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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 23
    ऋषिः - मातृनामा देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
    246

    य आ॒मं मां॒समदन्ति॒ पौरु॑षेयं च॒ ये क्र॒विः। गर्भा॒न्खाद॑न्ति केश॒वास्तानि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । आ॒मम् । मां॒सम् । अ॒दन्ति॑ । पौरु॑षेयम् । च॒ । ये । क्र॒वि: । गर्भा॑न् । खाद॑न्ति । के॒श॒ऽवा: । तान् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥६.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये क्रविः। गर्भान्खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । आमम् । मांसम् । अदन्ति । पौरुषेयम् । च । ये । क्रवि: । गर्भान् । खादन्ति । केशऽवा: । तान् । इत: । नाशयामसि ॥६.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गर्भ की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो [कीड़े] (आमम्) कच्चे (मांसम्) मांस को (च) और (ये) जो (पौरुषेयम्) पुरुष के (क्रविः) मांस को (अदन्ति) खाते हैं। (केशवाः) और क्लेश पहुँचानेवाले [रोग वा कीड़े] (गर्भान्) गर्भों को (खादन्ति) खाते हैं। (तान्) उन सबको (इतः) यहाँ से (नाशयामसि) हम नाश करते हैं ॥२३॥

    भावार्थ

    वैद्य लोग रोगजनक कीड़ों और रोगों को गर्भिणी स्त्री से अलग करें ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(ये) क्रमयः (आमम्) अपक्वम् (मांसम्) आमिषम् (अदन्ति) (पौरुषेयम्) अ० ७।१२५।१। पुरुषस्य सम्बन्धि (च) (ये) (क्रविः) अ० ८।३।१५। मांसम् (गर्भान्) उदरस्थबालकान् (खादन्ति) भक्षयन्ति। नाशयन्ति (केशवाः) क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। क्लिशू विबाधने अन्, ललोपः+वह प्रापणे-ड। क्लेशस्य वाहकाः प्रापकाः क्रमयो रोगा वा (तान्) सर्वान् (इतः) अस्मात् (नाशयामसि) ॥

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    विषय

    मांसाहारी कृमि

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (आमं मांसं अदन्ति) = कच्चा मांस खाते हैं, (च) = और ये (पौरुषेयम् क्रविः) = पुरुष के मांस को विशेषरूप से खानेवाले हैं, जो (केशवा:) = बड़े-बड़े बालोंवाले (गर्भान् खादन्ति) = गर्भस्थ बालकों को ही खा जाते हैं, (तान्) = उन सब कृमियों को (इत: नाशयामसि) यहाँ से नष्ट करते हैं।

    भावार्थ

    कच्चा मांस खा जानेवाले, परिपक्व पौरुष मांस को नष्ट कर डालनेवाले, गर्भस्थ बालकों को खा जानेवाले सब रोगकृमियों को नष्ट करते हैं।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (आमम्) [स्त्री के] कच्चे (मांसम्) मांस को (अदन्ति) खाते हैं, (च) और (ये) जो (पौरुषेयम्) पुरुष के (क्रविः) हिंसा प्राप्त मांस को खाते हैं, तथा (केशवाः) जल, वायु तथा शरीर में गति करने वाले जो कीटाणु (गर्भान खादन्ति) स्त्री के गर्भस्थ शिशुओं को खाते हैं, (तान्) उन कीटाणुओं को (इतः) इस उत्पत्ति स्थान से (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं।

    टिप्पणी

    [स्त्री और पुरुष के कच्चे मांस के खाने का अभिप्राय है– उन्हें रुग्ण करके उन्हें सुखा देना। इसी प्रकार गर्भस्थ बच्चे को पुष्ट न होने देने द्वारा उसे सुखा देना। ये काम रोगजनक कीटाणुओं [germs] के हैं। ये रोगजनक कीटाणु जल आदि में पैदा होते तथा गति करते रहते हैं। केशवः = क (Air, Body, water, आप्टे) + शवाः (शु गतौ, भ्वादिः)। क्रविः= हिंसाकरणयोश्च (भ्वादिः)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Foetus Protection

    Meaning

    O physician, protect the mother and foetus from those germs that consume raw, live or dead human flesh. We destroy all the germs which thrive in water, air and the body and consume the foetuses.

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    Translation

    Those who eat into flesh, and those who (eat) human flesh, and those hairy ones, that eat the unborn foetus - we drive them away from here.

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    Translation

    We, the physicians drive away from here the germs which eat uncooked flesh, which consume the flesh of man; which eat the embryos and which have long hair.

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    Translation

    Those who eat flesh uncooked, and those who eat the bleeding flesh of man, feeders on babes unborn, long-haired impostors, far from this place we banish them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(ये) क्रमयः (आमम्) अपक्वम् (मांसम्) आमिषम् (अदन्ति) (पौरुषेयम्) अ० ७।१२५।१। पुरुषस्य सम्बन्धि (च) (ये) (क्रविः) अ० ८।३।१५। मांसम् (गर्भान्) उदरस्थबालकान् (खादन्ति) भक्षयन्ति। नाशयन्ति (केशवाः) क्लिशेरन् लो लोपश्च। उ० ५।३३। क्लिशू विबाधने अन्, ललोपः+वह प्रापणे-ड। क्लेशस्य वाहकाः प्रापकाः क्रमयो रोगा वा (तान्) सर्वान् (इतः) अस्मात् (नाशयामसि) ॥

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