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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सूर्यः छन्दः - अतिशक्वरी सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
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    सूर्य॒श्चक्षु॑षा॒मधि॑पतिः॒ स मा॑वतु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑: । चक्षु॑षाम् । अधि॑ऽपति: । स: । मा॒ । अ॒व॒तु॒ । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्यश्चक्षुषामधिपतिः स मावतु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्य: । चक्षुषाम् । अधिऽपति: । स: । मा । अवतु । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (सूर्यः) सूर्य (चक्षुषाम्) नेत्रों का (अधिपतिः) बड़ा रक्षक है, (सः) वह... म० १ ॥९॥

    भावार्थ

    सूर्य से प्रकाश द्वारा सब मनुष्य दर्शन शक्ति पाते हैं, मनुष्य अपनी दृष्टि को उत्तम कर्मों के देखने के लिये सदा स्थिर रक्खें ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(सूर्यः) अ० १।३।५। कर्मसु प्रेरकः प्रकाशपिण्डविशेषः (चक्षुषाम्) दृष्टीनाम् ॥

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    विषय

    'चक्षुषाम् अधिपतिः' सूर्य:

    पदार्थ

    १. (सूर्य:) = सूर्य (चक्षुषाम् अधिपतिः) = नेत्रों का अधिपति है। वस्तुत: सूर्य ही चक्षु का रूप धारण करके आँखों में निवास करता है-'सूर्यश्चक्षुर्भूत्वाक्षिणी प्राविशत्'-ऐत० उप० । प्रात: सायं सूर्याभिमुख होकर ध्यान का विधान इसीलिए है कि हम ध्यान करेंगे और सूर्य हमारी आँखों की शक्ति का वर्धन करेगा। २. (सः) = वह सूर्य (मा अवतु) = मेरा रक्षण करे। सूर्य-किरणों का सेवन सब रोगकमियों का संहारक है-('उद्यन्नादित्य क्रिमीन हन्ति निनोचन हन्तु रश्मिभिः')। = सूर्य किरणों द्वारा हमारे शरीर में सब प्राणदायी तत्त्वों की स्थापना होती है। ('प्राण: प्रजानामुदयत्येष सूर्यः') = इसप्रकार सूर्य-सम्पर्क में स्वस्थ बनकर मैं ज्ञानादि कर्मों में अपना अर्पण करूँ। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    सूर्य-किरणों का सेवन हमें स्वस्थ व चक्षुशक्ति-सम्पन्न बनाए। ऐसे बनकर हम ज्ञान-प्राप्ति आदि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहें।

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    भाषार्थ

    (सूर्यः चक्षुषाम् अधिपतिः) सूर्य चक्षुओं का अधिपति है, (स: मा अवतु) वह मेरी रक्षा करें। (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।

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    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (सूर्यः) सबका प्रेरक, प्रकाशमय सूर्य जिस प्रकार अपने तेजो गुण से हमारी (चक्षुषां) आंखों का (अधि-पतिः) स्वामी है। उसी प्रकार वह ज्ञान-तेजोमय सबका प्रकाशक प्रभु हमारी ज्ञान-चक्षुओं का भी स्वामी है। (सः) वह उक्त शुभ कार्यों में मेरी रक्षा करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    Surya, the sun, is the presiding power of the light of the eyes. May the sun protect and promote me with vision in this spiritual pursuit of divinity, in this work on hand, in this holy undertaking, in this settled position of honour, in this plan, in this resolution, in this benediction, and in this yajna of the divinities. This is the inner voice in truth.

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    Translation

    The Sun (Sürya) is lord of the eye; may he favour me in this prayer, in this rite, in this priestly representation, in this firm-standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction, and in this invocation of the bounties of Nature. Svahà.

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    Translation

    Surya, the sun-light is the master-power of eyes, let it protect me in this attainment of knowledge, in this my act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life's stability, in this intention, in this my deliberate activity, in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever uttered herein is correct.

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    Translation

    Just as the Sun is the lord of eyes, so God is the Lord of our spiritual eyes. May he preserve me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, inthis my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(सूर्यः) अ० १।३।५। कर्मसु प्रेरकः प्रकाशपिण्डविशेषः (चक्षुषाम्) दृष्टीनाम् ॥

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