अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
सूक्त - कुत्सः
देवता - आत्मा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
द्वाद॑श प्र॒धय॑श्च॒क्रमेकं॒ त्रीणि॒ नभ्या॑नि॒ क उ॒ तच्चि॑केत। तत्राह॑ता॒स्त्रीणि॑ श॒तानि॑ श॒ङ्कवः॑ ष॒ष्टिश्च॒ खीला॒ अवि॑चाचला॒ ये ॥
स्वर सहित पद पाठद्वाद॑श । प्र॒ऽधय॑: । च॒क्रम् । एक॑म् । त्रीणि॑ । नभ्या॑नि । क: । ऊं॒ इति॑ । तत् । चि॒के॒त॒ । तत्र॑ । आऽह॑ता: । त्रीणि॑ । श॒तानि॑ । श॒ङ्कव॑: । ष॒ष्टि: । च॒ । खीला॑: । अवि॑ऽचाचला: । ये ॥८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत। तत्राहतास्त्रीणि शतानि शङ्कवः षष्टिश्च खीला अविचाचला ये ॥
स्वर रहित पद पाठद्वादश । प्रऽधय: । चक्रम् । एकम् । त्रीणि । नभ्यानि । क: । ऊं इति । तत् । चिकेत । तत्र । आऽहता: । त्रीणि । शतानि । शङ्कव: । षष्टि: । च । खीला: । अविऽचाचला: । ये ॥८.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(द्वादश) १२ (प्रधयः) पुट्ठियां (चक्रम् एकम्) एक चक्र (त्रीणि) तीन (नभ्यानि) नाभि के हिस्से (क, उ तत्, चिकेत) कौन उसे जानता है। (तत्र) उस चक्र में (त्रीणि शतानि) तीन सौ (शङ्कवः) शङ्कु (आहताः) हैं, (षष्टिः, च) और साठ (खीलाः) कील हैं (ये) जो कि (अविचाचलाः) विचलित नहीं होते [स्थिर रहते हैं]।
टिप्पणी -
[मन्त्र में वर्ष का वर्णन हुआ है। वर्ष के १२ मास है १२ प्रधियां पुट्टियां (Fellies)। वर्ष एक चक्र है, पहिया है, जिसकी परिधि १२ प्रधियों से निर्मित हुई है। तीन नभ्य हैं ग्रीष्म, वर्षा, शरद्। ये तीन एक वर्ष के नभ्य है। पहिए के१ तीन नभ्य विचाराधीन हैं। तीन सौ और साठ शङ्कु और खील है = वर्ष के ३६० दिन। प्रत्येक मास तीस दिनों के हिसाब से। पहिए के दण्डे जो नाभि और परिधि में लगे रहते हैं उन्हें भी सम्भवतः ३६० कहा है। ये ३६० दिन विचलित नहीं होते, यह संख्या वर्ष के निर्माण में स्थिर रहती है। राशिचक्र (Zodiac) को भी ३६० अंशों में बाण्टा जाता है। ३०० को शङ्कु, और ६० को खील कहा है। एक ऋतु दो मासों की होती है, और प्रत्येक मास ३० दिनों का। सम्भवतः ऋतु के निर्माण सम्बन्ध में ६० खीलों का वर्णन पृथक् रूप में किया हो, प्रत्येक ऋतु ६० दिनों की होती है। मन्त्र में "क उ तच्चिकेत" में "कः" पद द्व्यर्थक है। कः = कौन, तथा कः = प्रजापति परमेश्वर। अतः यह भी सूचित कर दिया है कि "प्रजापति परमेश्वर" उसे जानता है। यथा "कस्मै देवाय हविषा विधेम" में दो अर्थ किये जाते हैं, (१) किस देव के लिये, (२) प्रजापति देव के लिये हवि द्वारा हम परिचर्या करें] [१. सम्भवतः पहिये की नाभि का भी निर्माण तीन प्रधियों द्वारा अभिप्रेत हो जिन्हें कि त्रीणि नभ्यानि= नाभौ भवानि, नाभौ हितानि वा।]