अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
ऋषिः - गरुत्मान्
देवता - तक्षकः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सर्पविषदूरीकरण सूक्त
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पै॒द्वो ह॑न्ति कस॒र्णीलं॑ पै॒द्वः श्वि॒त्रमु॒तासि॒तम्। पै॒द्वो र॑थ॒र्व्याः शिरः॒ सं बि॑भेद पृदा॒क्वाः ॥
स्वर सहित पद पाठपै॒द्व: । ह॒न्ति॒ । क॒स॒र्णील॑म् । पै॒द्व: । श्वि॒त्रम् । उ॒त । अ॒सि॒तम् । पै॒द्व: । र॒थ॒र्व्या: । शिर॑: । सम् । बि॒भे॒द॒ । पृ॒दा॒क्वा: ॥४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
पैद्वो हन्ति कसर्णीलं पैद्वः श्वित्रमुतासितम्। पैद्वो रथर्व्याः शिरः सं बिभेद पृदाक्वाः ॥
स्वर रहित पद पाठपैद्व: । हन्ति । कसर्णीलम् । पैद्व: । श्वित्रम् । उत । असितम् । पैद्व: । रथर्व्या: । शिर: । सम् । बिभेद । पृदाक्वा: ॥४.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(पैद्वः) शीघ्रगामी [पुरुष] (कसर्णीलम्) बुरे मार्ग में छिपे हुए और (पैद्वः) शीघ्रगामी हो (श्वित्रम्) श्वेत (उत) और (असितम्) काले [साँप] को (हन्ति) मारता है। (पैद्वः) शीघ्रगामी ने (रथर्व्याः) दौड़ती हुई (पृदाक्वाः) फुँसकारती हुई [साँपिन] का (शिरः) शिर (सम् बिभेद) तोड़ डाला था ॥५॥
भावार्थ
फुरतीला वीर पुरुष पूर्वज शूरों के समान साँप और साँपिन रूप शत्रुओं और शत्रुसेना का नाश करे ॥५॥
टिप्पणी
५−(पैद्वः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। पद गतौ-व प्रत्ययः, अस्यैकारः पैद्वः=अश्वः-निघ० १।१४। शीघ्रगामी पुरुषः (हन्ति) नाशयति (कसर्णीलम्) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। क+सरणी+लीङ् श्लेषणे−ड, अकारलोपः। कोः कादेशः। कु कुत्सितायां सरण्यां मार्गे लीनं श्लिष्टम् (पैद्वः) (श्वित्रम्) अ० ३।२७।६। श्वेतम् (उत) अपि च (असितम्) अ० ३।२७।१। कृष्णसर्पम् (रथर्व्या) रथर्यतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। रथर् गतौ-च। जातेरस्त्री०। पा० ४।१।६३। ङीप्। शीघ्रगामिन्याः सर्पिण्याः (शिरः) (सम्) सम्यक् (बिभेद) चिच्छेद (पृदाक्वाः) अ० १।२७।१। पर्द कुत्सिते शब्दे−कः कु, ऊङ्। कुत्सितशब्दकारिण्याः सर्पिण्याः ॥
विषय
कसलं, श्वित्रं, असितम् [हन्ति]
पदार्थ
१.(पैदः) = [पद गती, पैदः-अश्व:-नि०१।१४ कर्मव्याप्त] कर्मशील-गतिशील पुरुष (कसर्णीलम्) = [कस् to destroy, नील-निधि] विनाशक धन को, अन्याय व छलादि से उपार्जित धन को (हन्ति) = नष्ट करता है। यह क्रियाशील बनता हुआ अन्याय्य धन को कभी उपार्जित करने का विचार नहीं करता। (पैद्वः) = यह क्रियाशील पुरुष (श्वित्रम्) = कुष्ठादि रोगों को नष्ट करता है (उत्) = और (असितम्) = कृष्ण [मलिन] कर्मों को भी विनष्ट करता है-न यह रोगों का शिकार होता है, न ही पापों का। २. यह (पैद्वः) = गतिशील पुरुष (रथर्व्या:) = इस गतिशील [रथयतिर्गतिकर्मा नि० २।१४] (पृदाक्वा:) = [पृ, दा, कु] पालन के लिए अन्न देनेवाली पृथिवी के (शिर:) = सिर को-पृष्ठ को (संबिभेद) = विदीर्ण करता है। कृषि द्वारा इसके पृष्ठ को भिन्न करनेवाला होता है। वेद के ('अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व') = इस उपदेश के अनुसार यह कृषि करनेवाला होता है।
भावार्थ
हम गतिशील बनकर कृषि आदि कार्यों से-उत्तम कार्यों से उत्तम अन्नों को प्राप्त करें। रोगों व पापों से बचें तथा अन्यायोपार्जित विनाशक धनों के संग्रह से दूर रहें।
भाषार्थ
(पैद्वः) पैद्व (कसर्णीलम्) कसर्णील सांप का (हन्ति) हनन करता है, (पैद्वः) पैद्व (श्वित्रम्) श्वेतकुष्ठ सदृशवर्ण वाले सांप का, तथा (उत-असितम्) अश्वेत अर्थात् कृष्णवर्ण वाले सांप का [हनन] करता है। (पैद्वः) पैद्व (रथर्व्याः शिरः) रथर्वी सांपिन के सिर को तथा (पृदाक्वाः) पृदाकुनी के सिर को (सं बिभेद) सम्यक् तोड़ता है, कुचलता है।
टिप्पणी
[पैद्व सम्भवतः न्योला है (मन्त्र ४)। रथर्वी= रथ की तरह शीघ्र गतिवाली, हिंसा शीला (रथ + अर्व हिंसायाम्)। पृदाकूः= महासर्पिणी]।
विषय
सर्प विज्ञान और चिकित्सा।
भावार्थ
(पैद्वः) ‘पैद्व’ नामक द्रव्य (कसर्णीलं) कसर्णील नामक सर्प को विनाश करता है। (पैद्वः) वही ‘पैद्व’ नामक द्रव्य (श्वित्रम्) श्वित्र=श्वेत सर्प (उत) और (असितम्) काले सर्प को भी विनाश करता है। (पैद्वः) पैद्व नामक द्रव्य (रथर्व्याः) रथर्वी नामक सांप जाति और (पृदाक्काः) पृदाकू नामक सांप की जाति के (शिरः) शिर को भी (बिभेद) तोड़ डालता है। ‘पैद्वः’=अश्व=करवीर या गिरिकर्णिक या अश्वक्षुरक या अश्वगन्धा नामक ओषधि लेना उचित है ? केशव के मत से पैद्व नामक एक जन्तु है जो ‘तलिणी’ कहाता है। जो पीले रंग का या चिटकनेदार होता है। उसके भय से सर्प नहीं आता। ‘कसर्णील’ अति विषैली सर्प जाति होती है। ‘श्वित्र’, ‘असित’, ‘रथर्वी’ और ‘पृदाकू’ ये सभी सर्पों की भिन्न भिन्न जातियों के नाम हैं।
टिप्पणी
(प्र०) ‘क्वसर्णीलं’, (तृ०) ‘रथवृहाः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। गरुत्मान् तक्षको देवता। २ त्रिपदा यवमध्या गायत्री, ३, ४ पथ्या बृहत्यौ, ८ उष्णिग्गर्भा परा त्रिष्टुप्, १२ भुरिक् गायत्री, १६ त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री, २१ ककुम्मती, २३ त्रिष्टुप्, २६ बृहती गर्भा ककुम्मती भुरिक् त्रिष्टुप्, १, ५-७, ९, ११, १३-१५, १७-२०, २२, २४, २५ अनुष्टुभः। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Snake poison cure
Meaning
Paidva kills the kasarnila snake. Paidva kills the white and dark black snake. Paidva crushes the head of Ratharvi and Prdakvi snakes.
Translation
Paidva kills the Kasarnila; paidva (kills) the whitish as well as the black one. Paidva breaks the head of the ratharvi and of the viper (prdāku). (ratharvi and prdāku = names of various snakes).
Translation
Paidva, the Ashvagandha or Karnik herb kills the Kasarmila serpent; this Paidva kills the white and black serpents; and this paidva breaks the head of Ratharvi and Prinaku which are the female enomous reptile.
Translation
Paidva kills Kasarnila serpent, kills both the white serpent and the black. Paidva cleaves in twain Ratharvi’s and the viper’s head.
Footnote
Paidva is the name of a medicine. It is also called Ashvagandha, Ashvakshuraka or Girkarnik. Kasarnila: An unidentified venomous serpent. Ratharvi: Another species of serpent, so-called on account of its rapid motion.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(पैद्वः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। पद गतौ-व प्रत्ययः, अस्यैकारः पैद्वः=अश्वः-निघ० १।१४। शीघ्रगामी पुरुषः (हन्ति) नाशयति (कसर्णीलम्) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। क+सरणी+लीङ् श्लेषणे−ड, अकारलोपः। कोः कादेशः। कु कुत्सितायां सरण्यां मार्गे लीनं श्लिष्टम् (पैद्वः) (श्वित्रम्) अ० ३।२७।६। श्वेतम् (उत) अपि च (असितम्) अ० ३।२७।१। कृष्णसर्पम् (रथर्व्या) रथर्यतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। रथर् गतौ-च। जातेरस्त्री०। पा० ४।१।६३। ङीप्। शीघ्रगामिन्याः सर्पिण्याः (शिरः) (सम्) सम्यक् (बिभेद) चिच्छेद (पृदाक्वाः) अ० १।२७।१। पर्द कुत्सिते शब्दे−कः कु, ऊङ्। कुत्सितशब्दकारिण्याः सर्पिण्याः ॥
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