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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - द्यावापथिवी छन्दः - अतिशक्वरी सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
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    द्यावा॑पृथि॒वी दा॑तॄ॒णामधि॑पत्नी॒ स मा॑वतु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । दा॒तृ॒णाम् । अधि॑पत्नी॒ इत्यधि॑पत्नी । ते । इति । मा । अवताम् । अस्मिन् । ब्रह्मणि । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ । ॥२४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यावापृथिवी दातॄणामधिपत्नी स मावतु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्यावापृथिवी इति । दातृणाम् । अधिपत्नी इत्यधिपत्नी । ते । इति । मा । अवताम् । अस्मिन् । ब्रह्मणि । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा । ॥२४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी (दातॄणाम्) दाताओं की (अधिपत्नी) अधिष्ठात्री हैं, (ते) वे दोनों (मा) मुझे (अवताम्) बचावे, म० १ ॥३॥

    भावार्थ

    सूर्य द्वारा वृष्टि और प्रकाश पृथिवी में प्रविष्ट होकर सब पदार्थ उत्पन्न करते हैं, मनुष्य उन पदार्थों से प्रयत्नपूर्वक अपना पालन करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (दातॄणाम्) दानशीलानाम् (अधिपत्नी) अधिष्ठात्र्यौ (ते) उभे (मा) माम् (अवताम्) रक्षताम् ॥

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    विषय

    'दातणाम् अधिपत्नी' द्यावापृथिवी

    पदार्थ

    (द्यावापृथिवी) = धुलोक व पृथिवीलोक (दातृणाम् अधिपत्नी) = दाताओं के अधिपति हैं।सबसे मुख्य दाता ये द्यावापृथिवी ही हैं। धुलोक पिता है तो पृथिवीलोक  माता। ये हम सब पुत्रों के लिए आवश्यक पदार्थों को प्राप्त कराते हैं। ये ही हमें खान-पान आदि के लिए सब वस्तुओं को सुलभ कराते हैं। २. (ते) = वे (द्यावापृथिवी मा) = मेरा (अवताम्) = रक्षण करें। ये तो हमारे पिता-माता हैं, रक्षण क्यों न करेंगे? इनसे रक्षित होकर मैं ज्ञान-प्राप्ति आदि उत्तम कर्मों में लगा रहूँ। शेष पूर्ववत्।

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    भाषार्थ

    (द्यावापृथिवी) द्यौ तथा पृथिवी (दातृणाम्) दाताओं की (अधिपत्नी) स्वामिनी हैं, (ते) वे दोनों (मा) मेरी (अवताम्) रक्षा करें (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।

    टिप्पणी

    [प्राणियों को जीवन सामग्री द्यौ: तथा पृथिवी से प्राप्त हो रही है। यह दोनों महादानी हैं।]

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    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (दातॄणां) दानशील पुरुषों के (अधिपत्नी) अधिपति, मुख्यदाता (द्यावापृथिवी) ज़मीन और आसमान या सूर्य और पृथिवी दोनों (माम्) मुझे (अस्मिन् ब्रह्माणि इत्यादि) इस ब्रह्मोपासना, वेदाध्ययन आदि पूर्वोक्त शुभ कार्यों में (अवताम्) रक्षा करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    May earth and heaven, presiding protectors of the generous, guide and promote me in this divine prayer and pursuit, in this particular act, in this pious undertaking, in this settled position of responsibility, in this plan, in this resolution, in this discipline and benediction, and in this yajna in honour of the divinities. This is the voice of the soul’s prayer.

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    Translation

    Heaven and earth (dyàvà-prthivi) are the queens of donors; may they two favour me in this prayer, in this rite, in this priestly representation, in this firm standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction, and in this invocation of the bounties of Nature. Svaha.

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    Translation

    The Heaven and the earth the master-powers of the bounteous activities. let both of them protect me in this my attainment of knowledge, in this my act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life’s stability, in this intention, in this my deliberate activity, in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever is uttered herein is correct.

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    Translation

    May Heaven and Earth, the queens of bounties protect me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (दातॄणाम्) दानशीलानाम् (अधिपत्नी) अधिष्ठात्र्यौ (ते) उभे (मा) माम् (अवताम्) रक्षताम् ॥

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