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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अथर्वा देवता - पितरगणः छन्दः - त्रिपदा भुरिग्जगती सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
    43

    पि॒तरः॒ परे॑ ते मावन्तु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पि॒तर॑:। परे॑ । ते । मा॒ । अ॒व॒न्तु॒ । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पितरः परे ते मावन्तु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पितर:। परे । ते । मा । अवन्तु । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (परे) पूर्व काल में वर्तमान (ते) वे (पितरः) रक्षक लोग (मा) मुझे (अवन्तु) बचावें... म० १ ॥१५॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रसिद्ध पूर्वज महात्माओं का अनुकरण करके सदा वृद्धि करें ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(पितरः) पालकाः (परे) पूर्वकाले वर्तमानः (ते) प्रसिद्धाः (मा) माम् (अवन्तु) रक्षन्तु ॥

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    विषय

    "पिता, पितामह व प्रपितामह' का श्राद्ध

    पदार्थ

    १. इस संसार-यात्रा में (ते) = वे (परे पितर:) = उत्कृष्ट जीवनवाले-मुझसे पहले संसार में आनेवाले 'पिता, पितामह व प्रपितामह' (मा अवन्तु) = सदा उत्तम प्रेरणाओं द्वारा मेरा रक्षण करें। २. इन पितरों से उत्तम प्रेरणाओं को प्राप्त करके हम सदा उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहें। शेष पूर्ववत् ।

    भावार्थ

    हमें सदा अपने बड़ों-'पिता, पितामह व प्रपितामह' से उत्तम प्रेरणा प्राप्त होती रहे। यह प्रेरणा हमें सत्पथ पर ले-जानेवाली हो। इनकी प्ररेणाओं का सुनना ही इनका सच्चा श्राद्ध है।

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    भाषार्थ

    (पितरः परे) पितर जो 'पर' अर्थात् बड़ी आयु के हैं, (ते मा अवन्तु) वे मेरी रक्षा करें। (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।

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    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (पितरः) पालन करने वाले (परे) वे जो हम से पूर्व विद्यमान हैं या हमसे श्रेष्ठ हैं (ते) वे (मा अवन्तु) मेरी उक्त शुभ कार्यों में रक्षा करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    May the good wishes and memories of the farthest ancestors protect and promote me in this holy life of divine nature, in this life work I am doing, in this priestlike task, in this noble position, in this intelligent living, in this life of faith and resolution, in this state of benediction and in this yajnic course of life dedicated to the divinities. This is the earnest prayer from the depth of the heart.

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    Translation

    Elders (Pitr) are seniors (pare); may they favour me in this prayer, in this rite, in this priestly representation, in this firmstanding, in this-intent (or idea), in this design, in this benediction and in this invocation of the bounties of Nature. Svāhā.

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    Translation

    Pitarah, the men of practical learning who are far from us protect me in this attainment of knowledge, in this my act, in this my sacerdotal undertaking. in this my act of life's stability, in this intention, in this my deliberate activity. In this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever uttered herein is correct.

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    Translation

    May my illustrious parents preserve me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(पितरः) पालकाः (परे) पूर्वकाले वर्तमानः (ते) प्रसिद्धाः (मा) माम् (अवन्तु) रक्षन्तु ॥

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