यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 41
ऋषिः - सरस्वत्यृषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - भुरिग् जगती
स्वरः - निषादः
82
दे॒वीस्ति॒स्रस्ति॒स्रो दे॒वीर्व॑यो॒धसं॒ पति॒मिन्द्र॑मवर्धयन्।जग॑त्या॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यꣳ शूष॒मिन्द्रे॒ वयो॒ द॒ध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑॥४१॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वीः। ति॒स्रः। ति॒स्रः। दे॒वीः। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। पति॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्ध॒य॒न्। जग॑त्या। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। शूष॑म्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥४१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीर्वयोधसम्पतिमिन्द्रमवर्धयन् । जगत्या च्छन्दसेन्द्रियँ शूषमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज ॥
स्वर रहित पद पाठ
देवीः। तिस्रः। तिस्रः। देवीः। वयोधसमिति वयःऽधसम्। पतिम्। इन्द्रम्। अवर्धयन्। जगत्या। छन्दसा। इन्द्रियम्। शूषम्। इन्द्रे। वयः। दधत्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। व्यन्तु। यज॥४१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजप्रजाधर्मविषयमाह॥
अन्वयः
हे विद्वन्! यथा तिस्रो देवीस्तिस्रो देवीर्वयोधसं पतिमिन्द्रमवर्द्धयन् व्यन्तु तथा जगत्या छन्दसेन्द्रे शूषमिन्द्रियं वयो दधत् सन् वसुधेयस्य वसुवने यज॥४१॥
पदार्थः
(देवीः) देदीप्यमाना विदुष्यः (तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (तिस्रः) अध्यापकोपदेशकपरीक्षित्र्यः (देवीः) अत्रादरार्थं द्विरुक्तिः (वयोधसम्) जीवनधारकम् (पतिम्) पालकं स्वामिनम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं सम्राजम् (अवर्द्धयन्) वर्धयेयुः (जगत्या) (छन्दसा) (इन्द्रियम्) (शूषम्) बलम् (इन्द्रे) स्वात्मनि (वयः) शत्रुबलव्यापकम् (दधत्) (वसुवने) (वसुधेयस्य) (व्यन्तु) व्याप्नुवन्तु (यज)॥४१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽध्यापकोपदेशकपरीक्षकाः स्त्रीपुरुषाः प्रजासु विद्यासदुपदेशान् प्रचारयेयुस्तथा राजैतेषां यथावद् रक्षां कुर्यादेवं राजप्रजाजनाः परस्परं प्रीताः सन्तः सर्वतो वृद्धिं प्राप्नुवन्तु॥४१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राज प्रजा का धर्म विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे विद्वन्! जैसे (तिस्रः) तीन (देवीः) तेजस्विनी विदुषी (तिस्रः) तीन पढ़ाने, उपदेश करने और परीक्षा लेने वाली (देवीः) विदुषी स्त्री (वयोधसम्) जीवन धारण करने हारे (पतिम्) रक्षक स्वामी (इन्द्रम्) उत्तम ऐश्वर्य वाले चक्रवर्त्ती राजा को (अवर्धयन्) बढ़ावें तथा (व्यन्तु) व्याप्त होवें, वैसे (जगत्या, छन्दसा) जगती छन्द से (इन्द्रे) अपने आत्मा में (शूषम्, वयः) शत्रुसेना में व्यापक होने वाले अपने बल तथा (इन्द्रियम्) कान आदि इन्द्रिय को (दधत्) धारण करते हुए (वसुधेयस्य) धनकोष के (वसुवने) धनदाता के अर्थ (यज) अग्निहोत्रादि यज्ञ कीजिए॥४१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पढ़ने, उपदेश करने और परीक्षा लेने वाले स्त्री-पुरुष प्रजाओं में विद्या और श्रेष्ठ उपदेशों का प्रचार करें, वैसे राजा इनकी यथावत् रक्षा करे। इस प्रकार राजपुरुष और प्रजापुरुष आपस में प्रसन्न हुए सब ओर से वृद्धि को प्राप्त हुआ करें॥४१॥
विषय
उनका इन्द्र सेनानायक और उनके ऐश्वर्य को बढ़ाने का कर्तव्य ।
भावार्थ
(तिस्रः देवीः) तीनों श्रेणियों की उत्तम स्त्रियां अपने (पतिम् ) पति की वृद्धि करती हैं उसी प्रकार (तिस्रः देवी:) तीनों पूर्वोक्त विद्वत्सं- स्थाएं (वयोधसम् ) राष्ट्र के बल को धारण करनेवाले ( पतिम् इन्द्रम् ) पालक राजा को बढ़ाती हैं। वे (जगत्या छन्दसा) जगती छन्द अर्थात् वैश्य बल से (इन्द्रे) राष्ट्र में (शुषम् ) परराष्ट्रशोषक (इन्द्रियम् ) बल, वीर्य और (वय:) जीवन को ( दधत् ) धारण कराते हैं । (वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु ) वे भी राजा के कोष की वृद्धि, पालन करें। (यज ) हे होत: ! उनको तू अधिकार दे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्रः । भुरिगतिजगती । निषादः ॥
विषय
जगती छन्द
पदार्थ
१. (देवी: तिस्त्र:) = दिव्य गुणोंवाली तीनों 'भारती, सरस्वती, इडा' (तिस्रः) = तीनों ही (देवी:) = जीवन को प्रकाशमय बनानेवाली हैं। भारती मस्तिष्क को उज्ज्वल करती है, तो सरस्वती वाणी को दीप्त करती है और (इडा) = [= श्रद्धा] हृदय को जगमगा देती हैं। २. ये सब (पतिम्) = इन देवियों की अपने जीवन में रक्षा करनेवाले (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष को (अवर्द्धयन्) = बढ़ाती हैं । ३. (जगत्या छन्दसा) = गतिशीलता की प्रबल भावना के साथ अथवा जगती के हित की भावना से [जगतं छन्दः] (इन्द्रियम्) = इन्द्रियों के सामर्थ्य को (शूषम्) = शत्रुओं के शोषक बल को तथा (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को (इन्द्रे) = जितेन्द्रिय पुरुष में (दधत्) = [ दधत्यौ] धारण करती हुई (वसुवने) = धन के सेवन में (वसुधेयस्य) = धन के आधारभूत प्रभु का विस्मरण न होने दें। ५. हे जीव! तू (यज) = यज्ञशील बनकर उस प्रभु से अपना मेल बना ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे जीवन में भारती, सरस्वती व इडा' एक विशेष दीप्ति को उत्पन्न करनेवाली हैं। ये हमें शत्रुओं के शोषक बल को प्राप्त कराएँ ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अध्यापक व उपदेशक परीक्षा करून स्री-पुरुषांमध्ये व प्रजेमध्ये विद्या व श्रेष्ठ उपदेशाचा प्रचार करतात, तसे राजाने त्यांचे यथावत रक्षण करावे. याप्रमाणे राजा व प्रजा यांनी प्रसन्नतेने परस्पर उत्कर्ष साधावा.
विषय
आता राजा व प्रजा याचंया कर्तव्याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्वान महोदय, जशा (तिस्रः) तीन (देवीः) तेजस्विनी विदुषी स्त्रिया म्हणजे (तिस्रः) अध्यापन, उपदेश करणार्या आणि परीक्षा घेणार्या (देवीः) विदुषी स्त्रिया (वयोधसम्) (प्रजेचा) जीवनाधार (पतिम्) आणि रक्षक (इन्द्रम्) उत्तम ऐश्वर्यवान चक्रवर्ती राजाला (अवर्धयन्) वाढवतात (उत्कर्षामधे सहायक होतात) तशा प्रकारे (व्यन्तु) इतरांनीदेखील (यत्न करावेत) तसेच (जगत्या, छन्दासा) जगती नामक छंदाद्वारे (इन्द्रे) आपल्या आत्म्यात (शूषम्) वयः) शत्रुसैन्याला ध्वस्त करणार्या आपल्या शक्तीचा आणि (इन्द्रियम्) कान आदी इंद्रियांना (दधत्) धारणकरीत (वसुधेयस्य) धनकोषातून (वसुवने) धन देण्यासाठी (यज) तुम्ही यत्न करा वा यज्ञ करा ॥41॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे अध्यापक आणि उपदेशन आणि परीक्षण करणारे स्त्री-पुरूषानी प्रजेत विद्येचा आणि श्रेष्ठ उपदेशाचा प्रचार करावा, तसेच राजाने या तिघांच्या रक्षणाचे सर्व उपाय करावेत. याप्रकारे राजपुरूष आणि प्रजाजन यांनी एकमेकावर प्रसन्न असावे आणि सर्वतः उत्कर्ष प्राप्त करावा. ॥41॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, just as Goddesses three, three Goddesses, heighten the king, the protector and possessor of vital force, and pervade everywhere, so shouldst thou with Jagati verses, developing in thy soul the strength of overpowering the enemys force, and enhancing the vitality of thy physical organs, perform yajna like the sacrificer, who gives away his treasure and wealth in charity.
Meaning
Three divinities (Ida, Sarasvati, Mahi/Bharati), yes three divinities (Executive or Raja Sabha, Legislature or Dharma Sabha and Council of Education or Vidya Sabha) help, guide and exalt Indra, the ruler (Samrat), lord of dignity and regality, protector of the commonwealth of humanity, and, vesting him with power and prosperity, sensitivity of mind and intelligence, dignity of excellence and resounding songs of celebration by the felicity of the jagati verses of the Veda, create, promote and universalize the beauty and majesty of heaven on earth for the people. Man of yajna, maintain the excellence of yajna and never neglect the sacred fire of the commonwealth.
Translation
The divinities three, the three divinities (tisro-devih) make the aspirant, their Lord, to prosper with a long life; with the jagati metre, they bestow on the aspirant resplendence, might and long life. At the time of distribution of wealth, may they procure the store of wealth for us. Offer sacrifice. (1)
Notes
Patim, पालयितव्यं पालकं वा, husband, who is looked after by the wife or who looks after his wife. Susam, शूष शब्दो बलवचन:, might.
बंगाली (1)
विषय
অথ রাজপ্রজাধর্মবিষয়মাহ ॥
এখন রাজা-প্রজার ধর্ম বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্বন্ ! যেমন (তিস্রঃ) তিন (দেবীঃ) তেজস্বিনী বিদুষী (তিস্রঃ) তিন পাঠনকারিণী, উপদেশকারিণী এবং পরীক্ষা গ্রহণকারিণী (দেবীঃ) বিদুষী স্ত্রী (বয়োধসম্) জীবনধারণ কারী (পতিম্) রক্ষক স্বামী (ইন্দ্রম্) উত্তম ঐশ্বর্য্য যুক্ত চক্রবর্ত্তী রাজাকে (অবর্ধয়ৎ) বৃদ্ধি করাইবে তথা (ব্যন্তু) ব্যাপ্ত হইবে সেইরূপ (জগত্যা, ছন্দসা) জগতী ছন্দ দ্বারা (ইন্দ্রং) নিজ আত্মায় (শূষম্, বয়ঃ) শত্রুসেনায় ব্যাপক হইবার নিজস্ব বল ও (ইন্দ্রিয়ম্) কর্ণাদি ইন্দ্রিয়কে (দধৎ) ধারণ করিয়া (বসুধেয়স্য) ধনকোষের (বসুবনে) ধনদাতার জন্য (য়জ) অগ্নিহোত্রাদি যজ্ঞ করুন ॥ ৪১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন পঠন, উপদেশ এবং পরীক্ষা গ্রহণকারী স্ত্রী-পুরুষ প্রজাসকলের মধ্যে বিদ্যা ও শ্রেষ্ঠ উপদেশগুলির প্রচার করিবে তদ্রূপ রাজা ইহার যথাবৎ রক্ষা করিবে । এই প্রকার রাজপুরুষ ও প্রজাপুরুষ পরস্পর প্রসন্ন হইয়া সব দিক হইতে বৃদ্ধিকে প্রাপ্ত হইতে থাকিবে ॥ ৪১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
দে॒বীস্তি॒স্রস্তি॒স্রো দে॒বীর্ব॑য়ো॒ধসং॒ পতি॒মিন্দ্র॑মবর্ধয়ন্ । জগ॑ত্যা॒ ছন্দ॑সেন্দ্রি॒য়ꣳ শূষ॒মিন্দ্রে॒ বয়ো॒ দ॒ধ॑দ্ বসু॒বনে॑ বসু॒ধেয়॑স্য ব্যন্তু॒ য়জ॑ ॥ ৪১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
দেবীরিত্যস্য সরস্বতৃ্যষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । ভুরিগ্ জগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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