अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - चतुरवसाना सप्तपदानुष्टुब्गर्भातिधृतिः
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
यो अ॑न्ना॒दो अन्न॑पतिर्ब॒भूव॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑रु॒त यः। भू॒तो भ॑वि॒ष्यद्भुव॑नस्य॒ यस्पतिः॑। तस्य॑ दे॒वस्य॑ क्रु॒द्धस्यै॒तदागो॒ य ए॒वं वि॒द्वांसं॑ ब्राह्म॒णं जि॒नाति॑। उद्वे॑पय रोहित॒ प्र क्षि॑णीहि ब्रह्म॒ज्यस्य॒ प्रति॑ मुञ्च॒ पाशा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । अ॒न्न॒ऽअ॒द: । अन्न॑ऽपति: । ब॒भूव॑ । ब्रह्म॑ण: । पति॑: । उ॒त । य: । भू॒त: । भ॒वि॒ष्यत् । भुव॑नस्य । य: । पति॑: । तस्य॑ । दे॒वस्य॑ ॥ क्रु॒ध्दस्य॑ । ए॒तत् । आग॑: । य: । ए॒वम् । वि॒द्वांस॑म् । ब्रा॒ह्म॒णम् । जि॒नाति॑ । उत् । वे॒प॒य॒ । रो॒हि॒त॒ । प्र । क्षि॒णी॒हि॒ । ब्र॒ह्म॒ऽज्यस्य॑ । प्रति॑ । मु॒ञ्च॒ । पाशा॑न् ॥३.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यो अन्नादो अन्नपतिर्बभूव ब्रह्मणस्पतिरुत यः। भूतो भविष्यद्भुवनस्य यस्पतिः। तस्य देवस्य क्रुद्धस्यैतदागो य एवं विद्वांसं ब्राह्मणं जिनाति। उद्वेपय रोहित प्र क्षिणीहि ब्रह्मज्यस्य प्रति मुञ्च पाशान् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । अन्नऽअद: । अन्नऽपति: । बभूव । ब्रह्मण: । पति: । उत । य: । भूत: । भविष्यत् । भुवनस्य । य: । पति: । तस्य । देवस्य ॥ क्रुध्दस्य । एतत् । आग: । य: । एवम् । विद्वांसम् । ब्राह्मणम् । जिनाति । उत् । वेपय । रोहित । प्र । क्षिणीहि । ब्रह्मऽज्यस्य । प्रति । मुञ्च । पाशान् ॥३.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(यः) जो (अन्नादः) अन्नभक्षक, (अन्नपतिः) अन्नों का स्वामी, (उत) तथा (यः) जो (ब्रह्मणस्पतिः) वेदों का स्वामी, (बभूव) हुआ हैं। (यः) जो (भुवनस्य) उत्पन्न जगत् का (पतिः) स्वामी है, (भूतः) हुआ है (भविष्यत्) और होगा। (तस्य देवस्य....... पाशान्) पूर्ववत् (मन्त्र १)।
टिप्पणी -
[अन्नादः = परमेश्वर अन्नाद है। समग्र प्राणी तथा अप्राणी उसके अन्न हैं, उन्हें वह खाता रहता है। जैसे कहा है- "यस्य ब्रह्म च क्षत्रं चोभे भवत ओदनः । मृत्युयस्योपसेचनं क इत्त्था वेद यत्र सः ॥ (कठोप० २।२५)। अर्थात् ब्राह्मतेजः सम्पन्न और क्षात्र शक्ति सम्पन्न व्यक्ति जिस के ओदन अर्थात् भात है, और मृत्यु जिस का उपसेचन अर्थात् भात को सींचने का पदार्थ दाल आदि है उसे कौन वास्तव में जानता है, जहां कि वह है, अर्थात् हृदय में है या मस्तिष्क में इन में से कहां उसका प्रत्यक्ष होता है। इस द्वारा यह जतलाया है कि जो परमेश्वर ब्रह्म और क्षत्र समान प्रवल व्यक्तियों को अपना भात बनाता है उस के लिये वैश्य और शुद्र तो सुतरां ओदन या भातरूप है, और जड़ पदार्थों की तो गिनती है क्या है ? वह परमेश्वर समग्र चराचर का पति है अन्नपति है, और साथ ही ज्ञानमय वेदों का भी वह ही पति है। परमेश्वर अन्नाद है, परन्तु अन्न१ भी है। भक्त उपासक समाधि में इस परमेश्वर के आनन्द रस-रूपी अन्न का आस्वादन करते हैं। "रसो वै सः रसं ह्येष लब्ध्वाऽऽनन्दो भवति" (तैत्तिरीयोप० २।७)]। [१. "अहमन्नम्, अहमन्नादः" (तै० उप० व्रह्मानन्द वल्ली २)।]