अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 126/ मन्त्र 10
ऋषिः - वृषाकपिरिन्द्राणी च
देवता - इन्द्रः
छन्दः - पङ्क्तिः
सूक्तम् - सूक्त-१२६
64
सं॑हो॒त्रं स्म॑ पु॒रा नारी॒ सम॑नं॒ वाव॑ गच्छति। वे॒धा ऋ॒तस्य॑ वी॒रिणीन्द्र॑पत्नी महीयते॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्ऽहो॒त्रम् । स्म॒ । पु॒रा । नारी॑ । सम॑नम् । वा॒ । अव॑ । ग॒च्छ॒ति॒ ॥ वे॒धा: । ऋ॒तस्य॑ । वी॒रिणी॑ । इन्द्र॑ऽपत्नी । म॒ही॒य॒ते॒ । विश्व॑स्मात् । इन्द्र॑: । उत्ऽत॑र ॥१२६.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
संहोत्रं स्म पुरा नारी समनं वाव गच्छति। वेधा ऋतस्य वीरिणीन्द्रपत्नी महीयते विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽहोत्रम् । स्म । पुरा । नारी । समनम् । वा । अव । गच्छति ॥ वेधा: । ऋतस्य । वीरिणी । इन्द्रऽपत्नी । महीयते । विश्वस्मात् । इन्द्र: । उत्ऽतर ॥१२६.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहस्थ के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(नारी) नारी [नरों का हित करने हारी स्त्री] (पुरा) पहिले काल से (स्म) ही (संहोत्रम्) मिलकर अग्निहोत्र आदि यज्ञ करने (वा) और (समनम्) मिलकर जीवन करने को (अव गच्छति) जानती है। (ऋतस्य) सत्य ज्ञान का (वेधाः) विधान करनेवाली (वीरिणी) वीरिणी [वीर सन्तानोंवाली], (इन्द्रपत्नी) इन्द्रपत्नी [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य की स्त्री] (महीयते) पूजी जाती है, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला मनुष्य] (विश्वस्मात्) सब [प्राणी मात्र] से (उत्तरः) उत्तम श्रेष्ठ है ॥१०॥
भावार्थ
जो ज्ञानवती स्त्री अपने सदृश वीर पति से विवाह करके वीर सन्तानें उत्पन्न करती है, वही संसार में बड़ाई पाती है ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(संहोत्रम्) पत्यादिभिः सहाग्निहोत्रादियज्ञम् (स्म) एव (पुरा) पुरस्तात् (नारी) नराणां हिता स्त्री (समनम्) अन प्राणने-अच्। सहजीवनम् (वा) समुच्चये (अव गच्छति) जानाति (वधाः) विधात्री (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य (वीरिणी) म० ९। (इन्द्रपत्नी) म० ९। (महीयते) पूज्यते। अन्यद् गतम् ॥
विषय
युद्धों व यज्ञों में
पदार्थ
१. (पुरा) = पहले-उत्कृष्ट युग में, धर्म का हास होने से पूर्व (नारी) = पत्नी (होत्रम्) = यज्ञ के प्रति (संगच्छति स्म) = पति के साथ मिलकर जाती थी तथा (वाव) = निश्चय से (समनम्) = युद्ध के प्रति जाती थी। पत्नी 'धर्मपत्नी' थी। वह पति के साथ यज्ञों व युद्धों में सहायक होती थी। 'इत्थं युद्धैश्च यज्ञैश्च भजामो विष्णुमीश्वरम्' इस वाक्य के अनुसार वे धर्मयुद्धों व यज्ञों से उस सर्वव्यापक ईश को भजते थे। २. यह पत्नी घर में (ऋतस्य वेधा) = सब यज्ञों व श्रेष्ठतम [ठीक] कार्यों का विधान करती थी। परिणामतः यह (वीरिणी) = वीर सन्तानोंवाली होती है। यह (इन्द्रपत्नी) = जितेन्द्रिय पुरुष की पत्नी (महीयते) = महिमा को प्राप्त करती है। ऐसी ही नारियों का आदर होता है। इनकी दृष्टि में (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (विश्वस्मात् उत्तर:) = सबसे उत्कृष्ट होते हैं। ये इस इन्द्र का ही पूजन करती हैं।
भावार्थ
स्त्री अपने को आकर्षक बनाने की अपेक्षा धार्मिक व वीर बनने का ध्यान करे। उसकी वृत्ति वैषयिक न हो। वह युद्धों व यज्ञों में पति की सहायिका बने।
भाषार्थ
(नारी) नारी, (पुरा) सदा अर्थात् उत्सुकतापूर्वक, (संहोत्रम्) सामाजिक-यज्ञों (वाव) तथा (समनम्) सामाजिक-जीवनों अर्थात् उत्सवों-मेलों में (गच्छति स्म) जाती है। वह (ऋतस्य) सच्चाई के जीवन की (वेधाः) विधात्री है। (वीरिणी) धर्मवीरा है। (इन्द्रपत्नी) विद्युत्-सदृश बलिष्ठ क्षत्रिय-पति की पत्नी (महीयते) पूजी जाती है, विशेष महिमा प्राप्त करती है। (विश्वस्मात्০) पूर्ववत्।
टिप्पणी
[पुरा=अविरते। Soon, ere-long, continuously (आप्टे)। नारियाँ प्रायः भावनाप्रधान होती हैं। इसलिए धार्मिक-कृत्यों तथा उत्सवों आदि में उत्सुकतापूर्वक जाती, तथा सच्चाई के जीवन को पसन्द करती हैं। सामाजिक-जीवनों में उनकी विशेष अभिरुचि होती है—यह सब स्त्रैण-स्वभाव है।]
विषय
जीव, प्रकृति और परमेश्वर।
भावार्थ
(वा) जिस प्रकार (नारी) स्त्री (संहोत्रं) एकत्र मिलकर करने योग्य होत्र, हवन, यज्ञ में और (समनम्) संग्राम में (अव गच्छति स्म) जाया करता है और (ऋतस्य) सत्यज्ञान का (वेधा) प्राप्त करने हारी या सत्य व्यवस्था का विधान करने हारी (वीरिणी) वीर पुत्रवती और (इन्द्रपत्नी) ऐश्वर्यवान् पुरुष या स्वामी की स्त्री होकर (महीयते) आदर और सत्कार का पात्र होती है। उसी प्रकार (पुरा) पहले (नारी) समस्त भुवन के कार्यों की नेत्री प्रवर्त्तिका प्रकृति अथवा ‘नर’, सबके प्रवर्तक परमेश्वर के, स्त्री के समान सदा साथ रहने वाली उसकी महती शक्ति, (संहोत्रम्) एक साथ मिलकर एक दूसरे के ग्रहण करने वाले सर्गमय यज्ञ को और (समनम्) समष्टि प्राण शक्ति के धारण की क्रिया को (अव गच्छति) प्राप्त करती है। अर्थात् प्रधान शक्ति ही नाना संयोग विभाग करती तथा वही सर्वत्र प्राय सञ्चार करती है। वही (ऋतस्य) सत्यज्ञान या सत्, गतिमत् रूप से प्रकट हुए जगत् की (वेधाः) विधात्री है। वही (वीरिणी) वीर्यवती (इन्द्रपत्नी) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर को अपना मुख्य पालक रखने वाली स्त्री के समान उसकी सहचारिणी होकर (महीयते) बड़ीभारी शक्ति के रूप में प्रकट होती है। (विश्वस्मात् इन्द्रः उत्तरः) वह परमेश्वर ही सबसे उत्कृष्ट है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वृषाकपिरिन्द्र इन्द्राणी च ऋषयः। इन्द्रो देवता। पंक्तिः। त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
The creative force in original time receives the cosmic seed and stirs into action for the dynamics of creative evolution. For this very reason, Prakrti, impregnated with the cosmic seed, is exalted as the consort of Indra, mother of the universal brave, controller of the laws of existence. Indra is supreme over all.
Translation
In the primal state of the creation this dame (matter) conceives the seed from God and finds His close contact. This matter as the material cause of the creation and producer of the worldly objects being the queen of Almighty Divinity attains importance. The Almighty God is rarest of all and supreme over all.
Translation
In the primal state of the creation this dame (matter) conceives the seed from God and finds His close contact. This matter as the material cause of the creation and producer of the worldly objects being the queen of Almighty Divinity attains importance. The Almighty God is rarest of all and supreme over all.
Translation
O Indrani, the primordial matter, I (God) don’t rejoice or have any fun in the form of the creation of the world, without my friend, the powerful and energetic Jivatma (the soul), whose favorite means of subsistence based on water or vital breaths go to breathe life into his organs of sense or action, in Mighty God reigns supreme over all.
Footnote
God addressing matter on the importance of the soul, His constant friend, for whose sake He creates the universe.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(संहोत्रम्) पत्यादिभिः सहाग्निहोत्रादियज्ञम् (स्म) एव (पुरा) पुरस्तात् (नारी) नराणां हिता स्त्री (समनम्) अन प्राणने-अच्। सहजीवनम् (वा) समुच्चये (अव गच्छति) जानाति (वधाः) विधात्री (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य (वीरिणी) म० ९। (इन्द्रपत्नी) म० ९। (महीयते) पूज्यते। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
গৃহস্থকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(নারী) নারী [নরদের হিতকারিণী স্ত্রী/নারী] (পুরা) (স্ম) পূর্ব কাল থেকেই (সংহোত্রম্) একত্রে মিলে অগ্নিহোত্র আদি যজ্ঞ করতে (বা) এবং (সমনম্) একত্রে মিলে থাকতে/বাস করতে (অব গচ্ছতি) জানে। (ঋতস্য) সত্য জ্ঞানের (বেধাঃ) বিধাত্রী (বীরিণী) বীরিণী [বীর সন্তানবতী], (ইন্দ্রপত্নী) ইন্দ্রপত্নী [পরম্ ঐশ্বর্যবান মনুষ্যের স্ত্রী/পত্নী] (মহীয়তে) পূজিত হয়, (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ মনুষ্য] (বিশ্বস্মাৎ) সব [প্রাণী মাত্র] থেকে (উত্তরঃ) উত্তম শ্রেষ্ঠ ॥১০॥
भावार्थ
যে জ্ঞানী নারী নিজের মতো সাহসী স্বামীকে বিয়ে করে সাহসী সন্তান জন্ম দেয়, সে সংসারে গৌরব পায়/প্রাপ্ত হয়॥১০॥
भाषार्थ
(নারী) নারী, (পুরা) সদা অর্থাৎ উৎসুকতাপূর্বক, (সংহোত্রম্) সামাজিক-যজ্ঞ (বাব) তথা (সমনম্) সামাজিক-জীবন অর্থাৎ উৎসব-মেলায় (গচ্ছতি স্ম) যায়। সে (ঋতস্য) সত্যের জীবনের (বেধাঃ) বিধাত্রী। (বীরিণী) ধর্মবীরা। (ইন্দ্রপত্নী) বিদ্যুৎ-সদৃশ বলিষ্ঠ ক্ষত্রিয়-পতির পত্নী (মহীয়তে) পূজিতা হয়, বিশেষ মহিমা প্রাপ্ত করে। (বিশ্বস্মাৎ০) পূর্ববৎ।
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