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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 12
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मरुत्पिता छन्दः - अतिशक्वरी सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
    33

    म॒रुतां॑ पि॒ता प॑शू॒नामधि॑पतिः॒ स मा॑वतु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒रुता॑म् । पि॒ता । प॒शू॒नाम् । अधि॑ऽपति: । स: । मा॒ । अ॒व॒तु॒ । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरुतां पिता पशूनामधिपतिः स मावतु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मरुताम् । पिता । पशूनाम् । अधिऽपति: । स: । मा । अवतु । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (मरुताम्) सुवर्ण आदि धनों का (पिता) पालक (पशूनाम्) सब जीवों का (अधिपतिः) अधिष्ठाता है, (सः) वह... म० १ ॥१२॥

    भावार्थ

    मनुष्य सुवर्ण आदि धनकी रक्षा करके परस्पर उन्नति करें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(मरुताम्) अ० १।२०।१। हिरण्यानाम्−निघ० १।२। (पिता) पालकः (पशूनाम्) अ० १।१५।२। दृष्टिमतां जीवानाम् ॥

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    विषय

    'पशूनाम् अधिपतिः' मरुतां पिता

    पदार्थ

    १. (मरुताम्) = [हिरण्यनाम-नि०१.२] हिरण्यादि धनों का (पिता) = रक्षक, लक्ष्मीपति प्रभु (पशूनाम्) = सब जीवों का (अधिपति:) = स्वामी है। प्रभु हिरण्यादि धनों को देकर हमारा रक्षण करते हैं। २. (स:) = वह हिरण्य का स्वामी प्रभु (मा) = हिरण्य को प्राप्त कराता हुआ मुझे (अवतु) = रक्षित करे। निर्धनता के कष्ट से ऊपर उठता हुआ मैं ज्ञान-प्राप्ति आदि कर्मों में प्रवृत्त रहूँ। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    प्रभु ही सब हिरण्यों के रक्षक हैं। इन हिरण्यों को देकर वे हमारा पालन करते हैं। हम धनों को प्रभु से दिया हुआ जाने और उनका सद् व्यय करते हुए उत्तम कार्यों में प्रवृत्त रहें।

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    भाषार्थ

    (मरुताम् पिता पशूनाम् अधिपतिः) मरणशील प्राणियों का पिता [परमेश्वर] पशुओं१ का अधिपति है, (सः मा अवतु) वह मेरी रक्षा करे। (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है। [पशूनाम्= पञ्चपशवः-गाव:, अश्वाः, पुरुषाः, अजावयः (अथर्व० ११.२.९) मरुत्= म्रियते मारयति वा स मरुत्, मनुष्यजातिः, पवनो वा (उणा० १.९४) दयानन्द।] [१. रुद्रनामक परमेश्वर यह प्राणियों के कर्मानुसार उन्हें मृत्युरूप दण्ड देकर रौद्रकर्म करता है।] 

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    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (मरुतां पिता) समस्त वायुओं या विद्वानों का (पिता) पालनकर्ता ही (पशूनाम्) पशुओं का या जीवों का (अधि-पतिः) स्वामी है, उसी प्रकार प्राणों का पालक जीव ही देह में (पशूनाम्) दर्शनकारी इन्द्रियों का स्वामी है (सः) वह उक्त शुभ कार्यों में हमारी रक्षा करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    The cosmic energy is the sustainer of the winds and all vibrant forces of the world. It is sustainer of all living beings. May this lord almighty protect and promote me in this divine programme of learning, in this new project in hand, in this priestly task, in this prestigious position, in this planned work, in this resolution, in this position of benediction, and in this divine act of yajna in honour of the divinities. This is a soulful prayer in honesty of thought, word and deed.

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    Translation

    The father of cloud-bearing winds (Marutim-pita) is the lord of animals; may he favour me in this prayer, in this rite, in this priestly representation, in this firm-standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction, and in this invocation of the bounties of Nature. Svaha.

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    Translation

    Marutam Pilar, Rudra, the heat is the master power of animals let it protect me in this attainment of knowledge, in this my act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life’s stability, in this intention, in this my deliberatacticity, in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever uttered here in is correct.

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    Translation

    The Guardian of gold is the preserver of souls. May He preserve me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

    Footnote

    ‘Guardian of gold' means God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(मरुताम्) अ० १।२०।१। हिरण्यानाम्−निघ० १।२। (पिता) पालकः (पशूनाम्) अ० १।१५।२। दृष्टिमतां जीवानाम् ॥

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