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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 7 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 27
    ऋषि: - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
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    दे॒वाः पि॒तरो॑ मनु॒ष्या गन्धर्वाप्स॒रस॑श्च॒ ये। उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा: । पि॒तर॑: । म॒नु॒ष्या᳡: । ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रस॑: । च॒ । ये । उत्ऽशि॑ष्टात् । ज॒ज्ञि॒रे॒ । सर्वे॑ । दि॒वि । दे॒वा: । दि॒वि॒ऽश्रित॑: ॥९.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवाः पितरो मनुष्या गन्धर्वाप्सरसश्च ये। उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा: । पितर: । मनुष्या: । गन्धर्वऽअप्सरस: । च । ये । उत्ऽशिष्टात् । जज्ञिरे । सर्वे । दिवि । देवा: । दिविऽश्रित: ॥९.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 27
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    हिन्दी (2)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) विद्वान् लोग, (पितरः) ज्ञानी लोग, (मनुष्याः) मननशील लोग (च) और (ये) जो (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी के धारण करनेवाले] और अप्सर [आकाश में चलनेवाले पुरुष] हैं। [यह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १। परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२७॥

    भावार्थ

    परमात्मा के सामर्थ्य से अनेक विद्वान् लोग और अनेक पदार्थ संसार में सुख बढ़ाने के लिये उत्पन्न हुए हैं ॥२७॥यह मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ १३५, १३६ में व्याख्यात है ॥

    टिप्पणी

    २७−(देवाः) विद्वांसः (पितरः) ज्ञानिनः (मनुष्याः) मननशीलाः (गन्धर्वाप्सरसः) अ० ८।८।१५। गां पृथिवीं धरन्ति ये ते गन्धर्वाः। अप्सु आकाशे सरन्ति ते अप्सरसः। तथाभूताः पुरुषाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma

    Meaning

    All the divinities of nature and humanity, Pitaras, parental sustainers of humanity, the ordinary people, sustainers of earth and the divine Word and culture, all fluent forces in flux, and all the divine virtues abiding and sustained in the light of heaven are born of the Ultimate, all comprehensive Brahma, first and last everlasting of all else that is.

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