यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 6
ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव ऋषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
66
होता॑ यक्षदु॒षेऽ इन्द्र॑स्य धे॒नू सु॒दुघे॑ मा॒तरा॑ म॒ही।स॒वा॒तरौ॒ न तेज॑सा व॒त्समिन्द्र॑मवर्द्धतां वी॒तामाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥६॥
स्वर सहित पद पाठहोता॑। य॒क्ष॒त्। उ॒षेऽइत्यु॒षे। इन्द्र॑स्य। धे॒नूऽइति॑ धे॒नू। सु॒दुघे॒ऽइति॑ सु॒ऽदुघे॑। मा॒तरा॑। म॒हीऽइति॑ म॒ही। स॒वा॒तरा॒विति॑ सऽवा॒तरौ॑। न। तेज॑सा। व॒त्सम्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्द्ध॒ता॒म्। वी॒ताम्। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
होता यक्षदुषेऽइन्द्रस्य धेनू सुदुघे मातरा मही । सवातरौ न तेजसा वत्समिन्द्रमवर्धताँवीतामाज्यस्य होतर्यज ॥
स्वर रहित पद पाठ
होता। यक्षत्। उषेऽइत्युषे। इन्द्रस्य। धेनूऽइति धेनू। सुदुघेऽइति सुऽदुघे। मातरा। महीऽइति मही। सवातराविति सऽवातरौ। न। तेजसा। वत्सम्। इन्द्रम्। अवर्द्धताम्। वीताम्। आज्यस्य। होतः। यज॥६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यै किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे होतस्त्वं यथेन्द्रस्य सुदुघे मातरा मही धेनू सवातरौ नोषे भौतिकसूर्य्याऽग्न्योस्तेजसेन्द्रं वत्सं वीतां होताऽऽज्यस्य यक्षदवर्द्धतां तथा यज॥६॥
पदार्थः
(होता) (यक्षत्) (उषे) प्रतापयुक्त (इन्द्रस्य) विद्युतः (धेनू) दुग्धदात्र्यौ गावौ (सुदुघे) सुष्ठु कामप्रपूरिके (मातरा) मातृवद्वर्त्तमाने (मही) महत्यौ (सवातरौ) वायुना सह वर्त्तमानौ (न) इव (तेजसा) तीक्ष्णप्रतापेन (वत्सम्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (अवर्द्धताम्) वर्द्धेत (वीताम्) प्राप्नुताम् (आज्यस्य) प्रक्षेप्तुं योग्यस्य (होतः) (यज)॥६॥
भावार्थः
अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्याः! यूयं यथा वायुना प्रेरितौ भौमविद्युतावग्नी सूर्यलोकतेजो वर्द्धयतो यथा धेनुवद्वर्त्तमाने उषे सर्वेषां व्यवहाराणामारम्भनिवर्त्तिके भवतस्तथा प्रयतध्वम्॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (होतः) सुखदाता जन! आप जैसे (इन्द्रस्य) बिजुली की (सुदुघे) सुन्दर कामनाओं की पूरक (मातरा) माता के तुल्य वर्त्तमान (मही) बड़ी (धेनू, सवातरौ) वायु के साथ वर्त्तमान दुग्ध देने वाली दो गौ के (न) समान (उषे) प्रतापयुक्त भौतिक और सूर्यरूप अग्नि के (तेजसा) तीक्ष्ण प्रताप से (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्ययुक्त (वत्सम्) बालक को (वीताम्) प्राप्त हों तथा (होता) दाता (आज्यस्य) फेंकने योग्य वस्तु का (यक्षत्) संग करे और (अवर्द्धताम्) बढ़े, वैसे (यज) यज्ञ कीजिये॥६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो! तुम जैसे वायु से प्रेरणा किये भौतिक और विद्युत् अग्नि सूर्यलोक के तेज को बढ़ाते हैं और जैसे दुग्धदात्री गौ के तुल्य वर्त्तमान प्रतापयुक्त दिन-रात सब व्यवहारों के आरम्भ और निवृत्ति करानेहारे होते हैं, वैसे यत्न किया करो॥६॥
विषय
होता द्वारा भिन्न-भिन्न अधिकारियों की नियुक्ति और उनके विशेष आवश्यक लक्षण, अधिकार और शक्तियों का वर्णन।
भावार्थ
( होता यक्षत् ) पदाधिकारों का दाता विद्वान् योग्य पुरुषों को अधिकार प्रदान करे । ( सुदुधे धेनू वत्सं न) उत्तम दूध देने वाली दो गौएं जैसे बच्छे को, या माता- पिता दोनों जैसे बच्चे को दूध पिलाकर पालते हों उसी प्रकार प्रतापयुक्त, तेजस्विनी, उषाओं की तरह समस्त व्यवहारों को प्रकाशित करने वाली (महा) बड़ी (मातरौ ) माता पिता के समान पूज्य एवं राष्ट्र को बनाने वाली और राजा को उत्पन्न करने वाली, (सवातरौ ) वेगवान् वायु के समान बलवान् पुरुषों से युक्त होकर (तेजसा ) तेज से, (वत्सम् इन्द्रम्) स्तुति योग्य इन्द्र को ( अवर्धताम् ) बढ़ावें और वे दोनों (आज्यस्य) राष्ट्र के ऐश्वर्य को ( वीताम् ) प्राप्त करें । (होत:) हे होत ! विद्वन् ! तू (यज) अधिकार प्रदान कर । वे दोनों उषाएं, उषासानक्ता, उषा और रात्रि राज्य की दो शक्तियों की प्रतिनिधि हैं । एक विजयशालिनी और दूसरी राष्ट्र को शान्तिपूर्वक व्यवस्थित करने वाली । अथवा एक ज्ञान-विज्ञान की प्रवर्त्तक दूसरी संस्थापक |
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्रः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
उषासानक्ता- दोनों सन्ध्याकाल
पदार्थ
१. (होता) = दानपूर्वक अदन करनेवाला अथवा प्रभु का आह्वाता पुरुष (उषे) = [नक्तोषासा] दोनों सन्ध्याकालों को (यक्षत्) = अपने साथ संगत करता है। ये दोनों उषःकाल (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (धेनू) = आप्यायन करनेवाले हैं [धेट् अप्यायने] ये सब दोषों का दहन करके उसका वर्धन करते हैं [उष दाहे ] । (सुदुघे) = इस प्रकार ये उत्तमता से उसका प्रपूरण करनेवाले हैं। (मातरा) = उसका निर्माण करनेवाले हैं। उसके जीवन को सुन्दर बनाते हैं। मही-ये उसके जीवन को महिमा सम्पन्न करते हैं । २. ये उषःकाल इसके लिए तेजसा तेजस्विता के द्वारा (सवातरौ न) = [स= समान, वात-वायु, र = गति] वायु के समान गतिवाले हैं, इसे वायु की भाँति क्रियाशील बनाते हैं। ३. इस प्रकार क्रियाशीलता के द्वारा (वत्सम्) = प्रभु के प्रिय अथवा वेदवाणियों का उच्चारण करनेवाले (इन्द्रम्) = इस जितेन्द्रिय-असुरों का संहार करनेवाले पुरुष को (अवर्धताम्) = ये उषःकाल बढ़ाते हैं । ३. ये इसके लिए (आज्यस्य) = शक्ति का (वीताम्) = पान करनेवाले बनें और हे (होत:) = दानपूर्वक अदन करनेवाले ! (यज) = तू अपने साथ प्रभु का मेल कर, अथवा इन उषःकालों को अपने साथ संगत कर ।
भावार्थ
भावार्थ- दोनों उष:काल जीव का वर्धन, पूरण व निर्माण करनेवाले हों। ये इसे वायु के समान क्रियाशील बनाएँ। इसके लिए शक्ति का पान करनेवाले हों।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! वायूमुळे जसे भौतिक अग्नी व विद्युत सूर्याचा तेजस्वीपणा वाढवितात आणि दुभत्या गाईप्रमाणे दिवस व रात्र सर्व व्यवहाराचा आरंभ व अन्त करतात तसा तुम्ही प्रयत्न करा.
विषय
मनुष्यांनी काय करावे, याविषयी
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (होतः) सुखदाता महोदय (आपण या बालकाला प्राप्त व्हा, याला आपले ज्ञान द्या) (इन्द्रस्य) विद्युतेच्या (सुदुघ) सुंदर कामनांची पूर्ती करणार्या (मातरा) माते प्रमाणे आणि (मही) महान (धेनू, सवातरौ) वायूसह विद्यमान आणि दूध देणार्या गायी (न) प्रमाणे असलेल्या (उषे) या भौतिक अग्नी आणि सूर्यरूप अग्नीच्या (तेजसा) तीव्र प्रतापाने (इन्द्रम्) परमैश्वर्ययुक्त (वत्सम्) बालकाला (वीताम्) आपण जसे प्राप्त होता, तसेच (होता) एक दाता (आज्यस्य) फेकून देण्याच्या योग्यतेच्या वस्तूचाही (यक्षत्) संग्रह करतो आणि त्याद्वारे हळूहळू आपली (यज) यज्ञ करा व संपत्ती वाढवा. ॥6॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात उपमा आणि वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहेत. हे मनुष्यानो, ज्याप्रमाणे वायूकडून प्रेरित होऊन भौतिक अग्नी व विद्युयग्नी सूर्याचा तेज वाढवितात, (तसे तुम्हीही आपला प्रताप व तेज वाढवा) तसेच ज्याप्रमाणे दुग्धधात्री गायीप्रमाणे हे प्रतापी दिवस रात्र सर्व दैनिक व्यवहारांचा आरंभ करणारे व समाप्ती करणारे आहे, तसे (तुम्हीही गायीप्रमाणे दिवस-रात्रचा नियतक्रम ठरवा व त्याप्रमाणे आचरण करा) ॥6॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O giver of happiness, just as two cows living in the open air, the fulfillers of our noble desires, behaving mother-like, nourish the highly developed calf, like material fire and suns heat, the two aspects of lightning, and just as Hota performs the yajna with oblations, so shouldst thou do.
Meaning
Let the hota, man of yajna, perform yajna in honour and service of the morning dawn and the evening twilight, which, like two great generous mother cows in the open air of universal energy, nourish Indra, the sun, like a calf and feed it with light and augment its glory. Hota, do the yajna, increase and extend the beauty and glory of the world and enjoy. Never relent.
Translation
The sacrificer worships the two dawns (i. e. morning and evening; usasa-nakta), which are two cows, easy to milk, and superb mothers. Both of them, like two cows having only one common calf, foster the aspirant, the calf, with lustre. May both of them enjoy. O sacrificer, offer oblations of purfied butter. (1)
Notes
Uşe, two dawns; dawn and night. Also, dawn and dusk. Savātarau, समानो वाता वत्सः ययोः तौ, two cows having one common calf. Na, इव, like, as if.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মনুষ্যৈ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
পুনঃ মনুষ্যদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (হোতঃ) সুখদাতা ব্যক্তি! আপনি যেমন (ইন্দ্রস্য) বিদ্যুতের (সুদুঘে) সুন্দর কামনাগুলির পূরক (মাতরা) মাতার তুল্য বর্ত্তমান (মহী) বৃহৎ (ধেনু, সবাতরৌ) বায়ু সহ বর্ত্তমান দুগ্ধদাত্রী দুইটি গাভির (ন) সমান (উষে) প্রতাপযুক্ত ভৌতিক এবং সূর্য্যরূপ অগ্নির (তেজসা) তীক্ষ্ন প্রতাপ বলে (ইন্দ্রম্) পরম ঐশ্বর্য্যযুক্ত (বৎসম্) বালককে (বীতাম্) প্রাপ্ত হন তথা (হোতা) দাতা (আজ্যস্য) প্রক্ষিপ্ত বস্তুর (য়ক্ষৎ) সঙ্গ করেন এবং (অবর্দ্ধতাম্) বৃদ্ধি পান সেইরূপ (য়জ) যজ্ঞ করুন ॥ ৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমা ও বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ! যেমন বায়ু দ্বারা প্রেরিত ভৌতিক এবং বিদ্যুৎ অগ্নি সূর্য্যলোকের তেজকে বৃদ্ধি করে এবং যেমন দুগ্ধদাত্রী গাভির তুল্য বর্ত্তমান প্রতাপযুক্ত দিন রাত সকল ব্যবহারের আরম্ভ ও নিবৃত্তিকারী হয়, তোমরা সেইরূপ করিতে থাক ॥ ৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
হোতা॑ য়ক্ষদু॒ষেऽ ইন্দ্র॑স্য ধে॒নূ সু॒দুঘে॑ মা॒তরা॑ ম॒হী ।
স॒বা॒তরৌ॒ ন তেজ॑সা ব॒ৎসমিন্দ্র॑মবর্দ্ধতাং বী॒তামাজ্য॑স্য॒ হোত॒র্য়জ॑ ॥ ৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
হোতেত্যস্য বৃহদুক্থো বামদেব ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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