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यजुर्वेद अध्याय - 28

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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 8
    ऋषिः - बृहदुक्थो गोतम ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः
    64

    होता॑ यक्षत् ति॒स्रो दे॒वीर्न भे॑ष॒जं त्रय॑स्त्रि॒धात॑वो॒ऽपस॒ऽ इडा॒ सर॑स्वती॒ भार॑ती म॒हीः। इन्द्र॑पत्नीर्ह॒विष्म॑ती॒र्व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। ति॒स्रः। दे॒वीः। न। भे॒ष॒जम्। त्रयः॑। त्रि॒धात॑व॒ इति॑ त्रि॒ऽधात॑वः। अ॒पसः॑। इडा॑। सर॑स्वती। भार॑ती। म॒हीः। इन्द्र॑पत्नी॒रितीन्द्र॑ऽपत्नीः। ह॒विष्म॑तीः। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षत्तिस्रो देवीर्न भेषजन्त्रयस्त्रिधातवो पस इडा सरस्वत्भारती महीः । इन्द्रपत्नीर्हविष्मतीर्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। तिस्रः। देवीः। न। भेषजम्। त्रयः। त्रिधातव इति त्रिऽधातवः। अपसः। इडा। सरस्वती। भारती। महीः। इन्द्रपत्नीरितीन्द्रऽपत्नीः। हविष्मतीः। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 8
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे होतर्यथा होताऽऽज्यस्य यक्षत्। यथा त्रिधातवोऽपसस्त्रयस्तिस्रो देवीर्न भेषजं मही इडा सरस्वती भारती च हविष्मतीरिन्द्रपत्नीर्व्यन्तु तथा यज॥८॥

    पदार्थः

    (होता) विद्याया दाताऽऽदाता वा (यक्षत्) (तिस्रः) त्रित्वसङ्ख्याकाः (देवीः) सकलविद्याप्रकाशिकाः (न) इव (भेषजम्) औषधम् (त्रयः) अध्यापकोपदेशकवैद्याः (त्रिधातवः) त्रयोऽस्थिमज्जवीर्याणि धातवो येभ्यस्ते (अपसः) कर्मठाः (इडा) प्रशंसितुमर्हा (सरस्वती) बहुविज्ञानयुक्ता (भारती) सुष्ठु विद्याया धारिका पोषिका वा वाणी (महीः) महती पूज्याः (इन्द्रपत्नीः) इन्द्रस्य जीवस्य पत्नीः स्त्रीवद् वर्त्तमानाः (हविष्मतीः) विविधविज्ञानसहिताः (व्यन्तु) प्राप्नुवन्तु (आज्यस्य) प्राप्तुं योग्यस्याऽध्यापनाऽध्ययनव्यवहारस्य (होतः) (यज)॥८॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा प्रशस्ता विज्ञानवती सुमेधा च स्त्रियः स्वसदृशान् पतीन् प्राप्य मोदन्ते तथाऽध्यापकोपदेशकवैद्या मनुष्याः स्तुतिविज्ञानयोगधारणायुक्तास्त्रिविधा वाचः प्राप्याऽऽनन्दन्ति॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (होतः) सुख चाहने वाले जन! जैसे (होता) विद्या का देने लेने वाला अध्यापक (आज्यस्य) प्राप्त होने योग्य पढ़ने-पढ़ाने रूप व्यवहार को (यक्षत्) प्राप्त होवे, जैसे (त्रिधातवः) हाड़, चरबी और वीर्य इन तीन धातुओं के वर्धक (अपसः) कर्मों में चेष्टा करते हुए (त्रयः) अध्यापक, उपदेशक और वैद्य (तिस्रः) तीन (देवीः) सब विद्याओं की प्रकाशिका वाणियों के (न) समान (भेषजम्) औषध को (महीः) बड़ी पूज्य (इडा) प्रशंसा के योग्य (सरस्वती) बहुत विज्ञान वाली और (भारती) सुन्दर विद्या का धारण वा पोषण करने वाली (हविष्मतीः) विविध विज्ञानों के सहित (इन्द्रपत्नीः) जीवात्मा की स्त्रियों के तुल्य वर्त्तमान वाणी (व्यन्तु) प्राप्त हों, वैसे (यज) उन को संगत कीजिए॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रशंसित विज्ञानवती और उत्तम बुद्धिमती स्त्रियाँ अपने योग्य पतियों को प्राप्त होकर प्रसन्न होती हैं, वैसे अध्यापक, उपदेशक और वैद्य लोग स्तुति, ज्ञान और योगधारणायुक्त तीन प्रकार की वाणियों को प्राप्त होकर आनन्दित होते हैं॥८॥

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    विषय

    होता द्वारा भिन्न-भिन्न अधिकारियों की नियुक्ति और उनके विशेष आवश्यक लक्षण, अधिकार और शक्तियों का वर्णन।

    भावार्थ

    ( होता यक्षत् ) होता, सर्वाधिकार देने वाला विद्वान् अधिकार प्रदान करे। शरीर में (त्रिधातवः) तीन धातुओं वाले (त्रयः) - तीन (अपसः) सब कर्म करने वाले पदार्थ शरीर के लिये (भेषजम् ) उत्तम योगविनाशक होते हैं उसी प्रकार ( तिस्रः देवी:) तीन विद्वानों की परिषदें राष्ट्र के लिये (भेषजम्) उसके दोषों को दूर करने वाली औषध के समान हैं । वे (इडा, सरस्वती, भारती) इडा, सरस्वती, भारती, इन तीन नामों वाली (महीः) बड़े आदर योग्य हैं। वे तीनों (हविष्मतीः) विविध विज्ञानों से युक्त होकर, ( इन्द्रपत्नी:) शरीर में तीन धातुएं जैसे जीब का पालन करती हैं उसी प्रकार ये भी राष्ट्र में 'इन्द्र' के पद की पालन करनेहारी, राजा के अधिकार की रक्षा करनेहारी होती हैं । वे तीनों भी (आज्यस्य व्यन्तु) समस्त राष्ट्र के ऐश्वर्य को अपने अधीन करें। (होतः यज) हे विद्वन् ! तू अधिकार प्रदान कर । ये तीन परिषदें राजसभा, विद्वत्सभा और धर्मसभा हैं |

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इन्द्रः । निचृज्जगती । निषादः ॥

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    विषय

    हविष्मती इन्द्र पत्नियाँ होता॑

    पदार्थ

    १. (होता) = दानपूर्वक अदन करनेवाला (तिस्रः देवी:) = तीन देवियों को यक्षत् = अपने साथ संगत करता है, जो देवियाँ (भेषजम्) = औषध हैं। (त्रयः) = [तिस्र] ये तीनों (त्रिधातवः) = शरीर, मन व बुद्धि को धारण करनेवाली हैं। (अपस:) = कर्मशील हैं, अर्थात् ये हमारे जीवन को क्रियाशील बनानेवाली हैं। २. ये देवियाँ क्रमशः (इडा) = सरस्वती = भारती - श्रद्धा, वाणी व मस्तिष्क में रहनेवाली विद्या की अधिदेवता तथा 'भारती' शरीर का सम्यक् भरण करनेवाली पोषण की देवता हैं। इनका क्रमशः मन, मस्तिष्क व शरीर में निवास है। ये सब (मही:) = महनीय हैं, हमारे जीवन को भी ये महनीय बनाती हैं । ३. (इन्द्रपत्नी:) = ये इन्द्र की पत्नियाँ, जीवात्मा की शक्तियाँ हैं । (हविष्मती:) = हविवाली हैं। इनके कारण मनुष्य में देकर खाने की वृत्ति पैदा होती है। ४. ये तीनों देवियाँ आज्यस्य व्यन्तु शरीर में शक्ति का पान करनेवाली हों। (होत:) = देकर खानेवाले जीव ! तू (यज) = इन देवियों को अपने साथ संगत कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ - मन में श्रद्धा, मस्तिष्क में सरस्वती और शरीर में भारती- ये तीनों देवियाँ हमारे शरीर, मन व मस्तिष्क का धारण करनेवाली हों। ये शरीर में शक्ति का पान करनेवाली हों।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशा प्रशंसा करण्यास योग्य विज्ञानवेत्त्या बुद्धिमान स्रिया योग्य पती प्राप्त करतात व प्रसन्न होतात तसे अध्यापक, उपदेशक व वैद्य हे (स्तुती, ज्ञान व योगधारणायुक्त अशा) तीन विज्ञानयुक्त वाणींना प्राप्त करून आनंदित होतात.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (होतः) सुखार्थी मनुष्य, (होता) विद्येचा दाता एक अध्यापक (आज्यस्य) अध्ययन व अध्यापनरूप व्यवहार (यक्षत्) पूर्ण करतो. तसेच (त्रिधातवः) अस्ति, मज्जा आणि वीर्य या तीन धातूंची वृद्धी करणारे (अपसः) कार्य वा उपचार करणारे (त्रषः) अध्यापक, उपदेशक आणि वैद्य (तिस्रः) (देवीः) (न) सर्व विद्या प्रकाशिका वाणीप्रमाणे (सर्वांना योग्यवेळी प्राप्त व्हावेत) (भेषजम्) वैद्य औषधी देऊन आणि (महीः) महान पूजनीय (इडा) प्रशंसनीय, (सरस्वती) विज्ञानवती आणि (भारती) विद्येद्वारे भरण-पोषण करणारी या तीन दिव्यगुणधारिणी स्त्रिया (हविष्मतीः) विविध विज्ञानासह (इन्द्रपत्नीः) जीवात्माच्या पत्नीप्रमाणे असलेले वाणी (व्यन्तु) प्राप्त करोत. हे यजमान, तुम्हीही त्या स्त्रियांची सहगती करा ॥8॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जशा प्रशंसनीय विज्ञानवती आणि उत्तम बुद्धिमती स्त्रिया आपल्याशी अनुकूल व योग्य पतीस प्राप्त करून आनंदित होतात, तसे अध्यापक, उपदेशक आणि वैद्य हे तिघे स्तुती, धारणा आणि योगधारणा यांनी समृद्ध अशी वाणी बोलत आनंदित होतात. ॥8॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O aspirant after happiness, just as a teacher, the imparter and recipient of learning, performs the duty of reading and teaching ; just as a teacher, a preacher and a physician, developing the three humours, i. e. . , bone, marrow and semen, engrossed in actions, imbibe Ida, Saraswati and Bharati, the three efficacious and highly venerable speeches, the illuminators of knowledge, full of instructions and protectors of the soul, so shouldst thou cultivate them.

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    Meaning

    Let the hota, man of yajna, offer yajna for the sake of the health and happiness of the soul to the three great divinities, Ida, potential speech of divine omniscience, Saraswati, divine Word of knowledge, and Bharati, language of the world-knowledge of science. Let the three, teacher, preacher and physician (agents of great actions and creators of three supreme humors of body-health), as three servants of the regions of earth, sky and heaven, serve with yajna the three divinities of Ida, Saraswati and Bharati. And the three, teacher, preacher and the physician, and the three mother-sustainers of the soul, generous with the wealth of life, would bless the soul and the world with plenty of health and well-being. Man of yajna, carry on the yajna, never relent.

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    Translation

    The sacrificer worships the three mighty divinities (tisro-devih), the divine intellect, the divine speech and the divine culture, which are like three deep acting remedies effecting three elements of the body. May those mistresses of the aspirant and rich in abundant sacrificial supplies enjoy. O sacrificer, offer oblations of purified butter. (1)

    Notes

    Tisro deviḥ, three divinities: Ida, Sarasvati and Bharati. Mahiḥ, great; mighty. Tridhātavaḥ, effecting the three elements of the body, Vāta, Pitta and Kapha. Bhesajain trayaḥ, three remedies, as if. Indrapatnīh, इन्द्रस्य पत्न्यः पालयित्र्यः, those who look after and nourish Indra, the aspirant. Havişmatih, having abundant supplies.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (হোতঃ) সুখ আকাঙ্ক্ষাকারী ব্যক্তি! যেমন (হোতা) বিদ্যাদাতা অধ্যাপক (আজ্যস্ব) প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য পঠন-পাঠনরূপ ব্যবহারকে (য়ক্ষৎ) প্রাপ্ত হইবে তদ্রূপ (ত্রিধাতবঃ) অস্থি, চর্বি ও বীর্য্য এই ত্রিধাতুর বর্দ্ধক (অপসঃ) কর্ম্মে চেষ্টা করিতে থাকিয়া (ত্রয়ঃ) অধ্যাপক, উপদেশক ও বৈদ্য (তিস্রঃ) তিন (দেবীঃ) সকল বিদ্যার প্রকাশিকা বাণীগুলির (ন) সমান (ভেষজম্) ঔষধকে (মহীঃ) অত্যন্ত পূজ্যঃ (ইডা) প্রশংসার যোগ্য (সরস্বতী) বহু বিজ্ঞান যুক্তা এবং (ভারতী) সুন্দর বিদ্যার ধারণ অথবা পোষণকারী (হবিষ্মতীঃ) বিবিধ বিজ্ঞানসকল সহ (ইন্দ্রপত্নীঃ) জীবাত্মার স্ত্রীদিগের তুল্য বর্ত্তমান বাণী (ব্যন্তু) প্রাপ্ত হউক তদ্রূপ (য়জ) তাহাদের সঙ্গত করুন ॥ ৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন প্রশংসিত বিজ্ঞানবতী এবং উত্তম বুদ্ধিমতী স্ত্রীগণ স্বীয় যোগ্য পতিদের প্রাপ্ত হইয়া প্রসন্ন হয় সেইরূপ অধ্যাপক উপদেশক ও বৈদ্যগণ স্তুতি, জ্ঞান ও যোগধারণা যুক্ত তিন প্রকারের বাণী প্রাপ্ত হইয়া আনন্দিত হয় ॥ ৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    হোতা॑ য়ক্ষৎ তি॒স্রো দে॒বীর্ন ভে॑ষ॒জং ত্রয়॑স্ত্রি॒ধাত॑বো॒ऽপস॒ऽ ইডা॒ সর॑স্বতী॒ ভার॑তী ম॒হীঃ । ইন্দ্র॑পত্নীর্হ॒বিষ্ম॑তী॒র্ব্যন্ত্বাজ্য॑স্য॒ হোত॒র্য়জ॑ ॥ ৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    হোতেত্যস্য বৃহদুক্থো বামদেব্য ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । নিচৃজ্জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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