Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मृत्युः छन्दः - अतिशक्वरी सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
    38

    मृ॒त्युः प्र॒जाना॒मधि॑पतिः॒ स मा॑वतु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मृ॒त्यु: । प्र॒ऽजाना॑म् । अधि॑ऽपति: ।स:। मा॒ । अ॒व॒तु॒ । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मृत्युः प्रजानामधिपतिः स मावतु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मृत्यु: । प्रऽजानाम् । अधिऽपति: ।स:। मा । अवतु । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (मृत्युः) मृत्यु (प्रजानाम्) उत्पन्न प्राणियों का (अधिपतिः) अधिष्ठाता है (सः) वह... म० १ ॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्य मृत्यु की प्रबलता पर ध्यान देकर सब शुभ काम शीघ्र सिद्ध करें ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(मृत्युः) अ० १।३०।३। मरणम् (प्रजानाम्) उत्पन्नानां शरीरिणाम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'प्रजानाम् अधिपतिः' मृत्युः

    पदार्थ

    १. (मृत्युः) = मृत्यु (प्रजानाम् अधिपति:) = सब प्रजाओं का स्वामी है। कोई भी व्यक्ति इस मृत्यु से बच नहीं सकता। २. मैं सदा इस मृत्यु का स्मरण करूँ। यह मृत्यु-स्मरण मुझे विषयासक्ति से बचाता है व मार्ग-भ्रष्ट नहीं होने देता। इसप्रकार (स:) = वह मृत्यु (मा) = मुझे (अवतु) = रक्षित करे मार्ग-भ्रष्ट होने से बचाए। मैं सदा उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहूँ। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    मृत्यु-स्मरण से मार्ग-भ्रष्ट न होता हुआ मैं सदा सत्पथ का आक्रमण करूँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (मृत्युः प्रजानाम् अधिपतिः) मृत्यु प्रजाओं का अधिपति है, (सः मा अवतु) वह मेरी रक्षा करे। (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।

    टिप्पणी

    [मृत्यु=परमेश्वर। यथा "स एव मृत्युः सो३मृतं सो३भ्वां१स रक्ष:" (अथर्व० १३.४.२५)।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (मृत्युः) मारण-धर्मा मृत्यु, मौत ही (प्रजानाम्) जिस प्रकार समस्त उत्पन्न होने वाली प्रजाओं का (अधि-पतिः) स्वामी है उसी प्रकार वह प्रभु सबका अन्तकारी होने से सबका स्वामी है (सः) वह उक्त शुभ कामों में हमारी रक्षा करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    Mrtyu, divine law of life and death, is the ruling power of the living, the people. May that power divine protect and promote me in this divine scheme of life and work, in this work I am doing, in this priestly task, in this prestigious position, in this planned project, in this resolution, in this blessed work, and in this yajnic life dedicated to the divinities. This is the voice of the soul in earnest.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Death (Mrtyu) is the lord of creatures; may he favour me in this prayer, in this rite,in this priestly representation, in this firm-standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction, and in this invocation of the bounties of Nature. Svaha.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Mrityuh, the time is the master-power of all born-objects, let it protect me in this attainment of knowledge, in this act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life’s stability, in this intention, in this my deliberate activity, in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever uttered here in is correct.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Just as Death is the lord of all living creatures, so God is the Lord of all mortals. May He preserve me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(मृत्युः) अ० १।३०।३। मरणम् (प्रजानाम्) उत्पन्नानां शरीरिणाम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top