अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 126/ मन्त्र 11
ऋषिः - वृषाकपिरिन्द्राणी च
देवता - इन्द्रः
छन्दः - पङ्क्तिः
सूक्तम् - सूक्त-१२६
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इ॑न्द्रा॒णीमा॒सु नारि॑षु सु॒भगा॑म॒हम॑श्रवम्। न॒ह्यस्या अप॒रं च॒न ज॒रसा॒ मर॑ते॒ पति॒र्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒न्द्राणीम् । आ॒सु । नारि॑षु । सु॒ऽभगा॑म् । अ॒हम् । अ॒श्र॒व॒म् ॥ न॒हि । अ॒स्या॒: । अ॒प॒रम् । च॒न । ज॒रसा॑ । भर॑ते । पति॑: । विश्व॑स्मात् । इन्द्र॑: । उत्ऽत॑र ॥१२६.११॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राणीमासु नारिषु सुभगामहमश्रवम्। नह्यस्या अपरं चन जरसा मरते पतिर्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राणीम् । आसु । नारिषु । सुऽभगाम् । अहम् । अश्रवम् ॥ नहि । अस्या: । अपरम् । चन । जरसा । भरते । पति: । विश्वस्मात् । इन्द्र: । उत्ऽतर ॥१२६.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहस्थ के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(आसु) इन (नारिषु) चलायी गयी प्रजाओं के बीच (इन्द्राणीम्) इन्द्राणी [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष की विभूति वा शक्ति] को (सुभगाम्) बड़ी भगवती [ऐश्वर्यवाली] (अहम्) मैंने (अश्रवम्) सुना है (अस्याः) इस [विभूति] का (पतिः) पति [पालन करनेवाला, इन्द्र यह मनुष्य] (अपरम् चन) दूसरे प्राणियों के समान (जरसा) वयोहानि से (नहि) नहीं (मरते) मरता है, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला मनुष्य] (विश्वस्मात्) सब [प्राणी मात्र] से (उत्तरः) उत्तम है ॥११॥
भावार्थ
यह वेदादि शास्त्रों से प्रसिद्ध है कि उन्नतिशील मनुष्य अपनी बुद्धि आदि शक्तियों को ठिकाने रखकर सदा बलवान् रहकर यशस्वी होवे ॥११॥
टिप्पणी
११−(इन्द्राणीम्) इन्द्राणीन्द्रस्य पत्नी-निरु० ११।३७। इन्द्राणी इन्द्रस्य पत्नी इन्द्रस्य विभूतिः-दुर्गाचार्यः। परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य विभूतिं शक्तिम् (आसु) दृश्यमानासु (नारिषु) वसिवपियजि०। उ० ४।१२। नॄ नये-इञ्। नीतासु प्रजासु (सुभगाम्) बह्वैश्वर्यवतीम् (अहम्) मनुष्यः (अश्रवम्) अश्रौषम्। श्रुतवानस्मि (नहि) नैव (अस्याः) विभूतेः (अपरम्) अन्यत् प्राणिजातम् (चन) सादृश्ये (जरसा) वयोहान्या। निर्बलत्वेन (मरते) द्विषते। (पतिः) पालकः। अन्यद् गतम् ॥
विषय
इन्द्राणी का अजरामर सौभाग्य
पदार्थ
१. (इन्द्राणीम्) = इन्द्राणी को (आसु नारिषु) = इन नारियों में (अहम्) = मैं (सुभगाम्) = उत्तम भाग्यवाला (अश्रवम्) = सुनता हूँ कि (अस्या:) = इसका (पति:) = स्वामी इन्द्र (अपरंचन) = अन्य पतियों के समान (जरसा) = बुढ़ापे से (हि) = निश्चयपूर्वक (न मरते) = मृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाता। इन्द्र अजरामर है, अत: इन्द्रपत्नी इन्द्राणी का सौभाग्य भी अजरामर बना रहता है। (विश्वस्मात् इन्द्रः उत्तर:) = इस अजरामरता के कारण परमैश्वर्यशाली प्रभु सबसे उत्कृष्ट हैं। २. प्रभु'इन्द्र' हैं। प्रकृति 'इन्द्राणी' है। यह प्रभु की पत्नी के समान है। प्रकृति का यह कितना सौभाग्य है कि जहाँ अन्य व्यक्तियों के जरा से समाप्त हो जाने के कारण अन्य नारियों का सौभाग्य भी कुछ देर के लिए होता है, वहाँ प्रकृति का सौभाग्य, इन्द्र के अजरामर होने से अक्षुण्ण बना रहता है।
भावार्थ
पति प्रभु के अजरामर होने से पत्नी 'प्रकृति' का सौभाग्य भी अमर बना रहता है। पत्नी ने सदा पति के दीर्घजीवन की कामना करनी, जिससे वह स्वयं सौभाग्यवती बनी रहे।
भाषार्थ
(आसु नारीषु) इन नारियों में (इन्द्राणीम्) क्षत्रिय-पत्नी को, (अहम्) मैंने, (सुभगाम्) सौभाग्यवती (अश्रवम्) वेदों में सुना है। (अपरं चन) और भी इन्द्राणी के सम्बन्ध में मैंने सुना है कि (अस्याः) इसका (पति) क्षत्रिय पति, (जरसा) बुढ़ापे से (नहि मरते) नहीं मरता अपितु धर्मयुद्ध में आत्माहुति देकर वीर-गति प्राप्त करता है। (विश्वस्मात्০) पूर्ववत्।
विषय
जीव, प्रकृति और परमेश्वर।
भावार्थ
(आसु नारिषु) इन समस्त नारियों में से मैं (इन्द्राणीम्) इन्द्र की स्त्री के समान उसके सदा साथ रहने वाली परमेश्वर की ऐश्वर्यवती प्रकृति को (सुभगाम्) सबसे अधिक उत्तम ऐश्वर्यवती सौभाग्यवती (अश्रवम्) गुरुपदेश द्वारा श्रवण करता हूं (अपरं चन) और जिस प्रकार अन्य स्त्रियों के पति बूढ़े होकर मर जाते हैं उस प्रकार (अस्याः पतिः) इसका पति (जरसा) आयु के अन्त कर देने वाले बुढ़ापे के कारण (नहि मरते) नहीं मरता। वह अजर अमर हैं। (इन्द्रः विश्वस्मात् उत्तरः) इन्द परमेश्वर समस्त संसार से ऊंचा है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वृषाकपिरिन्द्र इन्द्राणी च ऋषयः। इन्द्रो देवता। पंक्तिः। त्रयोविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
So have I heard of Indrani among the creative dames as the mother of glory. Never shall her lord, Indra, ever die of old age like others, men of mortal nature. Indra is supreme over all.
Translation
I, the soul an engaged guest of this dame, the queen of God, (the material cause of the universe) treat her as most fortunate of all the damss, for never her lord (God) dies in length of time which makes everything worn and torn. This Almighty God is rarest of all and supreme over all.
Translation
I, the soul an engaged guest of this dame, the queen of God, (the material cause of the universe) treat her as most fortunate of all the damss, for never her lord (God) dies in length of time which makes everything worn and torn. This Almighty God is rarest of all and supreme over all.
Translation
O Primeval matter, the mother of bliss-showering or thrilling devotees, the fortunate one, producer of good off-spring and the generator of comforts and well-being, thy Lord (Indra) takes in all the means of bliss-showering and the sweet material, productive of happiness and ease (at the time ofdeluge). The Adorable Lord is the mightiest of all.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(इन्द्राणीम्) इन्द्राणीन्द्रस्य पत्नी-निरु० ११।३७। इन्द्राणी इन्द्रस्य पत्नी इन्द्रस्य विभूतिः-दुर्गाचार्यः। परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य विभूतिं शक्तिम् (आसु) दृश्यमानासु (नारिषु) वसिवपियजि०। उ० ४।१२। नॄ नये-इञ्। नीतासु प्रजासु (सुभगाम्) बह्वैश्वर्यवतीम् (अहम्) मनुष्यः (अश्रवम्) अश्रौषम्। श्रुतवानस्मि (नहि) नैव (अस्याः) विभूतेः (अपरम्) अन्यत् प्राणिजातम् (चन) सादृश्ये (जरसा) वयोहान्या। निर्बलत्वेन (मरते) द्विषते। (पतिः) पालकः। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
গৃহস্থকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(আসু) এই (নারিষু) চালিত প্রজাদের মধ্যে (ইন্দ্রাণীম্) ইন্দ্রাণী [মহান ঐশ্বর্যবান পুরুষের বিভূতি বা শক্তি] (সুভগাম্) মহান ভগবতী [ঐশ্বর্যবতী] (অহম্) আমি (অশ্রবম্) শুনেছি/শ্রবণ করেছি (অস্যাঃ) এর [বিভূতির] (পতিঃ) পতি [পালনকারী, ইন্দ্র এই মনুষ্য] (অপরম্ চন) অন্য প্রাণীদের মতো (জরসা) বয়োহানি দ্বারা/ (নহি) না (মরতে) মরে/মারা যায়, (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [মহান ঐশ্বর্যবান মনুষ্য] (বিশ্বস্মাৎ) সকল [প্রাণী মাত্র] থেকে (উত্তরঃ) উত্তম॥১১॥
भावार्थ
বেদাদি শাস্ত্রসমূহে ইহা প্রসিদ্ধ যে, উন্নতিশীল মনুষ্য নিজের বুদ্ধি আদি শক্তিসমূহকে ঠিক/পূর্ণ রেখে সর্বদা বলবান থেকে যশস্বী হবে/হোক॥১১॥
भाषार्थ
(আসু নারীষু) এই নারীদের মধ্যে (ইন্দ্রাণীম্) ক্ষত্রিয়-পত্নীকে, (অহম্) আমি, (সুভগাম্) সৌভাগ্যবতী (অশ্রবম্) বেদে শুনেছি। (অপরং চন) আরও ইন্দ্রাণী-এর বিষয়ে আমি শুনেছি যে (অস্যাঃ) এঁর (পতি) ক্ষত্রিয় পতি, (জরসা) জরাবস্থা দ্বারা (নহি মরতে) না মরে অপিতু ধর্মযুদ্ধে আত্মাহুতি দিয়ে/প্রদান করে বীর-গতি প্রাপ্ত করে। (বিশ্বস্মাৎ০) পূর্ববৎ।
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