अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 126/ मन्त्र 9
ऋषिः - वृषाकपिरिन्द्राणी च
देवता - इन्द्रः
छन्दः - पङ्क्तिः
सूक्तम् - सूक्त-१२६
103
अ॒वीरा॑मिव॒ माम॒यं श॒रारु॑र॒भि म॑न्यते। उ॒ताहम॑स्मि वी॒रिणीन्द्र॑पत्नी म॒रुत्स॑खा॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒वीरा॑म्ऽइव । माम् । अ॒यम् । श॒रारु॑: । अ॒भि । म॒न्य॒ते॒ ॥ उ॒त । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । वी॒रिणी॑ । इन्द्र॑ऽपत्नी । म॒रुत् स॑खा । विश्व॑स्मात् । इन्द्र॑: । उत्ऽत॑र ॥१२६.९॥
स्वर रहित मन्त्र
अवीरामिव मामयं शरारुरभि मन्यते। उताहमस्मि वीरिणीन्द्रपत्नी मरुत्सखा विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः ॥
स्वर रहित पद पाठअवीराम्ऽइव । माम् । अयम् । शरारु: । अभि । मन्यते ॥ उत । अहम् । अस्मि । वीरिणी । इन्द्रऽपत्नी । मरुत् सखा । विश्वस्मात् । इन्द्र: । उत्ऽतर ॥१२६.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहस्थ के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अयम्) यह (शरारुः) अपकारी मनुष्य (माम्) मुझ [स्त्री] को (अवीराम् इव) अवीर स्त्री के समान (अभि मन्यते) मानता है, (उत) और (अहम्) मैं (वीरिणी) वीरिणी [वीर सन्तानोंवाली], (इन्द्रपत्नी) इन्द्रपत्नी [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य की पत्नी], और (मरुत्सखा) विद्वान् वीरों को साथी रखनेवाली (अस्मि) हूँ, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला मनुष्य] (विश्वस्मात्) सब [प्राणी मात्र] से (उत्तरः) उत्तम है ॥९॥
भावार्थ
वीरपत्नी स्त्री वीर सन्तानों और वीर पुरुषों के साथ रहकर दुष्टों से निर्भय होवे ॥९॥
टिप्पणी
९−(अवीराम्) अबलाम् (इव) यथा (माम्) स्त्रियम् (अयम्) (शरारुः) शॄवन्द्योरारुः। पा० ३।२।१७३। शॄ हिंसायाम्-आरु। घातुकः। अपकारी (अभि) आभिमुख्ये (मन्यते) जानाति (उत) अपि च (अहम्) स्त्री (अस्मि) (वीरिणी) वीरसन्तानवती (इन्द्रपत्नी) इन्द्रस्य ऐश्वर्यवन्तः पुरुषस्य भार्या (मरुत्सखा) मरुद्भिर्विद्वद्भिः शूरैर्युक्ता। अन्यद् गतम् ॥
विषय
प्रकृति 'अवीरा' नहीं, 'वीरिणी'है
पदार्थ
१. "प्रकृति इतनी आकर्षक है फिर भी वृषाकपि उससे आकृष्ट नहीं हुआ' यह देखकर प्रकृति कुद्ध-सी होती है और कहती है कि (अयं शरारु:) = यह सब वासनाओं का संहार करनेवाला [प्रकृति की दृष्टि में शरारती] (माम्) = मुझे (अवीराम इव मन्यते) = अवीर, अवीर-सा मानता है। मैं अबीर थोड़े ही हूँ? (उत अहम्) = निश्चय से मैं तो (वीरिणी अस्मि) = उत्कृष्ट वीरता [पुत्र]-वाली हूँ। (इन्द्रपत्नी) = इन्द्र की पत्नी हूँ। (मरुत्सखा) = ये मरुत् [प्राण] मेरे मित्र हैं और यह तो सब कोई जानता ही है कि मेरा पति (इन्द्रः) = इन्द्र (विश्वस्मात् उत्तरः) = सबसे उत्कृष्ट है। ऐसी स्थिति में यह कैसे सहनीय हो सकता है कि यह वृषाकपि मेरा निरादर करे। २. यहाँ 'इन्द्र पत्नी' शब्द का प्रयोग करके प्रकृति स्वयं अपने पक्ष को शिथिल कर लेती है। वृषाकपि उसे इन्द्रपत्नी जानकर ही तो माता के रूप में देखता है। 'मरुत्सखा' शब्द भी बड़ा महत्त्वपूर्ण है। इन मरुतों-प्राणों ने ही उसे वासनात्मक जगत् से ऊपर उठाकर प्रकृति के आकर्षण में फंसने से बचाना है। एवं, इन्द्राणी के मित्र ये मरुत् ही वृषाकपि को वृषाकपित्व प्राप्त कराते हैं। प्रकृति वीरिणी है, प्रकृति का पुत्र वृषाकपि भी वीर बनता है। यह प्रलोभन में फंसने से बचता है।
भावार्थ
प्रकृति वीरिणी है। उसका पुत्र वृषाकपि वीर बनकर अपनी माता का [प्रकृति का] सच्चा आदर करता है।
भाषार्थ
स्त्री उत्तर देती है कि (अयं शरारुः) यह शरारती वृषाकपि (माम्) मुझे (अवीराम् इव अभि मन्यते) ऐसा समझता है कि मानो मैं अवीरा हूँ, अबला हूँ। (अहम्) मैं (अस्मि) हूँ (वीरिणी) स्वयं वीर, (इन्द्रपत्नी) विद्युत्-समान बलशाली पति की पत्नी, (मरुत्सखा) सभी प्रजाजन मेरे मित्र हैं। (विश्वस्मात् ०) पूर्ववत्।
टिप्पणी
[इन्द्रः=“वायुर्वा इन्द्रो वान्तरिक्षस्थानः” (निरु০ ७.२.५), अतः इन्द्रः=विद्युत्। मरुत्=मनुष्यजातिः (उणादि कोष १.९४)। शरारुः=मन्त्र ८ में यह विश्वास दिलाने पर कि वृषाकपि सच्चरित है, स्त्री अपने स्त्रैण-स्वभाव के कारण वृषाकपि को फिर भी शरारु कहती है। मन्त्र में स्त्रैण-स्वभाव दर्शाया गया है।]
विषय
जीव, प्रकृति और परमेश्वर।
भावार्थ
(अयं शरारुः) यह व्याघ्र के समान हिंसाकारी मृत्यु (माम्) मुझ चेतना को (अवीराम् इव) वीर राजा से रहित प्रजा के समान या वीर पुरुष पति से रहित स्त्री के समान अरक्षित सा जानकर (अभि मन्यते) मेरा विनाश करना चाहता है और मुझे डर दिखाता है। परन्तु (उत अहम्) मैं तो (वीरिणी) वीर्यवान् आत्मा रूप वीर पति वाली या वीर्यवान् प्राण रूप पुत्र चाली (इन्दपत्नी) इन्द्र ऐश्वर्यवान् परमेश्वर को अपना पालक प्राप्त करने वाली, (मरुत्सखा) शत्रुओं को मार देने वाले वीर पुरुषों के समान प्राणों को मित्र रूप से रखने हारी हूं। (और इन्द्रः) वह परमेश्वर (विश्वस्मात् उत्तरः) सबसे उत्कृष्ट है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वृषाकपिरिन्द्र इन्द्राणी च ऋषयः। इन्द्रो देवता। पंक्तिः। त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
This naughty thinks of me as naught, bereft of the brave, while I am blest with heroes, and I am the creative consort of Indra and friend of the Maruts, stormy troops of the winds of nature. Indra is supreme over all.
Translation
This noxious soul treats me (the matter) as barren while I am queen of Almighty Divinity and bearing heroes I am the friend of many emancipated soule. The Almighty God is rarest of all and supreme over all.
Translation
This noxious soul treats me (the matter) as barren while I am queen of Almighty Divinity and bearing heroes I am the friend of many emancipated soule. The Almighty God is rarest of all and supreme over all.
Translation
Amongst all the females, I (the devotee) hear the primeval matter the constant companion of the Mighty Lord of fortunes, the most fortunate one, as her Lord never dies of old age, like those of others. The Great God is Supreme over all.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(अवीराम्) अबलाम् (इव) यथा (माम्) स्त्रियम् (अयम्) (शरारुः) शॄवन्द्योरारुः। पा० ३।२।१७३। शॄ हिंसायाम्-आरु। घातुकः। अपकारी (अभि) आभिमुख्ये (मन्यते) जानाति (उत) अपि च (अहम्) स्त्री (अस्मि) (वीरिणी) वीरसन्तानवती (इन्द्रपत्नी) इन्द्रस्य ऐश्वर्यवन्तः पुरुषस्य भार्या (मरुत्सखा) मरुद्भिर्विद्वद्भिः शूरैर्युक्ता। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
গৃহস্থকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(অয়ম্) এই (শরারুঃ) অপকারী মনুষ্য (মাম্) আমাকে [স্ত্রীকে/নারীকে] (অবীরাম্ ইব) অবীর/অবলা স্ত্রীর/নারীর মতো (অভি মন্যতে) মনে করে/বিবেচনা করে, (উত) এবং (অহম্) আমি (বীরিণী) বীরিণী [বীর সন্তানবতী], (ইন্দ্রপত্নী) ইন্দ্রপত্নী [মহান ঐশ্বর্যবান মনুষ্যের পত্নী], এবং (মরুৎসখা) বিদ্বান বীরদের সহচরী (অস্মি) হই, (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম্ ঐশ্বর্যবান মনুষ্য] (বিশ্বস্মাৎ) সকল [প্রাণী মাত্র] থেকে (উত্তরঃ) উত্তম ॥৯॥
भावार्थ
বীরপত্নী স্ত্রী/নারী বীর সন্তানদের এবং বীর পুরুষদের সাথে অবস্থান করে দুষ্টদের থেকে নির্ভয় হোক ॥৯॥
भाषार्थ
স্ত্রী/নারী উত্তর দেয়, (অয়ং শরারুঃ) এই দুষ্ট বৃষাকপি (মাম্) আমাকে (অবীরাম্ ইব অভি মন্যতে) এরূপ মনে করে, মানো আমি অবীরা, অবলা। (অহম্) আমি (অস্মি) হই (বীরিণী) স্বয়ং বীর, (ইন্দ্রপত্নী) বিদ্যুৎ-সমান বলশালী পতির পত্নী, (মরুৎসখা) সকল প্রজাজন আমার মিত্র। (বিশ্বস্মাৎ০) পূর্ববৎ।
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