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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
    ऋषिः - मातृनामा देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
    61

    दु॒र्णामा॑ च सु॒नामा॑ चो॒भा सं॒वृत॑मिच्छतः। अ॒राया॒नप॑ हन्मः सु॒नामा॒ स्त्रैण॑मिच्छताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दु॒:ऽनामा॑ । च॒ । सु॒ऽनाम॑ । च॒ । उ॒भा । स॒म्ऽवृत॑म् । इ॒च्छ॒त॒:। अ॒राया॑न् । अप॑ । ह॒न्म॒: । सु॒ऽनामा॑ । स्त्रैण॑म् । इ॒च्छ॒ता॒म् ॥६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दुर्णामा च सुनामा चोभा संवृतमिच्छतः। अरायानप हन्मः सुनामा स्त्रैणमिच्छताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दु:ऽनामा । च । सुऽनाम । च । उभा । सम्ऽवृतम् । इच्छत:। अरायान् । अप । हन्म: । सुऽनामा । स्त्रैणम् । इच्छताम् ॥६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गर्भ की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (दुर्णामा) दुर्नाम [कठिन रोग] (च) और (सुनामा) सुनाम [स्वस्थपन] (च) भी (उभा) दोनों (संवृतम्) समीप रहना (इच्छतः) चाहते हैं। (अरायान्) अलक्ष्मीवाले [रोगों] को (अप हन्मः) हम मिटाते हैं, (सुनामा) सुनाम [स्वस्थपन] (स्रैणम्) स्त्री सम्बन्धी [शरीर] को (इच्छताम्) चाहे ॥४॥

    भावार्थ

    वैद्य समीपवर्ती रोग के कारणों को रोककर गर्भिणी का स्वास्थ्य बढ़ाते रहें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(दुर्णामा) म० १। दुष्टरोगः (च) (सुनामा) सुभगः। स्वस्थभावः (च) (उभा) द्वौ (संवृतम्) वृतु वर्तने-क्विप्। समीपवर्तनम् (इच्छतः) (अरायान्) अ० २।२५।३। अलक्ष्मीकान् रोगान् (अप हन्मः) विनाशयामः (सुनामा) (स्रैणम्) स्त्रीपुंसाभ्यां नञ्स्नञौ भवनात्। पा० ४।१।८७। स्त्री-नञ्। स्त्रीसम्बन्धि शरीरम् (इच्छताम्) आत्मनेपदं छान्दसम्। इच्छत् ॥

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    विषय

    दामा बनाम सुनामा

    पदार्थ

    १. (दुर्णामा च) = दुष्टरोगाक्रान्त पुरुष और (सुनामा च) = उत्तम रूपादियुक्त सुगुण पुरुष (उभा) = दोनों (संवृतम्) = संवरण को-स्वयंवर पर वरे जाने को (इच्छतः) = चाहते हैं। विवाहित होने की इच्छा स्वाभाविक हैं। रोगी भी विवाहित होना चाहता ही है। २. परन्तु हम इस अवसर पर (अरायान्) = अलक्ष्मीक-उत्तम गुण-सम्पत्तिरहित पुरुष को (अपहन्म:) = दूर भगाते हैं। (सुनामा) = उत्तम गुण-सम्पत्तिवाला यशस्वी पुरुष ही (स्त्रैणम्) = स्त्री-शरीर को [स्त्रियाः सम्बन्थ्यङ्गम्-सा०] (इच्छताम्) = चाहे-वही इसे प्राप्त करें।

    भावार्थ

    दुर्नामाख्य रोगपीड़ित पुरुष के साथ हम युवति कन्या का सम्बन्ध न करें। अलक्ष्मीक पुरुषों को दूर भगाकर यशस्वी पुरुष से ही उनका सम्बन्ध करें।

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    भाषार्थ

    (दुर्णामा च सुनामा च) दुर्णामा और सुनामा रोगकीटाणु (उभा) दोनों (संवृतम्) अङ्ग का संकोचन [करना] (इच्छतः) चाहते हैं। (अरायान्) शत्रुरूप, अरातिरूप रोगकीटाणुओं का (अप हन्मः) हम हनन करते हैं, (सुनामा) सुखदायक कीटाणु (स्त्रैणम्) स्त्री के अङ्ग विशेष को (इच्छताम्) चाहे।

    टिप्पणी

    [इच्छतः१, इच्छताम्' द्वारा दोनों प्रकार के कीटाणुओं को चेतनसदृश दर्शाया है। इच्छताम् में व्यत्यय से आत्मनेपद है। दुर्णामा तो रोगोत्पादक है, और सुनामा स्त्री के लिये स्वास्थ्यकारी२ है]। [१. इच्छा होने से दुर्णामा और सुनामा रोगकीटाणु हैं, चेतन सदृश हैं। २. दुर्णामा स्वस्थ शरीर को सुखा कर मांस को संकुचित करता है, और सुनामा प्रसूतिकाल के हुए योनिविस्तार को संकुचित करता है, यह अभिप्राय प्रतीत होता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Foetus Protection

    Meaning

    Negative and positive conditions of health and growth contend together. Of these, the negatives we remove so that the positives may help the procreative power of the mother’s system.

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    Translation

    Durnama (ill-famed) and sunama (of good reputation), both desire to approach her. We smite off the evil ones. Let sunama desire the women-folk.

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    Translation

    The germ Durnama and Sunama both become eager’ to approach woman. I drive away these disease-causing enemies and let the Sunama, (the germ causing female diseases) go to the person who is indiscriminately absorbed in sexual inter- course with woman.

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    Translation

    A miserable person suffering from a fell disease, and a beautiful virtuous man, both long for marriage. We drive away the characterless, low man, and let the beautiful, noble one woo the girl.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(दुर्णामा) म० १। दुष्टरोगः (च) (सुनामा) सुभगः। स्वस्थभावः (च) (उभा) द्वौ (संवृतम्) वृतु वर्तने-क्विप्। समीपवर्तनम् (इच्छतः) (अरायान्) अ० २।२५।३। अलक्ष्मीकान् रोगान् (अप हन्मः) विनाशयामः (सुनामा) (स्रैणम्) स्त्रीपुंसाभ्यां नञ्स्नञौ भवनात्। पा० ४।१।८७। स्त्री-नञ्। स्त्रीसम्बन्धि शरीरम् (इच्छताम्) आत्मनेपदं छान्दसम्। इच्छत् ॥

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