Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 7 के मन्त्र

मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 14
    ऋषि: - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
    34

    नव॒ भूमीः॑ समु॒द्रा उच्छि॑ष्टेऽधि॑ श्रि॒ता दिवः॑। आ॒ सूर्यो॑ भा॒त्युच्छि॑ष्टेऽहोरा॒त्रे अपि॒ तन्मयि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नव॑ । भूमी॑: । स॒मु॒द्रा: । उत्ऽशि॑ष्टे । अधि॑ । श्रि॒ता: । दिव॑: । आ । सूर्य॑: । भा॒ति॒ । उत्ऽशि॑ष्टे । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । अपि॑ । तत् । मयि॑ ॥९.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नव भूमीः समुद्रा उच्छिष्टेऽधि श्रिता दिवः। आ सूर्यो भात्युच्छिष्टेऽहोरात्रे अपि तन्मयि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नव । भूमी: । समुद्रा: । उत्ऽशिष्टे । अधि । श्रिता: । दिव: । आ । सूर्य: । भाति । उत्ऽशिष्टे । अहोरात्रे इति । अपि । तत् । मयि ॥९.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (2)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (नव) नौ [हमारे दो कान, दो आँख, दो नथने, मुख, पायु और उपस्थ इन नौ अर्थात् सब इन्द्रियों से जाने गये] (भूमीः) भूमि के देश, (समुद्राः) अन्तरिक्ष के लोक और (दिवः) प्रकाशमान लोक (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (अधि) अधिकारपूर्वक (श्रिताः) ठहरे हैं। (सूर्यः) सूर्य (उच्छिष्टे) शेष [परमेश्वर] में (आ) सब ओर (भाति) चमकता है, और (अहोरात्रे) दिन-रात्रि (अपि) भी, (तत्) वह [उनका सुख] (मयि) मुझ [उपासक] में [होवे] ॥१४॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपनी इन्द्रियों से विद्या द्वारा परमेश्वररचित भूमि आदि से यथावत् उपकार लेकर सुखी होवें ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(नव) द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी, नासिके, मुखम्, द्वे पायूपस्थे नवभिः शरीरच्छिद्रैर्ज्ञायमानाः-इत्यर्थः (भूमीः) भूमयः। भूमिदेशः। (समुद्राः) अन्तरिक्षलोकाः (उच्छिष्टे) म० १। शेषे। परमात्मनि (अधि) अधिकृत्य (श्रिताः) स्थिताः (दिवः) प्रकाशमाना लोकाः (आ) समन्तात् (सूर्यः) भास्करः (भाति) दीप्यते (उच्छिष्टे) अहोरात्रे रात्रिदिने (अपि) (तत्) सुखम् (मयि) उपासके ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma

    Meaning

    Nine-region earths of space, oceans of earths and space, all orders of the regions of light, abide and are sustained in the Ultimate Brahma. The sun shines in Brahma. The day and night abide in Brahma. I pray the same be in me, the same also is in me. I am the microcosm.

    Top