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यजुर्वेद अध्याय - 10

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  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 20
    ऋषिः - देवावात ऋषिः देवता - क्षत्रपतिर्देवता छन्दः - भूरिक अतिधृति, स्वरः - षड्जः
    121

    प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ रू॒पाणि॒ परि॒ ता बभू॑व। यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ऽअस्त्व॒यम॒मुष्य॑ पि॒ताऽसाव॒स्य पि॒ता व॒यꣳ स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णा स्वाहा॑। रुद्र॒ यत्ते॒ क्रिवि॒ परं॒ नाम॒ तस्मि॑न् हु॒तम॑स्यमे॒ष्टम॑सि॒ स्वाहा॑॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रजा॑पत॒ इति॒ प्रजा॑ऽपते। न। त्वत्। ए॒तानि॑। अ॒न्यः। विश्वा॑। रू॒पाणि॑। परि॑। ता। ब॒भू॒व॒। यत्का॑मा॒ इति॒ यत्ऽका॑माः। ते॒। जु॒हु॒मः। तत्। नः॒। अ॒स्तु॒। अ॒यम्। अ॒मुष्य॑। पि॒ता। अ॒सौ। अ॒स्य। पि॒ता। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम्। स्वाहा॑। रुद्र॑। यत्। ते॒। क्रिवि॑। पर॑म्। नाम॑। तस्मि॑न्। हु॒तम्। अ॒सि॒। अ॒मे॒ष्टमित्य॑माऽइ॒ष्टम्। अ॒सि॒। स्वाहा॑ ॥२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव । यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोऽअस्त्वयममुष्य पितासावस्य पिता वयँ स्याम पतयो रयीणाँ स्वाहा । रुद्र यत्ते क्रिवि परन्नाम तस्मिन्हुतमस्यमेष्टमसि स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजापत इति प्रजाऽपते। न। त्वत्। एतानि। अन्यः। विश्वा। रूपाणि। परि। ता। बभूव। यत्कामा इति यत्ऽकामाः। ते। जुहुमः। तत्। नः। अस्तु। अयम्। अमुष्य। पिता। असौ। अस्य। पिता। वयम्। स्याम। पतयः। रयीणाम्। स्वाहा। रुद्र। यत्। ते। क्रिवि। परम्। नाम। तस्मिन्। हुतम्। असि। अमेष्टमित्यमाऽइष्टम्। असि। स्वाहा॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 20
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैरीश्वरोपासनाऽऽज्ञापालनेन सर्वाः कामनाः प्राप्तव्या इत्याह॥

    अन्वयः

    हे प्रजापते! यान्येतानि विश्वा रूपाणि सन्ति, तानि त्वदन्यो न परिबभूव। ते तव सकाशाद् यत्कामाः सन्तो वयं जुहुमस्तत् तव कृपया नोऽस्तु, यथा त्वममुष्य परोक्षस्य जगतः पिताऽसौ भवानस्य समक्षस्य विश्वस्य पिताऽसि, तथा वयं स्वाहा रयीणां पतयः स्याम। हे रुद्र! ते तव यत् क्रिवि परं नामाऽस्ति यस्मिंस्त्वं हुतमस्यमेष्टमसि तं वयं स्वाहा जुहुमः॥२०॥

    पदार्थः

    (प्रजापते) प्रजायाः स्वामिन्नीश्वर! (न) निषेधे (त्वत्) तव सकाशात् (एतानि) जीवप्रकृत्यादीनि वस्तूनि (अन्यः) भिन्नः पदार्थः (विश्वा) सर्वाणि (रूपाणि) इच्छारूपादिगुणविशिष्टानि (परि) (ता) तानि (बभूव) अस्ति (यत्कामाः) यस्य यस्य कामः कामना येषां ते (ते) तव (जुहुमः) गृह्णीमः (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) भवतु (अयम्) (अमुष्य) प्रत्यक्षस्य जनस्य (पिता) पालकः (असौ) सः (अस्य) प्रत्यक्षवर्त्तमानस्य (पिता) रक्षकः (वयम्) (स्याम) भवेम (पतयः) स्वामिनः पालकाः (रयीणाम्) विद्याचक्रवर्त्तिराज्योत्पन्नश्रियाम् (स्वाहा) सत्यया क्रियया (रुद्र) दुष्टानां रोदयितः (यत्) (ते) तव (क्रिवि) कृणोति हिनस्ति येन तत्, नकारस्थाने वर्णव्यत्ययेनेकारः (परम्) प्रकृष्टम् (नाम) (तस्मिन्) (हुतम्) स्वीकृतम् (असि) (अमेष्टम्) अमायां गृहे इष्टम् (असि) (स्वाहा) सत्यया वाचा॥ अयं मन्त्रः (शत॰ ५.४.२.८.१०) व्याख्यातः॥२०॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः! यः सर्वस्मिन् जगति व्याप्तः सर्वान् प्रति मातापितृवद् वर्त्तमानो दुष्टदण्डक उपासितुमिष्टोऽस्ति, तं जगदीश्वरमेवोपाध्वम्। एवमनुष्ठानेन युष्माकं सर्वे कामा अवश्यं सेत्स्यन्ति॥२०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को चाहिये कि ईश्वर की उपासना और उसकी आज्ञा पालने से सब कामनाओं को प्राप्त हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (प्रजापते) प्रजा के स्वामी ईश्वर! जो (एतानि) जीव, प्रकृति आदि वस्तु (विश्वा) सब (रूपाणि) इच्छा, रूप आदि गुणों से युक्त हैं (ता) उनके ऊपर आप से (अन्यः) दूसरा कोई (न) नहीं (परिबभूव) जान सकता (ते) आप के सेवन से (यत्कामाः) जिस-जिस पदार्थ की कामना वाले होते हुए (वयम्) हम लोग (जुहुमः) आपका सेवन करते हैं, वह-वह पदार्थ आपकी कृपा से (नः) हम लोगों के लिये (अस्तु) प्राप्त होवे। जैसे आप (अमुष्य) उस परोक्ष जगत् के (पिता) रक्षा करनेहारे हैं, (असौ) सो आप इस प्रत्यक्ष जगत् के रक्षक हैं, वैसे हम लोग (स्वाहा) सत्य वाणी से (रयीणाम्) विद्या और चक्रवर्त्ति राज्य आदि से उत्पन्न हुई लक्ष्मी के (पतयः) रक्षा करने वाले (स्याम) हों। हे (रुद्र) दुष्टों को रुलानेहारे परमेश्वर! (ते) आप का जो (क्रिवि) दुःखों से छुड़ाने का हेतु (परम्) उत्तम (नाम) नाम है, (तस्मिन्) उसमें आप (हुतम्) स्वीकार किये (असि) हैं, (अमेष्टम्) घर में इष्ट (असि) हैं, उन आप को हम लोग (स्वाहा) सत्य वाणी से ग्रहण करते हैं॥२०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जो सब जगत् में व्याप्त, सब के लिये माता-पिता के समान वर्त्तमान, दुष्टों को दण्ड देनेहारा, उपासना करने को इष्ट है, उसी जगदीश्वर की उपासना करो। इस प्रकार के अनुष्ठान से तुम्हारी सब कामना अवश्य सिद्ध हो जायेंगी॥२०॥

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    विषय

    नाम-स्मरण

    पदार्थ

    गत मन्त्र में रेतस् की रक्षा द्वारा त्रिलोकी के विक्रमण का उपदेश था। उसी को क्रियात्मक रूप देने के लिए प्रभु का स्मरण करते हुए देववात [ मन्त्र का ऋषि ] कहता है कि १. हे ( प्रजापते ) = सब प्रजाओं के रक्षक प्रभो! ( एतानि तानि ) = इन प्रसिद्ध अथवा समीप व सुदूर देश में वर्त्तमान ( विश्वा रूपाणि ) = सब रूपों को, विविध जातीय प्राणियों व लोकों को ( त्वत् अन्यः न ) = आपसे भिन्न और कोई नहीं, अर्थात् आप ही ( परि बभूव ) = व्याप्त कर रहे हो। आप ही इनका सर्जन व संहार करने में समर्थ हो। 

    २. ( यत्कामाः ) = जिस कामनावाले होकर ( ते जुहुमः ) = हम आपकी प्रार्थना करते हैं ( तत् नः अस्तु ) = हमारी वह कामना पूर्ण हो। 

    ३. हम संसार में इस बात को समझें कि ( अयम् ) = हमारे समीप वर्त्तमान यह प्रजापति ही [ तद्दूरे तदु अन्तिके ] ( अमुष्य ) = दूर देश में वर्त्तमान व्यक्ति का भी ( पिता ) = पिता व रक्षक है और ( असौ ) = वह दूर-से-दूर देश में वर्त्तमान प्रजापति [ तत् दूरे ] ( अस्य ) = इस समीपस्थ व्यक्ति का पिता है। एवं, हम सब उस एक ही प्रजापति के पुत्र हैं और परस्पर भाई-भाई हैं। हमें रुपये का ग़ुलाम बनकर लोभवश परस्पर लड़ना नहीं है। ( वयम् ) = हम तो ( रयीणाम् ) = इन धनों के ( पतयः स्याम ) = स्वामी हों। हम इनके दास न बन जाएँ। हम ( स्वाहा ) = इस ( स्व ) = धन का ( हा ) = त्याग करते हैं। 

    ४. देववात तो यह निश्चय करता है कि हे ( रुद्र ) = असुर-संहारक प्रभो! ( यत् ) = जो ( ते ) = तेरा ( क्रिवि ) = [ हिंसित ] सब वासनाओं को विनष्ट करनेवाला ( परम् ) = उत्कृष्ट ( नाम ) = नाम है ( तस्मिन् ) = उस नाम में ( हुतम् असि ) = तू हमसे हुत होता है, अर्थात् हम तेरे उस नाम में अपने को अर्पित करने का प्रयत्न करते हैं। ( अमा ) = इस मेरे शरीररूप घर में ( इष्टं असि ) = आप सदा पूजित होते हो। ( स्वाहा ) = हम आपके प्रति अपना अर्पण करते हैं। 

    ५. वस्तुतः यह प्रभु नाम-स्मरण ही हमें वासनात्मक जगत् से ऊपर उठाता है। वासना-विजय ही शरीर में रेतस् की रक्षा का साधन बनती है और हमें त्रिलोकी के विजय में समर्थ करती है।

    भावार्थ

    भावार्थ — प्रभु ही सबका धारण कर रहे हैं, वे ही हम सबके पिता हैं। उस प्रभु के नाम-स्मरण में अपने को अर्पित करते हुए हम लोक-त्रयी का विजय करें।

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    विषय

    अधिकार प्रदान ।

    भावार्थ

    हे ( प्रजापते ) प्रजा के पालक राजन् अथवा परमेश्वर ! ( एतानि ) इन ( ता विश्वा रूपाणि परि) समस्त नाना रूपवाले पदार्थों चर अचर प्राणी शरीरों के ऊपर ( त्वत् अन्यः न बभूत ) तुझ से दूसरा कोई स्वामी नहीं है। हम लोग ( यत्-कामाः ) जिस पदार्थ की कामना या अभिलाषा करते हुए ( जुहुमः ) तुझे कर प्रदान करते और तुझे राजा स्वीकार करते हैं ( तत् नः अस्तु ) वह हमारा प्रयोजन पूर्ण हो । ( अयम् ) यह राजा ( अमुष्य पिता ) अमुक बालक का पिता है । (अस्य) और इस राजपद पर आरूढ़ पुरुष का ( असौ पिता ) अमुक पुरुष पिता है । हम इस प्रकार तुझको अपना राजा स्वीकार करते हैं । तेरे द्वारा ( वयम् ) हम सब ( स्वाहा ) उत्तम व्यवस्था और धर्मानुकूल आचरण द्वारा ( रयीणाम् ) ऐश्वर्यों के ( पतयः स्याम ) पालक, स्वामी बनें ॥ शत० ५ | ४ | २।९, १० ॥ हे ( रुद ) रुद्र ! सर्व प्रजाओं के पालक और सब प्रजाओं के रोचक, वशीकारक एवं शत्रुओं के रुलानेहारे ! ( ते ) तेरा (यत्) जो ( परं नाम ) पर सर्वोकृष्ट स्वरूप और नाम ( क्रिवि ) क्रिवि अर्थात् सब कार्य करने में समर्थ, एवं सबको मारने में समर्थ, सर्व शक्तिमान् सर्वहन्ता का पद या अधिकार है ( तस्मिन् ) उस पर तू ( हुतम् असि ) स्थापित किया गया है । तू ( अमा) घर घर में ( इष्टम् असि ) पूज्य और आदर के योग्य बनाया जाता ( असि ) है, ( स्वाहा ) यह सब तेरे उत्तम आचरण और सत्य व्यवस्था का ही परिणाम है ।

    टिप्पणी

    तन्नो अस्तु यं स्याम०, ०क्रवि परं नाम तस्मै ० इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्देवता | स्वराड् अतिधृतिः । षड्जः ||

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो सर्व जगात व्याप्त आहे, सर्वांना माता व पित्यासमान आहे, दुष्टांना दंड देणारा आहे तोच उपासना करण्यायोग्य असल्यामुळे त्याचीच उपासना करा. या प्रकारच्या अनुष्ठानाने तुमच्या सर्व कामना सिद्ध होतील.

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    विषय

    मनुष्यांनी ईश्वराची उपासना आणि त्याच्या आज्ञेचे पालन करून आपल्या सर्व कामना पूर्ण कराव्यात, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (प्रजापते) प्रजेचे (प्रामाणिमात्राचे) स्वामी हे परमेश्वरा, (एतानि) या जीव, प्रकृती आदी वस्तू की ज्या (विश्वा) सर्व (रुपाणि) इच्छा, रुप आदी गुणांनी युक्त आहेत, (जीव इच्छा, द्वेष, प्रयत्न आदी गुणांनी व प्रकृती रुप, आकार आदी गुणांनी युक्त आहे) (ता) त्या सर्व वस्तूंच्या वर (श्रेष्ठ) अन्य:) तुझ्याव्यतिरिक्त अन्य कोणी (न) नाही (तूच सर्वेश्वर आहेस) तूच (परिवभूव) या सर्व वस्तूंना जाणतोस (तुझ्याशिवाय सर्वज्ञानी कोणी नाही) (ते) अशा तुझ्या उपासनेद्वारे (यत्कामा:) ज्या ज्या पदार्थांची कामना करीत (वयम्) आम्ही तुझे उपासक (जुहुम:) तुझी प्रार्थना करतो वा तुझ्या आश्रयास येतो, तुझ्या कृपेने ते ते सर्व (न:) आम्हाला (उनस्तु) प्राप्त व्हावे. हे परमेश्वरा, ज्याप्रमाणे तू (अयुष्य) त्या प्रत्यक्ष जगाच्या (पिता) रक्षण करणारा आहेस, (असौ) त्याप्रमाणे तू या प्रत्यक्ष जगाचाही रक्षक आहेस. आम्ही तुझ्या उपासकांनी (स्वाहा) सत्य वाणी उद्यावत (रयीणाम्) ज्ञानाद्वारे व चक्रवर्ति राज्याद्वारे प्राप्त जी लक्ष्मी (धन-संपदा) आहे, तिचे (पतय:) रक्षक (स्थाम) व्हावे (सत्यवाणी, सत्य व्यवहाराद्वारे अर्जित संपत्ती आम्हास मिळो व तिचे आम्ही सदुपयोग व रक्षण करावे) हे (रुद्र) दुष्टांना रडविणार्‍या ईश्वरा, (क्रिवि:) दु:खांना निवारण करणारे असे जे (ते) तुझे (नाम) नाव आहे, (तस्मिन्) आम्ही तुला त्या स्वरूपात (हुतम्) स्वीकार केलेले (असि) आहे (तुझे नाम दु:खनाशक आहे, असा आमचा विश्वास आहे) तूच (अमेष्टम्) आमच्या घरात इष्ट (असि) आहेस (एकमेव वंदनीय व प्रिय आहेस) आम्ही (स्वाहा) आहेस (एकमेव वंदनीय व प्रिय आहेस) आम्ही (स्वाहा) तुला सत्य वाणीने ग्रहण करतो (हे सर्व खरेच सांगतो) ॥20॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे, हे जनहो, जो परमात्मा सर्व संसारात व्याप्त असून सर्वांसाठी माता-पित्याप्रमाणे प्रिय व वंदनीय आहे, जो दुष्टांना दंड देऊन रडविणारा आहे, तो परमेश्वरच तुमचा एकमेव इष्ट आहे. तुम्ही त्या जगदीश्वराचीच उपासना करा. अशा उपासनानुष्ठानाने तुमच्या सर्व कामना अवश्य सिद्धीस जातील ॥20॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O God, Thou only comprehendest all these created forms, and none besides Thee. Give us our hearts, desire, when we invoke Thee. Just as Thou art the Lord of that invisible world, and this visible world, so, may we be righteous lords of rich possessions. O God I the Tormentor of the wicked, Thy remembrance relieves us of miseries. For that we worship Thee. We worship Thee at home in truthful words.

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    Meaning

    Prajapati, Lord Supreme, father and protector of created beings, there is none other than you over, above and beyond, to be, to know, and to reveal all the forms of existence in the world. Whatever the aim, object or desire for which we worship you, may that be fulfilled for us. Father and guardian as you are of the seen and the unseen world, so may we be masters and guardians of the riches of life in truth of word and action. Rudra, Lord of justice and punishment, destroyer as you are of evil, that is the supreme name by which we worship you and celebrate you in the home in truth of word with honest action.

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    Translation

    O Lord of creatures, no one other than you wins all these various forms. May our desires, with which we invoke you, be fulfilled. May this sacrificer, the son of such and such man, and father of such and such man and we be the possessors of abundant riches. Svaha. (4) O terrible Lord, active and supreme is your name. You are an oblation offered in it. You are an oblation at our house. Svaha. (2)

    Notes

    Prajipate, О Lord of creatures! Rüpani, forms. Na paribabhiiva, न परिभवितुं समर्थ:, cannot win. In place of 'amusya' and 'asau' names of the persons conceined are to be mentioned. Krivi, active. Param, supreme. Ama, house; home.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যৈরীশ্বরোপাসনাऽऽজ্ঞাপালনেন সর্বাঃ কামনাঃ প্রাপ্তব্যা ইত্যাহ ॥
    মনুষ্যদিগের উচিত যে, ঈশ্বরের উপাসনা এবং তাহার আজ্ঞা পালন করিলে সকল কামনার প্রাপ্তি হয় এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (প্রজাপতে) প্রজার স্বামী ঈশ্বর ! (এতানি) জীব, প্রকৃতি ইত্যাদি বস্তু (বিশ্বা) সব (রূপাণি) ইচ্ছা, রূপাদি গুণ দ্বারা যুক্ত (তা) তাহাদের উপরে আপনার অপেক্ষা (অন্য) দ্বিতীয় কেহ (ন) নহে (পরিবভূব) জ্ঞাতব্য যে, (তে) আপনার সেবন দ্বারা (য়ৎকামাঃ) যে যে পদার্থের কামনাযুক্ত হইয়া (বয়ম্) আমরা (জুহুমঃ) আপনার সেবন করিয়া থাকি সেই সেই পদার্থ আপনার কৃপাবলে (নঃ) আমাদের জন্য (অস্তু) প্রাপ্ত হউক । যেমন আপনি (অমুষ্য) সেই পরোক্ষ জগতের (পিতা) রক্ষক (অসৌ) সুতরাং আপনি এই প্রত্যক্ষ জগতের রক্ষক । সেইরূপ আমরা (স্বাহা) সত্য বাণী দ্বারা (রয়ীণা্) বিদ্যা ও চক্রবর্ত্তি রাজ্যাদি হইতে উৎপন্ন লক্ষ্মীর (পতয়ঃ) রক্ষক (স্যাম) হই । হে (রুদ্র) দুষ্টদিগকে রোদনকারী পরমেশ্বর ! (তে) আপনার যে (ক্রিবি) দুঃখ হইতে মুক্তি দিবার হেতু (পরম্) উত্তম (নাম্) নাম (তস্মিন্) তন্মধ্যে আপনি (হুতম্) স্বীকার করিয়াছেন (অসি), (অমেষ্টম্) গৃহে ইষ্ট (অসি), সেই আপনাকে আমরা (স্বাহা) সত্য বাণী দ্বারা গ্রহণ করি ॥ ২০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ ! যে সব জগতে ব্যাপ্ত সকলের জন্য মাতা-পিতা সদৃশ বর্ত্তমান দুষ্টদিগকে দণ্ডদাতা উপাসনা করিবার ইষ্ট, সেই জগদীশ্বরের উপাসনা কর । এই প্রকার অনুষ্ঠান দ্বারা তোমাদের সব কামনা অবশ্যই সিদ্ধ হইবে ॥ ২০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    প্রজা॑পতে॒ ন ত্বদে॒তান্য॒ন্যো বিশ্বা॑ রূ॒পাণি॒ পরি॒ তা ব॑ভূব । য়ৎকা॑মাস্তে জুহু॒মস্তন্নো॑ऽঅস্ত্ব॒য়ম॒মুষ্য॑ পি॒তাऽসাব॒স্য পি॒তা ব॒য়ꣳ স্যা॑ম॒ পত॑য়ো রয়ী॒ণাᳬं স্বাহা॑ । রুদ্র॒ য়ত্তে॒ ক্রিবি॒ পরং॒ নাম॒ তস্মি॑ন্ হু॒তম॑স্যমে॒ষ্টম॑সি॒ স্বাহা॑ ॥ ২০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    প্রজাপত ইত্যস্য দেববাত ঋষিঃ । প্রজাপতির্দেবতা । স্বরাডতিধৃতিশ্ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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