अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 3/ मन्त्र 21
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - चतुरवसानाष्टपदाकृतिः
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
नि॒म्रुच॑स्ति॒स्रो व्युषो॑ ह ति॒स्रस्त्रीणि॒ रजां॑सि॒ दिवो॑ अ॒ङ्ग ति॒स्रः। वि॒द्मा ते॑ अग्ने त्रे॒धा ज॒नित्रं॑ त्रे॒धा दे॒वानां॒ जनि॑मानि वि॒द्म। तस्य॑ दे॒वस्य॑ क्रु॒द्धस्यै॒तदागो॒ य ए॒वं वि॒द्वांसं॑ ब्राह्म॒णं जि॒नाति॑। उद्वे॑पय रोहित॒ प्र क्षि॑णीहि ब्रह्म॒ज्यस्य॒ प्रति॑ मुञ्च॒ पाशा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठनि॒:ऽम्रुच॑: । ति॒स्र: । वि॒ऽउष॑: । ह॒ । ति॒स्र: । त्रीणि॑ । रजां॑सि । दिव॑: । अ॒ङ्ग । ति॒स्र: । वि॒द्म । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । त्रे॒धा । ज॒नित्र॑म् । त्रे॒धा । दे॒वाना॑म् । जनि॑मानि । वि॒द्म॒ । तस्य॑ । दे॒वस्य॑ ॥ क्रु॒ध्दस्य॑ । ए॒तत् । आग॑: । य: । ए॒वम् । वि॒द्वांस॑म् । ब्रा॒ह्म॒णम् । जि॒नाति॑ । उत् । वे॒प॒य॒ । रो॒हि॒त॒ । प्र । क्षि॒णी॒हि॒ । ब्र॒ह्म॒ऽज्यस्य॑ । प्रति॑ । मु॒ञ्च॒ । पाशा॑न् ॥३.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
निम्रुचस्तिस्रो व्युषो ह तिस्रस्त्रीणि रजांसि दिवो अङ्ग तिस्रः। विद्मा ते अग्ने त्रेधा जनित्रं त्रेधा देवानां जनिमानि विद्म। तस्य देवस्य क्रुद्धस्यैतदागो य एवं विद्वांसं ब्राह्मणं जिनाति। उद्वेपय रोहित प्र क्षिणीहि ब्रह्मज्यस्य प्रति मुञ्च पाशान् ॥
स्वर रहित पद पाठनि:ऽम्रुच: । तिस्र: । विऽउष: । ह । तिस्र: । त्रीणि । रजांसि । दिव: । अङ्ग । तिस्र: । विद्म । ते । अग्ने । त्रेधा । जनित्रम् । त्रेधा । देवानाम् । जनिमानि । विद्म । तस्य । देवस्य ॥ क्रुध्दस्य । एतत् । आग: । य: । एवम् । विद्वांसम् । ब्राह्मणम् । जिनाति । उत् । वेपय । रोहित । प्र । क्षिणीहि । ब्रह्मऽज्यस्य । प्रति । मुञ्च । पाशान् ॥३.२१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 3; मन्त्र » 21
भाषार्थ -
(निम्रुचः) सूर्यास्त (तिस्रः) तीन हैं, (व्युषः) उषाएँ (ह तिस्रः) निश्चय से तीन हैं, (रजांसि) लोक (त्रीणि) तीन हैं, (अङ्ग) हे प्रिय ! (दिवः) द्युलोक (तिस्रः) तीन हैं। (अग्ने) हे अग्नि (त्रेधा) तीन प्रकार के (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मों को (विद्मा) हम जानते हैं। (त्रेधा) तीन प्रकार के (देवानाम्) देवों के (जनिमानि) जन्मों को (विद्म) हम जानते हैं। (तस्य देवस्य..... पाशान्) पूर्ववत् (मन्त्र १)।
टिप्पणी -
[दिवः तिस्रः = (१) विषुवती रेखा अर्थात् Equinoctial, जिस पर सूर्य के उदयास्त पर दिन-रात बराबर होते हैं. २१ मार्च तथा २३ सितम्बर को- वह द्यु भाग। (२) विषुवती रेखा के उत्तर का द्युभाग। (३) विषुवती रेखा के दक्षिण का द्युभाग। इस प्रकार तीन द्युभाग "दिवः तिस्रः" हैं। निम्रुचः व्युषः तिस्रः = (१) सूर्य का विषुवती रेखा पर उदयास्त होना, २१ मार्च तथा २३ सितम्बर को; (२) सूर्य का कर्क राशि पर उदयास्त होना २१ जून को, कर्क राशि उत्तरायण की अन्तिम सीमा है; (३) सूर्य का मकर राशि पर उदयास्त होना २१ दिसम्बर को, मकर राशि दक्षिणायन की अन्तिम सीमा है। इन तीन१ स्थानों पर सूर्य के उदयास्त के अनुसार सूर्यास्त तथा उषाएं भी तीन प्रकार की हो जाती है। दिन-रात के बराबर होने, दिनों के बड़े होने, तथा रातों के बड़े होने से सूर्य के उदयास्त के समय भिन्न-भिन्न हो जाने से निम्रुचः अर्थात् सूर्यास्त, तथा व्युषः अर्थात् सूर्योदय सम्बन्धी उषाएं भी भिन्न-भिन्न अर्थात् त्रिविध हो जाते हैं। व्युषः अर्थात् विविध प्रकार की उषाएं। त्रीणि रजांसि = "लोका रजांस्युच्यन्ते" निरुक्त (४।३।१९)। तीन लोक हैं पृथिवी, अन्तरिक्ष तथा द्यौः। अग्ने त्रेधा जनित्रम् = अग्नि के जन्म तीन प्रकार के हैं। पार्थिवाग्नि का जन्म इध्म से होता है। अन्तरिक्षीय अग्नि अर्थात् विद्युत् का जन्म मेघों से होता हैं। द्युलोकस्थ अग्नि का जन्म द्युलोक के तत्त्वों द्वारा होता है। वर्तमान पाश्चात्य वैज्ञानिक इस तत्त्व को हाईड्रोजन कहते हैं। त्रेधा देवानां जन्मानि = देवों के त्रिविध जन्म=सूर्य तथा सूर्य सदृश स्वयं प्रकाशी देवों का जन्म प्रकृति की प्रकाशमयी "विराट्" अवस्था से; पृथिवी आदि ग्रहों का जन्म सूर्य से; तथा उपग्रह रूपी चन्द्र आदि का जन्म ग्रहों से हुआ हैं। इस प्रकार देवों के जन्म त्रेधा अर्थात त्रिविध है]। [१.आदित्य के लिये इन तीन स्थानों को "तीन बन्धन" भी कहा है। यथा त्रीणित आहुर्दिविबन्धनानि" (यजु० २९।१५)। आदित्य की प्रतीयमान गति द्युलोक के इन तीन स्थानों में बन्धी हुई है।]