशकगृहम्। गर्त्त इति गृहनामसु पठितम्। (निघं॰३।४) (ततः) तदनन्तरम् (चक्षाथाम्) उपदिशेताम् (अदितिम्) अविनाशिनं पदार्थम् (दितिम्) नाशवन्तम् (च) (मित्रः) सुखप्रदः (असि) (वरुणः) सर्वोत्तमः (असि)॥ अयं मन्त्रः (शत॰ ५। ४। १। १५-१७) व्याख्यातः॥१६॥

    भावार्थः

    यत्र देशे सूर्य्यचन्द्रवदुपदेशका व्याख्यानैः सर्वा विद्याः प्रकाशयन्ति, तत्र सत्याऽसत्यपदार्थबोधेन सहितत्वात् कश्चिदप्यविद्यया न विमुह्यति, यत्रेदं न भवति तत्राऽन्धपरम्पराग्रस्ता जनाः प्रत्यहमवनतिं प्राप्नुवन्ति॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों को चाहिये कि आप निष्कपट हो और अज्ञानी पुरुषों के लिये सत्य का उपदेश करके उनको बुद्धिमान् विद्वान् बनावें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे उपदेश करनेहारे (मित्र) सब के सुहृद्! जिसलिये आप (मित्रः) सुख देने वाले (असि) हैं तथा हे (वरुण) शत्रुओं को मारनेहारे बलवान् सेनापति! जिसलिये आप (वरुणः) सबसे उत्तम (असि) हैं, इसलिये आप दोनों (गर्त्तम्) उपदेश करने वाले के घर पर (आरोहतम्) जाओ (अदितिम्) अविनाशी (च) और (दितिम्) नाशवान् पदार्थों का (चक्षाथाम्) उपदेश करो। हे (हिरण्यरूपौ) प्रकाशस्वरूप (उभौ) दोनों (इन्द्रौ) परमैश्वर्य्य करनेहारे जैसे (विरोके) विविध प्रकार की रुचि करानेहारे व्यवहार में (सूर्य्यः) सूर्य्य (च) और चन्द्रमा (उषसः) प्रातः और निशा काल के अवयवों को प्रकाशित करते हैं, वैसे तुम दोनों जन (उदिथः) विद्याओं का उपदेश करो॥१६॥

    भावार्थ

    जिस देश में सूर्य्य-चन्द्रमा के समान उपदेश करनेहारे व्याख्यानों से सब विद्याओं का प्रकाश करते हैं, वहां सत्याऽसत्य पदार्थों के बोध से सहित होके कोई भी विद्याहीन होकर भ्रम में नहीं पड़ता। जहां यह बात नहीं होती, वहां अन्धपरम्परा में फंसे हुए मनुष्य नित्य ही क्लेश पाते हैं॥१६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राज्य-निरीक्षण

    पदार्थ

    १. राष्ट्र में राजा ‘मित्र’ है, सारी प्रजा को ‘प्रमीतेः त्रायते’ मृत्यु एवं पापों से बचाने के लिए प्रयत्नशील है तो ‘वरुण’ सेनापति है, जो राष्ट्र पर होनेवाले शत्रुओं के आक्रमण का निवारण करता है। ( ये उभौ ) = दोनों ( हिरण्यरूपौ ) = ज्योर्तिमय रूपवाले हैं। हिरण्य के समान अति तेजस्वी हैं, ( इन्द्रौ ) = परमैश्वर्यवाले अथवा सामर्थ्य से युक्त हैं। ये दोनों ( उषसः विरोके ) =  रात्रि की समाप्ति पर, उषा के व्युत्थान काल में ( उदिथः ) = [ उद्गच्छतः ] उठते हैं। ( सूर्यः च ) [ उदेति ] = इसी समय सूर्य भी उदय होता है, जिससे सूर्य के प्रकाश में ये मित्र और वरुण अपना कार्य सुचारुरूपेण कर सकें। 

    २. हे ( वरुण ) = शत्रु के आक्रमण के वारक सेनापते! ( मित्र ) = रोगों व पापों से बचानेवाले राजन्! आप दोनों ( गर्तं आरोहतम् ) = अपने रथ पर अधिरूढ़ हों और ( ततः ) = तब ( अदितिम् ) = नियमों के न तोड़नेवाले, मर्यादाओं का पालन करनेवाले, अदीन, राजनियमों के अनुष्ठाता को-शास्त्रनिर्दिष्ट बातों के करनेवाले को, ( दितिं च ) = और नियमों के तोड़नेवाले को, नास्तिकवृत्त को ‘कोई क़ानून-वानून नहीं है’ [ नास्तीति ] ऐसा मानकर मनमाना आचरण करनेवाले को ( चक्षाथाम् ) = देखो। ‘यह पापी और यह पुण्यवान् है’ इस प्रकार आप लोगों का विवेक करनेवाले बनो। ‘कौन आर्य है और कौन दस्यु’ यह आपको पता हो। 

    ३. ऐसा करने पर ही आप ( मित्रः असि ) = राष्ट्र को मृत्यु से बचाते हो व ( वरुणः असि ) = राष्ट्र पर होनेवाले आक्रमणों का निवारण करते हो।

    भावार्थ

    भावार्थ — राजा के मुख्य कार्य दो हैं। पाप व रोगों से बचाना, शत्रुओं के आक्रमण को रोकना। इससे राजा मित्र और वरुण नामवाला होता है। उसे उषःकाल में ही जाग जाना चाहिए और सूर्योदय के साथ ही रथारूढ़ हो राज्य के निरीक्षण में प्रवृत्त हो जाना चाहिए, जिससे वह आर्य व दस्युओं का विवेक कर सके।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सूर्योदय के समान मित्र और वरुण दोनों का उदय राजा का सिंहासना रोहण ।

    भावार्थ

    हे मित्र और हे वरुण ! ( उभा ) आप दोनों ( हिरण्यरूपौ ) स्वर्ण के समान तेजस्वी ( इन्द्रौ ) राजा के समान ऐश्वर्यवान् ( उषसः ) उषाओं को ( विरोके) विशेष प्रकाश द्वारा ( सूर्यः च) सूर्य और चन्द्र के समान नाना कार्यों और विद्याओं को प्रकाशित करते हुए ( उदिथ: ) उदय होते हो । आप दोनों हे वरुण ! हे मित्र ! (गर्त्तम् ) रथ पर और राष्ट्रवासी प्रजाजनों के ऊपर ( आरोहतम् ) आरूढ होओ और उन पर शासन करो । ( ततः ) और तब ( अदितिम् ) अखण्ड राज- व्यवस्था या पृथिवी और ( दितिम् ) खण्ड २ रूप से विद्यमान समस्त विभक्त व्यवस्था का भी ( चक्षाथाम् ) उपदेश करो या उनका निरीक्षण करो । हे राजन् ! (मित्रः असि ) तू ही स्वयं मित्र, सर्व स्नेही है और( वरुणः असि ) तू ही वरुण, सब शत्रुओं को वारण करने में समर्थ है ॥ शत० ५।४।१ । १६-१७ ॥

    टिप्पणी

    'इन्द्रा उदित०' इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मित्रावरुणौ देवते । जगती । निषादः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्या देशात सूर्य-चंद्रासारखे उपदेशक आपल्या उपदेशाने सर्व विद्या प्रकट करतात तेथेच सत्य व असत्य पदार्थांचा बोध होतो व कोणीही अविद्येच्या भ्रमात अडकत नाही. जेथे ही गोष्ट नसते तेथे माणसे अंधश्रद्धेमुळे सदैव त्रास भोगतात.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विद्वानांसाठी आवश्यक आहे की त्यानी स्वत: निष्कपट असावे आणि अज्ञानी माणसांना सत्योपदेश करून त्यांना बुद्धिमान व विद्वान करावे, या विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे उपदेश करणारे ज्ञानी विद्वान महोदय, आपण (मित्र) सर्वांचे सुहृद असून (मित्र:) सुखदायक सहायक (असि) आहात. हे (वरूण) शत्रूंचा विनाश करणारे शक्तिशाली सेनापति महोदय, आपण (वरूण:) सर्वोन्तम (वीर) (असि) आहात. म्हणून आपण दोघे (गर्त्तम्) उपदेश ग्रहण करण्याची इच्छा असणार्‍या मनुष्याची घरी (आरोहतम्) जा आणि त्यास (अदितिम्) अविनाशी (च) आणि (दितिम्) नाशवान पदार्थांविषयी (च क्षाथाम्) सत्यज्ञान सांगा, (संसारात नित्य व अविनाशी तत्त्व काय आणि विनाशी तत्त्व काय, याविषयी सत्य उपदेश करा) हे (हिरण्यरुपौ) प्रकाश स्वरूप (उभौ) आपण दोघे (इन्द्रौ) परमैश्वर्य देणारे आणि (विरोके) विविध कार्यात रुची असणारे आहात. त्यामुळे जसे (सूर्य्य:) सूर्य आणि (च) चन्द्र (उषस:) प्रात:काळी आणि निशाकाळी सर्व पदार्थांना प्रकाशित करतात, त्याप्रमाणे तुम्ही दोघे (विद्वान व सेनापती (अज्ञानी लोकांना) (उदिथ:) विद्योपदेश करा. ॥16॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्या देशात उपदेशकगण आपल्या हितकारी भाषणांद्वारे अशाप्रकारे सर्वांसाठी विद्येचा प्रकाश फैलावतात की ज्याप्रमाणे सूर्य आणि चंद्र सर्वांसाठी समानरुपेण प्रकाश प्रसारित करतात, त्या देशात सत्य आणि असत्याचे विवेकज्ञान झाल्यामुळे कोणीही विद्याविहीन राहत नाही आणि भ्रम-संशयातही अडकत नाही. जेथे असे (उपदेशादी) होत नाहीत, तेथे अंधपरंपरेत अडकलेले लोक नित्य निरंतर क्लेश पावतात.॥16॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O Preacher ! the friend of all and O commander, the destroyer of foes, ye both go to the house of a seeker after truth, and dilate upon the immortal and the mortal substances. Just as the sun and moon bring day and night, for the transaction of our various desirable dealings, so should ye both full of lustre and supremacy spread knowledge.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    You are Mitra, friend of all. You are Varuna, the best of all and subduer of the enemies. Both of you are bright and powerful like gold, like the sun, like Indra. And just as the sun and the moon with their light up the night and the dawn, so you too, with your illuminating actions, rise and enlighten the world around you. Ascend your chariot of knowledge, watch the world of permanence and impermanence, and spread the light.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    At the advent of the dawn, both of you resplendents arise and with you rises the sun. O venerable Lord and O friendly Lord, mount your chariot and then have a look at the infinity as well as the finite. (1) You are the friendly Lord; you are the venerable Lord. (2)

    Notes

    Hiranyarupau, ज्योति: स्वोरूपी, effulgent with light. Usasam viroke, at the advent of dawns. gartam, गर्त सदृसं रथोपिभागम्, the chariot. Caksatham, (you two) have a look at. Aditim, the infinity. Diti, the finite. Mitrah, friendly. Varunah, venerable.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    অথ বিদ্বদ্ভির্নিষ্কপটতয়াऽজ্ঞাঃ সত্যমুপদিশ্য বিদ্বাংসো মেধাবিনঃ
    সংপাদনীয়া ইত্যাহ ॥
    এখন বিদ্বান্দিগের উচিত যে, স্বয়ং নিষ্কপট হউন এবং অজ্ঞানী পুরুষদিগের জন্য সত্যের উপদেশ করিয়া তাহাদেরকে বুদ্ধিমান বিদ্বান্ করুন এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে উপদেশক (মিত্র) সকলের সুহৃদ ! যেহেতু আপনি (মিত্রঃ) সুখ দাতা (অসি) হন তথা হে (বরুণ) শত্রুদের হত্যাকারী বলবান্ সেনাপতি, যেহেতু আপনি (বরুণঃ) সর্বোত্তম (অসি) হন, এইজন্য আপনারা উভয়ে (গর্ত্তম্) উপদেশকের গৃহে (আরোহতম্) গমন করুন (অদিতিম্) অবিনাশী (চ) এবং (দিতিম্) নাশবান পদার্থের (চক্ষাথাম্) উপদেশ করুন । হে (হিরণ্যরূপৌ) প্রকাশস্বরূপ (উভৌ) উভয়ে (ইন্দ্রৌ) পরমৈশ্বর্য্য কারী যেমন (বিরোকে) বিবিধ প্রকার রুচিকর ব্যবহারে (সূর্য়্যঃ) সূর্য্য (চ) ও চন্দ্র (উষসঃ) প্রাতঃ ও নিশা কালের অবয়ব কে প্রকাশিত করে, সেইরূপ আপনারা উভয়ে (উদিথঃ) বিদ্যার উপদেশ করুন ॥ ১৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে দেশে সূর্য্য-চন্দ্রের সমান উপদেশক ব্যাখ্যান দ্বারা সর্ব বিদ্যার প্রকাশ করে, সেখানে সত্যাসত্য পদার্থের বোধসহিত হইয়া কেহই বিদ্যাহীন হইয়া ভ্রমে পতিত হয় না । যেখানে ইহা হয় না তথায় অন্ধপরম্পরায় জড়িত মনুষ্য নিত্য ক্লেশ ভোগ করে ॥ ১৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    হির॑ণ্যরূপাऽউ॒ষসো॑ বিরো॒কऽউ॒ভাবি॑ন্দ্রা॒ऽউদি॑থঃ॒ সূর্য়শ্চ॑ । আ রো॑হতং বরুণ মিত্র॒ গর্ত্তং॒ তত॑শ্চক্ষাথা॒মদি॑তিং॒ দিতিং॑ চ মি॒ত্রো᳖ऽসি॒ বর॑ুণোऽসি ॥ ১৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    হিরণ্যরূপাবিত্যস্য বরুণ ঋষিঃ । মিত্রাবরুণৌ দেবতে । স্বরাডার্ষী জগতী ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top