यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 18
ऋषिः - देवावात ऋषिः
देवता - यजमानो देवता
छन्दः - स्वराट ब्राह्मी त्रिष्टुप्,
स्वरः - धैवतः
126
इ॒मं दे॑वाऽअसप॒त्नꣳ सु॑वध्वं मह॒ते क्ष॒त्रा॑य मह॒ते ज्यैष्ठ्या॑य मह॒ते जान॑राज्या॒येन्द्र॑स्येन्द्रि॒याय॑। इ॒मम॒मुष्य॑ पु॒त्रम॒मुष्यै॑ पु॒त्रम॒स्यै वि॒शऽए॒ष वो॑ऽमी॒ राजा॒ सोमो॒ऽस्माकं॑ ब्राह्म॒णाना॒ राजा॑॥१८॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम्। दे॒वाः॒। अ॒स॒प॒त्नम्। सु॒व॒ध्व॒म्। म॒ह॒ते। क्ष॒त्राय॑। म॒ह॒ते। ज्यैष्ठ्या॑य। म॒ह॒ते। जान॑राज्या॒येति॒ जान॑ऽराज्याय। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒याय॑। इ॒मम्। अ॒मुष्य॑। पु॒त्रम्। अ॒मुष्यै॑। पु॒त्रम्। अ॒स्यै। वि॒शे। ए॒षः। वः॒। अ॒मी॒ऽइत्य॑मी। राजा॑। सोमः॑। अ॒स्माक॑म्। ब्रा॒ह्म॒णाना॑म्। राजा॑ ॥१८॥
स्वर रहित मन्त्र
इमन्देवाऽअसुपत्नँ सुवध्वम्महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्दियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोमी राजा सोमोस्माकम्ब्राह्मणानाँ राजा ॥
स्वर रहित पद पाठ
इमम्। देवाः। असपत्नम्। सुवध्वम्। महते। क्षत्राय। महते। ज्यैष्ठ्याय। महते। जानराज्यायेति जानऽराज्याय। इन्द्रस्य। इन्द्रियाय। इमम्। अमुष्य। पुत्रम्। अमुष्यै। पुत्रम्। अस्यै। विशे। एषः। वः। अमीऽइत्यमी। राजा। सोमः। अस्माकम्। ब्राह्मणानाम्। राजा॥१८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
सत्योपदेशकैर्विद्वद्भिर्बाल्याऽवस्थामारभ्य सुशिक्षया सर्वे राजकन्याकुमाराः श्रेष्ठाचाराः संपादनीया इत्याह॥
अन्वयः
हे देवाः! यूयं य एष उपदेशकः सेनेशो वा वोऽस्माकं च ब्राह्मणानां राजाऽस्ति। येऽमी राजपुरुषाः सन्ति, तेषां सोमो राजाऽस्ति तमिमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विशे महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियायासपत्नं सुवध्वम्॥१८॥
पदार्थः
(इमम्) (देवाः) वेदशास्त्रविदः सेनापतयः (असपत्नम्) अजातशत्रुम् (सुवध्वम्) प्रेर्ध्वम् (महते) सत्कर्त्तव्याय (क्षत्राय) क्षत्रियकुलाय (महते) (ज्यैष्ठ्याय) विद्याधर्मवृद्धानां भावाय (महते) (जानराज्याय) जनानां राज्ञां माण्डलिकानामुपरि प्रभवाय (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्तस्य धनिकस्य (इन्द्रियाय) धनवर्धनाय (इमम्) (अमुष्य) सद्गुणसम्पन्नस्य राजपूतस्य (पुत्रम्) तनयम् (अमुष्यै) प्रशंसनीयाया राजपुत्र्याः, अत्र षष्ठ्यर्थे चतुर्थी (पुत्रम्) पवित्रगुणकर्मस्वभावैर्मातापितृपालकम् (अस्यै) वर्त्तमानायाः सुशिक्षितव्यायाः (विशे) प्रजायाः (एषः) (वः) युष्माकं पालनाय (अमी) धार्मिका राजपुरुषाः (राजा) सर्वत्रविद्याधर्मसुशिक्षाप्रकाशकः (सोमः) शुभगुणैः प्रसिद्धः (अस्माकम्) (ब्राह्मणानाम्) ब्रह्मवेदभक्तानाम् (राजा) वेदेश्वरोपासनया प्रकाशमानः॥अयं मन्त्रः (शत॰५.३.३.१२ तथा ५.४.२.३) व्याख्यातः॥१८॥
भावार्थः
यद्युपदेशका राजपुरुषाश्च सर्वस्योन्नतिं चिकीर्षेयुस्तर्हि प्रजाराजजना राजपुरुषोन्नतिं कुतो न कर्त्तुमिच्छेयुः। यदि राजप्रजाजना वेदेश्वराज्ञां विहाय स्वेच्छया प्रवर्त्तेरन् तर्ह्येषामनुन्नतिः कुतो न भवेत्॥१८॥
हिन्दी (3)
विषय
सत्य के उपदेशक विद्वानों को चाहिये कि बाल्यावस्था से लेके अच्छी शिक्षा से राजाओं की कन्या और पुत्रों को श्रेष्ठ आचारयुक्त करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे (देवाः) वेद शास्त्रों को जाननेहारे सेनापति लोगो! आप जो (एषः) यह उपदेशक वा सेनापति (वः) तुम्हारा और (अस्माकम्) हमारा (ब्राह्मणानाम्) ईश्वर और वेद के सेवक ब्राह्मणों का (राजा) वेद और ईश्वर की उपासना से प्रकाशमान अधिष्ठाता है, जो (अमी) वे धर्मात्मा राजपुरुष हैं, उनका (सोमः) शुभ गुणों से प्रसिद्ध (राजा) सर्वत्र विद्या, धर्म और अच्छी शिक्षा का करनेहारा है, उस (इमम्) इस (अमुष्य) श्रेष्ठगुणों से युक्त राजपूत के (पुत्रम्) पुत्र को (अमुष्यै) प्रशंसा करने योग्य राजकन्या के (पुत्रम्) पवित्र गुण, कर्म और स्वभाव से माता-पिता की रक्षा करने वाले पुत्र और (अस्यै) अच्छी शिक्षा करने योग्य इस वर्त्तमान (विशे) प्रजा के लिये तथा (महते) सत्कार करने योग्य (क्षत्राय) क्षत्रिय कुल के लिये (महते) बड़े (ज्यैष्ठ्याय) विद्या और धर्म विषय में श्रेष्ठ पुरुषों के होने के लिये (महते) श्रेष्ठ (जानराज्याय) माण्डलिक राजाओं के ऊपर बलवान् समर्थ होने के लिये (इन्द्रस्य) सब ऐश्वर्य्यों से युक्त धनाढ्य के (इन्द्रियाय) धन बढ़ाने के लिये (असपत्नम्) जिसका कोई शत्रु न हो, ऐसे पुत्र को (सुवध्वम्) उत्पन्न करो॥१८॥
भावार्थ
जो उपदेशक और राजपुरुष सब प्रजा की उन्नति किया चाहें तो प्रजा के मनुष्य राजा और राजपुरुषों की उन्नति करने की इच्छा क्यों न करें। जो राजपुरुष और प्रजापुरुष वेद और ईश्वर की आज्ञा को छाæेड़ के अपनी इच्छा के अनुकूल प्रवृत्त होवें, तो इनकी उन्नति का विनाश क्यों न हो॥१८॥
विषय
ऐकमत्येन वरण [ Unanimous Voting ]
पदार्थ
हे ( देवाः ) = विद्वानो! ( इमम् ) = इस व्यक्ति को ( असपत्नम् ) = ऐकमत्य से ( सुवध्वम् ) = चुनो, इसलिए कि १. ( महते क्षत्राय ) = महान् आघात से रक्षणरूप कार्य को वह करे।
२. ( महते ज्यैष्ठ्याय ) = महान् ज्येष्ठता सम्पादनरूप कार्य को करनेवाला वह हो। राष्ट्र को वह ऊँचा ले-जानेवाला हो।
३. ( महते जानराज्याय ) = महान् जनराज्य के लिए—लोकहित का राज्य करनेवाला हो।
४. ( इन्द्रस्य इन्द्रियाय ) = इसे इसलिए चुनो कि यह राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति को शक्तिशाली बनानेवाला हो।
५. ( इयम् ) = इसको ( अमुष्य पुत्रम् ) = अमुक व्यक्ति के पुत्र को ( अमुष्यै पुत्रम् ) = अमुक माता के पुत्र को ( अस्यै विशः ) = इसी प्रजा के अङ्गभूत व्यक्ति को तुम चुनो। ( एषः ) = यह ( अमी ) = हे प्रजाओ! ( वः ) = तुम्हारा ( राजा ) = नियन्ता है। ( अस्माकं ब्राह्मणानां राजा ) = हम ब्राह्मणों का राजा तो ( सोमः ) = वह शान्त प्रभु ही है। ब्राह्मण किसी भी प्रकार की सम्पत्ति का मालिक नहीं है। वह सब परिग्रहों से ऊपर उठा हुआ होता है। यह पापों से भी ऊपर उठा रहता है, इसी से यह राजा का भी पथ-प्रदर्शन करनेवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ — राष्ट्रपति का वरण यथासम्भव ऐकमत्येन होना ही ठीक है। विद्वान् बृहस्पति- तुल्य ब्राह्मण इस राष्ट्रपति का मार्ग-प्रदर्शक होता है। इनसे प्रेरणा प्राप्त करनेवाला राजा यहाँ ‘देववात’ कहलाता है।
विषय
राजाभिषेक का प्रस्ताव ।
भावार्थ
हे ( देवा: ) विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( इमम् ) इस योग्य पुरुष को ( महते क्षत्राय ) बड़े भारी क्षत्रबल सम्पादन के लिये, (महते ज्यैष्ठ्याय) बड़े भारी उत्तम राज्य प्राप्त करने के लिये, ( महते जानराज्याय ) बड़े भारी जनराज्य स्थापित करने के लिये और ( इन्द्रस्य इन्द्रियाय ) इन्द्र- पद के सामर्थ्य प्राप्त करने के लिये ( असपत्नं ) शत्रु रहित इस वीर पुरुष को ( सुवध्वम् ) अभिषिक्त करो । ( अमुष्य पुत्रम् ) अमुक पिता के पुत्र, ( अमुष्यै पुत्रम्) अमुक माता के पुत्र ( इममू ) इसको ( अस्यै विशे) इस प्रजा के निमित्त अभिषिक्त करो। हे ( अमी ) अमुक प्रजाजनो ! (एषः यः राजा ) यह आप लोगों का राजा है । ( एषः सोमः ) यह राजा सोम ही ( अस्माकं ब्राह्मणानां राजा ) हम वेद के विद्वान् ब्राह्मणों का भी राजा है। यह हम विद्वानों को भी अभिमत है ।शत० ५ । ४ । २ । ३ ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जे राजपुरुष व उपदेशक प्रजेची उन्नती करू इच्छितात त्यांच्या उन्नतीची इच्छा प्रजा का बरे बाळगणार नाही? राजपुरुष व प्रजापुरुष जर वेद व ईश्वर यांची आज्ञा सोडून किंवा त्यांची अवहेलना करून आपल्या इच्छेप्रमाणे वर्तन करतील तर त्यांचा नाश का बरे होणार नाही?
विषय
सत्याचा उपदेश करणार्या विद्वज्जनांना पाहिजे की त्यांनी नृपतिजनांच्या पुत्री व पुत्रांना बाल्यावस्थापासूनच चांगले शिक्षण देऊन श्रेष्ठ संस्कार व आचारयुक्त करावे, याविषयी-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (देवा:) वेदशास्त्रांचे ज्ञाता सेनापति जनहो, (एष:) हा उपदेश देणारा जो महोपदशेक वा सरसेनापती आहे, तो (व:) तुम्हा सर्वांचा (सैन्याधिकार्यांचा) आणि (अस्माकम्) आमचा (प्रजाजनांचा अधिष्ठाता असून) ईश्वर आणि वेदांची सेवा करणार्या (आस्तिक आणि वेदज्ञ) ब्राह्मणांचा (राजा) अधिष्ठता आहे आणि वेद आणि ईश्वरोपासनांमुळे कीर्तिमान आहे. (अमी) हे जे धर्मात्मा राजपुरुष आहेत, त्यांना (सोम:) शुभगुणवान हा (राजा) सर्वत्र विद्या, धर्म आणि सद्शिक्षा देणारा आहे (आपण सर्व सेनापती आणि आपला हा राजा, या सर्वांनी असे यत्न करावेत की ज्यायोगे) (इमम्) या (अमुष्य) श्रेष्ठ गुणवान राजपूताचा (पुत्रम्) पुत्र आणि (अमुष्यै) या सुद्गुणी कीर्तीमती राजकन्येचा (पुत्रम्) पुत्र पवित्र तसेच गुण, कर्म आणि स्वभावाने आई-वडीलांचे रक्षण करणारा आणि (अदयै) विद्या-ज्ञान देण्यास योग्य व्हावा. तसेच तो पुत्र (विशे) प्रजाजनांसाठी (महते) सत्कार वा स्तुती करण्याच्या योग्यतेचा आणि (षत्राय) क्षत्रिय कुळांसाठी (महते) महान व्हावा. (ज्यैष्ठाय) विद्या आणि धर्मविषयात श्रेष्ठ व्यक्तींचा निर्माण करणारा व्हावा. (महते) विशाल (चक्रवर्ती) (जानराज्याय) राज्यामधील मांडलिक राजांवर बलवान शासन करणारा व्हावा आणि (इन्द्रस्य) सर्व प्रकारच्या ऐश्वर्याने समृद्ध अशा धनाठ्य मनुष्यांचे (इन्द्रियाय) धन अधिक वाढविणारा (राष्ट्राची धनसंपदा वाढविणारा व वैश्यादिकांना प्रोत्साहन देणारा) व्हावा. (तसेच या राजपूत्राचा व राजकन्येचा पुत्र) असा (सुवध्वम्) उत्पन्न व्हावा (वा तुम्ही सर्व सेनापती असे यत्न करावी ज्यायोगे तो (असपत्नम्) ज्याचा कोणीही शत्रू नाही, असा व्हावा. ॥18॥
भावार्थ
भावार्थ - जर राष्ट्रातील उपदेशक आणि राजपुरूष सर्व प्रजाजनांच्या उन्नतीसाठी कामना व यत्न करतील, तर सर्व प्रजाजनदेखील राजा आणि राजपुरुषांच्या उन्नतीसाठी कामना व यत्न का करणार नाहीत? (अर्थात अवश्य करणार, कारणे ते स्वाभाविक आहे) त्याचप्रमाणे जर राजपुरुष आणि प्रजाजन वेदांच्या आणि ईश्वराच्या आज्ञेचे उल्लंघन करून स्वेच्छेप्रमाणे (आपल्या लहरीप्रमाणे) सर्व कामे करू लागतील, तर त्यांची उन्नती कशी होईल? (राष्ट्राच्या विकासाची सर्वथा हानी होईल) ॥18॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned generals, this is your King and of us Brahmanai, the devotees of God and of the Vedas. He is the well-qualified King of the subjects. Produce such a foe less King, the son of such-a-man, and such a woman, for healthy teaching of his people, for adorable warrior-class, for mighty lordship, for mighty domination over princes, for enhancing the wealth of the wealthy.
Meaning
This brilliant man of knowledge and virtuous character, son of a noble father and of a noble mother is our ruler, yours, ours and of all others, all Brahmanas, i. e. , the learned community of the land. Noble and educated men of the land and senior members of the army, all support him for the establishment of a grand world order of governance, for a great enlightened and meritorious community, for a great democracy of the people and for the dignity and honour of a mighty state. Let us render him universally acceptable so that he has to face no rival, no adversary, no enemy.
Translation
O enlightened ones, inspire the sacrificer to great supremacy unrivalled, to lordship over people and to the virtues of the resplendent Lord; this sacrificer, son of such and such man, son of such and such woman, and of such and such tribe. (1) O people of such and such land, let him be your sovereign. The blissful Lord is the sovereign of us, the intellectuals. (2)
Notes
See notes IX. 40.
बंगाली (1)
विषय
সত্যোপদেশকৈর্বিদ্বদ্ভির্বাল্যাऽবস্থামারভ্য সুশিক্ষয়া সর্বে রাজকন্যাকুমারাঃ শ্রেষ্ঠাচারাঃ সংপাদনীয়া ইত্যাহ ॥
সত্যের উপদেশক বিদ্বান্দিগের উচিত যে, বাল্যাবস্থা হইতে সুশিক্ষা দ্বারা রাজাদিগের কন্যা ও পুত্রদেরকে শ্রেষ্ঠ আচারযুক্ত করিবেন, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (দেবাঃ) বেদ শাস্ত্রের জ্ঞাতা সেনাপতিগণ তোমরা ! (এষঃ) এই উপদেশক বা সেনাপতি (বঃ) তোমাদিগের এবং (অস্মাকম্) আমাদের (ব্রাহ্মণানাম্) ঈশ্বরও বেদের সেবক ব্রাহ্মণদের (রাজা) বেদ ও ঈশ্বরের উপাসনা দ্বারা প্রকাশমান অধিষ্ঠাতা । (অমী) তাহারা ধর্মাত্মা রাজপুরুষ তাহাদের (সোমঃ) শুভ গুণ দ্বারা প্রসিদ্ধ (রাজা) সর্বত্র বিদ্যা, ধর্ম ও সুশিক্ষাকারী, সেই (ইমম্) এই (অমুষ্য) শ্রেষ্ঠগুণযুক্ত রাজপুতের (পুত্রম্) পুত্রকে (অমুষ্যৈ) প্রশংসা করিবার যোগ্য রাজকন্যার (পুত্রম্) পবিত্র গুণ, কর্মও স্বভাব পূর্বক মাতা-পিতার রক্ষাকারী পুত্র এবং (অস্যৈ) সুশিক্ষা করিবার যোগ্য এই বর্ত্তমান (বিশে) প্রজার জন্য তথা (মহতে) সৎকার করিবার যোগ্য (ক্ষত্রায়) ক্ষত্রিয় কুলের জন্য (মহতে) মহৎ (জ্যৈষ্ঠায়) বিদ্যা ও ধর্ম বিষয়ে শ্রেষ্ঠ পুরুষ হইবার জন্য (মহতে) শ্রেষ্ঠ (জানরাজ্যায়) মান্ডলিক রাজাদের উপরে বলবান্ সামর্থ্যবান্ হওয়ার জন্য (ইন্দ্রস্য) সকল ঐশ্বর্য্যযুক্ত ধনাঢ্যের (ইন্দ্রিয়ায়) ধন বৃদ্ধির জন্য (অসপত্নম্) যাহার কোন শত্রু না হয় এমন পুত্রকে (সুবধ্যম্) উৎপন্ন কর ॥ ১৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে উপদেশক ও রাজপুরুষ সকল প্রজার উন্নতি করিতে ইচ্ছুক তাহা হইলে প্রজা রাজা ও রাজপুরুষদের উন্নতি কেন কামনা করিবে না? যে রাজপুরুষ ও প্রজাপুরুষ বেদ ও ঈশ্বরের আজ্ঞা ত্যাগ করিয়া স্বীয় ইচ্ছানুযায়ী প্রবৃত্ত হইবে তাহাদের উন্নতির বিনাশ কেন হইবে না ॥ ১৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ই॒মং দে॑বাऽঅসপ॒ত্নꣳ সু॑বধ্বং মহ॒তে ক্ষ॒ত্রায়॑ মহ॒তে জ্যৈষ্ঠ্যা॑য় মহ॒তে জান॑রাজ্যা॒য়েন্দ্র॑স্যেন্দ্রি॒য়ায়॑ । ই॒মম॒মুষ্য॑ পু॒ত্রম॒মুষ্যৈ॑ পু॒ত্রম॒স্যৈ বি॒শऽএ॒ষ বো॑ऽমী॒ রাজা॒ সোমো॒ऽস্মাকং॑ ব্রাহ্ম॒ণানা॒ᳬं রাজা॑ ॥ ১৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ইমং দেবা ইত্যস্য দেববাত ঋষিঃ । য়জমানো দেবতা ।
স্বরাট্ ব্রাহ্মী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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