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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरुणः छन्दः - अतिशक्वरी सूक्तम् - ब्रह्मकर्म सूक्त
    59

    वरु॑णो॒ऽपामधि॑पतिः॒ स मा॑वतु। अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वरु॑ण:। अ॒पाम् ।अधि॑ऽपति:। स: । मा॒ । अ॒व॒तु॒ । अ॒स्मिन् । कर्म॑णि । अ॒स्याम् । पु॒र॒:ऽधाया॑म् । अ॒स्याम् । प्र॒ति॒ऽस्थाया॑म् । अ॒स्याम् । चित्त्या॑म् । अ॒स्याम् । आऽकू॑त्याम् । अ॒स्याम् । आ॒ऽशिषि॑ । अ॒स्याम् । दे॒वऽहू॑त्याम् । स्वाहा॑ ॥२४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वरुणोऽपामधिपतिः स मावतु। अस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्कर्मण्यस्यां पुरोधायामस्यां प्रतिष्ठायामस्यां चित्त्यामस्यामाकूत्यामस्यामाशिष्यस्यां देवहूत्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वरुण:। अपाम् ।अधिऽपति:। स: । मा । अवतु । अस्मिन् । कर्मणि । अस्याम् । पुर:ऽधायाम् । अस्याम् । प्रतिऽस्थायाम् । अस्याम् । चित्त्याम् । अस्याम् । आऽकूत्याम् । अस्याम् । आऽशिषि । अस्याम् । देवऽहूत्याम् । स्वाहा ॥२४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रक्षा के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (वरुणः) वरणीय मेघ (अपाम्) जलधाराओं का (अधिपतिः) अधिष्ठाता है, (सः) वह (मा) मुझे (अवतु) बचावे.... म० १ ॥४॥

    भावार्थ

    मेघ से वृष्टि होकर पृथिवी के पदार्थ उत्पन्न होते हैं, उनसे मनुष्य अपनी रक्षा करे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(वरुणः) वरणीयो मेघः (अपाम्) जलधाराणाम् ॥

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    विषय

    'अपाम् अधिपतिः' वरुणः

    पदार्थ

    १. (वरुण:) = सब कष्टों का निवारण करनेवाला प्रभु (अपाम्) = जलों का अधिपतिः स्वामी है। उसने इन जलों का निर्माण करके हमारे कष्टों व रोगों के निवारण की व्यवस्था की है। ये जल "बारि' हैं-रोगों का निवारण करनेवाले, 'भेषजम्'-औषध हैं, 'अमृतम्' नीरोगता देनेवाले हैं। इनमें उस वरुण ने सब रोगों के औषधों को स्थापित किया है। २. (सः मा अवतु) = चे वरुण मेरा रक्षण करें। जलों का समुचित प्रयोग करता हुआ मैं नीरोग बनकर ज्ञानादि कर्मों में प्रवृत्त रहूँ। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    वरुण प्रभु ने रोग-निवारण के लिए इन जलों को हमें प्राप्त कराया है। इनका ठीक प्रयोग हमें स्वस्थ बनाये। स्वस्थ रहकर हम ज्ञानादि प्राप्त करें।

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    भाषार्थ

    (वरुणः अपाम् अधिपतिः) वरुण जलों का अधिपति है, (सः मा अवतु) वह मेरी करे। (अस्मिन् ब्रह्मणि) इस वेदज्ञान की प्राप्ति में, (अस्मिन् कर्मणि) इस वैदिक कर्म में, (अस्याम् पुरोधायाम्) इस संमुख-स्थापित अभिलाषा की पूर्ति में, (अस्याम् प्रतिष्ठायाम् ) इस दृढ़ स्थिति में, (अस्याम्, चित्त्याम्) इस स्मृतिशक्ति में, (अस्याम् आकूत्याम् ) इस संकल्प में, (अस्याम् आशिष्यस्याम्) इस आशा की पूर्ति में, (देवहूत्याम्) दिव्यगुणों या विद्वानों के आह्वान में, (स्वाहा) यह उत्तम कथन हुआ है।

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    विषय

    परमेश्वर से धर्म-कार्य में रक्षा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    जैसे समस्त जलों का स्वामी (वरुणः) महान् समुद्र है। उसी प्रकार (अपां) व्यापक लोकों का और प्रजाओं का (अधि-पतिः) स्वामी (वरुणः) सर्वव्यापक, सर्वश्रेष्ठ प्रभु है। (सः) वह (अस्मिन् ब्रह्मणि० इत्यादि) इन ब्रह्मोपासना वेदाध्ययन आदि शुभ कार्यों में (मा अवतु) मेरी रक्षा करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मकर्मात्मा देवता। १-१७ चतुष्पदा अतिशक्वर्यः। ११ शक्वरी। १५-१६ त्रिपदा। १५, १६ भुरिक् अतिजगती। १७ विराड् अतिशक्वरी। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-Protection, Brahma Karma

    Meaning

    Varuna is the presiding power of the cosmic waters. May Varuna protect and promote me in this holy pursuit of knowledge and prayer, in this holy act, in this priestly task, in this honourable undertaking, in this thought, in this resolution, in this benedition, and in this yajnic service to the divinities. This is the inner voice and prayer in truth.

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    Translation

    The ocean (Varuna) is the Lord of waters; may he favour me in this prayér, in this rite, in this priestly representation, in this firm standing, in this intent (or idea), in this design, in this benediction, and in this invocation of the bounties of Nature. Svaha.

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    Translation

    Varuna, the watery essence is the master-power of waters, let it protect me in this my attainment of knowledge, in this my act, in this my sacerdotal undertaking, in this my act of life's stability. in this intention, in this my deliberate activity, in this performance expectation and prosperity and in this my activity of yajna and science. Whatever is uttered here in is correct.

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    Translation

    Just as Ocean is the lord of waters, so is God the Lord of worlds and His subjects. May He protect me, in this my study of the Vedas, in this duty of mine, in this my sacerdotal charge, in this noble performance, in this meditation, in this my resolve and determination, in this administration, in this assembly of the learned. May this noble prayer of mine be fulfilled.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(वरुणः) वरणीयो मेघः (अपाम्) जलधाराणाम् ॥

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