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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मरुद्गणः छन्दः - अतिशक्वरी सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
    49

    म॒रुतः॒ पर्व॑ताना॒मधि॑पतय॒स्ते मा॑वन्तु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒रुत॑: । पर्व॑तानाम् । अधि॑ऽपतय: । ते । मा॒ । अ॒व॒न्तु। अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरुतः पर्वतानामधिपतयस्ते मावन्तु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मरुत: । पर्वतानाम् । अधिऽपतय: । ते । मा । अवन्तु। अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (मरुतः) ऋत्विक् लोग (पर्वतानाम्) पहाड़ों के (अधिपतयः) अधिष्ठाता हैं, (ते) वे (मा) मुझे (अवन्तु) बचावें,... म० १ ॥६॥

    भावार्थ

    याजक लोग पर्वत आदि स्थानों से ओषधि आदि उत्तम पदार्थों को लाकर उनसे संसार का उपकार करते हैं। उनसे प्रत्येक मनुष्य उपकार लेकर अपनी रक्षा करें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(मरुतः) अ० १।२०।१। ऋत्विजः−निघ० ३।१८। याजकाः (पर्वतानाम्) शैलानाम्। तत्रस्थौषधीनाम् (अधिपतयः) अधिष्ठातारः (ते) (मा) (अवन्तु) रक्षन्तु ॥

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    विषय

    'पर्वतानाम् अधिपतयः' मरुतः

    पदार्थ

    १. (मरुतः) = शरीरस्थ प्राण (पर्वतानाम्) = [पर्व पूरणे] सब न्यूनताओं को दूर करके सब पूरणों के (अधिपतयः) = स्वामी हैं। इन प्राणों की साधना [प्राणायाम] के द्वारा मैं अपनी सब न्यूनताओं को दूर करूँ। २. (ते) = वे प्राण (मा अवन्तु) = मेरा रक्षण करें। प्राणसाधना से 'शरीर में स्वस्थ, मन में निर्मल व बुद्धि मंं दीप्त' बनकर मैं जान-प्राति आदि उत्तम कर्मों में लगा रहूँ। शेष पूर्ववत् ।

    भावार्थ

    प्राणसाधना सब न्यूनताओं को दूर करती हुई व हमारा पूरण करती हुई हमें रक्षित करे।

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    भाषार्थ

    (मरुत: पर्वतानाम् अधिपतयः) मरुत् हैं पर्वतों के अधिपति, (ते मा अवन्तु) वे मेरी रक्षा करें। (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।

    टिप्पणी

    [मरुतः= मानसून वायुएँ (अथर्व० ४.२७.४, ५); पर्वतः मेघनाम (निघं० १.१० )। तथा मरुतः=मारने में कुशल सैनिक (यजु:० १७.४०), वे पर्वतीय युद्धों के अधिपति हैं।]

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    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (मरुतः) वायुएं जिस प्रकार (पर्वतानाम्) उच्च शिखरों वाले पर्वतों या मेघों के (अधि-पतयः) अधिपति हैं अपने वेग से उन तक वर्षा के जल पहुंचाने वाले और मेघों को सर्वत्र उड़ा ले जाने वाले हैं उसी प्रकार पर्व = पोरुओं के बने देहों के अधिपति ये प्राण हैं। ये पूर्वोक्त शुभ कार्यों में (मा अवन्तु) मेरी रक्षा करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    Maruts are the controlling forces of the clouds and mountains. May they protect and promote me in this holy pursuit of divine knowledge, in this particular programme, in this pious priestly undertaking, in this prestigious position, in this plan, in this resolution, in this discipline and benediction, and in this yajna of the divinities. This is the voice of the soul, in truth.

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    Translation

    The cloud-bearing winds (Maruts) are the lords of mountains; may they favour me in this prayer, in this rite, in this priestly representation, in this firm standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction, and in this invocation of the bounties of Nature. Svahà.

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    Translation

    Marutah, the 49 aerial or gaseous elements are the master powers of clouds and mountains, let these protect me in this attainment of knowledge, in this my act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life's Stability, in this intention, in this my deliberate activity. in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever is uttered herein is correct.

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    Translation

    Lords of the mountains, may the airs preserve me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

    Footnote

    Air is the lord of mountains as it takes rain to their top with its strength and velocity.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(मरुतः) अ० १।२०।१। ऋत्विजः−निघ० ३।१८। याजकाः (पर्वतानाम्) शैलानाम्। तत्रस्थौषधीनाम् (अधिपतयः) अधिष्ठातारः (ते) (मा) (अवन्तु) रक्षन्तु ॥

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