अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 8/ मन्त्र 9
सूक्त - कुत्सः
देवता - आत्मा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
ति॒र्यग्बि॑लश्चम॒स ऊ॒र्ध्वबु॑ध्न॒स्तस्मि॒न्यशो॒ निहि॑तं वि॒श्वरू॑पम्। तदा॑सत॒ ऋष॑यः स॒प्त सा॒कं ये अ॒स्य गो॒पा म॑ह॒तो ब॑भू॒वुः ॥
स्वर सहित पद पाठति॒र्यक्ऽबि॑ल: । च॒म॒स: । ऊ॒र्ध्वऽबु॑ध्न: । तस्मि॑न् । यश॑: । निऽहि॑तम् । वि॒श्वऽरू॑पम् । तत् । आ॒स॒ते॒ । ऋष॑य: । स॒प्त । सा॒कम् । ये । अ॒स्य । गो॒पा । म॒ह॒त: । ब॒भू॒वु: ॥८.९॥
स्वर रहित मन्त्र
तिर्यग्बिलश्चमस ऊर्ध्वबुध्नस्तस्मिन्यशो निहितं विश्वरूपम्। तदासत ऋषयः सप्त साकं ये अस्य गोपा महतो बभूवुः ॥
स्वर रहित पद पाठतिर्यक्ऽबिल: । चमस: । ऊर्ध्वऽबुध्न: । तस्मिन् । यश: । निऽहितम् । विश्वऽरूपम् । तत् । आसते । ऋषय: । सप्त । साकम् । ये । अस्य । गोपा । महत: । बभूवु: ॥८.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(चमसः) मस्तिष्क और सुषुम्णादण्ड चमचे के सदृश है जोकि उल्टेचमचे के सदृश (तिर्यग्बिलः) नीचे की ओर विल वाला और (ऊर्ध्वबुध्नः) ऊपर की ओर पेंदी वाला है। (तस्मिन्) उसमें (विश्वरूपम्) नानारूप (यशः) ज्ञान (निहितम्) रखा रहता है। (तद्) उसमें (सप्त ऋषयः) सात ऋषि (साकम्) साथ-साथ (आसत) उपविष्ट है (ये) जो कि (अस्य) इस (महतः) महाशरीर के (गोपाः) रक्षक (बभूवुः) हुए हैं।
टिप्पणी -
[यशः = ज्ञान या कीर्ति। सप्त ऋषयः ५ ज्ञानेन्द्रियां, मनः और विद्या (बुद्धि)। ये सात महाशरीर के रक्षक हैं। ऊर्ध्वबुध्नः का अर्थ निरुक्त में "ऊर्ध्व बोधनो वा" भी किया है, अर्थात पैंदे१ के ऊपर के भाग में बोध अर्थात् ज्ञान वाला चमस (१२।४। खण्ड ४० अथवा (पद) २५। निरुक्त में अधिदैवत पक्ष में मन्त्र द्वारा आदित्य का भी वर्णन माना है। इस पक्ष में सात ऋषि हैं, सप्तविध रश्मियां और ऊर्ध्वबुध्नः= ऊर्ध्वबधनः, जो कि ऊपर की ओर बन्धा हुआ है]। [१. अभिप्राय यह कि मस्तिष्क के ऊर्ध्व भाग में बोध का स्थान है, नीचे की ओर नहीं।]